गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

दोहा अमित के ~ जनऊला (01-05)

जनऊला-01
लाली मुँह के छोकरी, हरियर जुड़ा गँथाय।
निकलै जब बाजार मा, हाथ-हाथ बेचाय।।
-पताल

काटे म कटावय नहीं, बोंगे नइ बोंगाय।
अँधियारी मा छप अमित, दिखै अँजोरी आय।।
-छँइहा

हरियर पाँखी रंग हे, नरी हवय जी लाल।
खावय मिरचा चाब के, बोलय तहाँ कमाल।।
-मिट्ठू

दुब्बर पातर हे परी, पहिरे मुकुट ल माथ।
करै अँजोरी घिस मुकुट, हे अँधियारी हाथ।।
-माचिस

उड़थे पर पंछी नहीं, भुजबल भारी अंग।
सरदी गरमी मा रहय, सिरतों मस्त मलंग।
-हवाई जहाज

बिना तार के जोड़थे, मन ले मन के बात।
अब तो आगू देखले, दिन होवय के रात।।
-मोबाइल

आथँव रतिहा बेर मैं, जाथँव चुप दिनमान।
सादा जुड़हा छाँव हे, झटपट तैं पहिचान।।
-चंदा

लकलक-लकलक मैं बरँव, आगी गोला जान।
रहिथँव मैं दुरिहा भले, आथँव नित दिनमान।।
-सूरुज

बादर ले मैंहा गिरँव, धरती बीच समाँव।
मोर बिना कइसे गुजर, सबके प्यास बुताँव।।
-पानी

रुखराई मा मैं रहँव, झन चिरई तैं जान।
चलथँव जब मैंहा इहाँ, सबके बचथे प्रान।
-हवा
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ जनऊला-2
बिना पाँव अहिरा भगै, बिना सींग के गाय।
अइसन अचरज नइ दिखै, खारन खेत कुदाय।।
-साँप, मेचका

बिना पाँख सुवना उड़ै, जावय ऊँच अगास।
रंग रूप एखर नहीं, भूख मरै न पियास।।
-जीवात्मा

मोला पाथे कोन हा, मैं तो सबके तीर।
संग-संग चलथँव सदा, होके मैं गंभीर।।
-छँइहा

लाली सादा रंग हे, मैं हँव मटकू दास।
नखरा हावय बड़ गजब, लत्ता मोर पचास।।
-गोंदली

सादा सादा रंग हे, एखर ये पहिचान।
देखत मा ये साधु हे, फेर कपट के खान।।
-कोकड़ा

चार अँगुल के पेड़ हे, सवा सेर के पान।
अलग-अलग फर धरय, पाकय एक समान।।
-कुम्हार के चाक

सुग्घर गोरी पालती, केहर करिया रंग।
ग्यारा देवर छोड़ के, जाय जेठ के संग।।
-राहेर दार

ऊपर एक्के रंग हे, भीतर कबरा सार।
मीठ-मीठ मुँह मा रमय, फिकर करय नर नार।।
-सुपारी

कपड़ा चुन्दी सब फटै, मोती लूट उतार।
ये कइसन बिपदा अमित, कपसे दिखय नार।।
-भुट्टा (जोंधरी)

थारी मोती ले भरे, उल्टा देंवँय टाँग।
मोती एक्को नइ गिरै, कतको लगय छलाँग।।
-आसमान अउ चंदैनी
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जनऊला-3
हरियर-हरियर मैं भला, करिया लइका मोर।
मोला खाना छोड़ दे, लइका मुँह मा जोर।।
-लायची

पन्ना-पन्ना हे भरे, नहीं पेड़ तैं जान।
खोल-खोल मोला पढ़व, पाहू बहुते ज्ञान।।
-किताब

हाथी घोड़ा हे नहीं, खाय न दाना घास।
धरती मा बहुते चलय, रहय न कभू उदास।।
-साइकिल

एक महल दस कोठरी, सब हे फाटकदार।
देख खोल के भीतरी, राजा ना रखवार।।
-गोंदली

एक फूल करिया अमित, मुँड़ मा सदा सुहाय।
देख घाम होवय खुशी, छँइहा मा मुरझाय।।
-छतरी

उँटवा कस हे बैठका, हिरना जइसे चाल।
कोन जानवर हे बता, जेखर पुछी न बाल।।
-मेचका

हरियर पाँखी मोर हे, चोंच हवय पर लाल।
नकल उतारव मैं तुहँर, कतका करँव कमाल।।
-मिट्ठू

नोनी बौनी हे दिखय, पहिरे हरियर लाल।
खावय कोनो जान के, मातय फेर बवाल।।
-मिर्चा

मुँड़ी पुछी ओखर हवै, नइ हे एक्को पाँव।
चलथे-फिरथे देख ले, खोर गली अउ गाँव।।
-साँप

बइठे हावय नाक मा, खींचत हावय कान।
आँखी आगू ये रहै, दिखथे काँच समान।।
-चश्मा
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~ जनऊला-4
दूर देश मइके हवय, गाँव-शहर ससुरार।
गली-खोर डउका खड़े, घर-घर हे परिवार।।
-बिजली

हे पहाड़, पखरा नहीं, नँदिया हे बिन धार।
हवय गाँव, मनखे नहीं, दिखय फसल बिन खार।।
-नक्शा

मुखड़ा चंदा कस लगे, बाँधे अँचरा आस।
घेरी-बेरी बस बहू, एक घड़ी ना सास।।
-आईना

बीसों के मुँड़ काट दव, तब्भो बढ़े जाय।
जिन्दा रहिथे बिन लहू, बात समझ नइ आय।।
-नख

एक गुनी के ये बुता, चलथे चतुरा चाल।
हरियर बँगला धाँध के, तहाँ निकालै लाल।।
-पान

उपजै जब ये खेत मा, जुरमिल जम्मों खाय।
घर अँगना मा होय तब, घर हा बगरे जाय।।
-फूट

डब्बा डब्बा जोड़ के, डब्बा के हे गाँव।
चलत-फिरत बस्ती रहै, लोहा के हे पाँव।।
-रेलगाड़ी

हरदी के गोला दिखय, पीतल लोटा जान।
भीतर बीजा हे भरे, चिपचिपहा पहिचान।।
-बेल

दू मुँह के हे डोकरी, राहय खाली पेट।
मीठ-मीठ बोलय गजब, थपरा परय समेट।।
-ढ़ोलक

छेदा ओखर अंग मा, धकधक करय परान।
जतके मारौ फूँक ला, गावय गुरतुर गान।।
-बँसरी
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जनऊला-05
पातर दुब्बर गउ असन, रेंगय मुँड़ी नवाय।
आवय कखरो हाथ ता, बिछड़े हा मिल जाय।।
सुजी-सूँत

हरियर पाना संग मा, पाँच रंग दै डार।
खावय जौने चाब के, लाल होय मुँह सार।।
पान मसाला

छोटे बस्ती घर घना, रहैं बहुत बलबीर।
छूवय तेला चाब दैं, कोनो धरै न धीर।।
ततैया छाता

पानी उपजै साग हा, ओखर कमला नाम।
थाँगा जम्मों खात हें, देके उँचहा दाम।।
ढेंस

दू तरपौंरी पाँव छै, अइसन नारी जान।
ऊपर ओखर हे पुछी, झट येला पहिचान।।
तराजू

बिना दाँत के काटथे, चर-चर बोलय बैन।
बिना पाँव के रेंगथे, बिन देखे वो नैन।।
पनही

पचरंगी नोनी पिला, खेलय बाबू संग।
पानी ले वो डर मरय, हवा संग उतलंग।।
पतंग

चम-चम चमकै सोन कस, राहय दूर अगास।
लागय सिधवा के असन, करै प्रान के नास।।
गाज

एक पेड़ पानी उपज, बहुते डारा होय।
एखर छँइहा के तरी, बइठ सकय ना कोय।।
फव्वारा

देंह पाँव एखर नहीं, लेवय कभू न साँस।
दिखै नहीं छँइहा घलो, खाय आदमी माँस।।
संसो

बिन मुँड़ नारी एक हे, दूठन बाँह उठाय।
जब आवै चल-चल कहय, लेगत एक ल जाय।।
डोला
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कन्हैया साहू 'अमित' ~भाटापारा छत्तीसगढ
गोठबात ~ 9200252055 - (29/04/21)

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