शुक्रवार, 4 जून 2021

जानव जनऊला ~ (1001-1050)

1001- लाली डब्बा हावै साँच। भीतर बहुते पींयर खाँच।।
खाँचा मा बड़ मोती दाँत। खावँय जम्मों मजा उड़ाँत।।
-अनार

1002- आजे भर उपयोगी जान। काली बर ये रद्दी मान।।
घर बइठे सब जानँय हाल। कागज कुटका करै कमाल।।
-अखबार

1003- करिया घोड़ा बइठे ताय। बइठे-बइठे ये ललियाय।।
खूब सवारी सादा आय। उतरै एक दुसर चढ़ जाय।।
-तावा अउ रोटी

1004- गोल हवै पर नो हे गेंद। कहाँ माढ़थे, नइ हे पेंद।।
पूछी हावै, नो हे गाय। लइकामन हा बहुते भाय।।
-फुग्गा

1005- शुरू कटै ता 'दर' बन जाय। कटै आखिरी 'बंद' कहाय।।
तीन वर्ण के एखर नाँव। जंगल झाड़ी एखर ठाँव।
-बंदर

1006- कटै शुरू ता 'गर' बन जाय। बीच कटै ता मनुज कहाय।।
कटै आखिरी 'नग' पढ़ पाय। तीन वर्ण हे, बोलव काय।।
-नगर

1007- आँखी ऊपर रहिथे तान। पातर करिया परे निसान।
कुकर बोल एखर हे नाँव। सोंचव संगी एके घाँव।।
-भौं

1008- एक मुँड़ी अउ तीनों हाथ। रहिथन जम्मो एक्के साथ।।
गोल-गोल मैं घूमँव रोज। गरमी मा सब करथें खोज।।
-पंखा

1009- एक पाँव अउ धोती आठ। आनी-बानी एखर ठाठ।।
सावन-भादो बहुते रोय। बाँकी बेरा खुँटी म होय।।
-छाता

1010- जाथे मनखे हाट बजार। लाथें मोला पइसा डार।।
खाये खातिर मोल बिसाँय। पर मोला कोनो नइ खाँय।।
प्लेट, चम्मस

1011- रतिहाकुन इन रोजे आँय। नइ तो काँही कुछु चोराँय।।
दिनभर येमन रहै लुकाँय। अँधियारी मा मुँहुँ देखाँय।।
-चंदैनी

1012- दू आखर के सुग्घर नाम। आथे येहा सबके काम।।
उल्टा लिख दे होय जवान। बिन एखर तो हाय परान।।
-वायु

1013- पानी बिन ये भवन बनाय। देवय सबके संग मिलाय।।
बइठे-बइठे जोहत जाय। फाँस-फाँस के भोजन पाय।।
-मेकरा अउ जाला

1014- हावय एखर बहुते दाँत। बिन मुँहुँ के ये करथे बात।।
गुरतुर-गुरतुर एखर बोल। सुन-सुन जाथे मन हा डोल।।
-हारमोनियम

1015- हवै सींग, छेरी झन जान। काठी हे, घोड़ा झन मान।।
ब्रेक हवै पर नो हे कार। घंटी हे पर नो हे द्वार।।
-साइकिल

1016- तीन वर्ण के हावय नाम। आवय ये खाये के काम।।
बीच कटे ता 'हवा' कहाय। कटै अंत 'नाँगर' बन जाय।।
-हलवा

1017- दिनभर सूरुज देख बिताय। सूरुज कोती मुँड़ी घुमाय।
काय बाता मा जाय रिसाय। रतिहाकुन ये मुँड़ी नवाय।।
-सुरजमुखी

1018- फूल एकठन अइसन जान। अजब कहानी एखर मान।।
पाना ऊपर पाना छाय। दुनिया भर मा बहुते भाय।।
-पत्ता गोभी

1019- दू आँगुर के सड़क कहाय। आदत अपने कड़क बताय।।
सबके घर मा आवय काम। आग लगइया एखर नाम।।
-माचिस

1020- रुखराई मा रात बिताय। चींव-चींव कहि गीत सुनाय।।
संझा बिहना उड़ते जाय। रिंगी चिंगी पाँख रचाय।।
-चिरई

1021- अचरिज करथे एखर खेल। जलथे बिन बाती बिन तेल।।
पाँव बिना ये रेंगत जाय। अँधियारी ला मार भगाय।।
सूरुज

1022- कटै शुरू ता नून कहाय। बीच कटै ता बोल सुनाय।।
कटै आखरी कनवा जान। तीन वर्ण हे झट पहिचान।।
-कानून

1023- शुरू कटै ता ये बंदूक। कटै आखिरी आगी लूक।।
बीच कटै ता देखव शान। तीन वर्ण के मोला जान।।
-आँगन

1024- ना तो येहा आगी आय। ना तो ये कोनो ल जलाय।।
परथे येला तभो बुझाय। संगी देवय तुरत बताय।।
-प्यास

1025- एक फसल हे बिन बोंवाय। खातू माटी नइ तो पाय।।
हब-हब येहा बाढ़े जाय। काटे बर बनिहार लगाय।।
-चुन्दी

1026- तीन पाँव पर रेंग न पाँव। एक जघा जिनगी ल बिताँव।।
भाग सकँव ना मैं हा यार। बाँध रखय मोला संसार।।
-घड़ी

1027- मोर एक ना हाथे पाँव। तभो पहुँच जावँव हर ठाँव।।
बिन मुँहुँ के मैं बात बताँव। धीर लगा के आवँव जाँव।।
-चिट्ठी

1028- नाँव सुनत मा सब थर्राय। पर के इच्छा नाँव धराय।।
करँय तियारी सब संसार। पाये बर एखर ले पार।।
-परीक्षा

1029- आगी हा नइ सके जलाय। पानी हा नइ सके भिगाय।।
संगे आवय संगे जाय।। चतुरा संगी नाँव बताय।।
-अपन छँइहा

1030- फूल नहीं पर ये ममहाय। जरथे पर इरखा न कहाय।।
पूजा घर मा एखर ठाँव। सोंच बताऔ एखर नाँव।।
-अगरबत्ती

1031- एती ओती गजब घुमाय। नींद परे मा ही ये आय।।
आँख मूँद के देखन भाय।हछूये मा ये नइ छूवाय।।
-सपना

1032- ना ये एक्को तनखा पाय। कहाँ कभू ये जेवन खाय।।
घर के बाहिर लटक बिताय। डँट के पहरा तभो निभाय।।
-ताला

1033- मिलथे जेला मन खिल जाय। जादा होगे ता रोवाय।।
लगन मेहनत जौन कमाय। ओखर तीरे बहुते आय।।
-खुशी

1034- डबिया हावय अइसन एक। बिन ढ़कना तारा हे नेक।।
पेंदी कोन्हा नइ तो जान। भीतर सोना चाँदी मान।।
-अण्डा

1035- अंत कटै मनखे बन जाय। कटै बीच ता जम कहलाय।।
शुरू कटै ता नरम पढ़ाय। तीन वर्ण हे, कौन बताय।
-जनम

1036- बिन आगी के खीर बनाय। नुनछुर-गुरतुर स्वाद जनाय।।
चिटिक चाँटबे खूब मिठाय। जादा खाबे जीभ कटाय।।
-खाये के चूना

1037- रोवत ला ये हँसवाय। आनी-बानी नाच दिखाय।।
नाचा गम्मत मा ये छाय। सर्कस भीतर देखे जाय।।
-जोकर

1038- लगै प्यास ता पीते जाव। भूख लगै ता खाते खाव।।
लगै जाड़ ता इही जलाव। काय हरै झट नाँव बताव।।
-नरियर

1039- एक चीज अचरिज हे मान पानी ले बनथे ये जान।।
सूरुज नइ तो सकै सुखाय। तन मा उपजे, कौन बताय।।
-पछीना

1040- सुतत साठ ये हा सुत जाय। उठत बेर ये झट उठ आय।।
येहा बहुते हरू जनाय। आँखी के परदा कहलाय।।
-आँखी के पलक

1041- धरती ले ये उपजे आय। बादर कोती मुँड़ी उठाय।।
हालै-डोलै, रेंग न पाय।। अपन पाँव ले जेवन खाय।।
-रुखराई

1042- चार कुआँ बिन पानी जान। चोर अठारा घूमय मान।।
चोर बीच मा रानी एक। पुलिस कुआँ मा मारय फेंक।।
कैरमबोर्ड

1043- मुकुट मुँड़ी मा खापे लाल। घेंच ओरमे झोला झाल।।
पाँखी डेना शोभा आय। चिरई होके नइ उड़ियाय।।
-कुकरा

1044- राजमहल हरियर हे एक। हावय भिथिया पींयर नेक।।
भीतर बइठे करिया चोर। राजमहल ला दय बिल्होर।।
-अरंमपपई

1045- चक्का दूठन एखर सार। महिमा हावय अपरंपार।।
बइठ सीट अउ पैडिल मार। चढ़व फिरौ सुग्घर संसार।।
-साइकिल

1046- घर अँगना मा आवय मोर। चींव-चींव के करके शोर।।
दाना पानी खाय उड़ाय। बड़े बिहनिया गीत सुनाय।।
- गौरइया चिरई

1047- कँसे डोकरी कनिहा एक। बुता करय ये रोजे नेक।।
घर अँगना सुग्घर चमकाय। साफ सफाई बहुते भाय।।
-बहरी

1048- हाथ लगै ता चलते जाय। जौन पाय सब काट मढ़ाय।।
थक जावय ता ये सुरताय।। पखरा चाटै जोश बढ़ाय।।
-चाकू

1049- रोज बिहनिया हाथ म आय।। गजब चाबथें फेर न खाय।।
करै सफाई जिभिया दाँत। फेंकय करके सब दूँ फाँत।।
-दतुवन

1050- तीन वर्ण हँव मोला जान। उल्टा सीधा एक समान।।
शुरू कटै ता 'टक' बन जाय। कटै आखिरी 'कट' कहलाय।।
-कटक
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कन्हैया साहू 'अमित'~भाटापारा छत्तीसगढ़

1 टिप्पणी:

  1. बहुत सुग्घर सुग्घर जनउला अमित सर
    जे मकसद ले लिखे गए हे वो सौ परसेंट पूर्ण होही पूरा विश्वास हे


    सुरेश पैगवार
    जाँजगीर

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