शनिवार, 1 मई 2021

घरघुँदिया ~ बाल कविता (01-86)

घरघुँदिया.... छत्तीसगढ़ी बाल कविता

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01- ईश प्रार्थना

हे  प्रभु  दे अइसन वरदान।

सबझन पावँय अक्षर ज्ञान।।

हाथ जोड़ हम करन प्रणाम।

आवँन सदा दुसर के काम।।

सुमता-गंगा  हमन  नहान।

मनखे-मनखे  एक  समान।।

छुआछूत  के  भागय  रोग।

अंतस जागय सब बर सोग।।

बोली बोलन  गुरतुर  नीक।

काम करन झन कोनो खीक।।

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02- जुरमिल के

जुरमिल के हम ला रहना हे।

सार गोठ  ये  अब  कहना हे।

जातपात  के  रोड़ा  टारव।

नँदिया कस आगू  बढ़ना हे।।

भारत देश हमर महतारी।

छाती  बैरी  के  छरना हे।।

नवा डगर अउ नवा जमाना।

नित इतिहास नवा गढ़ना हे।।

जाँच परख के पाँव उठावव।

भूत भरम  काबर  धरना  हे।।

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03- नशामुक्ति

नशा  कभू  झन  करहू  बाबू।

जिनगी    हो   जाथे   बेकाबू।।

बीड़ी   गाँजा   माखुर  गुटका।

नशा  सबो  हे  यम  के मुटका।।

दारू   सबले   घटिया   होथे।

धन   दोगानी   जिनगी  खोथे।।

नशा   मान   मरजादा   लुटथे।

घर   परिवार   संग  ले  छुटथे।।

कान पकड़ के खावव किरिया।

नशापान  ले  राहव   तिरिया।।

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04- पढ़ई-लिखई

पढ़ई-लिखई  जग उजियारी।

भागय जिनगी के अँधियारी।।

अपने  हक बर  लड़ना होही।

सहीं  बात  मा  अँड़ना  होही।।

काबर  अँगठा   छाप   कहावन।

पढ़ लिख सबले खाँध मिलावन।।

कोन्हों  के  नइ  होही  शोषण।

सबके  होही  पालन  पोषण।।

जिनगी  ला  हम  बने  सजावन।

पढ़े-लिखे  बर  काय  लजावन।।

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05- कोन काय करथे

सरहद   के  रक्षक   मनमौजी।

जन-जन कहँय उही ला फौजी।।

सिलथे कपड़ा हमरे मरजी।

काहय  जम्मो वोला दरजी।।

जौन  बनाथे  मीठ  मिठाई।

उही   कहाथे  जी  हलवाई।।

लकड़ी म करय जौने गढ़ई।

नाँव हवय जी ओखर बढ़ई।।

काम  बगीचा  के  रखवाली।

नाँव हवय जी ओखर  माली।।

जग बर जौन अन्न उपजाथे।

जय किसान वो हा कहलाथे।।

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06- सोंचव थोरिक

कभू सड़क  तीरन  नइ खेलव।

गली-खोर  झन  कचरा मेलव।।

अपने  अँगना  द्वार  म  राहव।

बिक्कट मजा  तुमन हा पाहव।।

झन   चोराहू   आमा   बीही।

माली  अब्बड़  गारी   दीही।।

मारव  झन तुम कभू लबारी।।

छोड़व  पर के  चुगली-चारी।।

नून  डार  के  खावव  बासी।

भागय  तन के  सरी उदासी।।

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07- सुनव अवाज

खलबल-खलबल करथे पानी।

रझरिझ-रझरिझ  बरखा रानी।।

बादर  गरजय  गड़गड़-गड़गड़।

लकड़ी जरथे चड़चड़-चड़चड़।।

बाजय  घंटी  टन टन-टन टन।

पुरवाही  हा सन सन-सन सन।।

गरमी  मा  भुँइयाँ  हा  चटचट।

दाँत जाड़ मा कटकट-कटकट।।

धकधक-धकधक दिल के धड़कन।

खनखन-खनखन  चूरी  खनखन।।

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08- रिश्ता नता

एक  ददा  अउ  एक्के दाई।

वो  कहाँय सग बहिनी भाई।।

घर भर मा सबले मनमौजी।

उही हमर हे  भइया भौजी।।

खावव चीला  छोड़व दोसा।

दुरिहा  रहिथें  मोसी  मोसा।।

गजबे  ग्यानी  नँगते  नामी।

परथें  पाँव  ल  मामा-मामी।।

जिहाँ  करँय लइका मनमानी।

उँहचे   रहिथें   नाना-नानी।।

मया पुरोवय  रहन न  बाँकी।

बहुत मयारुक काका-काकी।।

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09- रोटी-पीठा

मिठहा   बुन्दी   मुर्रा  लाडू।

नइ खावय जी तेन भकाडू।।

गुरतुर  अरसा पपची  गुजिया।

गुरहा चीला  गुलगुल भजिया।।

तिखुर  ठेठरी  खा ले  हलुवा।

नइ कुदाय तब तोला भलुवा।।

खीर  सेवई  पिड़िया  खाजा।

पहिली  खाही  ओही  राजा।।

कुसली कतरा बिरिया पकुवा।

गुगगुप  खावँय  नोनी बबुवा।।

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10- रुखराई

नीलगिरी अउ लिमऊ लीम।

तुरते   ताही   बैद  हकीम।।

डूमर   गस्ती   तेंदू   चार।

कर्रा  करही  अउर खम्हार ।।

सरई  साजा अउ सागोन।

लकड़ी एखर जइसे सोन।।

आमा अमली कदम अकोल।

रुखराई   बहुते   अनमोल।।

बोइर बँभरी बरगद  बेल।

रुखुवा  देथे   दवई  तेल।।

पीपर परसा अउ  शहतूत।

रुख रखवारी करव सपूत।।

बाँस  बहेरा  छींद  कनेर।

पेड़ लगा, झन करव अबेर।।

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11- बरखा

जब जब सावन भादो आथे।

करिया-करिया  बादर  छाथे।।

कड़कड़ कड़कड़ बिजली चमके।

बरसय  बादर  जउँहर  जमके।।

चूहय  बहुते  छानी  परवा।

छू लम्बा  तब  माढ़े  नरवा।।

सुरुर सुरुर चलथे पुरवाही।

गिरथे  पानी   हाहीमाही।।

संंग  नँगरिहा  नाँगर बइला।

खोर गली मा मातै चिखला।।

नरवा नँदिया डबरी तरिया।

हरसाथे सब भाँठा परिया।।

नाचय जब-जब बरखा रानी।

चारों  मूँड़ा  पानी-पानी।।

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12- फुग्गावाला

फुग्गावाला हा आये हे।

लइका मन सब सकलाये हे।।

रिंगी-चिंगी फुग्गा फूले।

तीर तार मा जम्मों बूले।।

दू रुपिया मा दूठन आवय।

लुहुर-लुहुर सब लेके जावय।।

छिंटही पिंवरी सादा लाली।

नाचत कूदत पीटँय ताली।।

हब हब फुग्गा सबो सिरागे।

लइकामन के चुहल थिरागे।।

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13- बेटी

जग मा गजब दुलौरिन बेटी।

बड़ सजोर कमईलिन बेटी।।

दया धरम चिन्हारी बेटी।

पुरखा के रखवारी बेटी।।

बिगड़े भाग  बनाथे बेटी।

दू कुल मान बढ़ाथे बेटी।।

नइ हे अब तो अबला बेटी।

बाना बोहय सबला बेटी।।

सदा 'अमित' सुखदाई बेटी।

करथे  काज  भलाई  बेटी।।

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14- बिहनिया

होत बिहनिया कुकरा बासय।

बड़े फजर  ले जम्मों जागय।।

खोर गली मा छिटका गोबर।

साफ  सफाई  सरग बरोबर।।

चींव चाँव चिरई नरियावव।

छानी ले धुँगिया उड़ियावय।।

चउँक पुराये सुघर मुँहाटी।

जावँय लउहे  गोदी  माटी।।

लाली सूरुज सबके हिस्सा।

इही गाँव गँवई के किस्सा।।

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15- पतंग

फरफर-फरफर उड़य पतंग।

रिंगी-चिंगी कतको रंग।।

चिरईया  कस ऊँच अगास।

देखइया  मन  मस्त  मतंग।।

मंजा  डोरी  ले पहिचान।

ढील छोड़ दे, झन दे तान।।

जावय  बादर  ले ओ पार।

तभे जीत  होही  ये जान।।

ये पतंग कुछु सीख सिखाय।

बंधन ले  जिनगी  मुसकाय।।

जेखर  बँधना  जावय  टूट।

फेर कभू ना  वो  टिक पाय।।

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16- किताब

हे किताब असली सँगवारी।

देथे सिरतों सबो जानकारी।।

पढ़ले एला मन भर आगर।

भरे ज्ञान के टिपटिप सागर।।

दुनिया भरके बात बताथे।

मन के सरी भरम मेटाथे।।

हर सवाल के उत्तर मिलथे।

पढ़ के अंतस सुग्घर खिलथे।।

एला  संगी  जौन  बनाथे।

पढ़े लिखे मा अव्वल आथे।।

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17- साफ सफाई

बीमारी  के  एक  दवाई।

तन अउ मन के साफ सफाई।।

इहाँ-उहाँ झन फेंकव कचरा।

फोकट झन बगरावव पचरा।।

तोप-ढाँक  के  राखव पानी ।

हँसी-खुशी बीतय जिनगानी।।

तन अउ मन के साफ सफाई।

हावय  एमा  हमर  भलाई।।

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18- घरघुँदिया

आवव अघनू अगम अघनिया।

खेलन  फुतका  मा घरघुँदिया।।

घर अँगना अउ कोलाबारी।

सुग्घर  सबके  पटही तारी।।

खेल खिलौना सगली-भथली।

नइ राहय  कखरो  मन उथली।।

पतरी  परसा  पीपर  पाना।

डूमर गस्ती  खई खजाना।।

मेलजोल के महल बनाबो।

जौन रिसाही, तुरत मनाबो।।

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19- लाल रंग

गाजर अउ बंगाला लाली।

खाथे जौन रथे खुशहाली।।

सूरुज दहकत लाली गोला।

झक-झक दमकय बस्ती टोला।।

लाली रथे  कलिन्दर चानी।

खतरा के हे लाल निशानी।

लहू सबो के  होथे  लाली।

चाहे  चीनी  या  नेपाली।

सुक्खा मिरचा होथे लाली।

जीभ चुरपुराथे बड़ हाली।।

लाली  टिकली  चूरी फीता।

रंग  लाल  नइ  राहय रीता।।

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20- माटी

कतका  सबके  सहिथे माटी।

कुछु काँही कब कहिथे माटी।।

पानी मा  घुर जाथे तुरते।

घाम संग मा लहिथे माटी।।

पुरवाही  मा झट उड़ियाथे।

धरती ले मिल रहिथे माटी।।

हाड़ माँस के मनखे दिखथे।

लहू रकत बन बहिथे माटी।।

अनभल अलकर 'अमित' टारथे।

परहित  जग भल  चहिथे माटी।।

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21- पानी

बादर ले  जब आथे पानी।

सबके मन ला भाथे पानी।।

फोकटिया मा मिलथे येहा।

जग के जीव बचाथे पानी।।

लकलक गरमी के दिन मा ये।

मोल  अपन  समझाथे पानी।।

बूँद-बूँद अनमोल हवय जल।

सिरतों  बात  बताथे  पानी।।

कटय नहीं पानी बिन जिनगी।

अमरित 'अमित' कहाथे पानी।।

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22- बादर

गड़गड़-गड़गड़ करथे बादर।

धीर  कहाँ  तब धरथे  बादर।।

करिया करिया ओन्हा ओढ़े।

झम-झम बिजली बरथे बादर।।

सरसर-सरसर पवन संग मा।

झरझर-झरझर झरथे बादर।।

गरमी ले हलकान परानी।

सबके दुख ला हरथे बादर।।

रुक्खा-झुक्खा चारों कोती।

हरियर हरियर करथे बादर।।

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23- मड़ई

गाँव-गाँव मा होथे मड़ई।

महिमा आगर, बहुते बड़ई।।

देव साँहड़ा के हे मातर।

सब सकलाथें भाँठा चातर।।

खेती के जब बुता थिराथे।

मातर मड़ई तभे जगाथे।।

ठौर-ठौर मा सजथे मेला।

मनखे के तब रेलम-पेला।।

नाचा गम्मत बड़ रौताही।

खई  खजाना हाहीमाही।।

रौताही=मड़ई

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24- फेरीवाला

फेरी वाला  मारय फेरी।

बीच-बीच मा पारत रेरी।।

कभू सायकिल ठेलागाड़ी।

बेंच जिनिस  पाथे देहाड़ी।।

कभू फूल तरकारी भाजी।

सबो बिसाथें  होके राजी।।

कभू खिलौना आनी-बानी।

पुतरा  पुतरी  राजा  रानी।।

कभू धरे सुग्घर मनिहारी।

कूद परैं  बहिनी महतारी।।

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25- सड़क

देखव सड़क हरँव मैं करिया।

गाँव-शहर  जाये  के जरिया।।

डामर  गिट्टी  के  ये  तन हे।

परहित मा बीतत जीवन हे।।

निशदिन दउँड़त रहिथे गाड़ी।

जीप कार बस कभू कबाड़ी।।

माढ़े  रहिथँव एक जघा मैं।

नइ तो देवँव  कभू दगा मैं।।

मैं पहुँचावँव सब ला मंजिल।

मोर बिना हे चलना मुश्किल।।

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26- मोटर गाड़ी

मोटर गाड़ी आवत जावत।

पीं पीं-पीं पीं रथे बजावत।।

सरसर-सरसर भरभर-भरभर।

उत्ता   धुर्रा   रहिथें   भागत।।

जगमिग-जगमिग चकचिक-चककिच।

भागँय रतिहा शेखी मारत।।

पेट्रोल  डीजल  पी के दउड़ै।

करिया-करिया धुआँ उड़ावत।।

पोट-पोट ले भरे कोचकिच।

चलथे नँगते इन मटकावत।।

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27- घर कुरिया

माटी ले सिरजय घर कुरिया।

माई  पिल्ला  राहँन  जुरिया।।

भिथिया थाम्हे  खपरा छानी।

बाँचन घाम, जाड़ अउ पानी।।

घर दुवार अब कच्चा-पक्का।

सहय  समय के  लावाधक्का।।

ईंटा  छड़िया  सिरमिट  रेती।

'अमित' ठोसलग इँखरे सेती।।

परछी  अँगना  कोलाबारी।

मया पिरित असली निस्तारी।।

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28- सरदी

सरसर-सरसर  सरपट सरदी।

लागय सब ला असकट सरदी।।

छिन-छिन तड़फड़ बीतै दिन हा।

रतिहा कटथे लटपट सरदी।

ओढ़े कथरी  कमरा रजई।

ताड़य उघरा कनपट सरदी।।

घाम  रौनियाँ  भुर्री  तापव।

भागय काँपत झटपट सरदी।।

भले डराथे,  देंह बनाथे।

बहुते तिरझन तिरपट सरदी।।

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29- फिलफिली

चलय फिलफिली फरफर-फरफर।

अपने  सुर  मा  सरसर-सरसर।।

रिंगी-चिंगी  रंग  म  रंगे।

चक्कर खाय हवा के संगे।।

सनन-सनन ये बड़ इतरावय।

लइकामन ला पोठ लुहावय।।

चिन्हारी  हे  पाना  कागज।

घुमते  रहना  एखर कारज।।

खुलखुल-खुलखुल लइका हाँसय।

चलय फिलफिली मन ला फाँसय।।

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30- अखबार 

बड़े फजर आथे अखबार। 

घर  बइठे  जानव  संसार।।

समाचार  सबके  सुध  लेत।

जन-जन ला ये करय सचेत।।

आखर-आखर  सार  लिखाय।

नित अँजोर  जग  मा बगराय।।

हँसी ठिठोली सुख-दुख सार।

ये  सियान-लइका  सँगवार।।

पढ़य  ददा  हा  पीयत चाय।

आँखी  चश्मा  मा  चढ़हाय।।

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31- कबाड़ीवाला

रेरी पारत आय कबाड़ी।

अउ कबाड़ ले जाय कबाड़ी।।

लोहा-टीना  रद्दी  बेंचव।

जौन काम नइ आवय दे दव।।

ओन्टा-कोन्टा  दीखय रदबद।

सरहा-गलहा  लागय खदबद।।

सुग्घर सफ्फा झट हो जावय।

टरय कबाड़ी, घर मनभावय।।

करथे काज कबाड़ीवाला।

सुघर सफाई के रखवाला।।

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32- पेपरवाला

पेपर वाला  बिहना आथे।

अपन संग मा पेपर लाथे।।

सरदी, गरमी, बरसा बादर।

बड़े बिहनिया बूता आगर।।

धरे सायकिल बड़ भिनसरहा।

लागय जइसे खर-खर खरहा।।

जावय सबके रोज दुवारी।

करय न नाँगा, समय खुवारी।।

समाचार के चुलुक लगाये।

पेपर वाला  धन्य  कहाये।।

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33- दूधवाला

डब्बा भरके लाय दूधवाला।

घर-घर बाँटे जाय दूधवाला।।

धरे  कसेली, नोई  झूलाये।

नँगत मगन हे गाय दूधवाला।

मटर-मटर मेछेरावय बछरू।

पाँव छाँध ठहराय दूधवाला।।

दिनभर खेत-खार जंगल झाड़ी।

चारा अबड़  चराय दूधवाला।।

कनिहा मा बँसरी, ओढ़े खुमरी।

जय  गोपाल कहाय दूधवाला।।

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34- रिक्शावाला

रिक्शावाला सिधवा सोज।

लेगय हम ला इस्कूल रोज।।

अपन ठौर खच्चित पहुँचाय।

रद्दा भर सुग्घर बतियाय।।

जाँगर पेरय करके काम।

पावय तब महिनत के दाम।।

फुटय पछीना के जब धार।

तभे कमावय पइसा चार।।

आवय-जावय नित इस्कूल।

पछतावय  वो  करके भूल।।

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35- गुल्फी

गरमी  मा  बड़  मन ला भाथे।

खाबे ता जुड़ चिटिक जनाथे।।

रिंगी-चिंगी  रंग  रंगाये।

लइकामन ला पोठ रिझाये।।

पोंप-पोंप  सुन  दउँड़े  आवँँय।

चुहक-चुहक के नँगते खावँय।।

गुरतुर-गुरतुर गुल्फी गुरतुर।

नइ तो लागय एक्को चुरपुर।।

ये सियान लइका ला भाथे।

गरमी  मा सब  गुल्फी  खाथे।।

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36- रेलगाड़ी

चलय रेल हा छुकछुक-छुकछुक।

धुँआ उड़ावय भुकभुक-भुकभुक।।

आगू  इंजन  पाछू  डब्बा।

आ गे टेशन रुकरुक-रुकरुक।।

सरसर-सरसर  भागय  गाड़ी।

देखत मा दिल धुकधुक-धुकधुक।।

पातर-पातर  पटिया  पटरी।

पोटा काँपय पुकपुक-पुकपुक।।

छिन मा छप, छू लंबा गाड़ी।

देखत राहव टुकटुक-टुकटुक।।

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37- रेडियो

जादू के डब्बा लगय रेडियो।

गुरतुर-गुरतुर बजय रेडियो।

गीत भजन कहिनी कविता नाटक।

सुग्घर महफिल कस सजय रेडियो।।

समाचार अउ गोठ गुड़ी के।

रोय कभू ता हँसय रेडियो।।

धर के ले चल अपन संग मा।

आँट पठेरा बसय रेडियो।।

ज्ञान खजाना भरे परे हे।

सबके हितवा लगय रेडियो।।

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38- टी.वी.

घर भर के हे गजब दुलारा टी.वी.।

अब तो बनगे प्रान अधारा टी.वी.।।

घर बइठे ये दुनिया सरी देखाथे।

मनरंजन के सुघर सहारा टी.वी.।।

लइका सियान सबके मन ला भाथे।

बिन तोरे हे कहाँ गुजारा टी.वी.।।

रिंगी-चिंगी फुल फुलवारी लागय।

देखाथे बड़ नीक नजारा टी.वी.।।

खेलकूद, पढ़ई-लिखई अउ जेवन।

नँगत ज्ञान के हे भंडारा टी.वी.।।

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39- हमर स्कूल

कतका बढ़िया हमर स्कूल हे।

साफ  सफाई  सुघर स्कूल  हे।।

रोज बिहनिया पढ़े ल जाथन।

आँखी मा बस डहर स्कूल हे।।

भाव मेटथे जात-पात के।

बरोबरी के खबर स्कूल हे।।

करथन  जुरमिल  खूब पढ़ाई।

आथन अव्वल, असर स्कूल हे।।

पाथन आखर ज्ञान समझ सब।

मंदिर  विद्या  अमर  स्कूल हे।।

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40- हमर गुरूजी

मन ला भाथे हमर गुरूजी।

पाठ  पढ़ाथे  हमर गुरूजी।।

सतवंता गुणवंता बहुँते।

सार बताथे हमर गुरूजी।

कथा कंथली कविता कतको।

गीत  सुनाथे  हमर  गुरूजी।।

पर्यावरण  अंग्रेजी  हिन्दी।

गणित सिखाथे हमर गुरूजी।।

पहिली कहना इँखरे मानन।

देव जनाथे हमर गुरूजी।।

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41- इतवार

हवय आज तो हमर तिहार।

कहिथे  येला  सब  इतवार।।

सुतबो हाथ-गोड़ ला तान।

आवय आँधी  या  तूफान।।

दाई  बस्ता  झन  तैं जोर।

सपना सुग्घर झन तैं टोर।।

अलथी-कलथी मारँव पोठ।

आज करव झन पढ़ई गोठ।।

थके-थके हँव मैं दिन सात।

खावँव खेलँव मनभर घात।।

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42- रौनियाँ जड़काला के

घाम तापलव जड़काला के।

सूरुज  आये  उजियाला के।।

बिहना-बिहना जुड़ जब लागय।

देख   रौनियाँ   तुरते  भागय।।

अँगना  परछी   चौंरा  बइठव।

बात मानलव झन तुम अँइठव।। 

खूब विटामिन हम ला मिलथे।

जड़काला मा तन-मन खिलथे।।

'अमित'  रौनियाँ  हे  सुखदाई।

घाम  ताप  ले,  होय  भलाई।।

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43- गरमी के दिन

गरमी के दिन झंझट लागय।

घर मा खुसरे असकट लागय।।

तात-तात  बाहिर  पुरवाही।

बंद  परे  सब  आवाजाही।।

लकलक-लकलक तिपथे धरती।

अमरइया  मा  गिरथे  गरती।।

गजब  गरेरा, बिकट  बड़ोरा।

संझौती  के   होय  अगोरा।।

टपटप-टपटप चुहय पछीना।

कइसे  कटही  गरम  महीना।।

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44-बिजली बचाओ

बिजली हावय बड़ अनमोल।

हमू  बचाबो  बिजली,  बोल।।

बनय  कोइला  पानी  धार।

थोरिक   हे   एखर  भंडार।।

अणु  परमाणु  होय  बेकार।

एखर  खतरा  हवय  हजार।।

सोच-समझ के बल्ब जलान।

थोक-थोक हम रोज बचान।।

करव बचत अब अपने  ढ़ंग। 

रहय  सदा   खुशहाली  संग।।

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45- हमर भाखा

अपने  भाखा  करलव  गोठ।

हावय   सुग्घर   सबले  पोठ।।

छत्तीसगढ़ी   एखर   नाँव।

बर पीपर कस जुड़हा छाँव।।

छोड़  बिदेशी  बोली  मोह।

अपने  भाखा  राखव चोह।।

लोककला  संस्कृति  उत्थान।

निज  भाखा  ले  होथे  जान।।

छत्तीसगढ़ी  भाखा  बोल।

आगू-पाछू   एखर   डोल।।

महतारी   भाखा   तैं   मान।

एखर महिमा 'अमित' महान।।

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46- हमर भारत देश

जग मा सबले सुग्घर, हावय भारत देश।

रिंगी-रिंगी बोली भाखा, रिंगी-चिंगी भेस।।

 

साधु संत के डेरा बस्ती, ज्ञानीमन के खान।

धन्य-धन्य ये धरती पबरित, कतका करँव बखान।।

मुकुट हिमालय कस साजे हे, गंगा जमुना धार।

पाँव पखारय सागर सगरो, छलकै मया अपार।।

जय जय जय हे जनगणमन के, रंगे सुमता रंग।

हिंदू मुस्लिम सिक्ख ईसाई, रहँय इहाँ सब संग।।

फहर-फहर फहराय तिरंगा, इही असल पहिचान।

सबले बढ़के देश हमर हे, सिरतों एला जान।।

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47- हमर छत्तीसगढ़

जय हो छत्तिसगढ़ महतारी, तोर परत हँव पँइयाँ।

जनम धरें हम तोरे कोरा, तहीं हमर हस मँइयाँ।।

हरियर-हरियर लुगरा पहिरे, धरथच बाली हँसिया।

रूप तोर हा सुग्घर सोहे, हावस तैं मनबसिया।।

फसल खुशी के उपजे सँउहे, धान गहूँ ओन्हारी।

अँचरा भरे कोयला लोहा, चूना पथरा भारी।।

जगा-जगा हे जंगल झाड़ी, नँदिया तरिया डबरी।

भाँठा भर्री कुआँ बावली, बहुते खेती बखरी।।

बड़ उपजाऊँ करिया बलुवा, माटी मुरुम मटासी।

सरग बरोबर ये भुँइयाँ हे, मानव मथुरा कासी।।

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48- तिरंगा झंडा

देश हमर ये  प्रान अधारा।

जनमभूमि ये प्रान पियारा।

तीन रंग के धजा तिरंगा।

फरफर फहरय जइसे गंगा।।

अंतस ले हम माथ नवाबो।

सदा तिरंगा के  गुण गाबो।।

केसरिया हरियर अउ सादा।

देखत भुजबल फरके जादा।।

जी  परान  दे  रक्षा  करबो।

एखर खातिर हाँसत मरबो।।

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49- पेड़ बचाबो

पेड़ लगाबो, पेड़ बचाबो।

बंजर धरती हम हरियाबो।।

देथे हम  ला  जुड़हा  छँइयाँ।

मुच-मुच हाँसय सगरो भुँइयाँ।।

फर फुलुवा अउ गजब दवाई।

करथे  रुखुवा  सदा  भलाई।।

पेड़  प्रदूषण  दूर  भगाथे।

परहित के ये अलख जगाथे।।

पेड़ लगाबो चारों कोती।

पेड़ असल मा हीरा-मोती।।

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50- चिटरा

चिटरा अड़बड़ चतुरा चमकुल ।

हाथ आय मा  नँगते  मुसकुल।।

सरर-सरर चढ़थे रुखराई।

रंग-रूप   बहुते  सुघराई।।

बीजा   फर   तरकारी  खाथे। 

कड़क जिनिस ला मनभर भाथे।।

फुदुक-फुदुक फुदरे अँगना मा।

राम  कृपा  हे  एखर  सँग  मा।।

पीठ  परे  हे  करिया धारी।

महिनत चिटरा के चिन्हारी।।

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51- फुरफुंदी 

लइकन ला भाथे फुरफुंदी।

सादा  लाली  छिटही  बुंदी।।

पकड़े बर लइका ललचाथे।

आगू-पाछू  उरभट जाथे ।।

फूल-फूल  मा  झूमे  रहिथें।

कान-कान मा का इन कहिथें।।

थीर-थार नइ थोकुन बइठे।

अपने-अपन अकतहा अँइठे।।

फरफर-फरफर फुर्र उड़ाये।

चिटिक देंह बड़ जीव लड़ाये।।

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52- चाँटी

करिया भुरुवा लाली चाँटी।

राहय कभू न खाली चाँटी।।

जाँगर पेरँय बहुते जादा।

रथे तभे खुशहाली चाँटी।।

पँउरी छै ठन, रेंगय तुरतुर।

बहुते सुघर सुचाली चाँटी।।

मीठ जिनिस ला नँगते भावय।

करदय चटपट खाली चाँटी।।

देंह  तीन  मोती  के जइसे।

नान्हें  तन  बलशाली चाँटी।।

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53- बोइर

बोइर खावव गुरतुर अमसुर।

विटामीन  ले रहिथे भरपुर।।

रथे गोलवा जी एखर फर।

कच्चा मा ये दिखथे हरियर।।

पाक जथे तब भुरुवा लाली।

लटलट लहसय रुखुवा डाली।।

भरे चिरौंजी भीतर गुठलू।

खाँय फोर के बबली बल्लू।।

कूटपीस के  बनथे  लाटा।

बड़ गुनकारी, नइ हे घाटा।।

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54- परी रानी

कहाँ परी रानी के घर हे!

कहाँ थोरको वोला डर हे!!

तुरते  बिगड़े  बुता  बनाथे।

देखत-देखत छप हो जाथे।।

करिया चुंदी करिया आँखी।

चाँदी जइसन चम-चम पाँखी।।

छड़ी धरे हे जादूवाला।

पहिरे मुकुट मणी गरमाला।।

रतिहाकुन सपना मा आथे।

दुनिया भर मा संग घुमाथे।।

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55-चश्मा

आँखी जेखर हे कमजोर।

करथे चश्मा  के  वो सोर।।

दुरिहा के हा लकठा आय

छोटे हा  बड़का  हो जाय।।

नाक कान तक धाक जमाय।

कभू माथ  तक पाँव लमाय।।

बनथे येहा प्लास्टिक काँच।

घाम ताव नइ आवय आँच।।

पहिरँय पॉवर के अनुसार।

होय नजर तब झक दमदार।।

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56-कलम/पेन

आखर आखर कलम जोरथे।

सच्चाई  के  रंग  घोरथे।।

भले नानकुन येहा दिखथे।

बिना डरे ये सत ला लिखथे।।

सूरुज कस बड़ तेज कलम हे।

चन्दा जइसन  घलो नरम हे।।

अलख शांति के इही जगाथे।

अगिन क्रांति के कलम लगाथे।

देख ताक के कलम चलावव।

जिनगी सिरतों सफल बनावव।।

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57- कापी

सादा-सादा  उज्जर  कापी।

लिख ले अपने मनभर कापी।।

कोरा पन्ना कोरा कागज।

चित्र बनाले सुग्घर कापी।।

चिट्ठी पत्री अरज नेवता।

समय मुताबिक खरखर कापी।।

गीत गजल अउ कविता रच ले।

कथा  कंथली  गुरतुर  कापी।।

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58- देवारी

सुआ गीत ले अँगना द्वार।

देवारी  के  आय  तिहार।।

दीया बारन ओरी-ओर

अँधियारी मा होय अँजोर।।

छुरछुर छुर छुरछुरी जलान।

हाथ जोड़ लक्ष्मी ल नवान।।

खीर बताशा नरियर बाँट।

बैरी हितवा सब ला साँट।।

नवा अंगरक्खा, नव पकवान।

हिलमिल हमन तिहार मनान।।

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59- होरी

फागुन महिना गावँय फाग।

मया पिरित  के  रंगे  राग।।

लाली  परसा  फूले  मेड़।

माते  मँउहा   सेमर  पेड़।।

पिच-पिच पिचकारी ले रंग।

नाचँय गावँय अउ हुडदंग।।

मारँय फुग्गा भर-भर फेंक।

संगी मन ला जबरन छेंक।।

होरी के हे ये पहिचान।

सँघरे लइका संग सियान।।

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60- हाना

अंधेर नगर चौपट राजा।

सस्ती भाजी, सस्ता खाजा।।

कनिहा कँस ले, अपन भरोसा।

खा  ले  डँट  के  तीन  परोसा।।

अपन पुछी ला सब सँहराथे।

दोष  दुसर  के पोठ  गिनाँथे!!

अपन मरे ले सरग दीखथे।

हपट  परे  तब रेंगे सिखथे।।

बाजा बाबू  के  जे  बाजै।

तइ  नोनी  के नाचा साजे।।

करम फूटहा फटहा दोना।

खीर गँवागे  चारों  कोना।।

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61- जनउला-1

1~

बिन बलाय मैं आथँव जाथँव।

फोकट म सुजी घलो लगाथँव।।

साफ  सफाई  जे  नइ  राहय।

वोला   तुरते   रोग  धराथँव।।

2~

दिन मा जाने कहाँ लुकाथे ?

रतिहा  बेरा  नँगत  लुहाथे।

चकमिक चकमिक चकमक अड़बड़,

झट बताव काय कहाथे?

3~

ना मैं अमली, ना मैं आमा,

सरी जगत के मैं हा मामा।

घटती-बढ़ती चलते रहिथे,

आसमान मा हावय धामा।।

4~

रोज बिहनिया लकर-धकर हे।

चलना मोला  बस दिनभर हे।।

संझौती  बुड़ती  म  बसेरा।

मोर  छाँव आगी अलकर हे।।

5~

मोर  रंग  मा  ये  रंगे हे।

सबो  जगा  मा  संगे हे।।

अँधियारी मा दिखय नहीं ये।

'अमित' अँजोरी ये टंगे हे।।

1- मच्छर 2- जोगनी 3- चंदा 4- सूरुज 5- छँइहाँ

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62- जनउला-2

1~

कारी गाय कलिन्दर खाय।

दुहते  रहव  दुहाते  जाय।।

जुच्छा एखर तीर म आँय।

सिगसिग ले भरके घर जाँय।।

2~

करिया घोड़ा भागे जाय।

पाछू घोड़ा लाल कुदाय।।

ऊँच अगासे  बहुते भाय।।

बोलव  संगी  एहर काय।

3~

परे मार ता रोवय तान।

धर देबे ता बंद जबान।।

रँधनी खोली म करय राज।

नाँव बतावव झटपट आज।।

4~

पाँच  परेवा  पाँचों संग।

महल  भीतरी एक्के रंग।।

एक जगा जम्मों सकलाय।

नइ कोनो पहिचाने पाय।।

5~

बगर-बगर के भँइस चराय।

बाँधे  पँडरू  बड़  मोटाय।।

छानी  परवा  चढ़ते  जाय।

कोंवर-कोंवर गजब सुहाय।।

1-कुआँ, 2-आगी के लपटा, 3-बरतन, 4-पान सुपारी, 5-मखना, 

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63- उठव बिहनिया

उठव  बिहनिया संगी मोर।

होवत हावय गजब अँजोर।।

देखव  उगती  सूरुज लाल।

तन-मन हा होथे खुशहाल।।

सब सियान के माथ नवाँव।

करव मुखारी, रगड़ नहाँव।।

मुसकावय अँगना कस फूल।

खच्चित जावव जी इसकूल।।

महिनत के फल पाहव मीठ।

बनव तुमन सब मनखे नीक।।

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64- मिट्ठू

चोंच लाल अउ हरियर पाँखी।

जुगुर-जुगुर बस दिखथे आँखी।।

चुरपुर  मिरचा  बहुते खाथे।

चटर-चटर चटरू बन जाथे।।

उँच  अगास  ये फुर्र उड़ाये।

अपन  अजादी येला भाये।।

खावय आमा जाम जोंधरा।

पीपर  खोर्ड़ा  टीप खोंधरा।।

लालच मा दाना चुग जाथे।

तभे  पिंजरा  बीच धँधाथे।।

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65- मच्छर

रतिहा बेर  कलेचुप आथे।

कान तीर मा गुनगुन गाथे।।

कोन सुते हे कोन ह जागत।

भिथिया बइठे रहिथे ताकत।।

आरो जब थोरिक नइ पावय।

आके तुरते सुजी लगावय।।

छिन-छिन बस खटिया के चक्कर।

मलेरिया के इही ह मच्छर।।

राखव घर मा साफ सफाई।

मच्छर के तब होय बिदाई।।

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66- चिरई

चींव-चींव बड़ करथे चिरई।

उँच अगास फुर्र-फुर्र फिरई।।

मुँह मा भरके लावय चारा।

पिलवा बीच करय बँटवारा।।

इँखर खोंधरा रैन बसेरा।

झेलय पानी हवा गरेरा।।

फुदुक-फुदुक फुतका मा फुदकय।

देख कोंड़हा कनकी कुलकय।।

अँगना मा जब-जब ये आवय।

सबके मन ला नँगते भावय।।

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67- माछी

भनन-भनन भन करथे माछी।

देख   असाद   सँघरथे  माछी।।

साबुन ले नित धोवव हाथ ल।

नइ   ते   पेट   सँचरथे  माछी।।

सरहा  गलहा  जीनिस  छोड़व।

इँखरे   पाछू   परथे  माछी।। 

निर्मल  तन  ला  ये  बिसरावत।

पीप   घाव   ला   धरथे  माछी।।

राखव  साफ  सफाई  सुग्घर।

एखर  ले   बड़  डरथे  माछी।।

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68- कुकुर

कुकुर पोसवा हमरो घर हे।

चोर ल एखर गजबे डर हे।।

बाँचे-खोंचे  पानी-पसिया।

छप्पन भोग असन एखर हे।।

दिनभर  फुरसदहा सुतथे ये।

रतिहाकुन टन्नक अलकर हे।। 

पुछी  हलाथे, मया  जताथे।

रहू   चेतलग   ये   कट्टर  हे।।

जीभ लमाये हँफरत रहिथे।

नींद घलो मा ये खरखर हे।।

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69- मुनु बिलई

म्याऊँ  म्याऊँ  नरियाथे बिलई।

मुसुवा देखत  पनछाथे बिलई।।

रँधनी  खोली  के  राँई-छाँई।।

दूध  दही ला चुप खाथे बिलई।।

ओन्हा-कोन्हा अँधियारी भावय।

कर्री   आँखी  छटकाथे  बिलई।।

भुरुवा  सादा  करिया  कबरी।

पकड़े   धरबे   गुर्राथे  बिलई।।

बघवा के मोसी हरय भले जी।

देख  कुकुर  ला डर्राथे बिलई।।

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70- बेंदरा

जात बेंदरा के होथे जी, अड़बड़ के उतलँगहा।

फुलगी-फुलगी चढ़य तपय जी, जइसे के डँगचगहा।।

खीस-खीस खो-खो खैटाहा, देखत दाँत निपोरै।

करथे ये बहुते नसकानी, छानी परवा फोरै।।

बखरी बारी खेत-खार के, नँगते करँय उजारा।

दल के दल हबरँय रोजे इन, मुसकुल होय गुजारा।।

थोरिक खावँय बहुते फेंकँय, हावँय गजब उपाई।

देख बेंदरा नकल उतारय, करथें बड़ चतुराई।।

जइसे-जइसे जंगल कटथे, छूटय इँखर बसेरा।

दोष हमर हे, गाँव शहर मा, डारँय आ के डेरा।।

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71- भलुवा

करिया-करिया चुंदी वाला।

जंगल के भलुवा मतवाला।।

अपने मन के होवय राजा।

आनी-बानी खावय ताजा।।

भलुवा निच्चट हें लजकुरहा।

बिगडैं तब  बहुते बयसुरहा।।

पकड़ पकड़ के खाथें मछरी।

पानी  उथली  हो  के  गहरी।।

मधुरस खावँय चाँट-चाँट के।

भलुवा भलुवी बाँट-बाँट के।।

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72-  हाथी राजा

पाना  पतई  खावय  हाथी।

सबके मन ला भावय हाथी।।

बड़ सिधवा अउ बलकर भारी।

काल  बनय   बइहावय  हाथी।।

शाकाहारी   एखर   जेवन।

अति कुसियार सुहावय हाथी।।

चार  पाँव  हे  खम्बा  जइसन।

धम-धम आवय जावय हाथी।।

सूपा जइसन कान बडधे हें।

लम्बा  सूँड़  हलावय  हाथी।।

फुतका धुर्रा  मूँड़  म  डारय।

पानी  सींच  नहावय  हाथी।।

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73- उँटवा

देखव  कइसन  होथे  उँटवा।

भारी    बोझा    ढोथे  उँटवा।।

लाम-लाम बड़ पाँव चार हे।

जाने   कइसे   सोथे  उँटवा।।

सरपट  भागय  रेगिस्तान  मा।

रेती   कहाँ   पदोथे   उँटवा।।

सबले  सिधवा  सुघर  पोसवा।

नइ  तो   कभू   बिटोथे  उँटवा।।

लहसत  लहसत  सरलग  रेंगय।

धीरज   धरे    सिखोथे   उँटवा।।

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74- गाय

दूध  दही  घी  लेवना, सेहत  हमर बनाय।

कलजुग के अमरित इही, जेला देथे गाय।।

दाना  पानी  दव सुघर,  दिही  दूध भरपूर।

गोबर  छेना   थापलव, होय गरीबी दूर।।

गउ माता पबरित हवय, कहिथे बेद पुरान।

भाव सहित सेवा जतन, मिलथे सुख वरदान।।

जेखर घर मा गाय हे, लक्ष्मी ओखर तीर।

खानपान  मा  पुष्टई,  देंह  पाँव दलगीर।।

गउ माता बाहिर फिरय, कोरा कुकुर घुमाय।

ये तो बड़ अपराध हे, वोला लगही हाय।।

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75- केरा

झोत्था-झोत्था फरथे केरा।

कोरी-कोरी उतरय घेरा।।

कच्चा फर के साग बना ले।

पक्का ला गुपगुप तैं खा ले।।

बड़ गुदार केरा हा होथे।

बारी बखरी बहुते बोंथे।।

जौन बेर एला तैं खाबे।

गुलूकोस तुरते तैं पाबे।।

हावय येहा बड़ गुणकारी।

खावव केरा रोज संगवारी।।

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76- आमा

महर-महर  ममहावय  आमा।

गरमी ऋतु मा आवय आमा।।

कच्चा  मा  अमसुरहा  अब्बड़।

पक्का गजब  मिठावय आमा।।

गाढ़ा-गाढ़ा   रस   एखर  हे।

अपने  तीर  बलावय आमा।।

का सियान अउ का लइका अब।

सबके  मन  ला  भावय  आमा।।

हे  सुवाद  मा  सबले  बढ़के।

राजा   तभे   कहावय  आमा।।

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77- अमली

लटलट लटके अमसुर अमली।

मनभर खावँय कमला कमली।।

फरथे रुख मा कोकी-कोकी।

नइ  तो आवय खाँसी-खोखी।।

नून   लगाके  खा  ले चट-चट।

कोन्हों ला नइ लागय असकट।।

कोंवर-कोंवर  कुरमा  भाजी।

गुपगुप  खावव   होके राजी।।

अमली   बीजा  तीरी   पासा।

छँइहाँ   बइठे  खेल  तमाशा।।

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78- हमर जेवन

सुघर संतुलित होवय जेवन।

सोंच समझ के करहव सेवन।।...

सेहत सिरतोन असल धन हे।

पोठ  देंह  ता  सुंदर  मन  हे।।

बस सुवाद के चक्कर छोड़व,

डँट के  खाय म हमर मरन हे।।

खाव भले तुम खेवन-खेवन।

सुघर संतुलित होवय जेवन।

सोंच समझ के करहू सेवन।।~1

भाजी-पाला अउ तरकारी।

खावव तन-तन शाकाहारी।।

पताल, मुरई, ककड़ी, खीरा,

राखव  रोजे  अपने  थारी।।

सरी मौसमी फर हम लेवन।

सुघर संतुलित होवय जेवन।

सोंच समझ के करहू सेवन।।~2

दूध दही घी  दलहन  दलिया।

खावव संगी भर-भर मलिया।।

पीयव  आरुग  पानी  पसिया,

पिज्जा  बर्गर  होथे  छलिया।।

शेखी मा  झन  प्राण  ल देवन।

सुघर संतुलित होवय जेवन।

सोंच समझ के करहू सेवन।।~3

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79- हमर तिहार

हरियर-हरियर हे हमर हरेली।

सावन मा ये छावय बरपेली।।

इही महीना मा आवय राखी।

भाई बहिनी के पिरीत साखी।।

भादो म भोजली तीजा-पोरा।

बेटी माई बर गजब अगोरा।।

कुँवार नवराती म भक्ति भारी।

कातिक मा जगर-बगर देवारी।।

पूस म पुन्नी आय छेरछेरा।

माई  कोठी,  धान हेर हेरा।।

फागुन मा रिंगी-चिंगी होरी।

एमा भरथे बड़ मया तिजोरी।।

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80- गीत सुमत के

एकमई यदि रहना हे ता, गीत सुमत के गाये जाव।

जात-पात के टोरव भिथिया, सब ला अपन बनाये जाव।।

आनी-बानी बोली भाखा, अलग-अलग हे सबके भेस।

जनम धरे हम ये भुँइयाँ मा, हमर मयारू भारत देस।।

रिंगी-चिंगी फुलवारी कस, एला सदा सजाये जाव।

एकमई यदि रहना हे ता, गीत सुमत के गाये जाव।।-1

चारो मूँड़ा ले बैरी मन, ताकत हावय हम ला देख।

सावचेत हम रहिके संगी, आरो लेवत रहन सरेख।।

थर्र-थर्र काँपय घरभेदी, अइसन कदम उठाये जाव।

एकमई यदि रहना हे ता, गीत सुमत के गाये जाव।।-2

लालच मा नइ आना हे जी, देवय चाहे कतको माल।

थोरिक पइसा के चक्कर मा, होथे बहुते बिगड़े हाल।।

संका सुभहा टारव मन के, भुसभुस सब मेटाये जाव।

एकमई यदि रहना हे ता, गीत सुमत के गाये जाव।।-3

जात-पात के टोरव भिथिया, सब ला अपन बनाये जाव।

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81- लुहुर-लुहुर लइकामन के

लुहुर-लुहुर लइकामन के।

होय  रूप  ये भगवन के।।

देंह  केंवची  मन  कोंवर।

निर्मल छबि जस दर्पन के।।

गुरतुर-गुरतुर  गोठ गजब।

जइसे  मधुरस मधुबन के।।

घर  अँगना  मा  किलकारी।

चिरई  इन  नील  गगन के।।

गरमी  मा  जुड़  पुरवाही।

सरगबूँद  कस  सावन के।।

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82- मीठ-मीठ बोल

मीठ-मीठ  तैं  सबले बोल।

मया दया के मधुरस घोल।।

चुगरी-चारी चरिहा छोड़।

सुमता के तैं बँधना जोड़।।

राखव सँइता अमित अतेक।

होय गुजारा हमर जतेक।।

अंतस के तैं इरखा लेस।

बोली ले झन पहुँचै ठेस।।

गुरतुर भाखा ओखद जान।

करुहा भाखा लेवय प्रान।।

झन कोनो हम ला उभराय।

अपन कमाई जम्मों खाय।।

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83- शीत

बगरावय रतिहा हा शीत।

गावत गुरतुर-गरतुर गीत।।

चमकै मोती जइसे गोल।

दमकै हीरा कस अनमोल।।

छम-छम नाचय पाना संग।

अजब अनोखा एखर ढ़ंग।।

होत बिहनिया कहाँ लुकाय।

बाँह किरण के शीत समाय।।

मन करथे के राखँव साथ।

लाख जतन पर खाली हाथ।।

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84- डोकरी दाई

हावय एक डोकरी दाई।

दिनभर अपने करय बड़ाई।।

नइ तो मानँय कखरो कहना।

अपन चाल मा चलते रहना।।

साधारण हावय कद काठी।

रेंगय टेंकत-टेंकत लाठी।।

थोरिक उँचहा येहा सुनथे।

चिटिक बेर ले वोला गुनथे।।

बइठे रहिथे भले दुवारी।

घर के करथे ये रखवारी।।

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85- पढ़े ल जाबो

चलव जहुँरिया पढ़े ल जाबो।

पढ़ लिख के हम भाग जगाबो।।

अपने रद्दा अपने गढ़बो।

आगू-आगू सबले बढ़बो।।

पढ़बो-लिखबो बनबो ग्यानी।

करबो जग मा काज सुजानी।।

हमूँ नागरिक बने कहाबो।

सुमता गंगा संग नहाबो।।

हम पढ़बो ता देश ह बढ़ही।

नित विकास के रद्दा गढ़ही।।

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86- वीर सिपाही

देशप्रेम मा जीबो मरबो।

भारत माँ के पीरा हरबो।।

हवय देश के भीतर बैरी।

ओखर छाती ला हम छरबो।।

वीर सिपाही खाथँन किरिया।

अपन देश बर करम ल करबो।।

हमर प्रान हे धजा तिरंगा।

अमित पतंगा कस हम जरबो।।

जनम धरे हन भारत भुँइयाँ।

एखर कोरा मा हम तरबो।।

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कन्हैया साहू 'अमित' ~ भाटापारा छत्तीसगढ
गोठबात ~ 9200252055
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