हमर गुरूजी
पायलगी पहिली अमित, अपन गुरूजी पाँव।
इँखर पढ़ाये ज्ञान ले, पाये हँव जुड़ छाँव।।
रुखराई फर बाँटथे, नँदिया बाँटय नीर।
गुरुजी बाँटय ज्ञान ला, होके बड़ गंभीर।।
डहर बताते सोज जी, गुरुजी दीप समान।
मन अँधियारी मेटथे, देके आखर ज्ञान।।
मातु पिता देथे जनम, गुरुजी देथे ज्ञान।
पढ़ना-लिखना ले अपन, पाथन हम सम्मान।।
गुरुजी गढ़थे शिष्य ला, जइसे एक कुम्हार।
अँधियारी मन मा भरय, जगमग जग उजियार।।
बिन गुरुजी के कोन हा, बनथे इहाँ महान।
बिना सुवारथ ये अमित, लागय देव समान।।
पढ़ई-लिखई काज मा, गुरुजी देथे साथ।
इँखर सिखोना ले अमित, रहिथे उँचहा माथ।।
पहिली गुरुजी ला अपन, जिनगी कोन भुलाय।
जब देखय जौने जघा, तुरते माथ नवाय।।
गुरुजी के आशीष ले, बिगड़े भाग्य सँवार।
जिनगी के सुख चैन हा, गुरु के मान उधार।।
सबले बड़के हे गुरू, अमित इही भगवान।
इँखर बताये बात हा, आज बने वरदान।।
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ भाटापारा छत्तीसगढ़
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