मंगलवार, 18 मई 2021

जानव जनऊला~(601-650)

601- करिया भुरुवा आँखी लाल।
करथे एखर चोंच कमाल।।
ठक-ठक लकड़ी चोंच गड़ाय।
निकलय कीरा पकड़य खाय।।
-कठखोलवा

602- हरियर पींयर करिया रंग।
करथे किरवा बड़ उतलंग।।
दूर देश ले उड़ के आय।
नान्हें पौधा चट कर जाय।।
-कनकट्टा

603- घररक्खा कस दिखथे यार।
करिया सादा चिक्कन सार।।
इही साँप के मोसी ताय।
बारी-बखरी दँउड़ लगाय।।
-घिरिया

604- घररक्खा ले बड़का जान।
होय भोरहा मँगरा मान।।
जीभ साँप जइसे फँकियाय।
उँचहा भिथिया झट चढ़ जाय।।
-गोंइहा

605- फर चिरपोटी नाने-नान।
कटही डारा पाना जान।
फुलुवा नीला पीला रंग।
एखर सेवन दवा उमंग।।
-भसकटिया

606- भुँइया भीतर फरथे यार।
बाहिर छछले एखर नार।
फर मा बहुते गुदा भराय।
गुरतुर येहा गजब मिठाय।।
-कांदा

607- अँगना बखरी छछलै नार।
सावन-भादो एखर भरमार।
संझा फूलय पींयर फूल।
लाम खसर्रा फर हे झूल।।
-तरोई

608- इही तरोई चिक्कन ताय।
कच्चा फर ला खाय बिसाय।।
पक्का फर ले रगड़ नहाय।।
भरे विटामिन सुघर सुहाय।।
-ड़ोड़का

609- फूल पर्डरा फूले नार।
लाम-लाम फर के भरमार।।
कच्चा हरियर सादा रंग।
पक्का बंदन ललहू संग।।
-कुंदरु

610- फरै गोलवा फर दमदार।
छछलै सादा फुलुवा नार।
बर्तन बाजा सुखो बनाय।
कच्चा फर के साग सुहाय।।
-तुमा

611- लमरी-लमरी फरथे डार।
हरै तुमा के ये परिवार।।
हरियर चिक्कन सादा ताय।
चना दार के संग मिठाय।।
-लौकी

612- फरै पेड़ फर बड़का सार।
हरियर पींयर कटही मार।।
कच्चा फर के साग सुहाय।
पक्का फर के कोवा खाय।।
कटहर

613- लाम चेपटी कोकी सार।
फरथे बहुते छछले नार।
आनी-आनी एखर रंग।
बीज फोकला लगथे अंग।
-सेमी

614- साग हरै ये फल्लीदार।
फरथे बखरी बारी नार।।
हरियर करिया लामी लाम।
बीज दार, फर खाये काम।।
-बरबट्टी

615- उपजै बखरी खेती खार।
लाम खसर्रा फर भरमार।।
साग सुहावै आलू डार।।
गरुवा खातिर चारा सार।।
-चुरचुटिया

616- कुँदरू जइसे छछलै नार।
उपजै बखरी दी कछार।।
फर कुँदरू ले जादा मोठ।
किच-किच बीजा करथे पोठ।।
-परवर

617- छोट करेला इही कहाय।
कोंवर-कोंवर साग सुहाग।।
फर हा कटही रेशादार।
भीतर कांदा, ऊपर नार।।
-खेखसी

618- छानी परवा इही सजाय।।
माटी साँचा डार बनाय।।
सुखो बनावय नालीदार।
पाकय भट्टी मा दमदार।।
-खपरा

619- हरै बाहरी काड़ी सार।
अँगरा बाहिर दैय खरार।।
पातर-पातर छिलपा बाँस।
खरहारँय सुग्घर सब हाँस।।
खरेरा

620- लोहा कुटका जानव सार।
माथा संगे चोक्खू धार।।
गाड़य भिथिया ठोंकत माथ।
रहै सदा बढ़ई के साथ।।
-खीला

621- उपराहा तरकारी जान।
पौल उसन या काट सुखान।।
जे दिन हरियर साग न पाँय।
सुघर राँध के येला खाँय।।
-खोइला

622- छेना हथवा चाकर ताय।
गाय गरू खुरखेद मचाय।।
सउघे छेना नाने नान।
कुटी-कुटी होवै,पहिचान।।
-खरसी

623- पानी नो हे, पर बोहाय।
सादा हे, घर नइ पोताय।।
भँइस गाय के थन तनियाय।
जौन पियै तन पोठ बनाय।।
-गोरस

624- पीथें दुनिया काफी चाय।
इही पिये के बर्तन आय।।
बनथे माटी ले ये जान।
लाल गोलवा हे पहिचान।।
-चुकी

625- मंगल कारज, जोत जलाय।
लाली भाँड़ी लाय बिसाय।।
नाँदी ऊपर तेल भराय।
पूजा मंदिर बरते जाय।।
-करसा

626- छोटे खटिया येला जान।
लइका सोवय येमा मान।।
कभू बइठ खुश होय सियान।
गाँथे डोरी बहुते तान।।
-मचोली

627- तरी सकेला पेंदी जान।।
ऊपर चाकर मुँहड़ा मान।।
छेना के आगी सुलगाँय।
डार हूम घर भर देखाँय।।
-हुमाही

628- गोल-गोल चाकर ये सार।
चारों मूँड़ा उठे दिवार।।
पीतल काँसा ताँबा स्टील।
जेवन खावँय, करै न ढील।।
-थारी

629- बिन पेंदी के बर्तन गोल।
काँसा पीतल के अनमोल।।
दार-भात राँधे के काम।
पुरखौती ले चलथे नाम।।
-बटलोही

630- चाकर मुँहटा कलई मान।
बड़का बर्तन येला जान।।
बड़े काम ला लेवय थाम।
संगी बोलव एखर नाम।।
-बाँगा

631- अपने रहना बसना होय।
लगै थकासी आवय सोय।।
ईंटा पखरा माटी सान।
इँहचे घर परिवार बसान।।
-डेरा

632- रहिथे लकड़ी चकरी चार।
छँड़िया के हुक लटके सार।।
पातर पटवा बाँक बराय।
बड़ सुग्घर डोरी अँइठाय।।
-ढेरा

633- लामी लामा लकड़ी डार।
पाछू कोती दू खुर सार।
पाँव पीठ मा जब मढ़हाय।
बीच बाहना धान कुटाय।।
धान कुटाय।
-ढेकी

634- पखरा के दू पाटा सार।
राहँय सँघरा खीला डार।
मुँह ले चाउँर गहूँ खवाय।
हाथ धरै सब गोल घुमाय।।
-जाँता

635- लकड़ी के ये गदा कहाय।
सुग्घर चाँउर दार छराय।।
मुँह मा लोहा कड़ा लगाय।
बीच बाहना जाय समाय।.
-मूसर

636- अँगना परछी गड्ढ़ा खोल।
ढ़ेकी मूसर बर ये गोल।।
पखरा माटी खने बनाय।
गड़ढ़ा मा ही धान कुटाय।।
-बाहना

637- बीच बियारा जघा चतवार।
पैर बगरथे जब कोठार।।
दस बारा बइला ला फाँद।
धान मिसावै जोरे खाँद।।
दौंरी

638- लकड़ी लोहा गोला सार।
बइला जोरै डाँड़ी डार।।
मिसय धान ला गोल घुमाय।
जानव जल्दी काय कहाय।।
-बेलन

639- लकड़ी पाटा चीर लगाय।
चार खुरा मा ये ठोंकाय।।
सुते बसे के आवय काम।
जानव संगी एखर नाम।।
बाजबट

640- लोहा चद्दर गोल कटाय।
एक मुड़ा मा मूँठ धराय।।
आँच परे ये ललियाय।
पो ले रोटी खूब मिठाय।।
-तावा

641- लोहा चाकर लाम कटाय।
एक मुड़ा मा बेंठ धराय।।
काड़ी कचरा जोर उठाय।
माटी मलबा टार हटाय।।
-रापा

642- भुँइया माटी खन के काट।
खँचवा डिपरा देवय पाट।
रहै कुदारी ले बड़ जान।
दुनों मुँड़ा ले खन्ती खान।।
-गैंती

643- माटी पैरा कुटी मिलाय।।
मरकी पेंदी उलट छबाय।
सुक्खा मा गोबर लिपवाय।
खरसी आगी सुलगे जाय।
-गोरसी

644- गगरी हौला पेंदी गोल।
एती-वोती जावै डोल।।
पैरा गुड़ुवा तरी लगाय।
एखर ऊपर सबो मढ़ाय।।
गिरी

645- बेंठ हाथ भर, लोहा सार।
बिकटे रहिथे येमा धार।।
छोले-चाँचे आवय काम।
सबे रहै मुँहु एखर नाम।।
-बसुला

646- लामी लामा छँड़िया ताय।
लकड़ी फाटा बेधे जाय।।
अँइठे-गँइठे खाल्हे धार।
बढ़ई के हे ये हथियार।।
-बिंधना

647- ऊपर पटनी काट बिछाय।
खाल्हे दू ठन खुरा धराय।।
आवय पहुना दय बइठाय।
रिंगी-चिंगी रंग रचाय।।
-पिड़वा

648- धान-पान हा इहाँ मिसाय।
रहै बड़े भुँइया घेराय।।
राहय खरही इहाँ गँजाय।
दौंरी बेलन पैर मिसाय।।
-बियारा

649- इही बियारा बारी द्वार।
लकड़ी लोहा बाँधे सार।।
आती-जाती परै हटाय।
चारों मूँड़ा रहै घेराय।।
-राचर

650- जभे बियारा धान मिसाय।
बदरा कचरा जाय उड़ाय।।
माटी छबना येला जान।
रहै खोलखा, राहय धान।।
-कोठी
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कन्हैया साहू 'अमित'~भाटापारा छत्तीसगढ़

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