सोमवार, 26 अप्रैल 2021

जानव जनऊला~(151-200)

151- बँधे सघन के बँधना बाँध।
कोरे गाँथे झूलय खाँध।।
चाबै नहना नइ जानै तेन।
मजा उड़ावय जानै जेन।।
-ककई

152- अँइठे गँइठे हवय हजार।
बइठै चढ़के ऊँच पहार।।
चघे फूल अउ पतई पान।
फेर देवता नो हे जान।।
-पगड़ी

153- सेतचंद हे राजाराय।
भुँइयाँ ना येला उपजाय।।
मुँहू फोकला एक न पाय।
लाखों फर ला सइघो खाय।।
-करा

154- तन के फुदकी फुदकत जाय।
नौ-नौ अँड़वा पार मढ़ाय।।
धागा संगे बदे मितान।
अरझे दूनों के हे प्रान।।
-सुई (सिलाई)

155- एक अचंभा देखन भाय।
खाय न खाना, जाय सुखाय।।
खावय खाना तब मोटाय।
सदा सुखी हे जे पतियाय।।
-चून्दी

156- चाहे कतको संकट आय।
सबके जरथे ता जर जाय।।
साधु बबा के बचै लँगोट।
काँपय न कभू एखर पोट।।
-सड़क

157- कच्चा मा ये गुदगुद गाँठ।
पक्का मा ये होथे टाँठ।।
चलै चाक पावय आकार।
पानी पीयँय तब संसार।।
-मरकी

158-  गर मा डोरी हावय लाम।
कारी छेरी परगे नाम।।
चल टूरी चल हाट बजार।
तोर बिना कइसे बैपार।।
-तराजू

159- खिलय न कोनो राजा बाग।
एखर ले चमकै जग भाग।।
जस गुलाब बिहना मुस्काय।
बड़े बिहनिया ये बगराय।।
-बेरा

160- बजत नँगारा चारों खूँट।
भागँय पल्ला छेरी ऊँट।।
खड़े लखन के बरदी खार।
दाता एखर हे रखवार।।
-सूरुज, चंदा, चंदैनी, गरजना

161- ठड़गा बइला ठड़गा सींग।
ठड़गा नाचै टींगे टींग।।
भर-भर मुँह ठाड़े पगुरात।
बुता करय जब खावय लात।।
-ढ़ेकी

162- नानुक बटकी रस भंडार।
रामा आगू पलथी मार।।
एक कटोरी रसपान।
कच्चा पक्का डार अथान।।
-लिम्बू

163- आठ पहर भर अँगना तीर।
चौंसठ पल ये खड़े गँभीर।।
नर के ऊपर चढ़हे नार।
होवत हे जग मा जयकार।।
-तुलसी

164- जनम धरे तब गज हे साठ।
भरे जवानी एक लुवाठ।।
आय बुढ़ापा मा गज तीस।
तुरत बतावव काय जिनीस।।
-छँइहा

165- दू पूछी अउ छै ठन कान।
गोड़ा दस हे एखर जान।।
हावय सिरतों मा मुँहु चार।
बिना जीभ के हाथ पसार।।
-दुहना

166- खन-खन उड़ते-उड़ते जाय।
बइठै भीतर पंख बिछाय।।
लाखों जियना मार गिराय।
पर ये कुछु नइ कखरो खाय।।
-केंवट के जाली

167- बाप पूत के एक्के नाँव।
राहँय दूनों एक्के ठाँव।।
हवय नाँव नाती के और।
जभे बताबे जाबे ठौर।।
-मँउहा

168- कोन तीर मा तरई गाय।
मुँह भर ये ओन्हारी खाय।।
बीच पेट मा सबके ध्यान।
पूजँय पहिली देव समान।।
-जाँता

169- घोड़ा ऊपर घोड़ा संग।
जीन घोड़वा एक्के रंग।।
एक दुसर के पीठ सवार।
जावय सँघरा हाट बजार।।
-रउतईन कीरा

170- बन मा काटय, बन मा छील।
सावन भादो नँदिया ढील।।
काट बहेरा बन म सुखाय।
जइसे फाँफा छोड़े जाय।।
-डोंगा

171- एक पेड़ के अजब सुभाव।
लगे देंह मा बारा घाव।।
तीस-तीस के झोत्था डार।
अलग-अलग हे नाँव पुछार।।
-साल, महीना, दिन

172- फरै लकड़िया उँचहा डार।
पोर-पोर मा गुण रसधार।।
खाँय सियनहा चाँटे चाँट।
छेवरिया ला देवव बाँट।।
-मुनगा

173- मोर ममा के नौ सौ गाय।
रतिहा ढिल्ला बड़ बिजराय।।
चारा-पानी कुछु नइ खाय।
बिहना लहुटे घर मा आय।।
-चंदैनी

175- तीन भाग हे, चलय समेट।
खावय कतको खलखल पेट।।
दिखथे गाभिन पूछी कोर।
रेंगय तुरतुर ओरी ओर।।
-करिया चाँटा

176- चमचम चमचम पाँव मड़ाँव।
तोर दुवारी हेरत आँव।।
जाँवर जोड़ी धौंस जमाय।
अँकड़ा कोई काम न आय।।
-पनहीं

177- तरी तेलई ताते तात।
एक तेलई ऊपर थात।।
बड़े मिठाई चूरे जाय।
सादा-कोंवर गंज मिठाय।।
-पेंउस

178- माटी के बकरा नरियाय।
चटकन चीला चटचट खाय।।
जतके परथे येला मार।
वतके बनथे ये गुणकार।।
-माँदर

179- बिना हाथ के करय उपाय।
बिना गोड़ के खाँधे जाय।।
घोड़ा दाबे बोलय धाँय।
मुँह ले बोली निकलै साँय।।
-बंदूक

180- दिखे साँप कस एखर ढंग।
दुधवा सादा उज्जर रंग।।
नारी गर के शोभा आय।
जानय जौने तुरत बताय।।
-सुतिया (सूँता)

181- सुक्खा डबरी तीपत जाय।
देख कोकड़ा ह फड़फड़ाय।।
सबके मन ला बहुते भाय।
मुसुर-मुसुर सब येला खाय।।
-मुर्रा

182- सात नँगरिया जोते खेत।
पानी के नइ पावय नेत।।
ठाडे़ जोगी ध्यान लगाय।
बिना बोकला रुखुवा पाय।।
-मंदिर

183- नान्हें लइका चतुरा चंट।
दिखथे ये भारी फरजंट।।
मुँह ले बाहिर दतुवन घीस।
तुरत बतावव काय जिनीस।।
-चूल्हा

184- माटी के बइला हे जान।
माटी के हे चढ़े पलान।।
माढ़ै माटी के देवान।
झटपट तैं येला पहिचान।।
-हाँड़ी

185- बादर ले गिरय अकाय।
तेला लेंगय लोग उठाय।।
स्वाद पचर्रा अजब जनाय।।
जे खावय वो हा पछताय।।
-करा (ओला)

186- इन्दर राजा फोरै पेट।
बादर गड़गड़ देवय मेट।।
बीच बोडर्री निकलै भात।
बनय तभे जी सबके बात।।
-कपसा

187- ना डारा ना कोनो पान।
जनम धरे हन तबले ध्यान।।
खाय बिना रहे न जाय।
जिनगीभर रहना हे खाय।।
-नून

188- बाढ़य बइला, भागय गाय।
खेत खार मा गोड़ लमाय।।
आगू-आगू फुलुवा फूल।
आँखी-आँखी जावय झूल।।
-मखना नार

189- पर्रा भर हे लाई देख।
बगरै मा नइ सकय सरेख।।
चमकै चमचम ये हा रात।
होत बिहनिया गायब बात।।
-चंदैनी

190- छितका कुरिया बाघ बँधाय।
चारा देबे बड़ गुर्राय।।
खावय खानी देंह घुमाय।
कतको खाथे, कहाँ अघाय।।
-जाँता

191- जेखर ऊपर पाँखी झार।
चना मसूरी खेती खार।।
डोंगा बूड़य पानी बीच।
कभू-कभू पानी मा कीच।।
-आँखी

192- पचरी ऊपर पचरी जान।
रहय मोंगरी परे उतान।।
हावय कोंवर मासे मास।
नान्हें हे पर हावय खास।।
-जिभिया

193- हवय टेड़गा एखर राह।
जबर कुआ, नइ पावय थाह।।
आँखी संग म जोड़ी जोड़।
जइसे हावय हाथे गोड़।।
-कान

194- जनमै येहा घामे घाम।
चमचम चमकै आगर चाम।।
छँइहा मा ये झट मुरझाय।
लगय हवा ता मरते जाय।।
-पछीना

195- राहँय जम्मों एक्के संग।
पाँचों भाई एक्के रंग।।
अलग-अलग मा काय कहाय।
सँघरा मा ये सदा सहाय।।
-हथेरी

196- करिया हे पर नो हे काग।
लम्बा हे पर नो हे नाग।।
चढ़ै तेल, नो हे हनुमान।
चढ़ै फूल, नो हे भगवान।।
-बेनी

197- उचकुल-गुचकुल कुआँ खदान।
पेड़ बतीसा, एक्के पान।।
रहय मोंगरी मछरी एक।
सबके सेवा करथे नेक।।
-मुँह, जीभ

198- बिना कहे ये लग जाय।
कहे-कहे मा ये तनियाय।।
लाली-लाली तीर कमान।
रहिथें दूनों एक समान।।
-होंठ

199- दू दरवाजा मंदिर एक।
भुरुवा राजा राहय नेक।।
अलग-अलग हे एखर भेद।
भीतर जाके एक्के छेद।।
-नाक

200- नँदिया के ये तीरे तीर।
बइठे बगुला धीरे धीर।।
टुपटुप येहा बिनते जाय।
जुरमिल के ये जम्मों खाय।।
-दाँत
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कन्हैया साहू 'अमित'~भाटापारा छत्तीसगढ
9200252055 ~ सृजन-26/04/2021

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