बेटी
बेटा घर कुल वंश हे, बेटी दू कुल मान।
बेटी पागा बाप के, बसथे सबके प्रान।।
बेटी-बेटा मा करँय, अंतर जौने जान।
पढ़े-लिखे मनखे अमित, हे मूरख इंसान।।
बेटी-बेटा एक हें, भेदभाव ला छोड़।
एक बरोबर रख दुनों, अपने अंतस जोड़।।
बेटी बिन जिनगी नहीं, बेटी जग मा सार।
जइसे सूरुज के बिना, होथे जग अँधियार।।
पढ़-लिख के बेटी बनय, अधिकारी सरकार।
रोटी पोवत संग मा, शिक्षा दय परिवार।।
बेटी अघुवा काम मा, तन-मन लगा कमाय।
पढ़ई-पढ़ई खेल मा, कोन्हो पार न पाय।।
बेटी छँइहा पेड़ के, अंतस देत जुड़ाय।
कतको गुस्सा आत हे, छू मंतर हो जाय।।
बेटी पूजा ईश के, भगवन के परसाद।
बेटी अँगना आय ले, घर होवय आबाद।।
बेटी महतारी बहू, अलग-अलग हे नाम।
सदा एक बूता हवय, सेवा अउ सतकाम।।
बेटी होही ता बहू, पाहव सिरतों जान।
झन मारौ जी कोंख मा, तभे अमित कल्यान।।
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कन्हैया साहू 'अमित' ~भाटापारा छत्तीसगढ़
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