013~ उही असल परिवार
कोन संग देथे भला, सब मतलबिया यार।
पइसा के पाछू फिरँय, मित मितान लगवार।।
ईंटा पखरा जोर के, सुग्घर भुवन बनाय।
मेल जोल सुमता नहीं, मरघट महल कहाय।।
हव-हव बस सब बोलथें, बँधना बाँधे आस।
बखत परे सब भागथें, टोर टार बिसवास।।
मिठलबरा मितवा 'अमित', करथें अपन जुगाड़।
बात-बात बड़ बीजरा, बक-बक बहस बिगाड़।।
मुँड़ मा दुख के मोटरा, सब सुख के बँटवार।
मोर-मोर के मोह मा, मरगे घर परिवार।।
बसथें हिरदे भीतरी, रहिथें सबले तीर।
छुरा घोंपथें पीठ मा, घाव करँय गंभीर।।
मन के मिलना मेल हे, तन के मिलना खेल।
एकमई सुमता नहीं, फेर नता झन झेल।।
खड़े रथे जे संग मा, बेरा रात बिकाल।
अइसन रिश्ता कीमती, दूनों हाँथ सँभाल।।
सुख पीरा सँघरा सहँय, बनके भागीदार।
लरे-परे दुख बाँटथें, उही असल परिवार।।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
कन्हैया साहू 'अमित' ~ भाटापारा छत्तीसगढ़
गोठबात ~ 9200252055
लाजवाब गुरूदेव
जवाब देंहटाएं