पानी
पानी हे बड़ कीमती, सिरतों येला जान।
पानी ले तो बाँचथे, जीव जगत के प्रान।।
पाने अमरित जान ले, हावय अति अनमोल।
कचरा काड़ी डार के, तहूँ जहर झन घोल।।
हावय पानी बड़ अकन, भरे हवय भंडार।
पीये खातिर थोरकुन, बाँकी सब बेकार।।
बादर ले पानी गिरय, धरती मा बोहाय।
बिरथा भागय खार मा, पाछू बड़ रोवाय।।
पानी ला छेंकन नहीं, भागय भाँठा खार।
बूँद-बूँद तरसन सबो, आवव करिन विचार।।
चिरई चिरगुन चुप रहय, रोवत रात पहाय।
पीये बर पानी नहीं, होही कोन सहाय।।
जीव जानवर सब मरै, प्यासे मनखे रोय।
पानी के सकला जतन, काबर दुख हा होय।।
मनमाने पानी उलच, कहाँ धरे तैं धीर।
खेत-खार अँगना खने, धरती छाती चीर।।
किरिया खा पानी बँचा, तभे बाँचही प्रान।
हावय अपने हाथ मा, सरी जगत कल्यान।।
जतके चाही जल अमित, पानी वतके बौर।
बिन पानी इहलोक मा, कइसे मिलही ठौर।।
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ भाटापारा छत्तीसगढ़
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