किसान
करै किसानी जौन हा, होवय बारा हाल।
मजा लुटय सेठ हा, चलके चतुरा चाल।।
सूरुज ले पहिली उठय, जावय तुरते खेत।
करम करे खातिर सदा, अंतस राखय चेत।।
पानी पसिया गोंदली, कोदो कुटकी पेज।
भुँइया आवय नींद हा, खोजय कभू न सेज।।
नाँगर जाँगर संग मा, जिनगी बदे मितान।
खेती के सेती अमित, सेवक बनै किसान।।
कोनो लाँघन झन सुतय, सबके रखय खियाल।
परहित खातिर हे करम, जय धरती के लाल।।
खेत किसानी हे जुआ, या किस्मत के खेल।
पानी जादा हे कभू, सुक्खा बादर झेल।।
जेखर महिनत ले मिलै, सब ला रोटी दार।
अब दलाल हा लूट लै, ओखर सब अधिकार।।
लहू पछीना गार के, खेती करै किसान।
लाँघन भूखन ये मरै, जिनगी भर हलकान।।
गहना धरके खेत ला, करम करै दिनरात।
नकली खातू बीज हे, कइसे बनही बात।।
चाँटी हाथी जन पलँय, सब किसान के खाय।
अनदाता भूखन मरै, कोनो कहाँ लजाय।
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ भाटापारा 9200252055
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