शिवरीनारायण
महानदी के संग मा, मिलै जोंक शिवनाथ।
नर नारायण देवता, सदा नवावौं माथ।।
सँवरा-सँवरी भक्त के, राखिन प्रभु हा लाज।
शिवरीनारायण कहैं, जेला जन-जन आज।।
नारायण मंदिर बने, शिल्पकला मन भाय।
भव्य द्वारशाखा बने, मुरती फभित बढ़ाय।।
कुंड रोहिणी हा बने, ये मंदिर के बीच।
पानी टिपटिप ले भरे, होय न एको कीच।।
चरण कमल प्रभु राम के, इही कुंड धोराय।
एखर सेती कुंड जल, अक्षय जल कहलाय।।
मंदिर बड़ सुग्घर हवै, कलशा ऊँच मढ़ाय।
बारिक नक्काशी अमित, अंतस बहुते भाय।।
बहुत अकन मंदिर इहाँ, होय हवै निर्माण।
भक्ति भाव पूजा दरश, जन-जन के कल्याण।।
जगन्नाथ मंदिर बने, मुखिया मंदिर तीर।
रथदुतिया मा रथ खिंचे, हो के भक्त अधीर।।
मंदिर अँगना पेड़ बर, पाना अजब अकार।
दोना जइसे ये दिखथे, शबरी भक्ति अपार।।
माँघी पुन्नी मा इहाँ, मेला लगथे खास।
भक्त आँय सरधा सहित, पूरन होवय आस।।
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ भाटापारा छत्तीसगढ़
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