गुरुवार, 13 मई 2021

दुलरवा दोहा ~ संगवारी

संगी
संगी सुग्घर ले बना, आथे बहुते काम।
अपन सखा सहयोग ले, लंका जीतिस राम।।

कृष्ण सुदामा बन सखा, जग देइस संदेश।
अपने संगी हा अमित, हरथे पीरा क्लेश।।

दुर्योधन के संग मा, सदा कर्ण के हाथ।
जौन काम संगी कहय, देवय झट्टे साथ।।

बिना सुवारथ के सखा, सच्चा होथे जान।
जिहाँ पछीना हा गिरय, उहाँ दिही वो प्रान।।

संगी बरजय बात ला, सहीं गलत पहिचान।
अमित कहाँ खोजे मिलय, अइसन सखा महान।।

जात-पात देखय नहीं, उही सखा सत मान।
भेदभाव अंतस भरे, करै सदा हलकान।।

खिसियावय आगू गजब, पाछू मया अपार।
अइसन संगी ला अमित, राखव संग मिँझार।।

संगी सँघरा जे चलय, सुख-दुख लेवय बाँट।
अंतस ओखर देख तैं, रंग रूप झन छाँट।।

मीत मितानी मन मिलै, तभे संग मिल पाय।
ईश्वर के वरदान ये, नइ पावय पछताय।।

संगी बहुते कीमती, धन दोगानी लाख।
झगरा झंझट हो भले, फेर तीर मा राख।।
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ भाटापारा छत्तीसगढ़

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