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बुधवार, 26 मई 2021

जानव जनऊला ~ (851-900)

851- देंह दुसर के चिपकत जाय।
लहू-रकत पर के बड़ भाय।।
एखर हाड़ा ना हे गोड़।
दुनों मुँड़ा चलथे बेजोड़।।
-जोंकवा

852- खाल्हे ऊपर चपकन ताय।
बीच करेजा धड़के जाय।।
दू अँगरी ला सबो फँसाय।
धीरे-धीरे तब सरकाय।।
-कैंची

853- माटी के काया सिरजाय।
लावा-धक्का सहि नइ पाय।।
कच्चा मा कोनो नइ भाय।
पक्का सबके प्यास बुताय।।
-मरकी/गगरी

854- लागय लाड़ू मोती चूर।
रहै नशा येमा भरपूर।।
खवईया जावय पगलाय।
डमरूधर ला बहुते भाय।।
-धतूरा

855- चार पाँव पर रेंग न पाय।
सभा सदन मा मान कमाय।।
एखर खातिर लड़ मर जाय।
काय नाँव हे कोन बताय।।
-खुर्सी

856- कनिहा मा धोती लटकाय।
एखर मुँड़ आगी लग जाय।।
बीच सभा मा धुआँ उड़ाय।
एखर संगत मन भकवाय।।
-चिलम

857- मन के भीतर रहि नइ पाय।
ध्यान घलो ना एती जाय।।
गरु नइ हे राई भर जान।
दू मनखे ले उठथे मान।।
-बड़ाई

858- रहौं सदा मा तीरे तार।
भीतर बाहिर सबले सार।।
मोला कोनो देख न पाय।
मोर बिना सब प्रान गँवाय।।
-हवा

859- एक अचंभा देखे जाय।
लटके खूँटी समय पहाय।।
बाबू ला जब घाम जनाय।
माथा ऊपर दय बइठाय।।
-टोपी

860- फरे पेड़ मा पखरा मान।
होय ठोसलग बहुते जान।।
भीतर तरिया सादा पार।
फूट जाय ता निकलै धार।।
-नरियर

861- रज्जू राखे चिरई पोस।
उड़ जावय ते कतको कोस।।
घेंच बँधे डोरी हे जान।
खींच ढ़ील ले भरय उड़ान।।
-पतंग

862- पइसा बिन ये दाउ कहाय।
अपन संपत्ति आग लगाय।।
अपने घर भीतर सुत जाय।
होत बिहनिया बुता कमाय।।
-कुम्हार

863- तन भुरुवा मा धारी तीन।
खावै दाना हाथे बीन।।
रुआ भरे पूछी लहराय।
नान्हें हे पर हाथ न आय।।
-चिटरा

864- आ के करथे ये हलकान।
जावत बेरा मा नुकसान।।
होय छोट तब्भो बेकार।
हरै काय ये करौ विचार।।
-आँखी के रोग

865- खम्भा जइसे ठाड़े जान।
थाँगा के नइ नाँव निसान।।
फेंक फोकला फर ला खाव।
गुठलु बीजा नइ तो पाव।।
-केरा

866- भरे दूध ले गगरी चार।
बिना तोपना उल्टा यार।।
टिटटिप येहा लटके जाय।
बछरू पीयय मुँह ल लगाय।।
-थन

867- बरसा गरमी जनमे जान।
जाड़ा कमती येला मान।।
बइठ कहूँ ये जेवन जाय।
फेर न कोनो वोला खाय।।
-माछी

868- आँखी आगू बुता बजाय।
आँख बंद, माड़ा मा जाय।।
दाना-पानी कुछु ना पाय।।
अँधियारी मा काम न आय।।
-चश्मा

869- ये पंछी हे गजब सुजान।
बोली हरदम मीठ जबान।।
करिया पाँखी लाली चोंच।
कुहू-कुहू करथे, तैं सोंच।।
-कोइली

870- बिना पाँव के पहुँचे जाय।
बिन मुँहुँ के सब हाल सुनाय।।
कोनो ला ये दय रोवाय।
कभू-कभू ये बने हँसाय।।
-चिट्ठी

871- सादा काया सुग्घर जान।
मूँड़ जटा पोथी पहिचान।।
योगी भोगी ना सुल्तान।
पंड़ित ज्ञानी झन तैं मान।।
-लहसुन

872- चालिस झन के येहा यार।
झीटी सुख्खा तन हा सार।।
राहय ये हा परदा डार।।
गाँव शहर बहुते लगवार।।
-चिलम

873- मोर मया हे ऊँच अगास
कइसे जावँव ओखर पास।।
मनखे बैरी पकड़ै जाय।
मोर मया मोला छोंड़ाय।।
-परेवा खोंधरा

874- काज करै अचरज इक नार।
मार साँप तरिया दै डार।।
धीर लगा तरिया ह सुखाय।
साँप घलो मर के चितियाय।।
-दीया, बाती

875- जम्मों गुदड़ी जल मा जाय।
जलै एक नइ सुँतरी पाय।।
पानी के सब जीव धराय।
जल मोरी ले निकल बोहाय।।
-मछरी जाली

876- बिन कपड़ा के देखव नार।
होय खड़ा ये बीच बजार।।
नाक म नथनी सजे सजाय।
छै नाड़ा राहय लटकाय।।
-तराजू

877- लचकै कनिहा बड़ मटकाय।
लोहा कारी नार कहाय।।
अनगिनती के धरहा दाँत।
खावय लकड़ी फाटा घात।।
-आरी

878- एक पेड़ करुहा हे नाम।
डार पान फर बीजा काम।।
बनै दवाई खातू तेल।
घन छँइहा मा खेलँय खेल।।
-लीम

879- गोरी नारी शोभा गाल।
करिया रंगे करै कमाल।।
खेत खार मा सादा फूल।
सुरता राखौ जाव न भूल।।
-तिली

880- धक-धक धड़के ये दिन रात।
बुता काम करथे लगिहात।।
रहिथे ये हा डेरी पार।
बंद परय जिनगी बेकार।।
-दिल

881- देंह केंवची ये हा पाय।
खटिया दसना म लुकाय।।
दिन मा ये सपटे रहि जाय।
लहू पियासे रतिहा आय।।
-ढे़कना

882-  सुग्घर मंदिर दसठन द्वार।
प्राण बिराजे बन रखवार।।
भीतर के पट खोल उड़ाय।
जब हरि से मिलना पर जाय।।
-मनखे देंह

883- नारी हावय एक सचेत।
प्रेमी ला ये करय अचेत।।
एखर जे फाँदा फँस जाय।
धन दोगानी मान गँवाय।।
-मंद/दारु

884- घेरा वाला लहँगा डार।
एक पाँव मा ठाड़े नार।।
हाथ आठ एखर हे जान।
रिंगी-चिंगी मुखड़ा मान।।
-छतरी

885- राहँय सँघरा ये दू यार।
करत चलैं खटपट तकरार।।
दूनों मिल एक्के हो जाय।
घर रखवारी इही बढ़ाय।।
-कपाट

886- लइकामन के मया दुलार।
लटकै ये परछी परसार।।
रोवत लइका चुप हो जाय।
येमा देवय जब बइठाय।।
-झूलना

887- गरमी मा सुख ये पहुँचाय।
सरदी मा ये बड़ डरवाय।।
बिना पाँख के चलते जाय।
अपन जघा ले रेंग न पाय।।
-पंखा

888- चन्दा जइसे गोल अकार।
जेवन संग म रखँय सँघार।।
महतारी हा मोला पोंय।
खावैं जम्मों बड़ खुश होंय।।
-रोटी

889- एक नाँव के दू फर जान।
अलग-अलग एखर पहिचान।।
खेत म उपजै जम्मों खाय।
घर मा उपजै, घर ढह जाय।।
-फुट

890- कटै आखिरी बनथे काम।
बीच कटै लेगय यम धाम।।
कटै शुरू ता प्राण बचाय।
पूरा आँखी कोर रचाय।।
-काजल

891- चन्दा जइसे चाकर गोल।
पान बरोबर पातर झोल।।
जेवन के बेरा मा आय।
सबले पहिली मारे जाय।।
-पापड़

892- छोट-छोट डबिया डिबडाब।
दिनभर उघरे, रतिहा दाब।।
मूँगा मोती झरथे खूब।
एखर भीतर जाथें डूब।।
-आँखी

893- मार परै जिन्दा हो जाय।
बिन मारे ये जी नइ पाय।।
पाँव बिना दुनिया घुम आय।
आवय-जावय घेंच टँगाय।।
-ढ़ोलक

894- रहै संग मा ये दिनरात।
कोनो नइ तो कभू अघात।।
एखर बिन तो निकलै प्राण।
करै सुतत जागत कल्याण।।
-पवन/हवा

895- रहै रात भर संगे जाग।
होत बिहनिया जावै भाग।।
छोड़ जाय लागै अँधियार।
इही अमित के प्राण अधार।।
-दीया

896- द्वार-द्वार मा अलख जगाय।
देंह भभूती फिरय लगाय।।
फूँकत सींगी चलते जाय।
तन पीतांबर जटा बढ़ाय।।
-सन्यासी

897- उछलकूद ये गजब मचाय।
कच्चा-पक्का सब ला खाय।।
रुखुवा ऊपर रात बिताय।
पुछी लाम हे, कोन बताय।।
-बेंदरा

898- नो हे कखरो ये हा जीत।
चिन्हा दे हे मोला मीत।।
दिनभर ये छाती पोटार।
तीर मा राखँव रात उतार।।
-हार

899- नो हे नारी तभो लजाय।
हाथ लगे ले झट सकलाय।।
नान्हें रुखुवा बहुते पान।
लजकुरहा हे अब पहिचान।।
-छुईमुई/लजवंतीन

900- एक गाँव मा अचरज होय।
ऊपर रुख फर खाल्हे सोय।।
रंग कोकड़ा मिट्ठू मान।
का हे संगी जल्दी जान।।
-मुरई
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ 9200252055...©®

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