अखंड छंद~जल संरक्षण
सुनव सबोझन,
गुनव सबोझन।
बादर बरसे,
जिनगी हरसे।।
नँदिया तरिया,
भाँठा परिया।
खेत-खार मा,
मुँही-टार मा।।
पानी-पानी,
अति हलकानी।
कब ये खँगथे,
कब ये नँगते।।
पानी छेंकव,
झन तो फेंकव।
नइ पछताबे,
जल ल बचाबे।।
जतन करव अब,
लगन धरव सब।
सुमता सुग्घर,
रद्दा उज्जर।।
जल संरक्षण,
तन-मन अर्पण।
जिनगी हाँसय,
जब जल बाँचय।।
कन्हैया साहू 'अमित'
शिक्षक-भाटापारा छ.ग.
रचना~22/08/2020