शनिवार, 29 अगस्त 2020

अखंड छंद

अखंड छंद~जल संरक्षण

सुनव सबोझन,
गुनव सबोझन।
बादर बरसे,
जिनगी हरसे।।

नँदिया तरिया,
भाँठा परिया।
खेत-खार मा,
मुँही-टार मा।।

पानी-पानी,
अति हलकानी।
कब ये खँगथे,
कब ये नँगते।।

पानी छेंकव,
झन तो फेंकव।
नइ पछताबे,
जल ल बचाबे।।

जतन करव अब,
लगन धरव सब।
सुमता  सुग्घर,
रद्दा उज्जर।।

जल संरक्षण,
तन-मन अर्पण।
जिनगी हाँसय,
जब जल बाँचय।।

कन्हैया साहू 'अमित'
शिक्षक-भाटापारा छ.ग.
रचना~22/08/2020

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