शनिवार, 8 मई 2021

दुलरवा दोहा ~ योग करव

योग करव - दोहालरी

जिनगी के सुख चैन मा, बैरी होथे रोग।
सेहत सिरतों सार हे, हितवा हावय योग।।

जीयत जागत ये जगत , जिनगानी हे जोग।
आलस अल्लर आदमी, दुख पीरा ला भोग।।

सुख सुवाद के फेर मा, अंतस आथे सोग।
सुग्घर सेहत साधना, तन-मन रखव निरोग।।

फुरसुदहा पसरे परे, करै एक ना योग।
पेट तने हे कोटना, बोजय छप्पन भोग।।

मानुस तन हे कीमती, सँचरै झन जी रोग।
सेहत साजे बर अमित, करन योग उपयोग।।

समय निकालव देंह बर, राखव येखर ध्यान।
बिहना संझा जब मिलय, करलव योग सुजान।।

खानपान सादा रखव, राहव सुग्घर सोज।
तन-मन हा चंगा बनय, करलव योगा रोज।।

सेहत सबले धन बड़े, सिरतों कहना मान।
बड़े बिहनिया उठ अमित, करले योगा ध्यान।।

बीमारी होवय नहीं, करबे प्राणायाम।
तन-मन हा फुरसुद रहय, देंह बनय सुखधाम।।

धीरे-धीरे जे करय, अमित योग अभ्यास।
अंतस बड़ गदगद रहय, हिरदे भरै उजास।।
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ 9200252055...©®

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