मड़ई
गाँव-गाँव मा होथे मड़ई।
महिमा आगर, बहुते बड़ई।।
देव साँहड़ा के हे मातर।
सब सकलाथें भाँठा चातर।।
खेती के जब बुता थिराथे।
मातर मड़ई तभे जगाथे।।
ठौर-ठौर मा सजथे मेला।
मनखे के तब रेलम-पेला।।
नाचा गम्मत बड़ रौताही।
खई खजाना हाहीमाही।।
रौताही=मड़ई
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कन्हैया साहू 'अमित'~भाटापारा - 9200252055
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