गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

जानव जनऊला ~ (251-300)

251- खोड़र-खोड़र खटका गीन।
छै आँखी बोड़र्री तीन।।
छै गोड़ा अउ एक फँदाय।
एक दुसर के काज बनाय।।
-नाँगर जोतत किसान

252- चरै बोकरा नँदिया तीर।
चारा खपगे परगे धीर।।
बिन चारा के बड़ नरियाय।
तड़प-तड़प के ये मर जाय।।
-दीया

253- माटी के तरिया खोदाय।
पूछी ले ये पानी पाय।।
जरय मुँड़ी हा धीर लगाय।
सादा तन तुरते ललियाय।।
-दीया

254- एक जगा धर आय मढ़ाय।
चारों मूँड़ा ये बगराय।।
अँधियारी ला देवय चीर।
अइसन नान्हें माटी बीर।।
-दीया

255- बड़का भारी एक जहाज।
पूछी कोती करथे काज।।
मुँह उलगै कुहरा झार।
करय तहाँ ये घर उजियार।।
-दीया

256- दिनभर सोवय पाँव पसार।
जागय जब होवय अँधियार।।
जतके जागय होय सजोर।
अँधियारी ला खाय बटोर।।
-मोमबत्ती

257- दूर देश मा माया जाल।
गाँव-शहर हावय ससुराल।।
गली-खोर मा डउका चार।
घर-घर मा एखर परिवार।।
-बिजली

258- रतिहाकुन जागय बिरवान।
सुतै ससनभर ये दिनमान।।
चारा-पानी कुछु नइ खाय।
अँधियारी ला बहुते भाय।।
-बिजली

259- कुटी-कुटी कतको तैं काट।
जींयत रहिथे चाहे पाट।।
चाहे पानी मा दे बोर।
छाँड़य नइ ये करथे शोर।।
-परछाई

260- करिया बइला राहय ठाड़।
लाली बइला चढ़ै पहाड़।।
सँघरा दिखथे एक समान।
नाँव बतावव का हे जान।।
-आगी

261- खरर-खरर खूँटी ला खाय।
पानी पीयत ये मर जाय।।
धीर धरै कुहरा उड़ियाय।
ताव चढ़ै जम्मों लेसाय।।
-आगी

262- कुबरी घोड़ी लाल लगाम।
बने बनावय सबके काम।।
ओमा चढ़थे ससुर दमांद।
धरे एक दूसर के खाँध।।
-चूल्हा

263- चाबे ले ये कहाँ चबाय।
लीले मा लीलावत जाय।।
काँही नइ हे एखर रंग।
सँघरै सबके येहा संग।।
-पानी

264- हावय अइसन कारी गाय।
देखत रहव करौंदा खाय।।
ढ़ील परे ता आफत आय।
भागत बछरू लंका जाय।।
-बंदूक

265- रतिहाकुन ये भारी जान।
हरू होय येहा दिनमान।।
चार गोड़ के खोरु सियान।
लाखों आँखी देखव तान।।
-खटिया

266- बिन पखरा के हवय पहार।
नँदिया हावय बिन जलधार।।
बिन मनखे के दिखथे गाँव।
हावय जंगल, नइ हे छाँव।।
-नक्शा

267- एक अजूबा अइसन ताय।
लात परै बहुते चिचियाय।।
चारा दाना कुछु नइ खाय।
कान अँइठ झट भागत जाय।।
-फटफटी

268- पातर दुब्बर संगी तीन।
एक दुसर के रहँय अधीन।।
आगू-पाछू दँउड़त जाय।
एक चिटिक नइ तो सुरताय।।
-घड़ी

269- संगे आवय संगे जाय।
पानी ला बहुते डर्राय।।
हरय पाँव के रखवार।
अँकड़ा मा ये हे बेकार।।
-पनही

270- आवय खाँधे जावय खाँध।
राखय येला सुग्घर बाँध।।
नेंग-नेंग मा मारे खाय।
हाँसत-गावत बोल सुनाय।।
-माँदर

271- फुदक-फुदक के फुदकत जाय।
तुनक-तुनक के बड़ तनियाय।।
छोड़ दुसर के थामै हाथ।
कपड़ा सुतरी जम्मों साथ।।
-सुजी सूत

272- खेत गोरिया करिया बीज।
खाय पिये के नो हे चीज।।
देथे सबला अक्षर ज्ञान।
का हे एखर नाँव मितान।
-कागज-स्याही

273- चारा चरथे चढ़े पहार।
पानी पीथे मुँड़ ओथार।।
पथरा संगे चढ़थे रंग।
ठलहा राहय बदले संग।।
-छूरा

274- तोरे ऊपर चढ़हे चाब।
राख सकच ना येला दाब।।
एखर ले तोरे पहिचान।
चाहे रतिहा या दिनमान।।
-नाँव

275- अँइठत-अँइठत डारै घात।
बाहिर हेरय रस चुचुवात।।
का हे एखर जानव नाँव।
रँधनी खोली एखर ठाँव।।
-करछुल

276- बड़ अँइठुल हे एखर गोठ।
अँइठन-गँइठन हावय पोठ।।
पाय न कोनो एखर पार।
छँइहा करथे मुँड़ रखवार।।
-पगड़ी

277- दू पाटा हे टाँग पसार।
काहय मूठा भर-भर डार।।
एक खड़े हे दूजा जाय।
खिला बीच मा धरे जमाय।।
-जाँता

278- करिया डारै निकलै लाल।
मार भकाभक देख सँभाल।।
पानी लागय ताते तात।
इही बनावय जग के बात।।
-लोहा

279- करिया मूसर धूम कचार।
ताकत एखर हवय अपार।।
काखर हावय देख अगोर।
खबर-खबर माटी ला जोर।।
-साबर

280- चाँद बरोबर मुखड़ा खास।
ना धरती ना हवय अगास।।
लगे बहू के गजबे आस।
एक घड़ी नइ देखय सास।।
-आईना

281- चार गोड़ के चंपा नार।
खेलै अमरिस बानी झार।।
डुबकय सागर भीतर खास।
माँगय पानी मरय पियास।।
-मथानी

282- दस-दस खीला हे ठोंकाय।
पंगत खातिर ये रजवाय।।
पाना-पतई हरियर रंग।
खात खवाई एखर संग।।
-पतरी

283- दस-दस भाई देवँय मार।
पाछू भाई पाँच कचार।।
जोर-जार के अँगना लान।
चूल्हा-चौका राहय ध्यान।।
-छेना

284- दू ठन बइला एक्के रंग।
राहय जुरमिल एक्के संग।।
आगू-पाछू भागय सार।
एक दुसर बिन ये बेकार।।
-पनही

285- उज्जर सादा हावय खेत।
करिया नाँगर करथे चेत।।
उलगय कारी-कारी सोन।
तुरत बता ये हावय कोन।।
-कलम(पेन)

286- पूछी ला जब खावत जाय।
देखव-देखव मुँड़ी सिराय।।
खाकी कपड़ा पहिरे जान।
का हे तेला तैं पहिचान।।
-बीड़ी

287- पाँच हाथ के लंबा होय।
बखत परे मा सब ला धोय।।
लम्बू टूरा एखर नाँव।
रझ ले मारय एक्के घाँव।।
-लउठी

288- इक महतारी लइका साठ।
राजा जइसे सबके ठाठ।।
कोनो चटपट झट अगुवाय।
कोनो अल्लर रहै उँघाय।।
-माचिस काड़ी

289- दिखथे करिया एखर हाल।
जरत म दिखथे येहा लाल।।
फेकें मा ये सादा झार।
नाँव बतावव एखर यार।।
-कोइला

290- हावय तरिया करिया रंग।
भुरुवा सादा नहाय संग।।
कहूँ खियावै भुरुवा राम।
तभे मतावै तरिया थाम।।
-तख्ता

291- चढ़ै नाक ला धरके जान।
धरै हाथ मा दूनों कान।।
कनवा खातिर ये वरदान।
तीसर आँखी येला मान।।
-चश्मा

292- गुड़गुड़-गुड़गुड़ गटकत जाय।
आगी लागय धुआँ उड़ाय।।
पाना-पतई जम्मों झाँय।
खाँखत-खाँसत समय बिताँय।।
-हुक्का

293- गहना गुरिया बने बनाय।
चाँदी-सोना देख सजाय।।
कान नाल ला देवव छेद।
जात-पात के नइ हे भेद।।
-सोनार

294- धरे हथौड़ा धार धराय।
आगी-पानी संग बिताय।।
लाली लोहा ठोंक ठठाय।
बइठे भट्ठी काज बनाय।।
-लोहार

295- मया-दया के हवय खदान।
घर अँगना के इही सियान।
मोर संग मा इँखरे नाँव।
संझा-बिहना लागँव पाँव।।
-बाप

296- नौ महिना अदरा मा राख।
सहे मुसीबत आवय लाख।।
गजब लुटाथे मया दुलार।
जनम धरे हँव मैं संसार।।
-महतारी

297- तउँरय तरिया मा ये रोज।
गोड़ हाथ नइ राहय सोज।।
चिक्कन मैदा डार मिलाव।
डार चासनी खाते खाव।
-जलेबी

298- कूलर पंखा गजब सुहाय।
शरबत जुड़हा खूब पियाय।।
भावय बर पीपर के छाँव।
ये मौसम के का हे नाँव।।
-गरमी

299- कपसे राहय भारी हाड़।
लागय बहुते सब ला जाड़।।
कथरी कमरा भुर्री भाय।
ये मौसम हा काय कहाय।।
-सरदी

300- दीया बारन ओरी ओर।
चारो मूँड़ा होय अँजोर।।
नवा अंगरक्खा हमन सिलान।
मया मितानी बड़ बगरान।।
-देवारी
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ भाटापारा छत्तीसगढ
गोठबात ~ 9200252055 - (30/04/21)

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