कमाय खाय
संगी कहिथें चल अमित, जाबो खाय कमाय।
अपन गाँव ला छोड़ के, बाहिर हाथ लमाय।।
घर मा तारा ला लगा, चलव चलिन परदेश।
काम बुता के का कमी, मिलही बनी विशेष।।
छोड़व खेती खार ला, परथे अमित अकाल।
बाहिर जाके हम कमा, हो जाबो खुशहाल।।
घर मा भूँजे भाँग का, नइ हे चाउँर दार।।
कतका खाबो बाड़ही, कतका दिही उधार।।
बेटी बाढ़त जात हे, एखर करव हियाव।
करजा बोड़ी ले अमित, आसों करव बिहाव।।
पइसा सकला हो जही, चल बाहिर इक घाँव।
त्याग मया पीरा अपन, छोड़ गली घर गाँव।।
बाहिर तो बाहिर हरय, बइठे हवय दलाल।
जादा के लालच परै, अपन घेंच मा जाल।।
झन बन तैं परदेशिया, रहि जा अपने ठाँव।
दू पइसा कमती कमा, अपन गली घर गाँव।।
अपने घर अँगना रहव, बाहिर झन हम जान।
खेती बारी हम करन, थोरिक भले कमान।।
अपने भुँइया मा मया, मिलथे हम ला घात।
बाहिर ठग-जग हे भरे, इहें रहव दुख पात।।
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ 9200252055....©®
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