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रविवार, 9 मई 2021

दुलरवा दोहा~नीति के गोठ

नीति के गोठ
जात-पात मा का धरे, सुग्घर रास मढ़ाव।
भेदभाव भटकाय के, सब ला अपन बनाव।।

चुगरी चारी चौंगुना, देवय खुशी अपार।
पाछू पछताना परै, पीरा मिलय हजार।।

आगू मा अनबोलना, पाछू मया लुटाय।
अइसन संगी दोगला, देखत अमित लुकाय।।

मीठा बोली बोल के, सब ला अपन बनाव।
इही मया के बंधना, एक बेर अजमाव।।

नँदिया पानी नइ पियय, रुखुवा फर नइ खाय।
परहित कारज जे करय, जग वोला सँहराय।।

लपर झपर जिनगी बितै, बढ़िया बात बटोर।
गुरु किरपा मिलही जभे, अंतस होय अँजोर।।

गोठ बात मा फेर हे, गोठ बात ले बात।
गोठ बात मा ताज हे, गोठ बात ले लात।।

मान मितानी मा मया, मस्त मगन मन मोर।
हरसे हिरदे हा बने, सुरता करके तोर।।

जबरन जुरही नइ नता, जघा-जघा जुरियाय।
राग-पाग के रेहना, छदर-बदर छरियाय।।

लीम करेला सँग 'अमित', हे जिनगी के आस।
बनथे जी के काल जी, बहुते मया मिठास।।
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ 9200252055...©®

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