गुरुवार, 26 नवंबर 2020

बाल कविता ~ बरखा

बरखा~बाल कविता

जब जब सावन भादो आथे।
करिया-करिया  बादर  छाथे।।

कड़कड़ कड़कड़ बिजली चमके।
बरसय  बादर  जउँहर  जमके।।

चूहय बहुते छानी परवा।
छू लम्बा तब माढ़े नरवा।।

सुरुर सुरुर चलथे पुरवाही।
गिरथे  पानी  हाहीमाही।।

संंग नँगरिहा नाँगर बइला।
खोर गली मा मातय चिखला।।

नरवा नँदिया डबरी तरिया।
हरसाथे सब भाँठा परिया।।

नाचय जब-जब बरखा रानी।
चारों  मूँड़ा  पानी-पानी।।
--------------------------------------------------------
कन्हैया साहू 'अमित'~15/09/2020
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें