गुरुवार, 6 मई 2021

जानव जनऊला ~ (401-450)

401- कोंवर-कोंवर हिस्सा बाँस।
खावँय मनखे येला हाँस।
नवा रूख बर पिका अगाध।
फेर टोरना हे अपराध।।
-करील

402- माटी के हे बरतन खास।
राउत भइया भरय हुलास।।
दगा गोरसी ऊपर राख।
करिया भाँड़ी गुण हे लाख।।
-कसेली

403- घर अँगना अउ परसार।
रायह गरुवा डेरा डार।।
गोबर गँउदन गजबे होय।
गाय गरू ये खोली सोय।।
-कोठा

404- जेवन नो हे जम्मों खाय।
खा-खा अपने बात बताय।।
कहना कखरो जावय मान।
बिन सवाद के हे पहिचान।।
-किरिया

405- काँदी कचरा पैरा डार।
होवय खोली एक तियार।।
भिथिया काड़ी माटी भार।
जुड़ बोलय ये घर द्वार।।
-कुन्दरा

406- बाहिर छछले पाना डार।
भुँइया मा काँदा भंडार।।
एखर पाना साग बनाय।
राँधे काँदा घलो सुहाय।।
-कोचई

407- बड़का पखरा काट बनाय।
पानी पसिया गरुवा खाय।।
जूठा-काठा येमा डार।
राहय घर के तीरे तार।।
-कोटना

408- छावै परसा पाना बाँस।
पहिरँय मुँड मा मुच-मुच हाँस।।
देशी छाता इही कहाय।
पानी बादर घाम बचाय।।
-खुमरी

409- गंगा हे पर नइ हे धार।
कटही रुख, फर हवय गुदार।।
अमली जइसे झुलथे डार।
कस्सा गुरतुर होथे सार।।
-गंगाअमली

410- गाँव तीर भाँठा मइदान
देव साँहड़ा के ये स्थान।।
जम्मों गरुवामन ठोंकाय।
मड़ई मातर इहाँ मनाय।
-दइहान

411- बइला भँइसा रहै फँदाय।
दू चक्का मा दँउड़े जाय।।
जुड़ा सुमेला पटनी पाट।
खन-खन बाजत नापय बाट।।
-गाड़ा

412- कपड़ा लत्ता के ये प्रान।
बिन एखर नइ राहय मान।।
रिंगी-चिंगी एखर रंग।
सुजी सूँत के रायह संग।।
-गुदाम

413- देख हरेली लइका जात।
अंतस मा राहय मुस्कात।।
खाप बाँस बल्ली ला काट।
रचरच रेंगय चिखला बाट।।
-गेड़ी

414- बबा घुमय ये धरके हाथ।
बाहिर भाँठा जावय साथ।।
मारै खेदय कुकुर भगाय।
एखर ले बलकर हो जाय।।
-गोटानी

415- जब-जब बहुते जाड़ जनाय।
सबला एखर सुरता आय।।
छेना चिलफा ला सिपचाय।।
माटी भूसी डार बनाय।।
-गोरसी

416- बाग बगीचा उधम मचाय।
कोंवर-कोंवर पान खाय।।
मुँह ऊपर दू मेछा लाम।
खोल पीठ मा, देवय झाम।।
-घोंघी

417- आगी अँगरा जोर उठाय।
हाथ जरे ले हमर बचाय।।
रँधनी खोली एखर धाम।
चटचट बाजय, का हे नाम।।
-चिमटा

418- चाँउर चिक्कन घोर पिसान।
धनिया मिरचा नून मिलान।।
जुरमिल जावँय सब परिवार।
चटनी संगे खावँय यार।।
-चीला

419- चिक्कन पीसै तिंवरा दार।
लाम गोलवा हे आकार।।
बनथे तीजा-पोरा संग।
बहुत मिठावै ललहूँ रंग।।
-ठेठरी

420- जमे ठेठरी जोड़ी जान।
खसर्रा रहिथे गहूँ पिसान।।
तिली खोपरा येमा डार।
स्वाद भरे गुरतुर भरमार।
-खुरमी

421- चिक्कन चाँउर घोर पिसान।
सादा सोंहारी तैं जान।।
छत्तीसगढ़ी के पहिचान।
खावव गुड़ या डार अथान।।
-चौसेला

422- उरिद दार के बनथे जान।
गजब स्वाद येमा हे मान।।
पीठी धनिया मिरचा डार।
माँग-माँग के खावँय यार।।
-बरा

423- बदे बरा के संग मितान।
चुरै तेलई गहूँ पिसान।।
चौकी बेलन चपकन आज।
खावँय सुग्घर सबो समाज।।
-सोंहारी

424- अंड़ी पाना मा लपटाय।
मोट्ठा रोटी इही कहाय।।
चटनी एखर स्वाद बढ़ाय।
अमित पान रोटी कहलाय।।
-अंगाकर

425- कनकी के लव सान पिसान।
झाँझी संगे भाँप दिखान।।
जीरा तिल मा भूँज बघार।
नून डारदव स्वाद अपार।।
-फरा

426- दरदरहा चाँउर ला सान।
मीठ चाशनी एखर प्रान।।
देशी रसगुल्ला ये आय।
चाँट-चाँट अँगरी ला खाय।।
-देहरौरी

427- फरा मितानी एखर जान।
बनथे चाँउर गहूँ पिसान।।
पातर हलुवा इही कहाय।
गुरतुर गुरहा स्वाद बताय।।
-पकुवा

428- चिक्कन चाँउर गहूँ पिसान।
खूब आँच के ये पकवान।।
मीठ चाशनी गुड़ मा डार।
गवन पठौनी जोरन सार।।
-पपची

429- छत्तीसगढ़ी गुझिया ताय।
सूजी शक्कर घी भूँजाय।।
साँचा भरके तेल तराय।
तीजा-पोरा घर-घर छाय।।
-कुसली

430- भिगो कूट चाँउर ला खास।
सबले सुग्घर स्वाद मिठास।।
पाग चाशनी गुड़ मा डार।
खच्चित बनथे बड़े तिहार।।
-अरसा

431- मैदा या तो गहूँ पिसान।
मीठ चाशनी संग मिलान।।
मिलै पान के बीड़ा जान।
गजब मिठाई येला मान।।
-पिड़िया

432- चिक्कन चाँउर डार पिसान।
होय फरा ले बड़का जान।।
मुठा चपकके रोट बनाय।
मिरचा धनिया स्वाद बढ़ाय।।
-मुठिया

433- खेत किसानी के शुरुआत।
शुभ दिन भाँवर ले ले सात।।
पुतरा-पुतरी होय बिहाव।
मया-दया के अमित हियाव।।
-अकती

434- सावन मा धरती हरियाय।
ये तिहार ला तभे मनाय।।
नाँगर बख्खर धोय मढ़ाय।
लइका गेड़ी पाँव चढ़ाय।।
-हरेली

435- अनदाता हा धान उगाय।
सबझन येमा हिस्सा पाय।।
पूष महीना पबरित आय।
छेरिक छेरा खूब सुनाय।।
-छेरछेरा

436- मइके के हे मया अपार।
भादो के ये हरय तिहार।।
सबो सुहागिन रहैं उपास।
करू करेला येमा खास।।
-तीजा

437- जाँता चुकिया बइला लाय।
इँखरे पूजा, भोग लगाय।।
संगीमन भाँठा सकलाय।
खेलकूद पोरा पटकाय।।
-पोरा

438- नवा बछर ये हमर कहाय।
चइत महीना येहा आय।।
जोत जँवारा जश ला गाँय।।
माता सेवा मान बढाँय।।
-चइत नवरात्रि

439- चइत अँजोरी ये दिन आय।
राम जनम के बात बताय।।
देवलगन शुभ बेरा मान।
बर बिहाव हा बहुते जान।।
-रामनवमीं

440- भादो अँधियारी के पाख।
जनम कृष्ण के सुरता राख।।
आठे के दिन होवय खास।
लइका मन सब रहँय उपास।।
-आठे कन्हैया

441- महतारी के त्याग महान।
लइका बर माँगै वरदान।।
नाँगर जोते उपज न खाय।
सगरी काशी फूल सजाय।।
-कमरछठ

442- कँड़रा घर के टुकनी लान।
आवा के माटी गहूँ उगान।।
देवी गंगा गीत सुनाय।
तरिया नँदिया मा बिसराय।।
-भोजली

443- मया पिरित बँधना परिवार।
भाई बिहनी गजब दुलार।।
सावन पुन्नी के दिन आय।
मुरुवा रक्षा सूँत बँधाय।।
-राखी तिहार

444- फागुन मा बड़ फाग सुनाय।
मया पिरित आगी भड़काय।।
होले लकड़ी संग जलाय।
रिंगी-चिंगी रंग उड़ाय।।
-होरी

445- कातिक महिना खुशी बलाय।
लक्ष्मी दाई सबो मनाय।
फोर फटाका संगी जोर।
दीया बारैं ओरी-ओर।।
-देवारी

446- तुलसी चौंरा नँगत सजाय।
पूजा करके देव जगाय।।
दाई-बहिनी रहँय उपास।
खावँय कठई ये दिन खास।।
-जेठउनी

447- सबो सुहागिन के पहिचान।
माथा बइठे बनके मान।।
रिंगी-चिंगी चमकै रंग।
लाम गोलवा बहुते ढ़ंग।।
-टिकली

448- गोल-गोल ये काँच समान।
हवय बिहाता के पहिचान।।
दुनों हाथ मा पहिरे जोर।
खनखन खनखन करथे शोर।।
-चूरी

449- कुआँ पार दू बल्ली गाड़।
पानी टेंड़य बाँधय भाड़।।
बारी बखरी पारे पार।
पानी बहकय टारे टार।।
-टेंड़ा

450- अपने बारी तक ये जाय।
बुड़गा बइगा मुँड़ी हलाय।।
देखत बैरी बदलै रंग।
रहि जाथन हम देखत दंग।।
-टेटका
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ भाटापारा छत्तीसगढ़
गोठबात ~ 9200252055 - (06/05/21)

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