नवा जमाना~टुरा
नवा जमाना आय हे, लागय फेशन देख।
अलकरहा हे पहिरई, थोरिक तहूँ सरेख।।
बाबू के मेछा नहीं, चुन्दी बहुते लाम।
दाढ़ी लागय बोकरा, गली-गली बदनाम।।
दिखय मुँड़ी हा रंगहा, चुन्दी रंग रचाय।
खखल-बखल हे गाल हा, सूरत दिखय बुढ़ाय।।
कुरता पहिरैं छोटकन, कनिहा खाल्हे पेंट।
पनही अलकर लाम हे, छींचय कहरत सेंट।।
काम धाम कुछु हे नहीं, खरचा बाढ़त जाय।
अंतस पातर होय जी, देंह गजब मोटाय।।
मोबाइल धर हाथ मा, गाड़ी गजब कुदाय।
बइठांगुर बन के टुरा, जघा-जघा छुछुवाय।।
गुटका बोजे मुँह रहै, गरुवा कस पगुराय।
छटकै नँगते थूँक हा, कोन बने सहँराय।।
बाली लटके कान मा, कंगन पहिरे हाथ।
नख बढ़ाय पॉलिश लगे, कइसन साजे माथ।।
अमित नहाये कब कहाँ, फेसवॉश धो आय।
भक-भक भकराइन भरे, टुरा नँगत बस्साय।।
टुरा-टुरी एक्के दिखँय, सब फैशन के फेर।
कइसन कलयुग आय हे, होवत हवय अँधेर।।
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कन्हैया साहू 'अमित' ~भाटापारा छत्तीसगढ़
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