सोमवार, 26 अप्रैल 2021

जानव जनऊला ~ (101-150)

101- एक अचंभा देख सुनाय।
पानी पीयय पुछी लमाय।।
मुँड़ी कोत बड़ ललियाय।
आखिर मा जर मर जाय।।
-दीया

102- सोला रानी, तीन ठ यार।
चार चौंकड़ी गोल बजार।।
खेलँय जम्मों जुगत लगाय।
पौ बारा के बोल सुनाय।।
-पासा

103- नान्हें डबिया मा डिबडाब।
नइ जानच ता तैं मुँहु दाब।।
देखय येहा सब ला जान।
तैं नइ देखस येला मान।।
-आँखी

104- लइका नान्हें, कुबरा पेट।
रहिथे दुरिहा सबो समेट।।
बाहिर ले ये कड़क जनाय।
भीतर सबके मन ला भाय।।
-नरियर

105- धरे मोटरा मुँड मा तान।
गजब डोकरी येला जान।।
अपन लार के फाँदा डार।
जौन फँसय वोला दय मार।।
-मेकरा

106- रिंगी-चिंगी फूलय फूल।
फर फरथे लमडेरा झूल।।
दिखथे काड़ी हड़ही सार।
लेकिन भीतर भरे गुदार।।
-मुनगा

107- माढ़े तरिया के ये बीच।
जइसे गोबर या के कीच।।
पखरा जइसन भारी ठोस।
रेंगय ये हा कतको कोस।।
-केछुवा

108- बिन पानी के ग कुआँ चार।
लाली करिया अउ उजियार।।
रानी अउ अट्ठारा चोर।
जिरमुल जम्मों हें चिरबोर।।
-कैरम अउ गोंटी

109- हवय एकठन घर अउ द्वार।
जौन रहय वो ही हुशियार।।
कथा कंथली बहुते ज्ञान।
संगत एखर, बनय महान।।
-पुस्तकालय

110- नान्हें लइका करिया रंग।
खाय भात राजा के संग।।
लइका जूठा राजा खाय।
राजा ला बीमारी आय।।
-माछी

111- हरदी के रंगे रंगाय।
पीतल लोटा नाँव धराय।।
खा ले बेटा हाथ लमाय।
गिर परही तब गय छरियाय।।
-बेल

112- पातर दुब्बर लइका जान।
पहिरँव लकड़ी के मैं थान।।
जतको मोला छोलत जाव।
नवा-नवा तुम मोला पाव।।
-शीश (पेंसिल)

113- निकलय पानी ले रुख एक।
नइ हे पाना, डार अनेक।।
खाल्हे कोनो बइठ न पाय।
तीर खड़े मा जाड़ जनाय।।
-फब्बारा

115- रानी जेखर तीन ठ पाँव।
रोज नहावय अपने ठाँव।।
दार भात के नइ पहिचान।
खावय कच्चा पोठ पिसान।।
-चौंकी बेलना

116- जब-जब गरमी के दिन आय।
सबझन येला तीर बलाय।।
पीयय पानी भर-भर पेट।
ठंड हवा गरमी दय मेट।।
-कूलर

117- लोहा के दूठन तलवार।
करँय लड़ाई बड़ दमदार।।
तभो रहँय इन एक्के संग।
दिखथे जुड़वा जइसे रंग।।
-कैंची

118- जीभ नहीं पर बोलँव बोल।
पाँव नहीं पर डोलँव गोल।।
राजा परजा सब ला भाँव।
जम्मों खुशहाली मैं लाँव।।
-रुपिया

119- चार गोड़ पर नइ रेंगाय।
हालय नइ ये बिना हलाय।।
सब ला देवय ये आराम।
तुरत बतावव एखर नाम।।
-खटिया

120- फटफट-फटफट धरथे राग।
सरपट-सरपट जावय भाग।।
दू चक्का मा जावय डोल।
भूख लगय पीयय पेट्रोल।।
-फटफटी

121- थापक थउआ हावय पेड़।
बाढ़य बखरी-बारी मेंड़।।
चाकर झाफर एखर पान।
बिन बीजा के हे, पहिचान।।
-केरा

122- कटही हावय एखर अंग।
पान बहेरा जइसे संग।।
फूल रतन कस रहिथे लाल।
फागुन मा ये दिखय कमाल।।
-सेम्हरा

123- एक चघय जी ऊँच पहार।
एक रहय जी जंगल खार।।
एक रहय जी खेत मरार।
तीनों एक्के करय गुजार।।
-मखना

124- नान्हें बटकी रस भरमार।
खावँय चुहकँय ले चटकार।।
होथे हरियर पींयर गोल।
का हे तेला तुरते बोल।
-लिमँऊ

125- घपटे रहिथे खाल्हे छाँव।
बाप-पूत के एक्के नाँव।
नाती के तैं नाँव विचार।
महर-महर ममहावय खार।।
-मउँहा

126- चाकर पाना पातर पेड़।
ठाढ़े जंगल खारे मेड़।।
पतरी दोना बनथे पान।
फुलुवा आग जइसन जान।।
-परसा

127- कुबरा बुढुवा नुनछुर खाय।
बड़े जवनहा अमसुर भाय।।
बीजा आवय खेले काम।
मुँह मा पानी लेवत नाम।।
-अमली

128- करिया कुरता सादा अंग।
गाँव शहर मा सबके संग।।
पढ़े लिखे अउ अप्पढ़ खाय।
नून डार ले, बहुत मिठाय।।
-चिरई जाम

129- ये गरीब के सेब कहाय।
हरियर पींयर फर मन भाय।।
गुदा लाल सादा मा होय।
चिक्कन डारा झिम्मट सोय।।
-बीही

130- हरियर पींयर रहिथे गोल।
काँटा-खूँटी पाना डोल।।
कोंवर बाहिर, भीतर खोल।
फोर गुठलू खालव डोल।।
-बोईर

131- डम डम डम के फूटय बोल।
छम छम छम तैं संगे डोल।।
धरे मदारी गँवई आय।
भलुवा के नाचा देखाय।।
-डमरू

132- बाहिर हरियर भीतर लाल।
करिया बीजा गजब कमाल।।
खावव चानी-चानी चान।
फर ये गरमी मा वरदान।।
-कलिंदर

133- पाना-पाना बड़ भरमार।
अंग-अंग हे सरी गुदार।।
नइ तो बीजा कोनो हाड़।
बिन लकड़ी के ये हा झाड़।।
-केरा

134- होवय बहुते नदी कछार।
लसलस फरथे, लहसै डार।।
किचपिच बीजा भरे हजार।
लाली सादा मीठ गुदार।।
-बीही

135-  कच्चा मा ये साग खवाय।
पक्का मा सबके मन भाय।।
करिया बीजा रथे हजार।
कोला-बारी उपजै मार।।
-अरंपपई

136-  कच्चा मा बड़ अम्मठ स्वाद।
पक्का मा बस गुरतुर गाद।।
झोत्था-झोत्था फरथे डार।
छछले रहिथे एखर नार।।
-अंगूर

137- फर के राजा येला जान।
हवय 'खास'  जाय एखर शान।।
कच्चा मा चटनी तैं डार।
पक्का मा गोही चटकार।।
-आमा

138- भुँइयाँ भीतर रहै उदास।
निकलय बाहिर, बनजय खास।।
सँघरा सबसे येला जोर।
इही बनावय बढ़िया झोर।।
-आलू

139- लाली-लाली कुरता लाल।
हरियर फीता फभे कमाल।।
रँधनी घर मा एखर राज।
नाँव बतावव तुरते आज।।
-पताल

140- जइसन नाँवे वइसन रंग।
लहिथे येहा सबके संग।।
मुँड़ मा कटही रखवार।।
येला खाये सब तइयार।।
-भाँटा

141- हरियर चुन्दी सादा रंग।
गड़े रहय भुँइयाँ के संग।।
भाजी एखर सुघर मिठाय।
चुरपुर-गुरतुर स्वाद सुहाय।।
-मुरई

142- माथा उपजे धनिया पान।
रंग गाजरी हे पहिचान।।
हलुआ खा ले ताते तात।
कच्चा मा तो भाथे घात।।
-गाजर

143- चारों मूँड़ा घपटे पान।
सादा पोनी बीच म जान।।
होथे फर भाजी छतनार।
खूब मिठाथे ये दमदार।।
-गोभी

144- फरथे येहा लामी-लाम।
भीतर बीजा भरे तमाम।।
अँगरी जइसन एखर ढ़ंग।
हरियर पींयर एखर रंग।।
-रमकेरिया

145-  फुलुवा के राजा तैं जान।
कटही तन एखर पहिचान।।
महर-महर ममहाथे घात।
संझा बिहना दिन अउ रात।।
-गुलाब

146- पातर-पातर पाना पोठ।
डारा फुलुवा रहय न मोठ।।
पींयर-पींयर पँखुड़ी गोल।
अँगना के शोभा अनमोल।।
-गोंदा

147- जरी धँसे हे पानी कीच।
छछले सुग्घर तरिया बीच।।
खा ले फर, हे जुड़वास।
एखर डारा सब्जी खास।।
-कमल/पोखरा/ढ़ेस

148- जेती बेरा ओती घूम।
जब्बर जकना, जाथे झूम।।
पींयर फुलुवा, हरियर पान।
बीजा एखर तेल खदान।।
-सूरजमुखी

149- सरदी के मौसम मा आय।
महर-महर अँगना ममहाय।।
सादा-सादा खिलथे फूल।
आँखी-आँखी जाथे झूल।।
-मोंगरा

150- लाली-लाली लहसे डार।
एखर ले देवी सिंगार।।
अँगना बारी लगे पछीत।
गा ले संगे सेवा गीत।।
-मंदार
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कन्हैया साहू 'अमित'~भाटापारा छत्तीसगढ
9200252055 ~ सृजन -26/04/2021

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