मंगलवार, 15 सितंबर 2020

ताटंक छंद ~ छै ऋतु वर्णन

ऋतु वर्णन:- ताटंक छंद

सरलग रतिहा दिन छिन कटथे, कालचक्र लहुटा आये।
एक बछर मा छैठन मौसम, परिवर्तन ला देखाये।।

अलग-अलग हे सबके महिमा, मरम सबो के ला जानौ।
जीव जंतु रुखराई सब मा, परय फरक येला मानौ।।

1-बसंत:-
संग चइत बइसाख महीना, ऋतु बसंत पहिली आवै।
महर-महर ममहावय मौसम, मलर-मलर मन मोहावै।।
मँउहा माते, परसा फूले, आमा के लहसे डारा।
पिंयर-पिंयर बड़ सरसों हाँसय, झूमँय सब झारा-झारा।।

नवा-नवा अब पाना-पतई, बगरे बन फुलुवा लाली।
फाँफा भँवरा तितली नाँचँय, देवँय
मटमटहा ताली।
करे कोइली कूहू-कूहू, कुलकत हें मिट्ठू मैना।
रंग मया मा फदके फागुन, बँहके हे बोली बैना।।

2-गरमी:-
आवय जेठ असाड़ महीना, अगिन बरोबर हे लागै।
अलकर अल्लर मन असकटहा, काहय कब  बइरी भागै।।
तातेतात तिपय सब तुरते, भक्कम भभका हा मारै।
जीव-जंतु सब कपसे सपटें, रुखुवा हा पाना झारै।।

छँइहाँ खोजय जुड़हा छँइहाँ, पानी हा पानी माँगै।
सूरुज नरायेन बउराये, आगी के गोला टाँगै।।
तरिया नँदिया परखे सुक्खा, सोझे धरती हा फाटै।
जरय भोंभरा, नरी सुखावय, मनखे दिन गिन के काटै।।

3-बरसा
देख महीना सावन भादो, बादर बड़ इँतरावै जी।
झिमिर-झिमिर बरसय पानी, सबके सुसी बुतावै जी।।
तरमिर तरमिर गरमी होवय, फरफर पुरवाही डोलै।
जीव पियासे अमरित पावँय, जिनगी के रद्दा खोलै।।

गरजय घुमड़य गड़गड़ बदरी, जब्बर नंगारा बाजै।
चमचम चमकय बिजुरी जमके, धरती निक सिरतों साजै।।
करय मेचका हा अगुवाई, गीत सुवागत के गावै।
भुँइया ओढ़य हरियर ओन्हा, सुग्घर सुघराई छावै।।

4-सरदी
झरती बरसा आवय सरदी, सरद सुखद सब ला भावै।
अब कुँवार कातिक भर तन-मन, बने मने मन मुस्कावै।।
खिलय खोखमा तरिया डबरी, आसमान सफ्फा होवै।
दूध नहाये दमकय दुनिया, झन एखर शोभा खोवै।।

चींव-चाँव बड़ चिरई चिरगुन, भँवरामन गावैं गाना।
मिलय साग भाजी फल बहुते, तनतन सब खावैं खाना।।
सूर्यदेव के किरपा बरसै, भक्ति भाव मन मा जागै।
शीत बरसथे रतिहाकुन जी, आलस नस-नस के भागै।।

5-हेमंत
पूष संग अग्घन के सरदी, जड़काला बिहना संझा।
फुरफुर पुरवाही निक लागय, चलय नहीं कोनो झंझा।।
अलथी-कलथी रात पहावै, लकर-धकर दिन हा बीतै।
मदनराज के धनुष चढ़े हे, कोन काम ले हे जीतै।।

कुहरा छावय, जाड़ा बाढ़य, गिरत हेम धरती ढॉकै।
अब गुलाब गोंदा अँगना मा, रबी फसल खेती झॉकै।।
मन पिरीत के हुद्दा मारय, धनी बिना का सोहागा।
मिलन मया के शुभ बेरा मा, कोनों नइ चाहैं दोहागा।।

6-शिशिर
मॉघ महीना अउ फागुन मा,  अमित जबर परथे जाड़ा।
तोपे ढॉके देंह पाँव हे, तभो गजब कॉपै हाड़ा।।
झरय पेड़ के डारा पाना, प्रकृति अजब बुढ़वा लागै।
नवा बछर के आवय आरो, नवजीवन आशा जागै।।

शीतकाल मा अमृत बरसथे, किरपा सूरुज के चोखा।
ताप रउनियाँ रोज बिहनिया, सुग्घर सेहत के जोखा।।
दक्षिण ले उत्तर मा जावय, सूरुज तब होवै मंदा।
अइसनहा बेरा मा संगी, बड़ बलकर होवै चंदा।।

कन्हैया साहू 'अमित' ~ 9200252055
शिक्षक-भाटापारा छत्तीसगढ़-15/09/2020
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें