सोमवार, 31 मई 2021

जानव जनऊला ~ (951-1000)


951- सादा उज्जर एखर रंग।
रहै शांत, नइ जानय उतलंग।।
सिधवा जइसे एखर हाल।
बहुते कपटी चतुरा चाल।।
-कोकड़ा

952- रहिथे येहा ताते तात।
राँधय येहा जेवन घात।।
हवा देख ये बड़ थर्राय।
पानी पीके मर ये जाय।।
-आगी

953- एक पेड़ मा गजब डँगाल।
मन मा आथे एक सवाल।।
भारी कटही फर ला जान।
भरे रथे फर मा गुन खान।।
-कटहर

954- नान्हें नोनी नटखट जान।
एखर हावय छोट मकान।।
दें केंवची कोंवर घात।
पटर-पटर ये करथे बात।।
-जीभ

955- एक पेड़ हे हाथी पाँव।
बारी बखरी एखर ठाँव।।
पाना एखर हाथी कान।
लकड़ी नो हे, ले पहिचान।।
-केरा पेड़

956- एक जिनिस ये कइसे होय।
बीच सभा मा बइठे रोय।।
थूँक-थूँक के जम्मों जाय।
परे डरे ये कहाँ कहाय।।
-थूँकदानी

957- दाँत बिना ये लेवय काट।
बिना पाँव के रेंगय बाट।।
चर्र-चर्र हे एखर बोल।
सबो बिसावैं देके मोल।।
-पनही

958- दूध दही के सकला होय।
लान मथानी गजब बिलोय।।
सादा उज्जर ये उफलाय।
कड़क चुरो के घीव बनाय।।
-लेवना

959- देंह एक हे सुग्घर सार।
जेखर ऊपर सात दुवार।।
पंछी एखर भीतर होय।
आवाजाही दिखे न कोय।।
-प्राण

960- तन हा हावै एखर एक।
दिखै नहीं पर होथे नेक।।
राहय एखर हाथ न पाँव।
दँउड़े जाथे दुनिया ठाँव।।
-मन

961- इक नोनी के अलकर नाँव।
दू तरपौंरी छैठन पाँव।।
ओखर मुँड़ मा मेछा यार।
जाथे उघरा हाट बजार।।
-तराजू

962- दरजा उँचहा खाल्हे काम।
रोज बिहनिया एखर नाम।।
जौन जघा मा ये नइ जाय।
कोनो ला बइठन नइ भाय।।
-बाहरी

963- दू कौड़ी हे करिया जान।
एखर आगू दुनिया मान।।
एक कटोरी पानी ताय।
बीच-बीच मा टपके जाय।।
-आँखी

964- रिंगी-चिंगी चमकै काँच।
लागय सुग्घर सबले साँच।।
नारीमन के मन ला भाय।
गोल-गोल ये बाँह म छाय।।
-चूरी

965- मुँड़ खुसरे हे भीतर पार।
चोट-बड़े चक्का हे सार।।
निकले पसली बाहिर देख।
सूँत बरावय चिटिक सरेख।।
-चरखा

966- जीभ फटे अउ मुँड़ी कटाय।
अपने मन के बात बताय।।
आखर करिया उगले जाय।
खीसा भीतर ठौर बनाय।।
-कलम

967- पेट बड़े अउ मुँहुँ हे जान।
पेंदी चाकर, काँच समान।।
पढ़े-लिखे मा आथे काम।
संग कलम के जुड़थे नाम।।
-दवात

968- घेरावाला लँहगा डार।
एक पाँव मा फिरै अपार।।
हाथ आठ देवय फैलाय।
जाड़ पड़े मा ये सकलाय।।
-छतरी

969- कटै आखिरी पाँव कहाय।
शुरू कटै संगी बन जाय।।
तीन वर्ण के हावय नाम।
आथे मुँड़ मा पहिरे काम।।
-पगड़ी

970- कटै आखिरी सीता जान।
शुरू कटै संगी तैं मान।।
जंगल मा ये रहिथे यार।
तीन वर्ण के लिखना सार।।
-सियार

971- चाम माँस येमा नइ होय।
हाड़ा चारों कोती सोय।।
तभो हवै ये बहुते खास।
एखर भीतर जीव निवास।।
-पिंजरा

972- मुँड़ मा चुन्दी जटा समान।
सादा उज्जर रंगत जान।।
हाथ म पोथी धारे जाय।
जोगी ज्ञानी कहाँ कहाय।।
-लहसुन

973- एक सींग अउ चारे कान।
एक पाँव हे एखर मान।।
तामस गुण अउ करिया रंग।
रँधनी खोली राहय संग।।
-हींग

974- चोला उज्जर सादा सोय।
जटा मुँड़ी मा एखर होय।।
एक गोड़ मा धरथे ध्यान।
भारी कपटी येला जान।।
-कोकड़ा

975- सरी जगत ला देखत जाय।
कभू अपन नइ गाँव ल पाय।।
हाँसय-रोवय अपने आप।
नँदिया भीतर रहिथे खाप।।
-आँखी के पुतरी

976- कारी गोरी दूझन नार।
नाँव एक हे इँखरो यार।।
छोट-बड़े होथें इन खास।
एक करू अउ एक मिठास।।
-लायची

977- हरियर लुगरा पहिरे नार।
जन-जन के करथे सत्कार।।
जेवन पाछू काम म आय।
सबके मुँहुँ ला लाल रचाय।।
-पान

978- एक चिरैया घुमते जाय।
भर-भर पानी तँउरे भाय।।
भरे कुआँ मा ये सुरताय।
रहि-रहि पानी फेर मँगाय।।
-मथानी

979- एती ओती मैं हा जाँव।
सबला ओखर घर पहुँचाँव।।
फेर अपन मैं जघा न पाँव।
एक जघा मा बइठ पहाँव।।
-रद्दा

980- करिया हे कौआँ झन मान।
खम्भा हे हौआ झन जान।।
लाम नाक ले करथे काम।
लटपट रेंगय बोलव नाम।।
-हाथी

981- एक अचंभा देखे जाय।
मुरदा होके रोटी खाय।।
कोनो कोन्हा रहै लुकाय।
मार परै ता चिहुर मचाय।।
-माँदर

982- जइसे नँदिया पूरा पाट।
चंदन चोवा बगरे घाट।।
एक हाथ खूँटा गड़ियाय।
चारों मूँड़ा घूमत जाय।।
-जाँता

983- हरियर लुगरा ओढ़े आय।
लाखों मोती धरे सुहाय।।
पहुँचै राजा के दरबार।
एखर लत्ता तुरत उतार।।
-भुट्टा

984- एती-वोती ले ये आय।
चिटिक जघा मा बइठ समाय।।
हाथ धरे ये आये जाय।
नाँव काय हे कोन बताय।।
-लाठी

985- कुबरी तन हे, मया जताय।
आँखी आगू बइठे जाय।।
पाँव अपन ये नाक मढ़ाय।
कान हाथ ले अँइठे पाय।।
-चश्मा

986- शुरू कटै ता 'गरा' कहाय।
कटै आखिरी 'आग' लगाय।।
बीच कटै 'आरा' बन जाय।
तीन वर्ण के नाँव बताय।।
-आगरा

987- बीच कटै ता 'बरी' कहाय।
मुँड़ी कटै ता 'करी' बनाय।।
कटै आखिरी 'बक' बन जाय।
तीन वर्ण के जीव सुहाय।।
-बकरी

988- शुरू कटै ता 'नर' कहलाय।
कटै आखिरी धनुष चढ़ाय।।
बीच कटै ता दिन बन जाय।
जीव बहुत ये उधम मचाय।।
-वानर

989- बीच कटै चंचल भटकाय।
शुरू कटै सब बात सुनाय।।
कटै आखिरी 'मका' कहाय।
तीन वर्ण हे सब ला भाय।।
-मकान

990- चार वर्ण के एखर नाम।
विष्णु कृष्ण के करथे काम।।
शुरू कटै ता दर्शन होय।
भगवन अँगरी येहा सोय।।
-सुदर्शन चक्र

991- कटै शुरु ता कम पर जाय।
बीच कटै दर्जन कहलाय।।
कटै आखिरी चिरई होय।
तीन वर्ण हे जानव कोय।।
-बाजरा

992- पाँख हवै पर कहाँ उड़ाय।
पाँव हवै पर रेंग न पाय।।
हाथ धरे चक्का ल चलाय।
लामी लामा सूँत लमाय।।
-चरखा

993- शुरू कटै तरिया बन जाय।
बीच कटै ता 'केर' कहाय।।
कटै आखिरी मुँड़ी सजाय।
तीन वर्ण हे, कोन बताय।।
-केसर

994- रतिहाकुन ऊपर ले आय।
डारा पाना मा इँतराय।।
मोती जइसे एखर रूप।
एकोकन सहि सकै न धूप।।
ओस

995- हाथ बोलथे सुनथे हाथ।
बोल न होवय एखर साथ।।
छुअत बतावै जम्मों हाल।
हे जनऊला बड़े कमाल।।
-नाड़ी

996- पानी थोरिक रहै भराय।
ऊपर मुँहड़ा आग धराय।।
गुड़गुड़ बोली गजब सुनाय।
बीच-बीच मा धुआँ उड़ाय।।
-हुक्का

997- पाँव तीन हे, चलै न एक।
बइठे राहय जघा म टेक।।
जो जन एखर तीर म जाय।
एखर ऊपर बइठे पाय।।
-तिपाया

998- घटै बढ़ै चंदा झन जान।
करिया हे कोयल झन मान।।
बहुते येहा आवय काम।
बोलव संगी का हे नाम।।

999- घोड़ा माटी के तैं जान।
ऊपर लोहा गोल मकान।।
बइठै येमा गिल्ला राम।
निकलै हो के सुख्खा श्याम।।
-तावा

1000- आवय ता करै अचेत।
बइठै मा अँधरा कर देत।।
उठै तभो पीरा दे जाय।
जावत खानी खूब सताय।।
-आँखी रोग
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ 9200252055...©®

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