सोमवार, 21 सितंबर 2020

सरस्वती चालीसा~छत्तीसगढ़ी भाषा

*सरसती चालीसा~छत्तीसगढ़ी भाषा*

जय जय दाई सरसती, अइसन दे वरदान।
अग्यानी ग्यानी बनय, होवय जग कल्यान।। (दोहा)

हे सरसती हरव अँधियारी। हिरदे सँचरय झक उजियारी।।-1

तोर चरण मा जम्मों सुख हे। जिनगी जग मा कटही रुख हे।।-2

हाथ जोड़ के करथँव विनती। होय भक्त मा मोरो गिनती।।-3

जंतर मंतर कुछु नइ जानँव। सबले पहिली तोला मानँव।।-4

मैं मुरहा मन के बड़ भोला। गोहराँव मैं निसदिन तोला।।-5

अंतस 'अमित' अमाबे दाई। बिगड़ी सबो बनाबे माई।।-6

एती वोती मैं भटकँव झन। बुता काम मा मैं अटकँव झन।।-7

मोर करम ला सवाँरबे तैं। अँचरा दे के दुलारबे तैं।।-8

जिनगी के दुख पीरा हर दे। छँइहा सुख के छाहित कर दे।।-9

सोहय सादा हंस सवारी। कमल विराजे वीणाधारी।।-10

मूँड़ मुकुट मणि माला मोती। दगदग दमकय चारो कोती।।-11

सबले बढ़के वेद पुरानिक। सरी कला के तहीं सुजानिक।।-12

ग्यान मान के तैं भंडारी। तहीं जगत मा बड़ उपकारी।।-13

वरन वाक्य अउ बोली भासा। महतारी तैं सबके आसा।।-14

सब्बो सिरजन के तैं जननी। गीत गजल अउ कविता कहिनी।।-15

सुर सरगम के सिरजनहारी। मान-गउन के तैं अवतारी।।-16

सारद तीन लोक विख्याता। विद्या वैभव बल के दाता।।-17

सुर नर मुनि सबो गोहरावैं। संझा बिहना माथ नवावैं।।-18

अंतस ले जे तोला गावँय। मनवांछित फल वोमन पावँय।।-19

तोरे पूजा आगू सब ले। सरी बुता हा बनथे हब ले।।-20

विधि विधान जग के तैं बिधना। बोली भाखा तोरे लिखना।।21

तहीं ग्यान विग्यान विसारद। गावय तोला ग्यानी नारद।।-22

दाई चारो वेद लिखइया। ग्यान कला अउ साज सिखइया।।-23

रचे छंद अउ कहिनी कविता। भाव भरे बोहावत सरिता।-24

नेत नियम ला तहीं बखानी। ग्रंथ शास्त्र हा तोर जुबानी।।-25

मंत्र आरती सीख सिखावन। आखर तोरे हावय पावन।।-26

अप्पड़ होवय अड़बड़ ग्यानी। कोंदा बोलय गुरतुर बानी।।-27

सूरदास हा बजाय बाजा। बनय खोरवा हा नटराजा।।-28

बनथस सबके सबल सहारा। जिनगी जम्मों तोर अधारा।।-29

जीव जगत के तैं महतारी। तोरे अंतस ममता भारी।।-30

भरे सभा मा लाज बचाथस। जग ला अँगरी नाच नचाथस।।-31

तोर नाँव हे जग मा पबरित। बरसाथस तैं किरपा अमरित।।-32

हावँव निमगा निच्चट अँड़हा। परे हवँव मैं कचरा कड़हा।।-33

अखन आसरा खँगे पुरोबे। मनसुभा मइल मोरो धोबे।।-34

झार केंरवस, कर दे उज्जर। बनय 'अमित' सतवंता सुग्घर।।-35

मेट सवारथ झगरा ठेनी। दया मया बोहा तिरबेनी।।-36

राखे रहिबे मोरो सुरता। खँगे-बढ़े के करबे पुरता।।-37

महतारी झन तैं तरसाबे। अंतस खच्चित मोर अमाबे।।-38

जिनगी होगे खींचातानी।। करबे किरपा तहीं भवानी।।-39

पूत 'अमित' के सदा सहाई। कभू भुलाबे झन ओ दाई।।-40

सुमिरन करथँव सारदा, सरलग तोरे नाम।
सोर 'अमित' जग मा उड़य, सिद्ध परय सब काम।।
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कन्हैया साहू 'अमित'~भाटापारा छ.ग.
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संपर्क~9200252055/सृजन~

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