गुरुवार, 6 मई 2021

जानव जनऊला ~ (351-400)


351- बिन मुँड़ के राक्षस इँतराय।
गंगा-जमुना लेग सराय।।
चिता चलावय हाड़ा टोर।
बनथे नहना चमड़ा जोर।।
-पटवा

352- लदबद लोदा गोड़ लमाय।
फदफद फोदा बुता कमाय।।
चिक्कन राखय अँगना द्वार।
गोबर पानी फरिया सार।।
-लिपनी

353- बइठे कारी गाय करार।
देखत हे वोला रखवार।।
बिगड़ै कखरो काँही काम।
तुरत बतावव एखर नाम।।
-हँड़िया

354- एक्के दीया हे दमदार।
उगलै घर भूसा भरमार।।
सुघर सोनहा एखर रंग।
पर रहिथे अँधियारी संग।।
-चिमनी

355- बइठे-बइठे बकबक बाढ़।
रदबद गोबर कचरा गाढ़।।
इहाँ-उहाँ आगू मा देख।
का हे येला चिटिक सरेख।।
-घुरुवा

356- चरिहा-चरिहा टूटत जाय।
बीच बजारे झट बेंचाय।।
राहय लामे लमरी नार।
राजा परजा खावँय झार।।
-पान

357- खड़े-खड़े रात पहाय।
दिनभर भुँइया परे बिताय।।
घेंच पाँव मा ये लपटाय।
गरुवा मन हा रहे बँधाय।।
-गेरवा

358- रेंगत-रेंगत धरसा आय।
चिन्हा एको एक न पाय।।
संग रहँय ये लाखों लाख।
खोजे मा गोबर ना राख।।
-चाँटी

359- ठुड़गा रुखुवा मारय शोर।
ऊपर बुड़गा नाचै जोर।।
सगा-सगा ला देवय काट।
करिया लोहा गजब उचाट।।
-टँगिया

360- हवय गोड़ हा मोरो चार।
फेर रेंग मैं सकँव न यार।।
बइठ मोर ऊपर सरकार।
जानव लकड़ी लोहा सार।।
-खुर्सी

361- घर कुरिया के मैं रखवार।
बिना धरे लाठी तलवार।।
रहँव अकेल्ला डेरा डार।
मोर भरोसा अँगना द्वार।।
-तारा, कुची

362- पींयर-पींयर तरिया झार।
पींयर अण्डा देथव गार।।
खावँय येला जम्मों बाँट।
अमसुरहा चटकारा चाँट।।
-कढ़ी

363- आखर हावय मोरे तीन।
रहिथँव मैं हा झिल्ली टीन।।
उल्टा-सीधा एक्के नाम।
आथँव मैं खाये के काम।।
-डालडा

364- सग बहिनी दू झन हे जान।
सादा करिया हे पहिचान।।
रहय संग पर मिल ना पाय।
हवय गोलवा सब ला भाय।।
-आँखी

365- काठ कठोली धरले हाथ।
लोहा टीना हावय माथ।।
मथे मथानी दू झन जाय।
कहाँ लेवना एक्को पाय।।
-आरी

366- आँवर-भाँवर दँउड़े जाँव।
दौंरी फाँदे जइसे ठाँव।।
तीन हाथ मुँहु नइ हे गोड़।
गरमी के मैं हावँव तोड़।।
-पंखा

367- सीधा लिखबे पता बताय।
उल्टा लिखदे ताप बढ़ाय।।
दू आखर के हावय नाँव।
पढ़के पहुँचै पहिली ठाँव।।
-पता

368- फुलुवा नो हँव कली कहाँव।
लुका-छिपी मैं करते जाँव।।
भिथिया मा मैं भागम भाग।
किरवा फाफा भाते साग।।
-छिपकली

369- कहाँ फोकला मोरे पाव।
बिन गुठली के मोला खाव।।
पानी के मैं लइका ताँव।
सोंच-समझ के बोलव नाँव।
-बरफ

370- चाहे जावव चारों धाम।
मोर बिना हे चक्का जाम।।
पानी जइसे मोला मान।
झटपट मोला लव पहिचान।।
-पेट्रोल

371- पीठ परे हे करिया धार।
तुरतुर भागय रुखुवा डार।।
पाछू पूछी झब्बूदार।
रामकृपा हे एखर पार।।
-चिटरा

372- बाँचय बढ़िया वेद पुरान।
जानँय पूजा पाठ विधान।।
जन-जन देंवँय बहुते मान।
पढ़े लिखे मा अघुवा जान।।
-बाम्हन

373- रक्षा खातिर धर हथियार।
वीर सिपाही बनँय हजार।।
छाती बैरी के दँय चीर।
धरम निभावँय हो गंभीर।।
-क्षत्रिय

374- पुरखौती करथें ये बैपार।
संसो घाटा नफा बिसार।।
बैपारी के धरम निभाय।
रुपिया-पइसा नँगत सुहाय।।
-बनिया

375- लेवँय हरदम सत के नाम।
गुरु घासी ला करँय प्रणाम।।
जैतखाम के पूजा सार।
सादा जीवन नेक विचार।।
-सतनामी

376- रहिथें जंगल झाड़ी बीच।
काज करँय ना कोनो नीच।।
हरँय आदिवासी समुदाय।
जिनगी सादा सहज बिताय।।
-गोंड़

377- घानी बइला खूब चलाय।
बीजा फर के तेल बनाय।।
पुरखा पेरँय बेंचय तेल।
दया-मया के करके मेल।।
-तेली

378- हात-हात कहि गाय चराय।
गरुवा पाछू बन मा जाय।।
दूध दुहै अउ पावय मान।
अपने मालिक कहै किसान।।
-राउत

379- मछरी मारँय फेंकँय जाल।
इही बुता मा बड़ खुशहाल।।
नँदिया तरिया के रखवार।
पालँय सुग्घर निज परिवार।।
-केंवट

380- आरुग लत्ता इही बनाय।
माँगा तागा घरे लगाय।।
मान महाजन के इन पाय।
अपन काम मा नाम कमाय।।
-कोष्टा

381- मरे गाय ता चाम उठाय।
पनही नहना इही बनाय।।
रहँय गरीबी हाल बताय।
पढ़े-लिखे मा इन पछुवाय।।
-मोची

382- धोवँय पर के लत्ता लान।
इही बुता हे इँखरे जान।।
छट्ठी बरही बुता कमाय।
मालिक ले इन चिन्हा पाय।।
-धोबी

383- बरतन भाड़ा बेंचय सार।
इही इँखर बर हे बैपार।।
गाँव-गाँव जा करँय दुकान।
संगी येला लव पहिचान।।
-कसेर

384- बारी-बखरी के रखवार।
फूल पान के सेवक सार।।
उपजावैं भाजी अउ साग।
गजरा माला इँखरे भाग।।
-मरार

385- डँगचगहा इन खेल दिखाय।
माँग-जाँच के पेट चलाय।।
साँप बिला मा डारँय हाथ।
एक जघा नइ राहँय साथ।।
-देवार

386- राजा परजा माथ नवाय।
छूरा कैची ले काम चलाय।।
जानय दुनियाभर के बात।
चलव बतावव एखर जात।।
-नाऊ

387- सरी जगत मोला डर्राय।
आखर तीने नाँव बताय।।
पर इच्छा के होथे मान।
कब का पुछही नइ हे भान।।
-परीक्षा

388- बारी बखरी मैं सिरजाँव।
बिना गोड़ के गजब कुदाँव।।
आगू-पाछू गजबे धार।
मोला सिरजावै लोहार।।
-कुदारी

389- करिया उज्जर धरहा अंग।
रहिथँव मैं घर रँधनी संग।।
सब्जी भाछी काट मढ़ाँव।
खड़े धान ला काट गिराँव।।
-हँसिया

390- शुरू कटे ता गुरतुर गान।
कटे बीच ता संत सुजान।।
कटे आखिरी तब हँव यार।
तुरत बता तैं बन हुशियार।।
-संगीत

391- घाट घटौंदा तरिया तार।
होवय चाहे नदी करार।।
पखरा ईंटा रचे दिवार।
जघा एक ये सीढ़ीदार।।
-पचरी

392- ग्वाला हा गर मा लटकाय।
धरे कसेली दुहे ल जाय।।
गरुवा चुन्दी बरै मिलाय।
पाँव छँदावय तभे दुहाय।।
-नोई

393- लइका-छउआ भन्न सुनाय।
नेती डारँय खूब चलाय।।
लकड़ी खीला छोल लगाय।
संगीमन से मेल कराय।।
-भौंरा

394- काँच गोलवा गोली जान।
सस्ता मिलथे सिरतों मान।।
लइका मारय नेम लगाय।
सुग्घर खेलँय दाम पदाय।।
-बाँटी

395- हरियर पींयर फर पहिचान।
पाना घन बड़ नाने नान।।
आवय येहा बहुते काम।
खाव मुरब्बा, जानव नाम।।
-आँवरा

396- बारी बखरी उपजै झार।
कटही रुखुवा होवय सार।।
सादा ललहूँ एखर रंग।
दूध रिसय, अमसुर संग।।
-करौंदा

397- पान कोचई संग लपेट।
सरपट सरपट कढ़ी पहेट।।
चानी-चानी बेसन संग।
अमसुरहा हे खाव मतंग।।
-इड़हर

398- माटी भाँठा के तैयार।
कच्चा माटी साँचा डार।
भट्ठा रचके आगी बार।
लाली पखरा देख हजार।।
-ईंटा

399- भरे कसेली दुध चुरोय।
महतारी हा मया पुरोय।।
धर रपोट सब दही जमाय।
लइका सुतई ले ये खाय।।
-करौनी

400- बीच बियारा धान मिसाय।
खरही खाल्हे पैर बिछाय।।
लउठी मा हुक लोहा सार।
बुता करय बड़ इही कोठार।.
-कलारी
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ भाटापारा छत्तीसगढ़
गोठबात ~ 9200252055 - (06/05/21)

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