सावन भादो घात
बिजली चमकै जोर ले, सावन भादो घात।
बरसै बरसा झूम के, झड़ी करय दिनरात।।
झड़ी करय दिनरात तब, हरियर खेती खार।
रदरद-रदरद पानी गिरै, अमरित अमित अपार।।
अमरित अमित अपार हे, जीव जगत के सार।
बिन बरसा बस बुजबुजा, धरती बिकट बँबार।।
धरती बिकट बँबार ले, जरै जीव के खेल।
मुचमुच हाँसय जीवमन, गिरथे पानी पेल।।
गिरथे पानी पेल ता, सबके मन हरसाय।
तरिया नरवा नल कुआँ, बइहा बन बउराय।।
बइहा बन बउराय सब, तन-मन होय मँजूर।
आये ले चउमास के, भागय आलस दूर।।
भागय आलस दूर जी, होवँय सबो सचेत।
मुँहीं टार ला बाँधथें, खेती खुर्रा खेत।।
खेती खुर्रा खेत मा, खुरपी खुरमी खास।
खपगे खुरहट खोचका , खलबल ले चउमास।।
खलबल ले चउमास हे, बरसत खुशी बरात।
चहकय चिरई चिंगरी, सावन भादो घात।।
सावन भादो ले जुड़े, सरी जगत के काज।
हाथ जोड़ विनती अमित, कभू गिरय झन गाज।।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~कन्हैया साहू 'अमित' ~ भाटापारा छत्तीसगढ
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