सेहत के दोहा-5
कब काखर जेवन करन, एखर राखव ज्ञान।
रोग देंह आवय नहीं, सुखी उही इंसान।।
जे गुस्सा तुरते करय, वो मति भ्रष्ट कहाय।
धीर धरै जे आदमी, जिनगी भर सुख पाय।।
सोच समझ खावव तुमन, जौन जिनिस पच जाय।
जादा के लालच अमित, पाछू बड़ पछताय।।
रोग सदा पाछू परै, अदर-कचर जे खाय।
जिभिया ला काबू रखै, मनखे उही कहाय।।
कारण बनथे रोग के, उटपटांग उपभोग।
जइसे करबे तैं करम, वइसे उपजै रोग।।
खोजव कारण रोग के, पाछू कर उपचार।
बिन कारण जाने बिना, कइसे होय सुधार।।
जिनगी हा सुख मा बितै, आदत अपन सुधार।
मन मा खुद संयम रखौ, आरुग खाव अहार।।
पानी माटी अउ हवा, अमित घाम असनान।
रोग मिटाथे देंह के, विधि विधान ला जान।।
मन इच्छा के फेर मा, आत्मा इच्छा जाय।
चिटिक खँगे हे अउ अभी, कहि आखिर दुख पाय।।
खानपान असनान के, नित्य नियम झन टाल।
जिनगी भर रहिबे सुखी, तन-मन मालामाल।।
सेहत अपने हाथ हे, झन तैं अमित बिगाड़।
उल्टा-पुल्टा खाय ले, जिनगी होय उजाड़।।
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कन्हैया साहू 'अमित' ~9200252055....©®
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