छत्तीसगढ़ चालीसा
दोहा:-
दाई के अँचरा भरे, ममता मया खदान।
जय छतीसगढ़ नित कहत, करय अमित गुणगान।।
चौपाई:-
जय जय छतीसगढ़ महतारी। महिमा तोरे हावय भारी।।-1
एक नवंबर दिन हे पावन। रंग-रूप हे तोर सुहावन।।-2
एक हाथ मा हँसिया, बाली। दुसर हाथ बाँटत खुशहाली।।-3
सरी अंग मा गहना साजे। दुनिया भर मा डंका बाजे।।-4
कोरवान हे लुगरा हरियर। माथ मउर मन मोहय सुग्घर।।-5
तोरे मुखड़ा मन ला भावय। तोर सहीं कोनो नइ हावय।।-6
करनफूल अउ ककनी, करधन। सूँता, रुपिया पहिरे बनठन।।-7
चुटकी, पैरी, बिछिया, लच्छा। माहुर, टिकली बहुते अच्छा।।-8
ओली तोरे अन, ओन्हारी। भरपुरहा भाजी तरकारी।।-9
खानपान के भरे भंडारा। चटनी-बासी अगम अपारा।।-10
गुरहाचीला,भजिया, हलुआ।
अरसा, पपची, पिड़िया, पकुआ।।-11
लाड़ू, सोंहारी, अंगाकर। रोटी-पीठा इँहचे मनभर।।-12
रिता कभू नइ राहय कोरा। सिरतों सिगसिग धान कटोरा।।-13
गुरमटिया, सफरी सुखसागर। पलटू, लुचई, रानीकाजर।।-14
हाही-माही धनहा, परिया। कुआँ-बावली, नँदिया, तरिया।।-15
माटी बड़ कन्हार, मटासी। खेती कारज, भरय हुलासी।।-16
इंद्रावती, ईब, मनियारी। महानदी, अरपा के धारी।।-17
लीलागर, शिवनाथ, जमुनिया। लहर-लहर लहराय दुगुनिया।।-18
गंगरेल जस लागय गंगा। हसदो, खुड़िया लहर तुरंगा।।-19
पुटका, बंकी अउ किंकारी। कोड़ार, मोंगरा मुखतारी।।-20
ईसर राजा, ठाकुर देवा। ठउर-ठउर महमाया सेवा।।-21
जयति शीतला, जय बगदाई। मेड़ोपार चुरैलिन माई।।-22
सिरपुर, राजिम अउ डोंगरगढ़। भोरमदेव, रतनपुर बढ़-चढ़।।-23
दंतेवाड़ा, शिवरीनारायण। धर्म धाम हे छाहित कण-कण।।-24
जय गिरौध, जय दामाखेड़ा। चारोंकोती सत के बेड़ा।।-25
खैर, चार, तेंदू अउ मँउहा। जिनिस इहाँ सब झँउहा-झँउहा।।-26
तिज तिहार हे कोरी-कोरी। राखी, देवारी अउ होरी।।-27
इहाँ हरेली, जोत जवाँरा। पोरा-तीजा प्राण अधारा।।-28
सुआ, ददरिया, पंथी, करमा। गाँवय-नाँचय सब घर-घर मा।।-29
सैला, सरहुल अउ डंडारी। इँखर हवय अलगे चिन्हारी।।-30
गोंड़, कोरकू, हल्बा, सौंरा। तोर चरण इँखरो घर, चौंरा।।-31
कोल, कँवर, धनवार, अगरिया। रहँय-बसँय इन सब मनफरिया।।-32
कोठा, कोठी, कोठार-बियारा। सरी कुसाली तोर सहारा।।-33
घर, अँगना अउ बखरी-बारी। तोर कृपा ले महल, अटारी।।-34
टिन, बाक्साइट, डोलोमाइट। हीरा, सोना अउ ग्रेफाइट।।-35
छुही, कोयला, चूना, पखरा। छपछप ले छतीसगढ़ अँचरा।।-36
मोर कलम थक जाथे दाई। लिखत-लिखत मा तोर बड़ाई।।-37
जिनगी भर देबे आसीसा। लिखे हवँव तोरे चालीसा।।-38
अमित सरग नइ चाही चोखा। इहें जनम के माढ़य जोखा।।-39
करबे सुख-दुख सरी सरेखा। मोर भाग मा लिख ये लेखा।।-40
दोहा:-
माटी चंदन हे इहाँ, माथा तिलक लगाँव।
विनती अतके हे अमित, जनम इहें मैं पाँव।।
कन्हैया साहू 'अमित'✍️ भाटापारा छत्तीसगढ़
गोठबात 9200252055
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बड़ सुग्घर छत्तीसगढ़ चालीसा में छत्तीसगढ़ महतारी संग इहां के नदिया-तरिया, जंगल- झाडी तीज-तिहार संग सबो पोठ चिन्हारी ल जोरत संहराए के लइक उदीम आदरणीय गुरूजी 🙏🙏 सादर बधाई पठोवत हंव। निश्चित ही अवइया बेरा मा ऐखर बहुते सदुपयोग पढ़इया लइका मन बर ज्ञान के कोठी हे।
जवाब देंहटाएंसहँराय खातिर अंतस ले आभार सर जी।
जवाब देंहटाएंक्या लिखा है सर, 👏👏👏👏
जवाब देंहटाएंशुक्ला जी धन्यवाद....
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