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रविवार, 30 मई 2021

जानव जनऊला ~ (901-950)

901- तीन वर्ण ये सब ला भाय।
बीच कटै ता फर बन जाय।।
शुरू कटै प्रभु नाम कहाय।
कटै अंत ता चीर मढ़ाय।।
-आराम

902- फर अइसने के आँख मुँदाय।
फोरे मा अंड़ा मन भाय।।
ये अंडा ला जौने खाय।
तन-मन अपने पोठ बनाय।।
-बादाम

903- एक जघा ना ये टिक पाय।
रूप मनोहर जग भर छाय।।
मानुसमन येमा हे खोय।
दीन-हीन एखर बिन होय।।
-रुपिया, पइसा

904- इक नारी के छै औलाद।
दू-दू झन ला करथे याद।।
छै झन ला ये संग बलाय।
सँघरा येमन कभू न आय।।
-मौसम

905- दू आखर के हावय नाम।
हाड़ा भीतर एखर धाम।।
नाड़ी ले ये आवव जाय।
कोनो बिरथा नहीं गँवाय।
-लहू

906- तीन वर्ण के हावय नाम।
आवय येहा सबके काम।।
रहै देंह ले ये लपटाय।
इज्जत हमरे इही बचाय।।
-कपड़ा

907- हाड़ माँस तन नइ हे जान।
हाथ-पाँव बिन लमरी मान।।
राहय ये हा जेखर हाथ।
सुख-दुख मा ये देवय साथ।।
-लाठी

908- अपने मुख ला देखे जाय।
देख-देख मन मा मुस्काय।।
एखर आगू सकल समाज।
शोभा बाढ़य करके साज।।
-आईना
909- सोन सहीं चमकै ये खास
रहिथे येहा ऊँच अगास।।
करै कभू नइ ये कल्याण।
धमकावत ये हर लै प्राण।।
-गाज

910- बाग बगीचा महल अटार।
मंदिर मस्जिद अउ गुरुद्वार।।
छानी परवा, रुख लपटाय।
चढ़के नँगते ये मुस्काय।।
-नार/बियाँर

911- मेछा दाढ़ी पहिली आय।
पाछू लइका जनमे पाय।।
बाढ़य लइका, कहाँ दुलार।
काहँय लत्ता सबो उतार।।
भुट्टा

912- पर्वत ऊपर रथ ल चलाय।
भुँइया मा राखय टेकाय।।
वायु वेग एखर रफ्तार।
एक पाँव ना उसलै यार।।
-कुम्हार के चाक

913- पानी मा ही समय बिताय।
कोव-कोव ये बड़ चिल्लाय।।
मछरी मेढ़क नो हे साँप।
थोरिक उड़थे, लेवव भाँप।।
-पनबुड़ी

914- जंगल म कटै, होय तियार।
उपजै बाढ़य जाय बिसार।।
जिनगी पानी बीच बिताय।
बुड़ै मरै ना ये बोहाय।।
-डोंगा

915- अचरज नारी हावय एक।
बहुते ओखर बुद्धि विवेक।।
पढ़े-लिखे ना एक्को आय।
जियत-मरत ला तुरत बताय।।
-नाड़ी

916- एक गाँव हे बहुते खास।
एक महल मा एक निवास।।
पहिरै पींयर सबझन जान।
नर नारी नइ हे पहचान।।
-ततैया छाता

917- लोहा के नान्हें औजार।
एक आँख एखर हे सार।।
जेखर तीर म येहा जाय।
बिछड़ेमन के मिलन कराय।।
-सुजी

918- एक आदमी देंह म गाँठ।
लामी-लामा तन हा टाँठ।।
भारी गुरतुर एखर स्वाद।
चीनी गुड़ एखर औलाद।।
-कुसियार

919- दू आखर के हावय नाम।
शुरू कटै ता मइला काम।।
कटै बीच दूसर दिन जान।
कटै आखिरी थोरिक मान।।
-कमल

920- एक आदमी चाम न माँस।
धीर रास के चलथे साँस।।
हाड़-हाड़ एखर छेदाय।
बोली सुन के जग मोहाय।।
-बँसरी

921- पिड़वा बइठे रानी एक
मुँड़ मा आगी धरे कतेक।।
तन मा पानी रहै बोहाय।
बार-बार मुँड़ काटे जाय।।
-मोमबत्ती

922- एक गोड़ अउ कान ह चार।
अद्भुत अइसन हावय नार।।
तामस बहुते हवै मिजाज।
कारी हे पर आवय काज।।
-हींग

923- खात-खात मुँहुँ हा जर जाय।
हरियर लाली फर ये आय।।
दिखे म नान्हें मन ला भाय।
बड़े-बड़े ला झट रोवाय।
-मिरचा

924- साहब खाना येमा खाय।
कुआँ गिरे बाल्टी निकलाय।।
रुखराई मा होथे जान।
कभू-कभू दुख देथे मान।।
-काँटा

925- रहै शान्त, बहुते चुपचाप।
पानी राहय जुड़ टिपटाप।।
पियै बटोही, मिटै पियास।
लोटा धरे न एक गिलास।।
-कुआँ

926- दुब्बर पातर झन तैं जान।
गजब हरै ये गुण के खान।।
करिया मुँहुँ ला उज्जर मान।
संगत एखर करय सुजान।।
-कलम

927- करिया-करिया एखर रंग।
रहिथे डारा-पाना संग।।
खाबे तब ये जीभ रचाय।
गजब मिठाथे नून मिलाय।।
-जामुन

928- अलकर घोड़ी बारा पाँव।
रेंगत राहय पाय न ठाँव।।
एखर ऊपर तीन सवार।
कोनो कभू न जाय बिसार।।
-घड़ी

929- सदा बढ़ावै शोभा जान।
करिया रंग ल तैं पहिचान।।
पारै आँखी तीर निसान।।
लइका बर शुभ टीका मान।।
-काजर

930- रतिहाकुन सज-धज के आय।
दिनभर अपने घर सुरताय।।
चमचम चमकै मन ला भाय।
उजियारी जुड़हा बगराय।।
-चंदैनी

931-बिना पाँख के ऊँच उड़ाय।
घेंच म पातर डोर बँधाय।।
हवा मितानी एखर जान।
पानी देखत त्यागे प्रान।।
-पतंग

932- बिना बरे कुछु काम न आय।
बारे मा ये गजब सुहाय।।
परे रहै दिन मा तिरियाय।
रतिहाकुन झट सुरता आय।।
-चिमनी

933- अचरिज धन अइसन ये आय।
जतके बाँटव बढ़ते जाय।।
नहीं चोर येला चोराय।
सदा हमर ये मान बढ़ाय।।
-विद्या

934- एक पेड़ के बड़का ठाँव।
खाल्हे राहय छाँवे छाँव।।
मेछा दाढ़ी लामी लाम।
संगी बोलव एखर नाम।।
-बर पेड़

935- दुख पीरा मा झरते जाय।
खुशी परे मा थोरिक आय।।
नुनछुर लागय एखर स्वाद।
आँखी ला तैं कर ले याद।।
-आँसू

936- कोनो सकै न येला मार।
काटय ना कोनो हथियार।।
संग सबो के रहिथे यार।
राजा मंत्री अउ दरबार।।
-छँइहा

937- करिया कुत्ता झबरू कान।
मुकुट खाप के चलै सियान।।
सबो संग जोरय ये खाँध।
जोड़ी सबके संगे बाँध।।
-भाँटा

938- खूँटा डाँगा बहुते ताय।
गुरतुर एखर दूध मिठाय।।
दिखथे मुखड़ा जइसे गाय।
जिनगी पानी बीच पहाय।।
-सिंघाड़ा

939- गोल गोलवा मोला मान।
तहूँ हवच जी लमरी जान।।
ऊपर तोर कान तोपाय।
हमर देंह ला उघरा पाय।।
आलू-भाँटा

940- तरिया डबरी उपजे जाँव।
आरुग फर मैं महूँ कहाँव।।
साधू संतन मानय खास।
खावँय मोला रहैं उपास।।
-सिंघाड़ा

941- आथे-जाथे, नइ हे पाँव।
नगर-शहर बस्ती अउ गाँव।।
शोर संदेशा घर पहुँचाय।
पानी मा ये मर-हर जाय।।
-चिट्ठी पत्री

942- पानी भीतर चमके जाय।
बिन पानी के मरना आय।।
पानी भीतर करै निवास।
कतको धो ले हटै न बास।।
-मछरी

943- बड़का उँचहा येला जान।
खड़े रथे ये अपने स्थान।।
घर कुरिया के ये रखवार।
ईंटा पखरा ले दमदार।।
-भिथिया

944- भरे खजाना मोती माल।
देख-देख बस हो खुशहाल।।
हेर सकै ना कोनो जान।
एखर चक्कर छुटथे प्रान।।
दतैया छाता

945-  बइला जेखर एक न सींग।
लाम लाहकर टींगे टींग।।
नाँगर मा नइ जोंते जाय।
आगू आ के प्रान गँवाय।।
-बघवा

946- करिया लउठी लामी लाम।
आय नहीं टेंके के काम।।
नइ तो येहा हाथ धराय।
देखत येला सबो डराय।।
-साँप

947- फुलवारी के घमघम फूल।
उल्टा लटके राहय झूल।।
कोनो येला टोर न पाय।
कहाँ हाथ ले ये अमराय।।
-चँदैनी

948- सोन चिरइया येला जान।
करिया मुख एखर पहिचान।।
पेट भीतरी दाना चार।
जंगल झाड़ी हे घर द्वार।।
-तेंदू

949- खनखन बाजत चलते जाय।
तरिया नँदिया बूड़ नहाय।।
जीवमार बड़ इही कहाय।
फेर एकठन कुछु नइ खाय।।
-मछरी जाली

950- नान्हें चिरई येला जान।
उँचहा उड़ना हे पहिचान।।
रहिथे लइकामन के साथ।
उड़ना गिरना इँखरे हाथ।।
-पतंग
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ भाटापारा छत्तीसगढ़

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