गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

जानव जनऊला ~ (251-300)

251- खोड़र-खोड़र खटका गीन।
छै आँखी बोड़र्री तीन।।
छै गोड़ा अउ एक फँदाय।
एक दुसर के काज बनाय।।
-नाँगर जोतत किसान

252- चरै बोकरा नँदिया तीर।
चारा खपगे परगे धीर।।
बिन चारा के बड़ नरियाय।
तड़प-तड़प के ये मर जाय।।
-दीया

253- माटी के तरिया खोदाय।
पूछी ले ये पानी पाय।।
जरय मुँड़ी हा धीर लगाय।
सादा तन तुरते ललियाय।।
-दीया

254- एक जगा धर आय मढ़ाय।
चारों मूँड़ा ये बगराय।।
अँधियारी ला देवय चीर।
अइसन नान्हें माटी बीर।।
-दीया

255- बड़का भारी एक जहाज।
पूछी कोती करथे काज।।
मुँह उलगै कुहरा झार।
करय तहाँ ये घर उजियार।।
-दीया

256- दिनभर सोवय पाँव पसार।
जागय जब होवय अँधियार।।
जतके जागय होय सजोर।
अँधियारी ला खाय बटोर।।
-मोमबत्ती

257- दूर देश मा माया जाल।
गाँव-शहर हावय ससुराल।।
गली-खोर मा डउका चार।
घर-घर मा एखर परिवार।।
-बिजली

258- रतिहाकुन जागय बिरवान।
सुतै ससनभर ये दिनमान।।
चारा-पानी कुछु नइ खाय।
अँधियारी ला बहुते भाय।।
-बिजली

259- कुटी-कुटी कतको तैं काट।
जींयत रहिथे चाहे पाट।।
चाहे पानी मा दे बोर।
छाँड़य नइ ये करथे शोर।।
-परछाई

260- करिया बइला राहय ठाड़।
लाली बइला चढ़ै पहाड़।।
सँघरा दिखथे एक समान।
नाँव बतावव का हे जान।।
-आगी

261- खरर-खरर खूँटी ला खाय।
पानी पीयत ये मर जाय।।
धीर धरै कुहरा उड़ियाय।
ताव चढ़ै जम्मों लेसाय।।
-आगी

262- कुबरी घोड़ी लाल लगाम।
बने बनावय सबके काम।।
ओमा चढ़थे ससुर दमांद।
धरे एक दूसर के खाँध।।
-चूल्हा

263- चाबे ले ये कहाँ चबाय।
लीले मा लीलावत जाय।।
काँही नइ हे एखर रंग।
सँघरै सबके येहा संग।।
-पानी

264- हावय अइसन कारी गाय।
देखत रहव करौंदा खाय।।
ढ़ील परे ता आफत आय।
भागत बछरू लंका जाय।।
-बंदूक

265- रतिहाकुन ये भारी जान।
हरू होय येहा दिनमान।।
चार गोड़ के खोरु सियान।
लाखों आँखी देखव तान।।
-खटिया

266- बिन पखरा के हवय पहार।
नँदिया हावय बिन जलधार।।
बिन मनखे के दिखथे गाँव।
हावय जंगल, नइ हे छाँव।।
-नक्शा

267- एक अजूबा अइसन ताय।
लात परै बहुते चिचियाय।।
चारा दाना कुछु नइ खाय।
कान अँइठ झट भागत जाय।।
-फटफटी

268- पातर दुब्बर संगी तीन।
एक दुसर के रहँय अधीन।।
आगू-पाछू दँउड़त जाय।
एक चिटिक नइ तो सुरताय।।
-घड़ी

269- संगे आवय संगे जाय।
पानी ला बहुते डर्राय।।
हरय पाँव के रखवार।
अँकड़ा मा ये हे बेकार।।
-पनही

270- आवय खाँधे जावय खाँध।
राखय येला सुग्घर बाँध।।
नेंग-नेंग मा मारे खाय।
हाँसत-गावत बोल सुनाय।।
-माँदर

271- फुदक-फुदक के फुदकत जाय।
तुनक-तुनक के बड़ तनियाय।।
छोड़ दुसर के थामै हाथ।
कपड़ा सुतरी जम्मों साथ।।
-सुजी सूत

272- खेत गोरिया करिया बीज।
खाय पिये के नो हे चीज।।
देथे सबला अक्षर ज्ञान।
का हे एखर नाँव मितान।
-कागज-स्याही

273- चारा चरथे चढ़े पहार।
पानी पीथे मुँड़ ओथार।।
पथरा संगे चढ़थे रंग।
ठलहा राहय बदले संग।।
-छूरा

274- तोरे ऊपर चढ़हे चाब।
राख सकच ना येला दाब।।
एखर ले तोरे पहिचान।
चाहे रतिहा या दिनमान।।
-नाँव

275- अँइठत-अँइठत डारै घात।
बाहिर हेरय रस चुचुवात।।
का हे एखर जानव नाँव।
रँधनी खोली एखर ठाँव।।
-करछुल

276- बड़ अँइठुल हे एखर गोठ।
अँइठन-गँइठन हावय पोठ।।
पाय न कोनो एखर पार।
छँइहा करथे मुँड़ रखवार।।
-पगड़ी

277- दू पाटा हे टाँग पसार।
काहय मूठा भर-भर डार।।
एक खड़े हे दूजा जाय।
खिला बीच मा धरे जमाय।।
-जाँता

278- करिया डारै निकलै लाल।
मार भकाभक देख सँभाल।।
पानी लागय ताते तात।
इही बनावय जग के बात।।
-लोहा

279- करिया मूसर धूम कचार।
ताकत एखर हवय अपार।।
काखर हावय देख अगोर।
खबर-खबर माटी ला जोर।।
-साबर

280- चाँद बरोबर मुखड़ा खास।
ना धरती ना हवय अगास।।
लगे बहू के गजबे आस।
एक घड़ी नइ देखय सास।।
-आईना

281- चार गोड़ के चंपा नार।
खेलै अमरिस बानी झार।।
डुबकय सागर भीतर खास।
माँगय पानी मरय पियास।।
-मथानी

282- दस-दस खीला हे ठोंकाय।
पंगत खातिर ये रजवाय।।
पाना-पतई हरियर रंग।
खात खवाई एखर संग।।
-पतरी

283- दस-दस भाई देवँय मार।
पाछू भाई पाँच कचार।।
जोर-जार के अँगना लान।
चूल्हा-चौका राहय ध्यान।।
-छेना

284- दू ठन बइला एक्के रंग।
राहय जुरमिल एक्के संग।।
आगू-पाछू भागय सार।
एक दुसर बिन ये बेकार।।
-पनही

285- उज्जर सादा हावय खेत।
करिया नाँगर करथे चेत।।
उलगय कारी-कारी सोन।
तुरत बता ये हावय कोन।।
-कलम(पेन)

286- पूछी ला जब खावत जाय।
देखव-देखव मुँड़ी सिराय।।
खाकी कपड़ा पहिरे जान।
का हे तेला तैं पहिचान।।
-बीड़ी

287- पाँच हाथ के लंबा होय।
बखत परे मा सब ला धोय।।
लम्बू टूरा एखर नाँव।
रझ ले मारय एक्के घाँव।।
-लउठी

288- इक महतारी लइका साठ।
राजा जइसे सबके ठाठ।।
कोनो चटपट झट अगुवाय।
कोनो अल्लर रहै उँघाय।।
-माचिस काड़ी

289- दिखथे करिया एखर हाल।
जरत म दिखथे येहा लाल।।
फेकें मा ये सादा झार।
नाँव बतावव एखर यार।।
-कोइला

290- हावय तरिया करिया रंग।
भुरुवा सादा नहाय संग।।
कहूँ खियावै भुरुवा राम।
तभे मतावै तरिया थाम।।
-तख्ता

291- चढ़ै नाक ला धरके जान।
धरै हाथ मा दूनों कान।।
कनवा खातिर ये वरदान।
तीसर आँखी येला मान।।
-चश्मा

292- गुड़गुड़-गुड़गुड़ गटकत जाय।
आगी लागय धुआँ उड़ाय।।
पाना-पतई जम्मों झाँय।
खाँखत-खाँसत समय बिताँय।।
-हुक्का

293- गहना गुरिया बने बनाय।
चाँदी-सोना देख सजाय।।
कान नाल ला देवव छेद।
जात-पात के नइ हे भेद।।
-सोनार

294- धरे हथौड़ा धार धराय।
आगी-पानी संग बिताय।।
लाली लोहा ठोंक ठठाय।
बइठे भट्ठी काज बनाय।।
-लोहार

295- मया-दया के हवय खदान।
घर अँगना के इही सियान।
मोर संग मा इँखरे नाँव।
संझा-बिहना लागँव पाँव।।
-बाप

296- नौ महिना अदरा मा राख।
सहे मुसीबत आवय लाख।।
गजब लुटाथे मया दुलार।
जनम धरे हँव मैं संसार।।
-महतारी

297- तउँरय तरिया मा ये रोज।
गोड़ हाथ नइ राहय सोज।।
चिक्कन मैदा डार मिलाव।
डार चासनी खाते खाव।
-जलेबी

298- कूलर पंखा गजब सुहाय।
शरबत जुड़हा खूब पियाय।।
भावय बर पीपर के छाँव।
ये मौसम के का हे नाँव।।
-गरमी

299- कपसे राहय भारी हाड़।
लागय बहुते सब ला जाड़।।
कथरी कमरा भुर्री भाय।
ये मौसम हा काय कहाय।।
-सरदी

300- दीया बारन ओरी ओर।
चारो मूँड़ा होय अँजोर।।
नवा अंगरक्खा हमन सिलान।
मया मितानी बड़ बगरान।।
-देवारी
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
कन्हैया साहू 'अमित' ~ भाटापारा छत्तीसगढ
गोठबात ~ 9200252055 - (30/04/21)

दोहा अमित के ~ जनऊला (01-05)

जनऊला-01
लाली मुँह के छोकरी, हरियर जुड़ा गँथाय।
निकलै जब बाजार मा, हाथ-हाथ बेचाय।।
-पताल

काटे म कटावय नहीं, बोंगे नइ बोंगाय।
अँधियारी मा छप अमित, दिखै अँजोरी आय।।
-छँइहा

हरियर पाँखी रंग हे, नरी हवय जी लाल।
खावय मिरचा चाब के, बोलय तहाँ कमाल।।
-मिट्ठू

दुब्बर पातर हे परी, पहिरे मुकुट ल माथ।
करै अँजोरी घिस मुकुट, हे अँधियारी हाथ।।
-माचिस

उड़थे पर पंछी नहीं, भुजबल भारी अंग।
सरदी गरमी मा रहय, सिरतों मस्त मलंग।
-हवाई जहाज

बिना तार के जोड़थे, मन ले मन के बात।
अब तो आगू देखले, दिन होवय के रात।।
-मोबाइल

आथँव रतिहा बेर मैं, जाथँव चुप दिनमान।
सादा जुड़हा छाँव हे, झटपट तैं पहिचान।।
-चंदा

लकलक-लकलक मैं बरँव, आगी गोला जान।
रहिथँव मैं दुरिहा भले, आथँव नित दिनमान।।
-सूरुज

बादर ले मैंहा गिरँव, धरती बीच समाँव।
मोर बिना कइसे गुजर, सबके प्यास बुताँव।।
-पानी

रुखराई मा मैं रहँव, झन चिरई तैं जान।
चलथँव जब मैंहा इहाँ, सबके बचथे प्रान।
-हवा
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ जनऊला-2
बिना पाँव अहिरा भगै, बिना सींग के गाय।
अइसन अचरज नइ दिखै, खारन खेत कुदाय।।
-साँप, मेचका

बिना पाँख सुवना उड़ै, जावय ऊँच अगास।
रंग रूप एखर नहीं, भूख मरै न पियास।।
-जीवात्मा

मोला पाथे कोन हा, मैं तो सबके तीर।
संग-संग चलथँव सदा, होके मैं गंभीर।।
-छँइहा

लाली सादा रंग हे, मैं हँव मटकू दास।
नखरा हावय बड़ गजब, लत्ता मोर पचास।।
-गोंदली

सादा सादा रंग हे, एखर ये पहिचान।
देखत मा ये साधु हे, फेर कपट के खान।।
-कोकड़ा

चार अँगुल के पेड़ हे, सवा सेर के पान।
अलग-अलग फर धरय, पाकय एक समान।।
-कुम्हार के चाक

सुग्घर गोरी पालती, केहर करिया रंग।
ग्यारा देवर छोड़ के, जाय जेठ के संग।।
-राहेर दार

ऊपर एक्के रंग हे, भीतर कबरा सार।
मीठ-मीठ मुँह मा रमय, फिकर करय नर नार।।
-सुपारी

कपड़ा चुन्दी सब फटै, मोती लूट उतार।
ये कइसन बिपदा अमित, कपसे दिखय नार।।
-भुट्टा (जोंधरी)

थारी मोती ले भरे, उल्टा देंवँय टाँग।
मोती एक्को नइ गिरै, कतको लगय छलाँग।।
-आसमान अउ चंदैनी
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
जनऊला-3
हरियर-हरियर मैं भला, करिया लइका मोर।
मोला खाना छोड़ दे, लइका मुँह मा जोर।।
-लायची

पन्ना-पन्ना हे भरे, नहीं पेड़ तैं जान।
खोल-खोल मोला पढ़व, पाहू बहुते ज्ञान।।
-किताब

हाथी घोड़ा हे नहीं, खाय न दाना घास।
धरती मा बहुते चलय, रहय न कभू उदास।।
-साइकिल

एक महल दस कोठरी, सब हे फाटकदार।
देख खोल के भीतरी, राजा ना रखवार।।
-गोंदली

एक फूल करिया अमित, मुँड़ मा सदा सुहाय।
देख घाम होवय खुशी, छँइहा मा मुरझाय।।
-छतरी

उँटवा कस हे बैठका, हिरना जइसे चाल।
कोन जानवर हे बता, जेखर पुछी न बाल।।
-मेचका

हरियर पाँखी मोर हे, चोंच हवय पर लाल।
नकल उतारव मैं तुहँर, कतका करँव कमाल।।
-मिट्ठू

नोनी बौनी हे दिखय, पहिरे हरियर लाल।
खावय कोनो जान के, मातय फेर बवाल।।
-मिर्चा

मुँड़ी पुछी ओखर हवै, नइ हे एक्को पाँव।
चलथे-फिरथे देख ले, खोर गली अउ गाँव।।
-साँप

बइठे हावय नाक मा, खींचत हावय कान।
आँखी आगू ये रहै, दिखथे काँच समान।।
-चश्मा
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~ जनऊला-4
दूर देश मइके हवय, गाँव-शहर ससुरार।
गली-खोर डउका खड़े, घर-घर हे परिवार।।
-बिजली

हे पहाड़, पखरा नहीं, नँदिया हे बिन धार।
हवय गाँव, मनखे नहीं, दिखय फसल बिन खार।।
-नक्शा

मुखड़ा चंदा कस लगे, बाँधे अँचरा आस।
घेरी-बेरी बस बहू, एक घड़ी ना सास।।
-आईना

बीसों के मुँड़ काट दव, तब्भो बढ़े जाय।
जिन्दा रहिथे बिन लहू, बात समझ नइ आय।।
-नख

एक गुनी के ये बुता, चलथे चतुरा चाल।
हरियर बँगला धाँध के, तहाँ निकालै लाल।।
-पान

उपजै जब ये खेत मा, जुरमिल जम्मों खाय।
घर अँगना मा होय तब, घर हा बगरे जाय।।
-फूट

डब्बा डब्बा जोड़ के, डब्बा के हे गाँव।
चलत-फिरत बस्ती रहै, लोहा के हे पाँव।।
-रेलगाड़ी

हरदी के गोला दिखय, पीतल लोटा जान।
भीतर बीजा हे भरे, चिपचिपहा पहिचान।।
-बेल

दू मुँह के हे डोकरी, राहय खाली पेट।
मीठ-मीठ बोलय गजब, थपरा परय समेट।।
-ढ़ोलक

छेदा ओखर अंग मा, धकधक करय परान।
जतके मारौ फूँक ला, गावय गुरतुर गान।।
-बँसरी
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जनऊला-05
पातर दुब्बर गउ असन, रेंगय मुँड़ी नवाय।
आवय कखरो हाथ ता, बिछड़े हा मिल जाय।।
सुजी-सूँत

हरियर पाना संग मा, पाँच रंग दै डार।
खावय जौने चाब के, लाल होय मुँह सार।।
पान मसाला

छोटे बस्ती घर घना, रहैं बहुत बलबीर।
छूवय तेला चाब दैं, कोनो धरै न धीर।।
ततैया छाता

पानी उपजै साग हा, ओखर कमला नाम।
थाँगा जम्मों खात हें, देके उँचहा दाम।।
ढेंस

दू तरपौंरी पाँव छै, अइसन नारी जान।
ऊपर ओखर हे पुछी, झट येला पहिचान।।
तराजू

बिना दाँत के काटथे, चर-चर बोलय बैन।
बिना पाँव के रेंगथे, बिन देखे वो नैन।।
पनही

पचरंगी नोनी पिला, खेलय बाबू संग।
पानी ले वो डर मरय, हवा संग उतलंग।।
पतंग

चम-चम चमकै सोन कस, राहय दूर अगास।
लागय सिधवा के असन, करै प्रान के नास।।
गाज

एक पेड़ पानी उपज, बहुते डारा होय।
एखर छँइहा के तरी, बइठ सकय ना कोय।।
फव्वारा

देंह पाँव एखर नहीं, लेवय कभू न साँस।
दिखै नहीं छँइहा घलो, खाय आदमी माँस।।
संसो

बिन मुँड़ नारी एक हे, दूठन बाँह उठाय।
जब आवै चल-चल कहय, लेगत एक ल जाय।।
डोला
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कन्हैया साहू 'अमित' ~भाटापारा छत्तीसगढ
गोठबात ~ 9200252055 - (29/04/21)

दोहा अमित के ~ हाना (01-05)

हाना-1
उल्टा पुल्टा हाल अब, उल्टा हे संसार।
कइसे के दिन आय हे, मूँड़ मुँड़ै लोहार।।

ठलहा बनिया का करय, कइसे समय पहाय।
ए कोठी के धान ला, ओ कोठी म रिताय।।

गदहा के ना सुर सधय, बनिया न सखा होय।
बगुला सधुवा का बनय, वेश्या चाल न खोय।।

अपने करनी तब दिखय, जब मरनी के बेर।
तब पछतावय होत का, परे काल के फेर।।

अपने जोगी जोगड़ा, सिद्ध भये हे आन।
घर के कुकरी दार कस, जानव मरे बिहान।।

अँड़हा के लिखना अमित, रड़हे डड़हा ताय।
कारी आखर एक हे, कहाँ बात पतियाय।।

बइगा घर लइका नहीं, बढ़ई घर नइ खाट।
अइसन विद्या काय के, खन के खँचवा पाट।।

शक्ति जोग के हे नहीं, आँखी लगे भभूत।
जाँगर एको नइ चलय, करते बात अकूत।।

तेल फूल लइका बढ़ै, पानी बाढ़ै धान।
खानपान ले हे सगा, बाढ़ै करम किसान।।

दुरिहा खेती अउ करज, लकठा बैरी बास।
रुखुवा नँदिया तीर के, खच्चित होय विनास।।
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हाना-2
चारी चुगरी जे करय, खाय तौन हा लात।
तनतन जे भूती करय, खाय तौन हा भात।।

देखा-सीखा देख के, आथे अलहन जान।
छूट परिस हे प्रान हा, खाइस शौख म पान।।

जौन बहुरिया नकचढ़ी, नखरा बड़ देखाय।
चिंगरी मछरी झोर दे, कहिके रार मचाय।।

करम कमाई हाथ मा, जाँगर बाँह भरोस।
महिनत के फर मीठ हे, खा ले तीन परोस।।

सोच समझ बूता करव, गोठ करव कर जोर।
अपने हिस्सा बाँटलव, रोटी खावव टोर।।

लालच के फर हे करू, कइसे अमित बताय।
लगे भँइस के लोभ हे, छेरी दुहे न जाय।।

भात खाय करछुल नहीं, फेर धरे तलवार।
डींग मार ले तैं बने, करके सोंच विचार।।

दूध दुहै चलनी धरे, भाग ल दोस बताय।
अपन करम जानय नहीं, बिरथा जनम खपाय।।

सबो कुकुर गंगा चलय, पतरी चाँटय कोन।
मुसुवा बर खइता हवय, कतको पावय सोन।।

कतको सर जाथे तभो, काम आय सइगोन।
भाव कभू उतरय नहीं, जइसे चाँदी सोन।।
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हाना-3
तेल सिरागे घाव बर, घर मा नइ हे भाँग।
कोठा मा बारय दिया, पाछू मेछा टाँग।।

अहिरा पिंगरा बड़ पढ़ै, तभो हाल बेहाल।
चोह कभू छूटय नहीं, चलय भूत के चाल।।

बाप घींव खाये कभू, मोर हाथ ला देख।
नइ पतियावच ता तहूँ, थोरिक सूँघ सरेख।।

समय आय पहिली करय, कइसे जतन हियाव।
छट्टी बर दै नेवता, होये नहीं बिहाव।।

हपटे बन के पाखरा, फोरे घर के सील।
कुकुर कुदावय देख के, लेगय चियाँ ल चील।।

का ओढ़र ला खोजथे, जेमा बइठे भाय।
का आगी घर बारना, छेना धरके आय।।

काम कमाई गोठ मा, पागी होवय ढील।
खात खवाई के समय, आगू कूढ़ा लील।।

अपन काम ले काम रख, बाँकी सब बेकार।
भूँ-भूँ भूँकत हे कुकुर, हाथी चलै बजार।।

कोरा मा लइका अमित, गाँव बीच गोहार।
माथा मा चश्मा टँगे, खोजे जाय बजार।।

नींदे कोड़े खेत हा, दिखथे सुग्घर सार।
नोनी गाँथे मूँड ला, चुकचुक ले सिंगार।।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
हाना-04
जानय खेती खार ला, उसी असल हुसियार।
जौन चेतलग नित रहय, बोवै वो कुसियार।।

संझा बेरा के झड़ी, बरसय जी लघिहात।
बिहना के झगरा अमित, पूरय दिन अउ रात।।

जौन चीज हा नइ मिलय, ओखर का के गोठ।
दहरा के मछरी अमित, हावय नँगते मोठ।।

काज बड़े करना कहूँ, देख-ताक झन रोय।
कहाँ लुवाठी तरिया तिपे, कुनकुन तक नइ होय।।

बड़े बाप के छोकरी, घी मा खिचरी खाय।
भोला के संगत परे, बिन-बिन छेना लाय।।

अपने बेटा कोन हा, कहय लेड़वा खीक।
रोट गहूँ के टेड़गा, तभो लागथे नीक।।

जौन बिहनिया जागथे, खच्चित रोज नहाय।
ओला देखत बैद हा, हाथ मलै पछताय।।

कहिथे सिरतों गोठ ला, ज्ञानी संत सुजान।
जे घर नारी बुध चलय, जानव मरे बिहान।।

पुस्तक पोथी बड़ पढे़, पाछू हे बेहाल।
मन के भीतर मैल हे, कीरा परगे चाल।।

जेला आवै गोठ गा, ओ अँकरी बेचाय।
जानै नइ जे गोठ ला, ओखर चना घुनाय।।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
हाना-05
जाँगर जेखर हे सरे, बाहिर खाय कमाय।
खेती बर बनिहार रख, खइता जीव कहाय।।

संग गहूँ के राई मिला, चतुरा बोनी जान।
अपन जात शादी रचा, उत्तम कहय सियान।।

रहना हे ससुरार ता, राहव दिन दू चार।
जे मानय ये बात ला, ओखर सुख हे सार।।

जौने हा समझै नहीं, वोला का समझाय।
आगू एखर बिन बजै, भँइस खड़े पगुराय।।

सिधवा संगे सोज मा,  बनथे काँँही बात।
बात जौन मानय नहीं, ओखर खातिर लात।।

मनखे जौने कोढ़िया, खाय पेट भर धास।
करय काम जौने इहाँ, ओही परै उपास।।

कभू भरोसा झन करव, परदेसी के संग।
थोरिक मा जाथे उतर, जइसे हरदी रंग।।

पानी बदलै कोस मा, चार कोस मा बोल।
बोली मा परथे फरक, हावय दुनिया गोल।।

हाथ धरे बइठय नहीं, करथे काम किसान।
समय संग अघवाय जे, ओही चतुर सुजान।।

खेत-खार देखय नहीं, ओखर खेती नास।
धन दोगानी बाँचय कहाँ, खेलय जौने तास।।
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कन्हैया साहू 'अमित' ~भाटापारा छत्तीसगढ
गोठबात ~ 9200252055 - (29/04/21)

दोहा अमित के ~ मोर गाँव

05~गाँव गँवई
पैडगरी धरसा अमित, मोर गाँव के राह।
मीत मितानी मन मया, कइसे पाबे थाह।।

जुड़वासा हे घर सहीं, बर पीपर के छाँव।
तरिया नँदिया अउ कुआँ, मया पिरित के ठाँव।।

बाप बबा सँघरा रहँय, संग बहू अउ सास।
एकमई सब घसिटहा, इहाँ नता हे खास।।

नाचा करमा ददरिया, संग मया के खाप।
घसेलहा घर-घर नता, कखरो ले झन नाप।।

पारा बस्ती मिल रहँय, गुजर-बसर दिन रात।
चटनी बासी गोंदली, खावँय ताते तात।।

गोठ गुड़ी के गोठिया, गुँइया तैं गुड़ियार।
पाँच पंच के फैसला, करँय सबो स्वीकार।।

बइठे ठाकुर देवता, सुग्घर तरिया तीर।
करथे रक्षा गाँव के, होके बड़ गंभीर।।

संझाकुन दीया बरय, तुलसी चौरा साँट।
दया-मया के थाप ला, देवय सब ला बाँट।।

बारी बखरी कोलकी, गँवई के पहिचान।
नान्हे अँगना द्वार मा, हावय मया खदान।।

गोबर पानी लीप के, सुग्घर चौंक पुराय।
खोर-गली चुकचुक दिखै, देखत मन मोहाय।।
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ भाटापारा छत्तीसगढ
गोठबात~9200252055 - (29/04/21)

बुधवार, 28 अप्रैल 2021

दोहा अमित के ~ महतारी

004- महतारी
मन मंदिर ममता मया, महतारी मा मान।
कहाँ खोजबे देवता, दाई खुद भगवान।।

महतारी ममता मया, जग मा हवय महान।
बिन महतारी के अमित, जिनगी नरक समान।।

जिनगी जउँहर घाम हे, दाई जुड़हा छाँव।
ये कोरा मा हे सरग, छोड़ कहाँ मैं जाँव।।

दुख पीरा ला तैं सहे, हम ला करे तियार।
जिनगी चुकता नइ सकँव, दाई के उपकार।।

महतारी के हे चरण, सबले पबरित धाम।
बन जा सेवक मातु के, होही जग मा नाम।।

मोर जनम तोरे कृपा, साँसा तोर उधार।
भवसागर डोंगा फँसे, दाई खेवनहार।।

महतारी अँचरा बसे, तीन लोक भगवान।
सेवा करले तैं बने, पाबे निक वरदान।।

महतारी ममता अमित, जग मा सबले सार।
बिन दाई के ये जनम, जिनगी होय खुआर।।

होवँव कतको मैं बड़े, मोला लइका जान।
तोर चरण के चाकरी, पाये हँव मैं ज्ञान।।

कोनो पूजा पाठ ता, कोनो रहय उपास।
मिलय पुण्य दाई चरण, पूरन होवय आस।।
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ भाटापारा छत्तीसगढ
गोठबात~9200252055 - (28/04/21)

मंगलवार, 27 अप्रैल 2021

दोहा अमित के ~ गुरुदेव

003- गुरुदेव

जिनगी गुरुवर के बिना, हवय कुलुप अँधियार।
जब होवय गुरु के कृपा, अमित होय उजियार।।

गुरू चरण के चाकरी, भाग्यवान हा पाय।
अंतकाल गुरुवर बिना, धरे माथ पछताय।।

गुरु पारस पखरा सहीं, लोहा कंचन होय।
कुटिल चाल चेला चलै, मुँड़ धर बहुते रोय।।

गुरु बिन जिनगी हे कहाँ, बात समझ नइ आय।
चरण पखारे बिन इहाँ, मुक्ति मार्ग नइ पाय।।

लोभ मोह मा जा फँसे, बिरथा जनम गँवाय।
सुमिरन गुरुवर के करव, बिगड़े भाग्य बनाय।।

पावन तिथि गुरु पूर्णिमा, सादर माथ नवाँव।
आन बिराजौ हे गुरू, महिमा तोरे गाँव।।

गुरुवर भगवन ले बड़े, माँग ज्ञान के भीख।
गुरु पद के कर बंदगी, माथ नवाँके सीख।।

मनखे तन अनमोल हे, गुरु बिन हे का मोल।
भगसागर ले पार जा, सदगुरु अंतस बोल।।

मानव मन हे लालची, फँसथे जग जंजाल।
गुरू चेतलग सारथी, बदलै मन के चाल।।

कहना गुरु के मान ले, गुरु करथे कल्यान।
गुरु सेवा के फल अमित, बनय सुफल वरदान।।
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कन्हैया साहू 'अमित'~भाटापारा छत्तीसगढ
गोठबात~9200252055 - (28/04/21)

दोहा अमित के ~ छंद

002- छंद
छंद सनातन ग्यान हे, काव्य सृजन के प्राण।
छंद, वेद, ऋषि, देवता, करथें जग कल्याण।।

यति, गति, तुक, मात्रा, चरण, अनुशासन के बंद।
जौन सृजन ये होय सब, नाँव ओखरे छंद।।

सुग्घर गति सुर लय सधय, रख ले एखर ध्यान।
विषम विषम सम हा 'अमित', कल संयोजन प्रान।।

शब्द-शब्द ला छाँट के, विधिवत रखव जमाय।
बहुते बढ़िया लय बनय, सरी जगत मोहाय।।

सबो चरण मा देख गिन, एक बरोबर भार।
उही छंद ला जान तैं, सममात्रिक के सार।।

छंद शास्त्र बहुते गहिर, मिलय न एखर थाह।
बनय सिद्ध साधक अमित, जइसन जेखर चाह।।

गद्य कसौटी व्याकरण, काव्य कसौटी छंद।
अनुशासन बँधना सहित, उपजै अति आनंद।।

सजथे सुर लय साधना, छंद सृजन अनमोल।
अमित सनातन गेयता, फूटय सरगम बोल।।

मन के अँधियारी मिटय, देखत छंद अँजोर।
सूरुज निकलै चीर के, अमित घटा घनघोर।।

लिखना हे बड़ कीमती, झन तैं खरही गाँज।
सोच-समझ आखर बउर, पहिली अंतस माँज।।
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कन्हैया साहू 'अमित'~भाटापारा छत्तीसगढ
गोठबात~9200252055 - (27/04/21)

दोहा अमित के ~ अपन भाखा

महतारी भाखा ~ दुलरवा दोहालरी
अपने भाखा मा करव, अपन हृदय के गोठ।
निज भाखा ले बाढ़ही, आन-बान हा पोठ।।
अपने भाखा के बिना, सबल न कोई होय।
लाख उदिम करले अमित, भला करय नइ कोय।।
निज भाखा उन्नति बसै, सिरतों कहना मान।
अपने भाखा ज्ञान बिन, देंह समझ बिन प्रान।।
महतारी भाखा अमित, होथे ब्रम्ह समान।
छोड़ बिदेशी मोह ला, एखर कर सम्मान।
अपने भाखा बोल मा, का के हावय लाज।
निज बोली भाखा अमित, बने बनावय काज।।
देख बिदेशी ढंग के, धरे सबो ला रोग।
अपन पाँव टँगिया परै, बाढ़य मूरख सोग।।
लोककला संस्कृति अमित, निज भाखा ले बाढ़।
जतके बउरे जाय जब, वतके होवय गाढ़।।
महतारी भाखा हमर, पावय मया दुलार।
छत्तिसगढ़ी भाखा अमित, पहिली पाँव पखार।।
भाखा दरजा देव के, सँउहे हे भगवान।
करही जे सेवा जतन, ओखर हे कल्यान।।
अंतस ले अंतस जुड़य, होवय मन के बात।
भाखा प्रगटे भाव निज, कोनो कहाँ लुकात।।
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कन्हैया साहू 'अमित'~भाटापारा छत्तीसगढ
गोठबात ~ 9200252055 - (27/04/21)

दोहा अमित के ~ सावन भादो

सावन भादो घात

बिजली चमकै जोर ले, सावन भादो घात।
बरसै बरसा झूम के, झड़ी करय दिनरात।।

झड़ी करय दिनरात तब, हरियर खेती खार।
रदरद-रदरद पानी गिरै, अमरित अमित अपार।।

अमरित अमित अपार हे, जीव जगत के सार।
बिन बरसा बस बुजबुजा, धरती बिकट बँबार।।

धरती बिकट बँबार ले, जरै जीव के खेल।
मुचमुच हाँसय जीवमन, गिरथे पानी पेल।।

गिरथे पानी पेल ता, सबके मन हरसाय।
तरिया नरवा नल कुआँ, बइहा बन बउराय।।

बइहा बन बउराय सब, तन-मन होय मँजूर।
आये ले चउमास के, भागय आलस दूर।।

भागय आलस दूर जी, होवँय सबो सचेत।
मुँहीं टार ला बाँधथें,  खेती खुर्रा खेत।।

खेती खुर्रा खेत मा, खुरपी खुरमी खास।
खपगे खुरहट खोचका , खलबल ले चउमास।।

खलबल ले चउमास हे, बरसत खुशी बरात।
चहकय चिरई चिंगरी, सावन भादो घात।।

सावन भादो ले जुड़े, सरी जगत के काज।
हाथ जोड़ विनती अमित, कभू गिरय झन गाज।।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~कन्हैया साहू 'अमित' ~ भाटापारा छत्तीसगढ