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रविवार, 9 मई 2021

दुलरवा दोहा ~ किताब

किताब
दुनिया भर के गोठ के, हावय नँगत हिसाब।
पढ़के थोरिक देख ले, सुग्घर एक किताब।।

पुस्तक पढ़के तैं अमित, बनबे बड़ गुणकार।
होही तोरे ज्ञान के, जघा-जघा जयकार।।

हे किताब सिरतों सखा, सुग्घर ज्ञान खदान।
बस धरती जग मा इही, करथे नित कल्यान।।

आखर-आखर हा अमित, मेटय मन अँधियार।
देथे सब ला अकतहा, अंतस कर अँकवार।।

रद्दा भटकै जौन हा, पढ़लै वेद पुरान।
जिनगी के पीरा मिटै, बन जा संत सुजान।।

बिना सुवारथ जस करय, पोथी भरय उछाह।
हवय जगत कतको नता, एखर नइ हे थाह।।

अंतस भटकय भीड़ मा, भारी गुनय सवाल।
मिलही रद्दा बड़ सुघर, पुस्तक अमित निकाल।।

गीता रामायण पढ़व, जानव का हे धर्म।
पढ़ लिख के बढ़िया करव, अपन जनम के कर्म।।

पुस्तक गुणवंता गुणी, भरथे मन उजियार।
पावय जौने ज्ञान ला, ओखर जग संसार।।

हे किताब संगी अमित, अबगा देथे संग।
सुग्घर मनखे सब बनव, रंगव एखर रंग।।
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कन्हैया साहू 'अमित'~भाटापारा छत्तीसगढ़....©®

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