गुरुवार, 6 मई 2021

जानव जनऊला ~ (301-350)

301- एक पेड़ मा एक्के पान।
तीन रंग एखर पहिचान।।
जम्मों देथें येला मान।
रक्षा करथें हमर जवान।।
-तिरंगा झंडा

302- एक महल दू ठन द्वार।
माल भरे हे इहाँ अपार।।
चोरी-हारी नइ तो जाय।
बुड़य गहिर मा तौने पाय।।
-सीपी(मोती)

303- एक चलय चितवा चाल।
दूजा घोड़ा जइसे हाल।।
तिसर चलै जइसे गजपाल।
तभो मिलय आपस मा ताल।।
-घड़ी

304- ना भुँइया मा माढ़ै भार।
ना ऊपर मा रहय सवार।।
कभू करय ये अँधियार।
कभू बरसजय मूसलधार।।
-बादर

305- खोर गली अउ खेत पहाड़।
खड़े रहँव मैं झंड़ा गाड़।।
मोर करम रे जग उजियार।
मोर बिना हे जग अँधियार।।
-बिजली खम्भा

306- एक पेड़ के पाना एक।
फरफर-फरफर लगथे नेक।।
तीन रंग एखर पहिचान।
पाँव पखारत देथन मान।।
-तिरंगा झंडा

307- आँखी हावय एखर तीन।
तभो दिखय नइ, लागय हीन।।
भरे सरोवर भीतर जान।
मेड़ पार हे सादा मान।।
-नरियर

308- रहिथे येह लामी लाम।
फेर साँप नो हे जी नाम।।
आगू-पाछू दूनों जाय।
एक डहर मा जाये आय।।
-रेलगाड़ी

309- खड़े रहँव मैं एक्के पाँव।
खातू माटी मोरे ठाँव।।
सुग्घर सब्जी मोला जान।
सादा छाता जइसे मान।।
-पिहरी

310- बादर गरजय जोरेदार।
नाचय छमछम हो तैयार।।
बरसत पानी अमित लुहाय।
तरपौंरी ला देख लजाय।।
-मंजूर

311- संझा होवत तन थक जाय।
रतिहा रानी नींद बलाय।।
मन बइहा हा कइसे सोय।
पाछू-पाछू एखर होय।।
-सपना

312- पाँखी हे चिरई झन जान।
घूमत रहिथँव मैं मनमान।।
पानी हावय मोर अधार।
बिन पानी के प्रान उजार।।
-मछरी

313- देखव जादू डंडा खेल।
नइ हे भीतर पानी तेल।।
बटन दबादे तुरत अँजोर।
अँधियारी भागय पटटोर।।
-ट्यूबलाइट

314- कारी-कारी हावय रंग।
रहिथँव मैं अमरैया संग।।
गुरतुर बानी मीत बनाँव।
कुहू-कुहू नित गीत सुनाँव।।
-कोइली

315- भुँइया भीतर बाढ़े जाय।
बाहिर मा हरियाली छाय।।
जम्मों भाई कली कहाय।
साग भात के स्वाद बढ़ाय।।
-लसुन

316- पाँखी हे ना कोनो पाँव।
पानी हा हे एखर ठाँव।।
चलते रहना एखर काम।
तुमन बतावव झटपट नाम।।
-डोंगा

317- पाँखी हावय रंग बिरंग।
राहय दिनभर फुलुवा संग।।
तीर तार मा थोरिक आय।
पकड़े धरबे फुर्र उड़ाय।।
-तितली

318- अपन बिला ला बहुते भाय।
घरभर भारी उधम मचाय।।
कुतर-कुतर ये सब ला खाय।
मुनु बिलई ला देख डराय।।
-मुसुवा

319- मोर जनम माटी ले होय।
माटी मा ही जिनगी खोय।।
देशी कूलर महीं कहाँव।
जुड़हा पानी प्यास बुझाँव।।
-करसी

320- हावय अँगना ऊँच पहार।
घर भर जगमग बल्ब हजार।।
दिन मा जम्मों सुते उतान।
रतिहा बाढ़य बहुते शान।।
-अगास अउ चंदैनी

321- जंगल मा झाड़ी घनघोर।
बाढ़य रोजे कोरे-कोर।।
बिन काटे बहुते खजुवाय।
जतके काटव बढ़ते जाय।।
-दाढ़ी

322- काबर कहिथस तोरे मोर।
राखव झन तुम येला जोर।।
बिन एखर नइ होवय काम।
तुरत बतावव एखर नाम।।
-रुपिया,पइसा

323- ना कोनो हे नार बियाँर।
ना कोनो हे कुआँ कछार।।
सुपा-सुपा टूटय भरमार।
भइगे बस घुरुवा मा डार।।
-राख

324- भनभिन-भनभिन गावय राग।
बइठ कलेचुप भाते साग।।
एती-ओती उड़ते जाय।
मनखे बर बीमारी लाय।
-माछी

325- एक चटाई सातो रंग।
राहय बरखा बादर संग।।
कोनो काहय घोड़ा आय।
इन्दर राजा बाण चलाय।।
-इन्द्रधनुष

326- लउठी लागय जइसे बेत।
उपजै बरछा बारी खेत।।
हे गठान लाठी भरमार।
भीतर गुरतुर रस के धार।।
-कुसियार

327- करिया धोती, एक्के पाँव।
जुड़हा मौसम सपटे ठाँव।।
बरखा गरमी मा ये छाय।
छँइहा मा झट सुरताय।।
-छाता

328- बड़े बिहनिया येहा आय।
दुनिया भर मा फूल खिलाय।।
चिरई चहकै शोर मचाय।
कोनो एखर तीर न जाय।।
-सूरुज

329- दिखय सबो ला, कहाँ लुकाय।
रूप बदलथे, सुघर सुहाय।
लइकामन के ममा कहाय ।।
रतिहाकुन सबके घर जाय।।
-चंदा

330- सोज-बाय हावँय चार।
अड़े-खड़े हें दुनों तियार।।
एक-एक मुँह, दू-दू डार।
लकड़ी-डोरी एखर सार।।
-खटिया

331- गोल-गोल मैं घूमत जाँव।
बइठ सकँव नइ एक्के ठाँव।।
दाई कहिथें मोला संसार।
रखँय तभो तरपौंरी पार।।
-धरती

332- उड़थँव पर चिरई झन जान।
मोरो पाँखी बड़ बलवान।।
सरदी-गरमी बरखा आय।
मोर अंग नइ तो घबराय।।
-हवाई जहाज

333- एक अचंभा लाठी आय।
चुहक-चुहक जम्मों जन खाय।।
रासयय संगे दसो गठान।
करदै सबके मीठ जबान।।
-कठई

334- सबके घर मा मोर मकान।
प्यास बुझाथँव सिरतों जान।।
बंद परँव तब अँइठँय कान।
संगी मोला लव पहिचान।।
-नल

335- आगू-पाछू राहन साथ।
तीनों भाई धरके हाथ।।
बंद होय जब हमरो खेल।
पीठ डहर ले डारँय सेल।।
-घड़ी

336- अचरज हावय चिरई एक।
तरिया तीरे राहय टेक।।
चोंच सोनहा बड़ उजियार।
पानी पीयय पूछी डार।।
-दीया अउ बाती

337- जेखर घर मा खुशी मनाय।
मोला बाँधय खूब ठठाय।।
जतके मैं रोवँव चिल्लाँव।
वतके जादा मारे खाँव।।
-ढ़ोलक

338- दू आखर के हावय नाम।
आवँव मैं खाये के काम।।
उल्टा लिखबे बनहूँ नाच।
मोर नाँव का, तुरते बाच।।
-चना

339- भाई-बहिनी जागय भाग।
नो हे ये डोरी दू ताग।।
उल्टा करदे, बनजँव साग।
कचर-कचर खा देवत राग।।
-राखी

340- दू आखर के नाँव सजोर।
बहुते मँहगा काँच कठोर।।
उलट-पुलट दे, रेंगत जाय।
मुँहु मा रखबे, प्रान गँवाय।।
-हीरा

341- उलट लिखे धारा बन जाय।
सोज लिखे ब्रजरानी ताय।।
नाम कृष्ण ले आगू आय।
शरद पूर्णिमा, रास रचाय।।
-राधा

342- शुरू कटै ता जल हो जाय।
कटै बीच ता काल कहाय।।
कटै आखिरी बनथे काज।
आँखी तीर मा करथें राज।।
-काजल

343- दिन भर येहा चलते जाय।
एक पाँव पर उठ नइ पाय।।
बत्तीस वीर हे रखवार।
कोंवर जस रसवंती नार।।
-जीभ

344- पुछी मोर हरियर हे जान।
देंह पाँव सब सादा मान।।
आथँव मैं खाये के काम।
तुरत बतावव का हे नाम।।
-मुरई

345- खंभा जइसे एखर गोड़।
आगू अजगर राखय जोड़।।
पाछू कोती लटकय साँप।
भाँप सकत ता का हे भाँप।।
-हाथी

346- कहिथें अइसे संत सुजान।
बात इही ला सिरतों ज्ञान।।
बाप ददा के एक्के जान।
महतारी के दू ठन मान।।
-गोत

347- बँधे बोकरा बहुते ताय।
मेर-मेर मरहा नरियाय।।
मुँहु कोती ले चारा खाय।
बाखा ले सरलग पगुराय।।
-जाँता

348- ददा टेड़गा, दाई थार।
दिखथे बहिनी सुग्घर सार।।
करिया ओखर फुलगी नाक।
नाँव बता तैं लगा दिमाक।।
-परसा पेड़

349- अइसन रुखुवा जानव कोय।
काटे मा नइ वो उलहोय।।
जुड़े रथे एखर ले तार।
जब तक नइ आये संसार।।
-बोडर्री

350- उरिद कोठरी येला जान।
मूँग देव के गरुवा मान।।
बिना दूध बछरू ल पियाय।
पाछू-पाछू फिरते जाय।
-कुकरी अउ चियाँ
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ भाटापारा छत्तीसगढ़
गोठबात ~ 9200252055 - (06/05/21)

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