मंगलवार, 27 अप्रैल 2021

जानव जनऊला~(201-250)

201- चुकिया जइसे रेंगत बेर।
बइठे हे तब दीया ढेर।।
बोहे रहिथे तन के भार।
एखर बिन नइ हे निस्तार।।
-माड़ी

202- जंगल झाड़ी बीच निवास।
जब-जब ये हा मरय पियास।।
पीयय पानी लाले लाल।
तुरतुर-तुरतुर चलथे चाल।।
-जुआँ

203- आवय एक न येला आँच।
भुसभुस बन मा नाचय नाँच।।
ककवा ककई ले डर्राय।
लीम तेल ले प्रान बचाय।।
-जुआँ

204- राहय तरिया बीचो बीच।
जइसे गोबर चोता कीच।।
पखरा जानव एखर खोल।
जल्दी एखर नाँव ल बोल।।
-कछुआ

205- मुँहु हे चाकर दाढ़ी लाम।
मेर्र-मेर्र बस दिनभर काम।।
खावय भारी बोंइर पान।
बहुते सिधवा येला जान।।
-बोकरा

206- अइसन चिरई जानव आज।
अपन पाँव ले आवय लाज।।
पूछी मा पइसा पहिचान।
जंगल के ये होथे शान।।
-मंजूर

207- चटर-चटर हे चतुरा चंट।
भनभन-भनभन देत करंट।।
चूमय थोरिक चुप्पे गाल।
हो जावय तब बारा हाल।।
-मच्छर

208- आवय डॉक्टर बिना बलाय।
बिन पइसा ले सुजी लगाय।।
हाथ-पाँव छैठन हे देख।
नाँव काय हे चिटिक सरेख।।
-मच्छर

209- दू अण्डा अउ एक्के थार।
अलग-अलग हावय व्यवहार।।
हे इक ठण्डा दूजा गर्म।
जानव का हे एखर मर्म।।
- सूरुज, चंदा

210- आगी अँगरा लाले लाल।
लकठा जाबे बारा हाल।।
सात घोड़वा रथे सवार।
पावय कोनो नइ तो पार।।
-सूरुज

211- घटथे बढ़थे एखर रूप।
कभू अँजोरी कभू कुलूप।।
जुड़हा जानव एखर छाँव।
आसमान हे एखर गाँव।।
-चंदा

212- थारी भर मोती भरमार।
खाल्हे कोनो गिरय न यार।।
दिखय न एक्को ये दिनमान।
जगजग रतिहा नवा बिहान।।
-चंदैनी

213- नंद बबा के नौ सौ गाय।
चरय रात, दिन बेड़े जाय।।
सुग्घर जुड़हा एखर धाम।
ओझल होथे देखत घाम।।
-चंदैनी

214- रहिथे येहा तरिया बीच।
गड़े नेरवा खाल्हे कीच।।
दिखथे जइसे कंचन थार।
लोटय पानी एक न यार।।
-पुरईन पान

215- एती-ओती जावय रोज।
कहाँ धराथे येहा सोज।।
आगू-पाछू चलथे संग।
बिरबिट करिया एखर रंग।।
-छँइहा

216- बादर ले नरियर ये आय।
पाँच रकम के भेला ताय।।
बिन छाली के हावय बीज।
बोल तुरत अब ये का चीज।।
-करा

217- सावन-भादो भारी चाल।
पानी-पानी बारा हाल।।
माँघ-पूस मा पातर धार।
का हे येहा करव विचार।।
-मोरी (नाली)

218- भर-भर हथुआ धरे पिसान।
घर भर बाँटय अपने मान।।
एखर बिन नइ हे उजियार।
संग रहय ता खुशी अपार।।
-अँजोर

219- आधा मिट्ठू देखव यार।
आधा बगुला दिखथे सार।।
हमर देश मा उपजै पोठ।
कोनो पातर कोनो मोंठ।।
-मुरई

220- रिंगी-चिंगी फूलै फूल।
फर फरथे फुनगी मा झूल।।
दिखथे लकड़ी जइसे अंग।
गुदा रसा हे एखर संग।।
-मुनगा

221- दाना ऊपर दाना देख।
इचिक-पिचिक हे तहूँ सरेख।।
गोल-गोल दाना दमदार।
बने रथें एक्के परिवार।।
-बटरा

222- एक खड़े खंभा खँड़सार।
छानी छाहित एखर चार।।
नाँव धरे हें तीने पान।
भरे स्वाद हे येमा जान।।
-तिनपनिया

223- एक टाँग के टोपी एक।
जोगी निकले बारा नेक।।
बादर गरजय तब ये आय।
सबके मन ला बहुते भाय।।
-फुटु

224- हावय हड़िया सादा रंग।
भीतर पानी हे दू रंग।।
तुरते ताही नाँव बताव।
बाँट बिराजे सब झन खाव।।
-अंड़ा

225- देवय दुधवा नो हे गाय।
तीन आँख पर नहीं शिवाय।।
रहै पेड़, चिरई नइ जान।
खड़भुसरा एखर पहिचान।।
-नरियर

226- रहय कटोरा संगे खाप।
गोरा बेटा साँवर बाप।।
भीतर कोंवर, बाहिर ठोस।
गुरतुर-गुरतुर खाव परोस।।
-नरियर

227- साल महीना चूरे भात।
जब खाबे तब ताते तात।।
नानुक फर हे करय कमाल।
छू पारे ता आँखी लाल।।
-मिरचा

228- लइकापन हरियर हे हाल।
आय बुढ़ापा होवय लाल।।
मया मरे मा अगिन ढिलाय।
पानी-पानी सब चिल्लाय।।
-मिरचा

229- हरियर पींयर एखर रंग।
टिटटिप रस हा छलकै अंग।।
नान्हें-नान्हें सेसा सार।
काट-काट के चटनी डार।।
-लिम्बू

230- थोरिक पानी बीच तलाव।
लाल भवानी गाल फुलाव।।
धोय नहाये ताते तात।
कहाँ अगोरा खाते खात।।
-सोहाँरी

231- नानुक टूरा मटकू दास।
ओन्हा परिहे तीस पचास।।
लाली सादा रहिथे यार।
चुरपुर गुरतुर नँगते झार।।
-गोंदली(प्याज)

232- फर लड़ुवा कस होथे गोल।
पाना गुजगुज लाम टटोल।।
हाँसय येहा, सबझन रोय।
कांदा भुँइयाँ भीतर होय।।
-गोंदली(प्याज)

234- बोंवत बटुरा देखँव खार।
जामत मा दिखथे कुसियार।।
ढाई महिना होवय पूत।
दाढ़ी मेछा होय अकूत।।
-जोंधरी(भुट्टा)

235- एक पेड़ मा ढेलच-ढेल।
खावँय लइका खेलत खेल।।
कटही डारा पाना पीक।
सावन मा ये लागय नीक।।
-बेल पेड़

236- खाल्हे हंडा मिलय हियाव।
ऊपर हँड़िया देखव पाव।।
पाना डारा बनथे साग।
अमसुरहा के धरलव पाग।।
-जिमीकांदा

237-  सौ-सौ घुँघरू एक्के गोड़।
हवय गोरिया ये बेजोड़।।
खनखन बाजय, सुनलव टेर।
बोलव का झन करव अबेर।।
-मूँगफली

238- बारी बखरी खेती खार।
ओन्हा-कोन्हा तीरे तार।।
एक फूल बहुते सुखदास।
फर फरथे चालीस पचास।।
-केरा

239- तीन सींग के करिया गाय।
अब्बड़ एखर दूध मिठाय।।
रायह येहा तरिया बीच।
डेरा एखर कारी कीच।।
-सिंघाड़ा

240-  काय शहर अउ गँवई गाँव।
जम्मों करथें खाँवे खाँव।।
फर करिया अउ गुठलु सफेद।
कोनो करँय न काँही भेद।।
-जामुन

241- कुबरा बुढ़वा नून म खाय।
सोज बाय नइ रहि पाय।।
करिया बीजा हरय चिचोल।
सोच समझ के नामे बोल।।
-अमली

242- सुग्घर हावय गोल मटोल।
हरियर डारा लाल कपोल।।
चटक-मटक ये सबके संग।
कभू करय नइ ये उतलंग।।
-पताल

243- अइसन सिधवा राजा घात।
बइठे छानी ताने लात।।
भुँइयाँ लामे एखर हाथ।
फुलुवा पाना देथे साथ।।
-मखना नार

244- चार महीना खूब भराय।
चार महीना रहि खलियाय।
चार महीना धूल उड़ाय।।
चार महीना सब घोलाय।।
-खेत

245- दाई चबरी बेटी नेक।
रहिथें काँटा खूँटी टेक।।
जौन तीर मा एखर जाय।
संग चिरोंजी सुग्घर पाय।।
-बोंइर

246- एक दाँत के डउका लोग।
सावन-भादो नइ हे सोग।।
एक मुठा मा थामै मूँठ।
दू बइला हा फाँदै ठूँठ।।
-नाँगर

247- रुखराई ना पाना सार।
ऊपर छाहित छाता यार।।
चढ़े रखे ये उँचहा रूख।
बिन खाये ये मेटे भूख।।
-अमरबेल

248- बिना पाँव के अहिरा जाय।
बिना सींग के देखव गाय।।
देख अचंभा मति चकराय।।
येमन खारे खार कुदाय।।
-साँप अउ मेंचका

249- बिना पाँख के सुवना खास।
उड़ि-उड़ि जावय ऊँच अगास।।
रंग रूप के नइ हे आस।
भूख मरै ना कभू पियास।।
-जीवात्मा

250- कथा सुपारी बँगला पान।
दू मनखे अउ बाइस कान।।
कभू करँय लंका मा राज।
रहिगे अब तो सुरता आज।।
-रावण, मंदोदरी
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कन्हैया साहू 'अमित'~भाटापारा छत्तीसगढ
गोठबात-9200252055, सृजन-27/04/21

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