शनिवार, 29 अगस्त 2020

अखंड छंद

अखंड छंद~जल संरक्षण

सुनव सबोझन,
गुनव सबोझन।
बादर बरसे,
जिनगी हरसे।।

नँदिया तरिया,
भाँठा परिया।
खेत-खार मा,
मुँही-टार मा।।

पानी-पानी,
अति हलकानी।
कब ये खँगथे,
कब ये नँगते।।

पानी छेंकव,
झन तो फेंकव।
नइ पछताबे,
जल ल बचाबे।।

जतन करव अब,
लगन धरव सब।
सुमता  सुग्घर,
रद्दा उज्जर।।

जल संरक्षण,
तन-मन अर्पण।
जिनगी हाँसय,
जब जल बाँचय।।

कन्हैया साहू 'अमित'
शिक्षक-भाटापारा छ.ग.
रचना~22/08/2020

अवतार छंद

अवतार छंद ~ हमर गाँव के हाल

हमर गाँव बिगड़े हवय, दँव दोष कोन ला।
लेगे लबरा लूट के, सुमत के सोन ला।।
बाती बाता बात मा, मउका धरे खड़ें।
दाई भाई बाप ले, जउँहर भिड़े लड़ें।।

बीड़ी गाँजा दारु मा, माते गिरे परे।
खेलत सट्टा अउ जुआ, गहना सरी धरे।।
चुगली-चारी बस बुता, दिन-रात हें जुड़े।
बइठाँगुर बन बहिरहा, बकबक सबो बुड़े।।

भाँठा परिया मरघटी, कहाँ मइदान हे।
खोर-गली अब सोलखी, कहाँ दइहान हे।
बेंवारस कस गायगरु, फिरँय चारों मुड़ा।
नाँगर-जाँगर नइ दिखय, माढ़े परे जुड़ा।।

गजब फसल के लोभ मा, रसायन के दवा।
नकली खातू बीजहा, बिखहर भरे हवा।।
बदले-बदले ढ़ंग ले, सँचरगे रोग हा।
देखँव जब-जब गाँव ला, बढ़य बस सोग हा।।

कन्हैया साहू 'अमित'
भाटापारा छत्तीसगढ़
रचना~23/08/2020

आनंदवर्धक छंद

पीयूष वर्ष छंद/आनंद वर्धक छंद
2122, 2122, 212 (10~9)
फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन

काम कोनो, काखरो आ जा कहूँ।
जीव सेवा, थोरको  आ जा तहूँ।।
छोड़ संगी, दोष चोला छाँटले।
तैं मया के निसानी ला बाँटले।।

जान ले तैं, देख ले संसार ला।
जाँच ले तैं, मोह के भंडार ला।।
ये जमाना मोह के भोगी लगै।
पीठ पाछू, तोर हा तोला ठगै।।

लोभ भारी बाढ़ गेहे आज तो।
बेंच खाहें लोग देखौ लाज तो।।
पाप बाढ़ै नाश के गड्ढ़ा खने।
जानबे का कोन हावै का बने।।

ये सबो ला जान के आगू बढ़ौ।
जीव सेवा के सबो रद्दा गढ़ौ।।
सोंचना हा तोर तो बेकार हे।
बाँटले पीरा इही हा सार हे।।

कन्हैया साहू 'अमित'
भाटापारा छत्तीसगढ़
रचना~24/08/2020