बुधवार, 26 मई 2021

दुलरवा दोहा ~ नशा नाश के जरी

नाश के नशा

नशा नाश के हे जरी, बरबादी घर द्वार।
नशाखोर के संग मा, पेरावय परिवार।।

गुटका गाँजा दारु अउ, बीड़ी माखुर भाँग।
मँउत अगोरा मा खड़े, दुरिहा एक फलाँग।।

दारु पियै दरुहा बनय, धन दोगानी खोय।
धोये चाँउर नइ बँचय, मँदहा अइसन होय।।

बिना पिये गरुवा लगय, सोजे पुछी हलाय।
दारु मंद दरुहा पिये, शेर सहीं गुर्राय।।

दारु पिये मनखे अमित, कुकर सरी बस्साय।
गिरे परे पी खाय के, नाली मा बोजाय।।

हाश गँवाये मँदहा अपन, गली खोर मा परे।
कुकुर खड़े मुँह मा मुतय, पुरखा एखर तरे।।

मारपीट घर मा करय, बनै बहादुर बीर।
बाहिर मा कपसे रहै, बहुते होय अधीर।।

बाढ़त हावय बड़ चलन, दारु मंद के आज।
मरनी हरनी मा घलो, आवय नइ तो लाज।।

दारु मंद के फेर मा, बेंच खाय जयजाद।
तन-मन रोगी हे बने, खोय मान मरजाद।।

नशा नरक के द्वार हे, जीयत मा पहुँचाय।
सोंच समझ खइता अमित, जीते जी मर जाय।।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
कन्हैया साहू 'अमित' ~ भाटापारा छत्तीसगढ़

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें