शुक्रवार, 14 मई 2021

दुलरवा दोहालरी ~ धरती दाई

धरती दाई
धरती दाई तोर जय, अँचरा तोर अपार।
जीव जंतु जम्मों जगत, जिनगी देत सँवार।।

नँदिया  तरिया  बावली, जिनगी जग रखवार।
माटी  फुतका  संग  मा, धरती हमर अधार।।

सबके हिस्सा हे लगे, धरती के उपजाय।
छोट-बड़े सब जीवमन, भर-भर पेट अघाय।।

भुँइया तोरे पयलगी, रहिथच सदा सहाय।
दाई के अँचरा अमित, धरती तहीं कहाय।।

छाती तोरे चीर के, करथन कोरा बाँझ।
आथन तोरे तीर मा, रतिहा बिहना साँझ।।

लालच मा मनखे बुड़ै, टँगिया मारत पाँव।
बेचत हे धन मोह मा, पुरखौती के ठाँव।।

रुखराई ला काट के, उँचहा शहर बसाय।
माटी पानी हा अमित, बीमारी लहुटाय।।

जल जमीन जंगल जतन, जुग-जुग जय जोहार।
मनमानी अब झन करव, सुन भुँइयाँ  गोहार।।

रोकव राक्छस परदुसन, धरती करय पुकार।
पुरवाही फुरहुर बहय, हवा दवा दमदार।।

धरती के सेवा जतन, करबो हम हर हाल।
सावचेत नइ होय ले, अपन हाथ हे काल।।
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ भाटापारा छत्तीसगढ़

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