तुरतुरिया
जनमें लवकुश हा इहाँ, देव वाल्मिकी धाम।
जघा इही पावन अमित, तुरतुरिया अब नाम।।
बहथे गंगा सुरसरी, तुरतुर-तुरतुर बोल।
जंगल झाड़ी बीच मा, हावँय पखरा खोल।।
गाँव बहरिया तीर मा, बलभद्री बोहाय।
त्रेतायुग वाल्मीकि जी, आश्रम इहें बनाय।।
हे पहाड़ उँचहा गजब, जंगल बड़ घनघोर।
जलप्रवाह पथरा परै, होवय तुरतुर शोर।।
जल गुजरै जलकुंड ले, गोमुख जइसे जान।
दूनों बाजू मा लगे, मुरत विष्णु भगवान।।
बहुत मिले शिवलिंग हे, पखरा के अवशेष।
जान जाँय इतिहास ला, दुनिया देश विदेश।।
बौद्ध शैव वैष्णव धरम, मुरती के उद्गार।
बौद्ध भिक्षु राहँय इहाँ, अपने बौद्ध विहार।।
शिलालेख मा हे लिखे, होंय पुजारिन नार।
आज चलागत मा हवै, जुन्ना इही विचार।।
हे पहाड़ के ऊँच मा, बघवा माड़ा खोल।
एक संग सौ भक्तमन, भीतर जावँय डोल।।
पूष महीना मा भरै, मेला अपरंपार।
आवँय दर्शन बर अमित, भक्तन कई हजार।।
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ 9200252055..©®
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