माटी
माटी ले उपजैं सबो, अउ माटी मिल जाय।
जिनगीभर मनखे तभो, माटी ला बिसराय।।
माटी फुतका मान के, झन करबे अपमान।
आखिर सबके देंह के, एक्के हावय स्थान।।
माटी के महिमा गजब, देवय सब ला थाम।
माटी ले बीजा बढ़ै, कतका अचरिज काम।।
माटी के मूरत इहाँ, जन-जन पूजे जाय।
पले-बढ़े माटी जुड़े, सिरतों नाँव कमाय।।
माटी चिखला मा बुड़े, करथे काज किसान।
अनदाता बनके रहै, माटी पूत महान।।
माटी के मरकी बनै, सबके प्यास बुझाय।
देशी फ्रिज के जल पिये, अंतस घलो जुड़ाय।।
माटी ले घर द्वार हे, माटी ले संसार।।
माटी छोड़य संग ना, लेथे अंत सँघार।।
गाँव-शहर बस्ती बसय, रेगिस्तान शमशान।।
भाँठा जंगल झोपड़ी, बिन माटी सुनसान।।
माटी माथा के मुकुट , झन ये कभू भुलाव।
अपने माटी के मया, अंतस अमित बसाव।।
मुरुम मटासी संग मा, माटी मिलय कन्हार।
जघा-जघा मा हे फरक, एक्के मया दुलार।।
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ भाटापारा छत्तीसगढ़...©®
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