पर्यावरण (दोहा गीतिका)
रुख राई झन काटहू, रुख धरती सिंगार।
पर हितवा ये दानियाँ, देथें खुशी अपार।।
हरहिंछा हरियर गजब, हिरदे होय हुलास।
बिन हरियाली फोकला, धरती बंद बजार।।
रुखुवा फुरहुर जुड़ हवा, तन मन भरय उजास।
फुलुवा फर हर बीज मा, सेहत हवय हजार।।
डारा पाना पेंड़ के, करथें जीव निवास।
कखरो कुरिया खोंधरा, झन तैं कभू उजार।।
धरती सेवा ले अमित, सेउक हो सुखदास।
खूब खजाना हे भरे, बन जा मालगुजार।।
रुखराई के होय ले, पानी बड़ चउमास।
जंगल झाड़ी काटबो, सँचरहि तहाँ अजार।।
सिरमिट गिट्टी रेत ले, बिक्कट होय बिकास।
पुरवाही पानी जहर, तब मुसकुल निस्तार।।
घर के कचरा टार के, करदव दुरिहा नास।
गोबर खातू डार के, खेत करव गुलजार।।
पूरा पानी हा करय, बहुँते 'अमित' विनास।
बस्ती के बस्ती बुड़ै, मरघट होय मजार।।
सावचेत सेवा करन, धरती सरग निवास।
सुग्घर सिधवा सब बनौ, काबर 'अमित' बिजार।।
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ गोठबात 9200252055
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