रविवार, 25 अप्रैल 2021

जानव जनऊला~ (01-50)

/// जानव जनऊला ///
" जयकारी जनऊला "

01- पहिली ये पाछू जगदीश।
रद्दा खोलय इँखर असीस।।
लागँय जइसे जुड़हा छाँव।
साधक जपथें हरदम नाँव।।
-गुरुदेव

02- हाथी जइसन भारी पेट।
खाथे लाडू सूँड़ लपेट।।
सबले पहिली एखर नाम।
शुरु होथे तब कोनो काम।।
-गणेश भगवान

03- सार कला हे एखर अंस।
सुघर सवारी सादा हंस।।
छेड़य वीणा के सुर तान।
इँखर कृपा ले जम्मों ज्ञान।।
-सरस्वती माता

04- एक जघा जम्मों सकलान।
बइठे पावन आखर ग्यान।।
मंदिर जइसे लागय ठौर।
नाँव बता अब करके गौर।।
-इस्कूल

05- धन दोगानी ले झन तोल।
एखर कीमत हे अनमोल।।
जे पाये ग्यानी बन जाय।
नइ पाये ते मुरुख कहाय।।
-विद्या

06- गुरतुर-गुरतुर बोलँय बोल।
आगू-पाछू  राहँय  डोल।।
लइकामन बर हे भगवान।
बाँटय  एक बरोबर ज्ञान।।
-गुरुजी

07- पेड़ नहीं पर पाना पोठ।
बिन मुँहु के करथे ये गोठ।।
आखर के भारी भंडार।
ज्ञान कला के ये आधार।।
-किताब

08- कोरा-कोरा आरुग कोर।
लिखना हे तब करथें सोर।।
अंतस के सब भर दे भाव।
नइ ते सोज्झे कागज ताव।।
-कापी

09- एखर आगू का तलवार।
नान्हें हे एखर आकार।।
स्याही सँघरा सुग्घर मेल।
आखर उलगय खेलत खेल।।
-कलम

10- होथे करिया-करिया रंग।
उज्जर आखर एखर संग।।
होय अधूरा ये बिन चाक।
कक्षा भीतर  एखर धाक।।
-तख्ता

11- रहिथे येहा पीठ लदाय।
संगे  आथे  संगे  जाय।।
राखय सब ला जोर जँगार।
नाँव बतावव करत विचार।।
-बस्ता

12- नाक धरय अउ झींकय कान।
रतिहाकुन हो या दिनमान।।
आथे बहुते येहा काम।
तुरत बतावव एखर नाम।।
-चश्मा

13- बड़े बिहनिया येहा आय।
संझौती बेरा मा जाय।।
एखर संगे संग अँजोर।
नइ ते अँधियारी घोर।।
-सुरुज

14- सरी जगत के करथे सैर।
भुँइयाँ मा नइ राखय पैर।।
दिन मा सोवय, जागय रात।
करय अँजोरी रतिहा घात।।
-चंदा

15- गिनत-गिनत जम्मों थक जाय।
बगरय बादर कहाँ समाय।।
रतिहाकुन मा इन टिमटाम।
बोलव झटपट एखर नाम।।
-चँदैनी

16- करिया घोड़ा भागे जाय।
पाछू घोड़ा लाल कुदाय।।
ऊँच अगासे  बहुते भाय।
बोलव  संगी  एहर काय।।
-आगी

17- बाँध डोर तैं झुलुवा झूल।
हवा दवा फर देथे फूल।।
मनखे के ये संगी जान।
इही बचाथे सबके प्रान।।
-रुखराई

18- नइ हे एखर कोनो रंग।
ढलथे येहा सबके संग।।
आँच परे बादर चढ़ जाय।
जाड़ परे पखरा लहुटाय।।
-पानी

19- दिखय नहीं पर चलथे जोर।
सरसर-सरसर करथे शोर।।
जीव जगत के सिरतों आस।
एखर बल मा सबके साँस।
-हवा

20- रिंगी-चिंगी  फूलँय  फूल।
तितली भौंरा झूलँय झूल।।
रहिथे येमा जी रखवार।।
जानव  येला  तुरते यार।।
-फुलवारी

21- नइ तो आवय येहा हाथ।
रहिथे फुलुवामन के साथ।।
रिंगी-चिंगी पाखी संग।
रस पी के इन फिरय मतंग।।
--तितली

22- भनभन-भनभन करथे खूब।
फूलुवा मा इन जाथे डूब।।
बिरबिट करिया एखर रंग।
कान करा करथें उतलंग।।
-भौंरा

23- रहिथें जुरमिल छाता डार।
रानी संगे सौ बनिहार।।
चुहक-चुहक रस मैंद सकेल।
गुरतुर मधुरस ठेलम-ठेल।।
-मछेर

24- चीं चीं चीं चहकैं चिरबोर।
रुखराई, घर, अँगना खोर।।
पंख पसारै फुर्र उड़ाय।
सबके मन ला नँगते भाय।।
-बाम्हन चिरई

25- बहुते खबड़ा खाँवे खाँव।
बोल उराठिल काँवे काँव।।
करिया-करिया एखर रंग।
उटपटांग उज्जट उतलंग।।
-कौआ

26- बइठे रहिथे आमाडार।
कुलकै भारी कुहकी पार।।
जब बसंत के आवय बेर।
तब तो बहुते पारय टेर।।
-कोइली

27- हरियर पाँखी लाली चोंच।
समझदार कस एखर सोंच।।
मिरचा देखत जावय डोल।
तपत कुरू के बोलय बोल।।
-मिट्ठू

28- पिंयर खैरा भुरुवा रंग।
राखय मनखे अपने संग।
मिट्ठू के होथे लगवार।
नाँव बतावव एखर यार।।
-मैना

29- घपटे देख घटा घनघोर।
नाचय नँगते मया चिभोर।।
पंछी के राजा कहलाय।।
अपने पँउरी देख लजाय।।
-मँजूर

30- सादा करिया भुरुवा रंग।
खेलँय खावँय मनखे संग।।
पहिली इन चिट्ठी पहुँचाय।
गजब गुटरगूँ बोल सुहाय।।
-परेवा

31- बड़े बिहनिया मुँह दै खोल।
कुकरुस कूँ के बोलय बोल।।
मुँड़ मा कलगी होवय लाल।
धीररास हे एखर चाल।।
-कुकरा

32- भावय येला घुप अँधियार।
दिनभर ये राहय थिरथार।।
आँखी खुसरे, धरहा चोंच।
का चिरई हे तुरते सोंच।।
-घुघुवा

33- दशराहा के दिन तैं खोज।
दिखय भले ये सब ला रोज।।
टेर्र-टेर्र के बोलय बोल।
पंछी ये हावय अनमोल।।
-टेहर्रा

34- एखर थन ले गोरस धार।
दूध दही  घी  के भंडार।।
पैरा भूँसा काँदी खाय।
महतारी के पदवी पाय।।
-गाय

35-लाली धँवरा सादा रंग।
एखर जोड़ी नाँगर संग।।
बड़का सिंग, पुछी हे लाम।
झट्टे जानव का हे नाम।।
-बइला

36- पाना पतई पागुर खाय।
मेर-मेर बहुते नरियाय।।
खैरी कबरी बड़ छतरंग।
खेत-खार मा चरै मतंग।।
-छेरी

37- चुकता चुन्दी देंह छवाय।।
बीच-बीच मा मुँड़ मूँड़ाय।।
कतको काँही आवय जाय।
रेंगय येमन मुँड़ी नवाय।।
-भेंड़ी

38- रतिहाकुन ये चौकीदार।
दिनभर सुतथे पाँव पसार।।
भूँ-भूँ के करथे आवाज।
घर के आगू एखर राज।।
-कुकुर

39- दूध दही मलई चोराय।
मुसुवा ऊपर धाक जमाय।।
आँखी कर्री ला छटकाय।
म्याऊँ-म्याऊँ ये नरियाय।।
-बिलई

40- बहुत उपाई एखर जात।
कूदय फाँदय नाचय घात।।
डारा-पाना देवय टोर।
खीस-खीस खो दाँत निपोर।।
-बेंदरा

41- देंह भरे चुंदी भरमार।
खाय गजब मधुरस दमदार।।
नान्हें आँखी नान्हें कान।
पुछी छोटकुन, झट पहिचान।।
-भलुवा

42- भारी भक्कम हावय पेट।
खावय पीयय सूँड़ लपेट।।
सूपा जइसन जब्बर कान।
कोन हरय येला पहिचान।।
-हाथी

43- खदबिद-खदबिद भागय पोठ।
हिनहिन कहि-कहि होवय गोठ।।
चना चबेना बहुते खाय।
सुघर सवारी ये बन जाय।।
-घोड़ा

44-पिंयर करिया धारीदार।
बहुते बलकर बड़ हुशियार।।
एखर ले सब जीव डराय।
वन के राजा ये ह कहाय।।
-बघवा

45-राहँय जंगल झाड़ी बीच।
बहुते चतुरा  नँगते नीच।।
माड़़ा खुसरे बखत बिताँय।
हुआँ-हुआँ रतिहा इँतराँय।।
-कोलिहा

46-करिया पिंयर छिटही छाप।
दँउड़य भारी एक्के धाप।।
खरखर चढ़थे रुखुवा टाप।
कखरो ले झन येला खाप।।
-चितवा

47- सुग्घर-सुग्घर आँखी कान।
सिंग इँखर हे सिरतों शान।।
छिटही बुंदी पिंयर पाँव।
नइ पावव तुम एखर छाँव।।
-हिरना

48- सबले उँचहा एखर ठाट।
रेती एखर सोज्झे बाट।
निपटाथे ये नँगते काज।
रेगिस्तान के हरय जहाज।।
-उँटवा

49- बोझा डोहारै ये रोज।
होथे निच्चट सिधवा सोज।।
तपथे तेला लात जमाय।
चिपो-चिपो चोखी चिचियाय।।
-गदहा

50- पानी भुँइयाँ करे निवास।
मछरी कस नइ आवय बास।।
भुँइयाँ मा बस टपटप चाल।
चौमासा मा बाजय गाल।।
-मेचका
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कन्हैया साहू 'अमित'~भाटापारा छत्तीसगढ

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