सोमवार, 21 सितंबर 2020

चौपई/जयकारी छंद ~ भाजी महिमा

*भाजी महिमा (चौपई छंद)*
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जरी अमारी अउ बोहार,
संग मही मा भूँज बघार।
पटवा भाजी बने निमार,
अम्मठ अमसुर लिरबुट लार।1।

मुनगा मखना मेथी मार,
मुरई मुसकेनी दमदार।
पालक पुतका पोंईनार,
कुसुम कोचई कोईलार।2।

गोल गुमी गुड़रू गोलार,
एक बछर मा खा इकबार।
चना चनौरी बड़ दमदार,
काबर बइठे हव मन मार।3।

करमत्ता भाजी भरमार,
छछलय छक ले ये छतनार।
तिनपनिया के पाना चार,
सुकसा भाजी हे रसदार।4।

खरी खोटनी खेती खार,
तिवँरा सरसो भाजी सार।
चाँट चरौटा मुँह चटकार,
भाजी महिमा अमित अपार।5।

कुसुम कजेरा कुरमा टोर,
कोंअर-कोंअर पाना लोर।
पोठ खवाथे भाजी भात,
साग सुहाथे मनभर घात।6।

चुनचुनिया चौंलाई चेंच,
लमा-लमा के खावव घेंच।
भाजी पाला सस्ता साग।
सुग्घर सेहत बढ़य दिमाग।7।

लाली भाजी करे कमाल।
राखय लहू गजब के लाल।
खावव भाजी पाला रोज,
बारी बखरी तुरते खोज।8।
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*कन्हैया साहू "अमित"*
शिक्षक~भाटापारा (छ.ग)
संपर्क~9200252055
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रोटी पीठा ~ चौपाई छंद

*रोटी पीठा (चौपाई छंद)*
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आय अतिथि घर मा हमर, पहुना नाँव धराय।
किसिम कलेवा खा बना, सुग्घर सगा सुहाय।।

गुरतुर गुरहा गुलगुल गुजिया,
दूधफरा रसगुल्ला करिया।
मीठ कलेवा खुरमी खाजा,
राँध खवा तैं तुरते ताजा।~1

खीर सेवई कुसली पकुआ,
तिखुर रोंट रसकतरा हलुआ।
रोटी पीठा मिठ मनभावन,
होथे पहुना हा बड़ पावन।~2

पाके पपई पपची पिड़िया,
पाग पापड़ी रखिया बिरिया।
कूटे पीसे चाँउर बेसन,
काबर पिज्जा बरगर फेशन।~3

पाग धरे गुड़ चाँउर अरसा,
मया प्रीत के बरसे बरसा।
मोवन मैदा कटुवा खुरमी,
खावँय नँगते तेली कुरमी।~4

सदा सगा सोदर तुम आहू,
पहुना भगवन तुमन कहाहू।
सेवा सिधवा करबो बढ़िया,
खा पी पोठ मोटरा गठिया।~5

राँध खवा के मिठहा गुरहा,
खावव थोकुन जीनिस नुनहा।
घी अंगाकर रोटी राजा,
चहा बुड़ो के मनभर खाजा।~6

ठेठ ठेठरी करी फरा जी,
सोंहारी के संग बरा जी।
मही महेरी मुरकू मुठिया,
बने बफौरी बिक्कट बढ़िया।~7

चाँउर चीला चक चौसेला,
मजा मया मा माँदी मेला।
चिवँरा पापड़ सेव सलोनी,
खावव हाँसव बबुआ नोनी।~8

तिली जोंधरा फल्ली लाड़ू,
मुर्रा लाड़ू खाय भकाड़ू।
आय सगा के करबो सेवा,
पाछू मिलही हमला मेवा।~9

बटकी बटकर बोरे बासी,
खाजा खोवा बारा मासी।
पहुना सेवा जाय उदासी,
अतिथि चरन हे मथुरा कासी।~10

नून गोंदली चिखना चटनी,
जइसे कथनी वइसे करनी।
आमा अमली मिरचा धनिया,
खावँय रजमत रजवा रनिया।~11

छत्तीसगढ़ी खाव कलेवा,
भाजी भाँटा सिरतो मेवा।
जिनगी जीथन बनके सिधवा,
बैरी ला देथन उँच पिढ़वा।~12

देव मान पहुना अमित, कर सेवा सतकार।
सबले बढ़के भावना, पानी पसिया  सार।।
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कन्हैया साहू "अमित"
शिक्षक~भाटापारा छत्तीसगढ़
संपर्क~9200252055 ©®
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सरस्वती चालीसा~छत्तीसगढ़ी भाषा

*सरसती चालीसा~छत्तीसगढ़ी भाषा*

जय जय दाई सरसती, अइसन दे वरदान।
अग्यानी ग्यानी बनय, होवय जग कल्यान।। (दोहा)

हे सरसती हरव अँधियारी। हिरदे सँचरय झक उजियारी।।-1

तोर चरण मा जम्मों सुख हे। जिनगी जग मा कटही रुख हे।।-2

हाथ जोड़ के करथँव विनती। होय भक्त मा मोरो गिनती।।-3

जंतर मंतर कुछु नइ जानँव। सबले पहिली तोला मानँव।।-4

मैं मुरहा मन के बड़ भोला। गोहराँव मैं निसदिन तोला।।-5

अंतस 'अमित' अमाबे दाई। बिगड़ी सबो बनाबे माई।।-6

एती वोती मैं भटकँव झन। बुता काम मा मैं अटकँव झन।।-7

मोर करम ला सवाँरबे तैं। अँचरा दे के दुलारबे तैं।।-8

जिनगी के दुख पीरा हर दे। छँइहा सुख के छाहित कर दे।।-9

सोहय सादा हंस सवारी। कमल विराजे वीणाधारी।।-10

मूँड़ मुकुट मणि माला मोती। दगदग दमकय चारो कोती।।-11

सबले बढ़के वेद पुरानिक। सरी कला के तहीं सुजानिक।।-12

ग्यान मान के तैं भंडारी। तहीं जगत मा बड़ उपकारी।।-13

वरन वाक्य अउ बोली भासा। महतारी तैं सबके आसा।।-14

सब्बो सिरजन के तैं जननी। गीत गजल अउ कविता कहिनी।।-15

सुर सरगम के सिरजनहारी। मान-गउन के तैं अवतारी।।-16

सारद तीन लोक विख्याता। विद्या वैभव बल के दाता।।-17

सुर नर मुनि सबो गोहरावैं। संझा बिहना माथ नवावैं।।-18

अंतस ले जे तोला गावँय। मनवांछित फल वोमन पावँय।।-19

तोरे पूजा आगू सब ले। सरी बुता हा बनथे हब ले।।-20

विधि विधान जग के तैं बिधना। बोली भाखा तोरे लिखना।।21

तहीं ग्यान विग्यान विसारद। गावय तोला ग्यानी नारद।।-22

दाई चारो वेद लिखइया। ग्यान कला अउ साज सिखइया।।-23

रचे छंद अउ कहिनी कविता। भाव भरे बोहावत सरिता।-24

नेत नियम ला तहीं बखानी। ग्रंथ शास्त्र हा तोर जुबानी।।-25

मंत्र आरती सीख सिखावन। आखर तोरे हावय पावन।।-26

अप्पड़ होवय अड़बड़ ग्यानी। कोंदा बोलय गुरतुर बानी।।-27

सूरदास हा बजाय बाजा। बनय खोरवा हा नटराजा।।-28

बनथस सबके सबल सहारा। जिनगी जम्मों तोर अधारा।।-29

जीव जगत के तैं महतारी। तोरे अंतस ममता भारी।।-30

भरे सभा मा लाज बचाथस। जग ला अँगरी नाच नचाथस।।-31

तोर नाँव हे जग मा पबरित। बरसाथस तैं किरपा अमरित।।-32

हावँव निमगा निच्चट अँड़हा। परे हवँव मैं कचरा कड़हा।।-33

अखन आसरा खँगे पुरोबे। मनसुभा मइल मोरो धोबे।।-34

झार केंरवस, कर दे उज्जर। बनय 'अमित' सतवंता सुग्घर।।-35

मेट सवारथ झगरा ठेनी। दया मया बोहा तिरबेनी।।-36

राखे रहिबे मोरो सुरता। खँगे-बढ़े के करबे पुरता।।-37

महतारी झन तैं तरसाबे। अंतस खच्चित मोर अमाबे।।-38

जिनगी होगे खींचातानी।। करबे किरपा तहीं भवानी।।-39

पूत 'अमित' के सदा सहाई। कभू भुलाबे झन ओ दाई।।-40

सुमिरन करथँव सारदा, सरलग तोरे नाम।
सोर 'अमित' जग मा उड़य, सिद्ध परय सब काम।।
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कन्हैया साहू 'अमित'~भाटापारा छ.ग.
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संपर्क~9200252055/सृजन~

मंगलवार, 15 सितंबर 2020

ताटंक छंद ~ छै ऋतु वर्णन

ऋतु वर्णन:- ताटंक छंद

सरलग रतिहा दिन छिन कटथे, कालचक्र लहुटा आये।
एक बछर मा छैठन मौसम, परिवर्तन ला देखाये।।

अलग-अलग हे सबके महिमा, मरम सबो के ला जानौ।
जीव जंतु रुखराई सब मा, परय फरक येला मानौ।।

1-बसंत:-
संग चइत बइसाख महीना, ऋतु बसंत पहिली आवै।
महर-महर ममहावय मौसम, मलर-मलर मन मोहावै।।
मँउहा माते, परसा फूले, आमा के लहसे डारा।
पिंयर-पिंयर बड़ सरसों हाँसय, झूमँय सब झारा-झारा।।

नवा-नवा अब पाना-पतई, बगरे बन फुलुवा लाली।
फाँफा भँवरा तितली नाँचँय, देवँय
मटमटहा ताली।
करे कोइली कूहू-कूहू, कुलकत हें मिट्ठू मैना।
रंग मया मा फदके फागुन, बँहके हे बोली बैना।।

2-गरमी:-
आवय जेठ असाड़ महीना, अगिन बरोबर हे लागै।
अलकर अल्लर मन असकटहा, काहय कब  बइरी भागै।।
तातेतात तिपय सब तुरते, भक्कम भभका हा मारै।
जीव-जंतु सब कपसे सपटें, रुखुवा हा पाना झारै।।

छँइहाँ खोजय जुड़हा छँइहाँ, पानी हा पानी माँगै।
सूरुज नरायेन बउराये, आगी के गोला टाँगै।।
तरिया नँदिया परखे सुक्खा, सोझे धरती हा फाटै।
जरय भोंभरा, नरी सुखावय, मनखे दिन गिन के काटै।।

3-बरसा
देख महीना सावन भादो, बादर बड़ इँतरावै जी।
झिमिर-झिमिर बरसय पानी, सबके सुसी बुतावै जी।।
तरमिर तरमिर गरमी होवय, फरफर पुरवाही डोलै।
जीव पियासे अमरित पावँय, जिनगी के रद्दा खोलै।।

गरजय घुमड़य गड़गड़ बदरी, जब्बर नंगारा बाजै।
चमचम चमकय बिजुरी जमके, धरती निक सिरतों साजै।।
करय मेचका हा अगुवाई, गीत सुवागत के गावै।
भुँइया ओढ़य हरियर ओन्हा, सुग्घर सुघराई छावै।।

4-सरदी
झरती बरसा आवय सरदी, सरद सुखद सब ला भावै।
अब कुँवार कातिक भर तन-मन, बने मने मन मुस्कावै।।
खिलय खोखमा तरिया डबरी, आसमान सफ्फा होवै।
दूध नहाये दमकय दुनिया, झन एखर शोभा खोवै।।

चींव-चाँव बड़ चिरई चिरगुन, भँवरामन गावैं गाना।
मिलय साग भाजी फल बहुते, तनतन सब खावैं खाना।।
सूर्यदेव के किरपा बरसै, भक्ति भाव मन मा जागै।
शीत बरसथे रतिहाकुन जी, आलस नस-नस के भागै।।

5-हेमंत
पूष संग अग्घन के सरदी, जड़काला बिहना संझा।
फुरफुर पुरवाही निक लागय, चलय नहीं कोनो झंझा।।
अलथी-कलथी रात पहावै, लकर-धकर दिन हा बीतै।
मदनराज के धनुष चढ़े हे, कोन काम ले हे जीतै।।

कुहरा छावय, जाड़ा बाढ़य, गिरत हेम धरती ढॉकै।
अब गुलाब गोंदा अँगना मा, रबी फसल खेती झॉकै।।
मन पिरीत के हुद्दा मारय, धनी बिना का सोहागा।
मिलन मया के शुभ बेरा मा, कोनों नइ चाहैं दोहागा।।

6-शिशिर
मॉघ महीना अउ फागुन मा,  अमित जबर परथे जाड़ा।
तोपे ढॉके देंह पाँव हे, तभो गजब कॉपै हाड़ा।।
झरय पेड़ के डारा पाना, प्रकृति अजब बुढ़वा लागै।
नवा बछर के आवय आरो, नवजीवन आशा जागै।।

शीतकाल मा अमृत बरसथे, किरपा सूरुज के चोखा।
ताप रउनियाँ रोज बिहनिया, सुग्घर सेहत के जोखा।।
दक्षिण ले उत्तर मा जावय, सूरुज तब होवै मंदा।
अइसनहा बेरा मा संगी, बड़ बलकर होवै चंदा।।

कन्हैया साहू 'अमित' ~ 9200252055
शिक्षक-भाटापारा छत्तीसगढ़-15/09/2020
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शनिवार, 5 सितंबर 2020

अचल छंद (5,6,7 वर्ण/8,8,11 मात्रा)

अचल छंद (5,6,7 वर्ण) 8-8-11 मात्रा

मया-दया ला, धरौ जतन के, छोड़ सबो जंजाल।
रहौ इहाँ गा, बने लगन ले, झंझट देहौ टाल।।
परेम पाहू, बिरानमन ले, पोठ मया भंडार।
पिरीत पा ले, परान बन के, जी अपने संसार।।

सुधार ले तैं, सँवार ले तैं, दोष सबे ला मेंट।
दुलार देके, दुलार लेले, सोज बने तैं भेंट।।
जुराव होही, हियाव होही, नीक बनौ इंसान।
मया-दया हा, सहींच मा हे, मानुस के संज्ञान।।

कन्हैया साहू 'अमित'~सृजन 29/08/2020