महतारी भाखा ~ दुलरवा दोहालरी
अपने भाखा मा करव, अपन हृदय के गोठ।
निज भाखा ले बाढ़ही, आन-बान हा पोठ।।
अपने भाखा के बिना, सबल न कोई होय।
लाख उदिम करले अमित, भला करय नइ कोय।।
निज भाखा उन्नति बसै, सिरतों कहना मान।
अपने भाखा ज्ञान बिन, देंह समझ बिन प्रान।।
महतारी भाखा अमित, होथे ब्रम्ह समान।
छोड़ बिदेशी मोह ला, एखर कर सम्मान।
अपने भाखा बोल मा, का के हावय लाज।
निज बोली भाखा अमित, बने बनावय काज।।
देख बिदेशी ढंग के, धरे सबो ला रोग।
अपन पाँव टँगिया परै, बाढ़य मूरख सोग।।
लोककला संस्कृति अमित, निज भाखा ले बाढ़।
जतके बउरे जाय जब, वतके होवय गाढ़।।
महतारी भाखा हमर, पावय मया दुलार।
छत्तिसगढ़ी भाखा अमित, पहिली पाँव पखार।।
भाखा दरजा देव के, सँउहे हे भगवान।
करही जे सेवा जतन, ओखर हे कल्यान।।
अंतस ले अंतस जुड़य, होवय मन के बात।
भाखा प्रगटे भाव निज, कोनो कहाँ लुकात।।
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कन्हैया साहू 'अमित'~भाटापारा छत्तीसगढ
गोठबात ~ 9200252055 - (27/04/21)
अपने भाखा मा करव, अपन हृदय के गोठ।
निज भाखा ले बाढ़ही, आन-बान हा पोठ।।
अपने भाखा के बिना, सबल न कोई होय।
लाख उदिम करले अमित, भला करय नइ कोय।।
निज भाखा उन्नति बसै, सिरतों कहना मान।
अपने भाखा ज्ञान बिन, देंह समझ बिन प्रान।।
महतारी भाखा अमित, होथे ब्रम्ह समान।
छोड़ बिदेशी मोह ला, एखर कर सम्मान।
अपने भाखा बोल मा, का के हावय लाज।
निज बोली भाखा अमित, बने बनावय काज।।
देख बिदेशी ढंग के, धरे सबो ला रोग।
अपन पाँव टँगिया परै, बाढ़य मूरख सोग।।
लोककला संस्कृति अमित, निज भाखा ले बाढ़।
जतके बउरे जाय जब, वतके होवय गाढ़।।
महतारी भाखा हमर, पावय मया दुलार।
छत्तिसगढ़ी भाखा अमित, पहिली पाँव पखार।।
भाखा दरजा देव के, सँउहे हे भगवान।
करही जे सेवा जतन, ओखर हे कल्यान।।
अंतस ले अंतस जुड़य, होवय मन के बात।
भाखा प्रगटे भाव निज, कोनो कहाँ लुकात।।
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कन्हैया साहू 'अमित'~भाटापारा छत्तीसगढ
गोठबात ~ 9200252055 - (27/04/21)
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