*सरसती चालीसा~छत्तीसगढ़ी भाषा*
जय जय दाई सरसती, अइसन दे वरदान।
अग्यानी ग्यानी बनय, होवय जग कल्यान।। (दोहा)
हे सरसती हरव अँधियारी। हिरदे सँचरय झक उजियारी।।-1
तोर चरण मा जम्मों सुख हे। जिनगी जग मा कटही रुख हे।।-2
हाथ जोड़ के करथँव विनती। होय भक्त मा मोरो गिनती।।-3
जंतर मंतर कुछु नइ जानँव। सबले पहिली तोला मानँव।।-4
मैं मुरहा मन के बड़ भोला। गोहराँव मैं निसदिन तोला।।-5
अंतस 'अमित' अमाबे दाई। बिगड़ी सबो बनाबे माई।।-6
एती वोती मैं भटकँव झन। बुता काम मा मैं अटकँव झन।।-7
मोर करम ला सवाँरबे तैं। अँचरा दे के दुलारबे तैं।।-8
जिनगी के दुख पीरा हर दे। छँइहा सुख के छाहित कर दे।।-9
सोहय सादा हंस सवारी। कमल विराजे वीणाधारी।।-10
मूँड़ मुकुट मणि माला मोती। दगदग दमकय चारो कोती।।-11
सबले बढ़के वेद पुरानिक। सरी कला के तहीं सुजानिक।।-12
ग्यान मान के तैं भंडारी। तहीं जगत मा बड़ उपकारी।।-13
वरन वाक्य अउ बोली भासा। महतारी तैं सबके आसा।।-14
सब्बो सिरजन के तैं जननी। गीत गजल अउ कविता कहिनी।।-15
सुर सरगम के सिरजनहारी। मान-गउन के तैं अवतारी।।-16
सारद तीन लोक विख्याता। विद्या वैभव बल के दाता।।-17
सुर नर मुनि सबो गोहरावैं। संझा बिहना माथ नवावैं।।-18
अंतस ले जे तोला गावँय। मनवांछित फल वोमन पावँय।।-19
तोरे पूजा आगू सब ले। सरी बुता हा बनथे हब ले।।-20
विधि विधान जग के तैं बिधना। बोली भाखा तोरे लिखना।।21
तहीं ग्यान विग्यान विसारद। गावय तोला ग्यानी नारद।।-22
दाई चारो वेद लिखइया। ग्यान कला अउ साज सिखइया।।-23
रचे छंद अउ कहिनी कविता। भाव भरे बोहावत सरिता।-24
नेत नियम ला तहीं बखानी। ग्रंथ शास्त्र हा तोर जुबानी।।-25
मंत्र आरती सीख सिखावन। आखर तोरे हावय पावन।।-26
अप्पड़ होवय अड़बड़ ग्यानी। कोंदा बोलय गुरतुर बानी।।-27
सूरदास हा बजाय बाजा। बनय खोरवा हा नटराजा।।-28
बनथस सबके सबल सहारा। जिनगी जम्मों तोर अधारा।।-29
जीव जगत के तैं महतारी। तोरे अंतस ममता भारी।।-30
भरे सभा मा लाज बचाथस। जग ला अँगरी नाच नचाथस।।-31
तोर नाँव हे जग मा पबरित। बरसाथस तैं किरपा अमरित।।-32
हावँव निमगा निच्चट अँड़हा। परे हवँव मैं कचरा कड़हा।।-33
अखन आसरा खँगे पुरोबे। मनसुभा मइल मोरो धोबे।।-34
झार केंरवस, कर दे उज्जर। बनय 'अमित' सतवंता सुग्घर।।-35
मेट सवारथ झगरा ठेनी। दया मया बोहा तिरबेनी।।-36
राखे रहिबे मोरो सुरता। खँगे-बढ़े के करबे पुरता।।-37
महतारी झन तैं तरसाबे। अंतस खच्चित मोर अमाबे।।-38
जिनगी होगे खींचातानी।। करबे किरपा तहीं भवानी।।-39
पूत 'अमित' के सदा सहाई। कभू भुलाबे झन ओ दाई।।-40
सुमिरन करथँव सारदा, सरलग तोरे नाम।
सोर 'अमित' जग मा उड़य, सिद्ध परय सब काम।।
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कन्हैया साहू 'अमित'~भाटापारा छ.ग.
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