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शनिवार, 8 मई 2021

जानव जनऊला ~ (451-500)

451- दूनों कोती रेंगत जाय।
लहू चूहकय मुँह चटकाय।।
तन एखर गुजगुजहा खास।
तरिय डबरी करय निवास।।
-जोंख

452- लाली भुरुवा एखर रंग।
रहिथे खटिया दसना संग।।
लहू चूहकय जेवन पाय।
परजीवी ये जीव कहाय।।
-ढ़ेंकना

453- धरती मा ये हे भगवान।
देवय हम ला जीवनदान।।
नौ महिमा ले बोहय भार।
देवय ममता मया दुलार।।
-महतारी

454- महतारी के जोंड़ीदार।
पोसय पालय घर परिवार।।
जबतक रहिथे एखर संग।
नइ होवय काँही के तंग।।
-बाप

455- बाप ददा के बहिनी जान।
दया-मया के इही खदान।।
बर बिहाव मा पहिली नाम।
नेंग-जोख हा इँखरे काम।।
- फूफु

456- हमर फूफु के राहय संग।
एखर अलगे दिखथे ढ़ंग।।
बर बिहाव मा बहुते मान।
बिकट पदोना कस इंसान।।
-फूफा

457- बाप ददा के भाई जान।
लइकामन के सखा सियान।।
होय दुलरवा घर मा छोट।
सुघर नियत नइ राहै खोट।।
-कका

458- इही कका के जोड़ीदार।
लइकामन ला करय दुलार।।
महतारी के हाथ बँटाय।
बहू छोटकी इही कहाय।।
-काकी

459- अपन बाप के वंश बढ़ाय।
महतारी ले मया गढ़ाय।।
घर के होवय नंबरदार।
अपन ठाँव के राजकुमार।।
-बेटा

460- पढ़े-लिखे मा बड़ हुशियार।
बुता-काम मा तुरत तियार।।
दू कुल के ये मान बढ़ाय।
ददा दुलौरिन नीक कहाय।।
-बेटी

461- पुरखौती ये बात बताय।
नाती पंथी संग सहाय।।
घर के होथे बड़े सियान।
एखर संगत मिलथे ज्ञान।।
-बबा

462- कथा कंथली नँगत सुनाय।
गुनी सियानिन इही कहाय।।
नाती पंथी ला पोटार।
बाँटय अंतस मया अपार।।
-बूढ़ीदाई

463- होवय हमरे बाप समान।
सुग्घर सबके राखय ध्यान।।
जइसे सतजुग राजा राम।
वइसे कलजुग एखर काम।।
-भइया

464- महतारी कस अँचरा जान।
समझै हमला कहाँ बिरान।।
सीता मइया जइसे काम।
एखर कोरा पाँव अराम।।
-भउजी

465- महतारी के जइसे ताय।
दुरिहा रहिके नता निभाय।।
बोल बाबू सारी मोर।
मैं मयारु भाँटो हँव तोर।।
-मोसी

466- मोसी के ये जोड़ीदार।
गजब लुटावै मया दुलार।।
हमर बाप के साढू ताय।
तुरत बतावव कहिथौ काय।।
-मोसा

467- महतारी के भाई आय।
बाबू के सारा कहलाय।।
परथे आके हमरो पाँव।।
रहिथे येहा अपने ठाँव।।
-ममा

468- ममा सुवारी सुघर कहाय।
पाँव परै हमरे पुण्य कमाय।।
लइका एखर कहाँ बिरान।
भाई बहिनी येला जान।।
-मामी

469- होय नता मा येहू खास।
संग ससुर के राहै पास।।
घरवाली के दाई लाग।
मया-दया के घोरय पाग।।
-सास

470- मोर सुवारी के ये बाप।
बाबू संगे खावय खाप।।
लइका नाना कहै पुकार।
नँगत लुटावै मया दुलार।।
-ससुर

471- घरवाली के भाई ताय।
लइकामन के ममा कहाय।।
भाँटो के ये जोंड़ीदार।
कोनो सकय न येला टार।।
-सारा

472- गोसईन के बहिनी जान।
आधा घरवाली तैं मान।।
भाँटो खातिर मया अपार।
एखर बिन सुन्ना ससुरार।।
-सारी

473- रहिथे बादर के ओ पार।
सूरुज चंदा के घर द्वार।।
दिखथे नीला-नीला रंग।
लगथे जइसे हावय संग।।
-अगास

474- जम्मों प्रानी करँय निवास।
सौर जगत मा सबले खास।।
पुरवाही पानी भरमार।
महतारी कहि करन दुलार।।
-धरती

475- लकलक-लकलक बरते जाय।
लाली करिया लपट उठाय।।
एखर ताकत सबो डराय।
जेला पावय राख बनाय।।
-आगी

476- जिनगी खातिर अमरित मान।
जीव जगत के बाँचय प्रान।।
गैस बरफ येहा बन जाय।
ऊपर ले खाल्हे बोहाय।।
-पानी

477- धरती के ये संग सहाय।
ढेला फुतका जघा कहाय।।
दुनिया भर ला ये उपजाय।
आखिर अपने संग मिलाय।।
-माटी

478- माटी के ये होथे अंग।
मइलाहा भुरुवा हे रंग।।
पौधा पोषक नँगते पाय।।
रेती चिक्कन संग समाय।।
-मटासी

479- सबसे जादा ये दिख जाय।
पानी सोंखय उपज बढ़ाय।।
गहूँ चना कपसा ला भाय।
माटी करिया इही कहाय।।
-कन्हार

480- खन के भुँइया येला पाव।
सादा-सादा रंग सुभाव।।
आय लिपे के येहा काम।
संगी बोलव एखर नाम।।
-छुही

481- एखर होथे बड़े खदान।
सादा पखरा येला जान।।
लिपना खाना दवा बनाय।
पानी डबकै हाथ जलाय।।
-चूना

482- माटी ललहूँ येला जान।
फसल उपज कमती तैं मान।।
गोंटी जइसे बड़ दलगीर।
बनै ठोसलग भवन कुटीर।।
-मुरुम

483- खेत खार के उपजै मेड़।
नान्हें लमरी होथे पेड़।।
फर भीतर दाना छै चार।
खा ले औंधी बटकर दार।।
-राहेर

484- खेत उतेरा बीज छिंचाय।
लुसलुस भाजी मन ला भाय।।
फल्ली बटकर गजब मिठाय।
एखर सुकसा सुघर सुहाय।।
-तिंवरा

485- रबी फसल के मान बढ़ाय।
सबो दार के राजा ताय।।
भाजी होरा एखर खान।
होय गुलाबी खैरी जान।।
-चना

486- पिस पिसान मनखे खाय।
रोटी एखर बड़ पोवाय।।
बाली भुरुवा मेछा सार।
चारा बनथे पाना डार।।
-गहूँ

487- हवय दार अति गुणकार।
नान्हें पौधा लामे नार।।
हरियर खातू इही कहाय।
बरी बरा सब एखर खाय।।
-उरिद

488- चिटिक समय ये फर जाय।
एखर फल्ली साग सुहाय।।
दार मुँगेड़ी गजब मिठाय।
जरई आये बीज खवाय।।
-मूँग

489- सब कहिथें ये लाली दार।
खतम करे ये पेट विकार।।
धनिया पाना जइसे पान।
बनै मिठाई, झट पहिचान।।
-मसूर

490- कहिथे येला खरपतवार।
हरय गरिबहामन के दार।।
बीज चेपटी करिया रंग।
मिलय गहूँ के येहर संग।
-अँकरी

491- करिया-करिया एखर पान।
भात गरिबहा के ये जान।
सुगर दवा ये गजब कमाल।
चाब पान होथे मुँहु लाल।।
-कोदो

492- नान्हें-नान्हें दाना जान।
दार सस्तिहा येला मान।।
कोनो ना येला उपजाय।
गरुवामन ला घलो खवाय।।
-जिल्लो

493- हरियर घर मा हरियर माल।
बटकर जइसे साग कमाल।।
सुक्खा मा ये बनथे दार।
कच्चा मा हे चरबन सार।।
-बटुरा

494- चाहे चपड़ा कहि दे यार।
होवय कीरा रुख के सार।।
चूरी खेलौना सिरजाय।
टूटे-फूटे ला चटकाय।।
-लाख

495- हरियर सोना इही कहाय।
पाना के बीड़ी लपटाय।।
वनवासी मा लेवँय टोर।
पइसा पावँय राखय जोर।।
-तेंदू पान

496- छोटे बोंइर इही कहाय।
अम्मट गुरतुर नीक सुहाय।।
जंगल के हे ये फर खास।
गरमी मा तन भरय हुलास।।
-चार

497- खास पेड़ ले रस चुचुवाय।
चिपरा जइसे डार छबाय।।
चिपचिपहा ये जिनिस कहाय।
भुरुवा सादा ये चटकाय।।
-लासा

498- चिपचिपहा पर गजब मिठास।
ये मछेर के बहुते खास।।
फुलुवामन के रस सकलाय।
संगी बोलव काय कहाय।।
-मधुरस

499- लइकामन हा लाय सकेल।
हाथ-गोड़ मा पहिरै खेल।।
करिया बीजा सादा खोल।
नून-तेल एखर हे मोल।।
-बंभरी बीजा

500- पोनी के फर येला जान।
नान्हें पौधा तैं पहचान।।
मुसुवा लेड़ी बीजा होय।
करिया माटी येला बोय।।
-कपसा
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कन्हैया साहू 'अमित'~9200252055..©®

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