003- गुरुदेव
जिनगी गुरुवर के बिना, हवय कुलुप अँधियार।
जब होवय गुरु के कृपा, अमित होय उजियार।।
गुरू चरण के चाकरी, भाग्यवान हा पाय।
अंतकाल गुरुवर बिना, धरे माथ पछताय।।
गुरु पारस पखरा सहीं, लोहा कंचन होय।
कुटिल चाल चेला चलै, मुँड़ धर बहुते रोय।।
गुरु बिन जिनगी हे कहाँ, बात समझ नइ आय।
चरण पखारे बिन इहाँ, मुक्ति मार्ग नइ पाय।।
लोभ मोह मा जा फँसे, बिरथा जनम गँवाय।
सुमिरन गुरुवर के करव, बिगड़े भाग्य बनाय।।
पावन तिथि गुरु पूर्णिमा, सादर माथ नवाँव।
आन बिराजौ हे गुरू, महिमा तोरे गाँव।।
गुरुवर भगवन ले बड़े, माँग ज्ञान के भीख।
गुरु पद के कर बंदगी, माथ नवाँके सीख।।
मनखे तन अनमोल हे, गुरु बिन हे का मोल।
भगसागर ले पार जा, सदगुरु अंतस बोल।।
मानव मन हे लालची, फँसथे जग जंजाल।
गुरू चेतलग सारथी, बदलै मन के चाल।।
कहना गुरु के मान ले, गुरु करथे कल्यान।
गुरु सेवा के फल अमित, बनय सुफल वरदान।।
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कन्हैया साहू 'अमित'~भाटापारा छत्तीसगढ
गोठबात~9200252055 - (28/04/21)
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