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सोमवार, 31 मई 2021

जानव जनऊला ~ (951-1000)


951- सादा उज्जर एखर रंग।
रहै शांत, नइ जानय उतलंग।।
सिधवा जइसे एखर हाल।
बहुते कपटी चतुरा चाल।।
-कोकड़ा

952- रहिथे येहा ताते तात।
राँधय येहा जेवन घात।।
हवा देख ये बड़ थर्राय।
पानी पीके मर ये जाय।।
-आगी

953- एक पेड़ मा गजब डँगाल।
मन मा आथे एक सवाल।।
भारी कटही फर ला जान।
भरे रथे फर मा गुन खान।।
-कटहर

954- नान्हें नोनी नटखट जान।
एखर हावय छोट मकान।।
दें केंवची कोंवर घात।
पटर-पटर ये करथे बात।।
-जीभ

955- एक पेड़ हे हाथी पाँव।
बारी बखरी एखर ठाँव।।
पाना एखर हाथी कान।
लकड़ी नो हे, ले पहिचान।।
-केरा पेड़

956- एक जिनिस ये कइसे होय।
बीच सभा मा बइठे रोय।।
थूँक-थूँक के जम्मों जाय।
परे डरे ये कहाँ कहाय।।
-थूँकदानी

957- दाँत बिना ये लेवय काट।
बिना पाँव के रेंगय बाट।।
चर्र-चर्र हे एखर बोल।
सबो बिसावैं देके मोल।।
-पनही

958- दूध दही के सकला होय।
लान मथानी गजब बिलोय।।
सादा उज्जर ये उफलाय।
कड़क चुरो के घीव बनाय।।
-लेवना

959- देंह एक हे सुग्घर सार।
जेखर ऊपर सात दुवार।।
पंछी एखर भीतर होय।
आवाजाही दिखे न कोय।।
-प्राण

960- तन हा हावै एखर एक।
दिखै नहीं पर होथे नेक।।
राहय एखर हाथ न पाँव।
दँउड़े जाथे दुनिया ठाँव।।
-मन

961- इक नोनी के अलकर नाँव।
दू तरपौंरी छैठन पाँव।।
ओखर मुँड़ मा मेछा यार।
जाथे उघरा हाट बजार।।
-तराजू

962- दरजा उँचहा खाल्हे काम।
रोज बिहनिया एखर नाम।।
जौन जघा मा ये नइ जाय।
कोनो ला बइठन नइ भाय।।
-बाहरी

963- दू कौड़ी हे करिया जान।
एखर आगू दुनिया मान।।
एक कटोरी पानी ताय।
बीच-बीच मा टपके जाय।।
-आँखी

964- रिंगी-चिंगी चमकै काँच।
लागय सुग्घर सबले साँच।।
नारीमन के मन ला भाय।
गोल-गोल ये बाँह म छाय।।
-चूरी

965- मुँड़ खुसरे हे भीतर पार।
चोट-बड़े चक्का हे सार।।
निकले पसली बाहिर देख।
सूँत बरावय चिटिक सरेख।।
-चरखा

966- जीभ फटे अउ मुँड़ी कटाय।
अपने मन के बात बताय।।
आखर करिया उगले जाय।
खीसा भीतर ठौर बनाय।।
-कलम

967- पेट बड़े अउ मुँहुँ हे जान।
पेंदी चाकर, काँच समान।।
पढ़े-लिखे मा आथे काम।
संग कलम के जुड़थे नाम।।
-दवात

968- घेरावाला लँहगा डार।
एक पाँव मा फिरै अपार।।
हाथ आठ देवय फैलाय।
जाड़ पड़े मा ये सकलाय।।
-छतरी

969- कटै आखिरी पाँव कहाय।
शुरू कटै संगी बन जाय।।
तीन वर्ण के हावय नाम।
आथे मुँड़ मा पहिरे काम।।
-पगड़ी

970- कटै आखिरी सीता जान।
शुरू कटै संगी तैं मान।।
जंगल मा ये रहिथे यार।
तीन वर्ण के लिखना सार।।
-सियार

971- चाम माँस येमा नइ होय।
हाड़ा चारों कोती सोय।।
तभो हवै ये बहुते खास।
एखर भीतर जीव निवास।।
-पिंजरा

972- मुँड़ मा चुन्दी जटा समान।
सादा उज्जर रंगत जान।।
हाथ म पोथी धारे जाय।
जोगी ज्ञानी कहाँ कहाय।।
-लहसुन

973- एक सींग अउ चारे कान।
एक पाँव हे एखर मान।।
तामस गुण अउ करिया रंग।
रँधनी खोली राहय संग।।
-हींग

974- चोला उज्जर सादा सोय।
जटा मुँड़ी मा एखर होय।।
एक गोड़ मा धरथे ध्यान।
भारी कपटी येला जान।।
-कोकड़ा

975- सरी जगत ला देखत जाय।
कभू अपन नइ गाँव ल पाय।।
हाँसय-रोवय अपने आप।
नँदिया भीतर रहिथे खाप।।
-आँखी के पुतरी

976- कारी गोरी दूझन नार।
नाँव एक हे इँखरो यार।।
छोट-बड़े होथें इन खास।
एक करू अउ एक मिठास।।
-लायची

977- हरियर लुगरा पहिरे नार।
जन-जन के करथे सत्कार।।
जेवन पाछू काम म आय।
सबके मुँहुँ ला लाल रचाय।।
-पान

978- एक चिरैया घुमते जाय।
भर-भर पानी तँउरे भाय।।
भरे कुआँ मा ये सुरताय।
रहि-रहि पानी फेर मँगाय।।
-मथानी

979- एती ओती मैं हा जाँव।
सबला ओखर घर पहुँचाँव।।
फेर अपन मैं जघा न पाँव।
एक जघा मा बइठ पहाँव।।
-रद्दा

980- करिया हे कौआँ झन मान।
खम्भा हे हौआ झन जान।।
लाम नाक ले करथे काम।
लटपट रेंगय बोलव नाम।।
-हाथी

981- एक अचंभा देखे जाय।
मुरदा होके रोटी खाय।।
कोनो कोन्हा रहै लुकाय।
मार परै ता चिहुर मचाय।।
-माँदर

982- जइसे नँदिया पूरा पाट।
चंदन चोवा बगरे घाट।।
एक हाथ खूँटा गड़ियाय।
चारों मूँड़ा घूमत जाय।।
-जाँता

983- हरियर लुगरा ओढ़े आय।
लाखों मोती धरे सुहाय।।
पहुँचै राजा के दरबार।
एखर लत्ता तुरत उतार।।
-भुट्टा

984- एती-वोती ले ये आय।
चिटिक जघा मा बइठ समाय।।
हाथ धरे ये आये जाय।
नाँव काय हे कोन बताय।।
-लाठी

985- कुबरी तन हे, मया जताय।
आँखी आगू बइठे जाय।।
पाँव अपन ये नाक मढ़ाय।
कान हाथ ले अँइठे पाय।।
-चश्मा

986- शुरू कटै ता 'गरा' कहाय।
कटै आखिरी 'आग' लगाय।।
बीच कटै 'आरा' बन जाय।
तीन वर्ण के नाँव बताय।।
-आगरा

987- बीच कटै ता 'बरी' कहाय।
मुँड़ी कटै ता 'करी' बनाय।।
कटै आखिरी 'बक' बन जाय।
तीन वर्ण के जीव सुहाय।।
-बकरी

988- शुरू कटै ता 'नर' कहलाय।
कटै आखिरी धनुष चढ़ाय।।
बीच कटै ता दिन बन जाय।
जीव बहुत ये उधम मचाय।।
-वानर

989- बीच कटै चंचल भटकाय।
शुरू कटै सब बात सुनाय।।
कटै आखिरी 'मका' कहाय।
तीन वर्ण हे सब ला भाय।।
-मकान

990- चार वर्ण के एखर नाम।
विष्णु कृष्ण के करथे काम।।
शुरू कटै ता दर्शन होय।
भगवन अँगरी येहा सोय।।
-सुदर्शन चक्र

991- कटै शुरु ता कम पर जाय।
बीच कटै दर्जन कहलाय।।
कटै आखिरी चिरई होय।
तीन वर्ण हे जानव कोय।।
-बाजरा

992- पाँख हवै पर कहाँ उड़ाय।
पाँव हवै पर रेंग न पाय।।
हाथ धरे चक्का ल चलाय।
लामी लामा सूँत लमाय।।
-चरखा

993- शुरू कटै तरिया बन जाय।
बीच कटै ता 'केर' कहाय।।
कटै आखिरी मुँड़ी सजाय।
तीन वर्ण हे, कोन बताय।।
-केसर

994- रतिहाकुन ऊपर ले आय।
डारा पाना मा इँतराय।।
मोती जइसे एखर रूप।
एकोकन सहि सकै न धूप।।
ओस

995- हाथ बोलथे सुनथे हाथ।
बोल न होवय एखर साथ।।
छुअत बतावै जम्मों हाल।
हे जनऊला बड़े कमाल।।
-नाड़ी

996- पानी थोरिक रहै भराय।
ऊपर मुँहड़ा आग धराय।।
गुड़गुड़ बोली गजब सुनाय।
बीच-बीच मा धुआँ उड़ाय।।
-हुक्का

997- पाँव तीन हे, चलै न एक।
बइठे राहय जघा म टेक।।
जो जन एखर तीर म जाय।
एखर ऊपर बइठे पाय।।
-तिपाया

998- घटै बढ़ै चंदा झन जान।
करिया हे कोयल झन मान।।
बहुते येहा आवय काम।
बोलव संगी का हे नाम।।

999- घोड़ा माटी के तैं जान।
ऊपर लोहा गोल मकान।।
बइठै येमा गिल्ला राम।
निकलै हो के सुख्खा श्याम।।
-तावा

1000- आवय ता करै अचेत।
बइठै मा अँधरा कर देत।।
उठै तभो पीरा दे जाय।
जावत खानी खूब सताय।।
-आँखी रोग
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ 9200252055...©®

रविवार, 30 मई 2021

दुलरवा दोहा ~ सुमरनी

सुमरनी

पहिली सुमिरन गुरुददा, जे हर देइन ज्ञान।
जानय जग जंजाल ला, गुरुवर चतुर सुजान।।

हे गौरीसुत गजबदन, गणपति गणराज।
हाथ जोड़ विनती हवय, तहीं बनाबे काज।।

आखर देवी शारदा, सुन ले अमित पुकार।
मुरहा मोला मान के, देबे मया दुलार।।

आवव आखर अकतहा, वरण शबद के कोख।
अंतस बइठे बात ला, लिखय कलम के नोख।।

हे शिवशंकर शोभना, जय हो भोलेनाथ।
सदा-सदा सुमिरन करँव, देवत रहिबे साथ।।

दुर्गा लक्ष्मी कालिका, दाई तुँहर प्रणाम।
बेटा अपने जान के, बने बनाहू काम।।

राम कृष्ण करहू कृपा, भक्तन अपने मान।
जँउहर जकला जोजवा, सिरतों मोला जान।।

ब्रम्हा विष्णु ल पयलगी, सुग्घर चेत धराव।
सुन पुकार मोरो अमित, बिगड़ी काज बनाव।।

महावीर हनुमान जी, देवव अमित असीस।
थोरिक देहव बुद्धि बल, ऊँच रहय ये शीश।।

जय हे माता माँवली, रखबे मोरो ख्याल।
माँ के ममता तैं पुरो, करदै कलम कमाल।।

सुमिरँव देवी देवता, सादर अमित मनाय।
अलवा-जलवा जे लिखँव, तुँहरे कृपा कहाय।।
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ भाटापारा छत्तीसगढ़

जानव जनऊला ~ (901-950)

901- तीन वर्ण ये सब ला भाय।
बीच कटै ता फर बन जाय।।
शुरू कटै प्रभु नाम कहाय।
कटै अंत ता चीर मढ़ाय।।
-आराम

902- फर अइसने के आँख मुँदाय।
फोरे मा अंड़ा मन भाय।।
ये अंडा ला जौने खाय।
तन-मन अपने पोठ बनाय।।
-बादाम

903- एक जघा ना ये टिक पाय।
रूप मनोहर जग भर छाय।।
मानुसमन येमा हे खोय।
दीन-हीन एखर बिन होय।।
-रुपिया, पइसा

904- इक नारी के छै औलाद।
दू-दू झन ला करथे याद।।
छै झन ला ये संग बलाय।
सँघरा येमन कभू न आय।।
-मौसम

905- दू आखर के हावय नाम।
हाड़ा भीतर एखर धाम।।
नाड़ी ले ये आवव जाय।
कोनो बिरथा नहीं गँवाय।
-लहू

906- तीन वर्ण के हावय नाम।
आवय येहा सबके काम।।
रहै देंह ले ये लपटाय।
इज्जत हमरे इही बचाय।।
-कपड़ा

907- हाड़ माँस तन नइ हे जान।
हाथ-पाँव बिन लमरी मान।।
राहय ये हा जेखर हाथ।
सुख-दुख मा ये देवय साथ।।
-लाठी

908- अपने मुख ला देखे जाय।
देख-देख मन मा मुस्काय।।
एखर आगू सकल समाज।
शोभा बाढ़य करके साज।।
-आईना
909- सोन सहीं चमकै ये खास
रहिथे येहा ऊँच अगास।।
करै कभू नइ ये कल्याण।
धमकावत ये हर लै प्राण।।
-गाज

910- बाग बगीचा महल अटार।
मंदिर मस्जिद अउ गुरुद्वार।।
छानी परवा, रुख लपटाय।
चढ़के नँगते ये मुस्काय।।
-नार/बियाँर

911- मेछा दाढ़ी पहिली आय।
पाछू लइका जनमे पाय।।
बाढ़य लइका, कहाँ दुलार।
काहँय लत्ता सबो उतार।।
भुट्टा

912- पर्वत ऊपर रथ ल चलाय।
भुँइया मा राखय टेकाय।।
वायु वेग एखर रफ्तार।
एक पाँव ना उसलै यार।।
-कुम्हार के चाक

913- पानी मा ही समय बिताय।
कोव-कोव ये बड़ चिल्लाय।।
मछरी मेढ़क नो हे साँप।
थोरिक उड़थे, लेवव भाँप।।
-पनबुड़ी

914- जंगल म कटै, होय तियार।
उपजै बाढ़य जाय बिसार।।
जिनगी पानी बीच बिताय।
बुड़ै मरै ना ये बोहाय।।
-डोंगा

915- अचरज नारी हावय एक।
बहुते ओखर बुद्धि विवेक।।
पढ़े-लिखे ना एक्को आय।
जियत-मरत ला तुरत बताय।।
-नाड़ी

916- एक गाँव हे बहुते खास।
एक महल मा एक निवास।।
पहिरै पींयर सबझन जान।
नर नारी नइ हे पहचान।।
-ततैया छाता

917- लोहा के नान्हें औजार।
एक आँख एखर हे सार।।
जेखर तीर म येहा जाय।
बिछड़ेमन के मिलन कराय।।
-सुजी

918- एक आदमी देंह म गाँठ।
लामी-लामा तन हा टाँठ।।
भारी गुरतुर एखर स्वाद।
चीनी गुड़ एखर औलाद।।
-कुसियार

919- दू आखर के हावय नाम।
शुरू कटै ता मइला काम।।
कटै बीच दूसर दिन जान।
कटै आखिरी थोरिक मान।।
-कमल

920- एक आदमी चाम न माँस।
धीर रास के चलथे साँस।।
हाड़-हाड़ एखर छेदाय।
बोली सुन के जग मोहाय।।
-बँसरी

921- पिड़वा बइठे रानी एक
मुँड़ मा आगी धरे कतेक।।
तन मा पानी रहै बोहाय।
बार-बार मुँड़ काटे जाय।।
-मोमबत्ती

922- एक गोड़ अउ कान ह चार।
अद्भुत अइसन हावय नार।।
तामस बहुते हवै मिजाज।
कारी हे पर आवय काज।।
-हींग

923- खात-खात मुँहुँ हा जर जाय।
हरियर लाली फर ये आय।।
दिखे म नान्हें मन ला भाय।
बड़े-बड़े ला झट रोवाय।
-मिरचा

924- साहब खाना येमा खाय।
कुआँ गिरे बाल्टी निकलाय।।
रुखराई मा होथे जान।
कभू-कभू दुख देथे मान।।
-काँटा

925- रहै शान्त, बहुते चुपचाप।
पानी राहय जुड़ टिपटाप।।
पियै बटोही, मिटै पियास।
लोटा धरे न एक गिलास।।
-कुआँ

926- दुब्बर पातर झन तैं जान।
गजब हरै ये गुण के खान।।
करिया मुँहुँ ला उज्जर मान।
संगत एखर करय सुजान।।
-कलम

927- करिया-करिया एखर रंग।
रहिथे डारा-पाना संग।।
खाबे तब ये जीभ रचाय।
गजब मिठाथे नून मिलाय।।
-जामुन

928- अलकर घोड़ी बारा पाँव।
रेंगत राहय पाय न ठाँव।।
एखर ऊपर तीन सवार।
कोनो कभू न जाय बिसार।।
-घड़ी

929- सदा बढ़ावै शोभा जान।
करिया रंग ल तैं पहिचान।।
पारै आँखी तीर निसान।।
लइका बर शुभ टीका मान।।
-काजर

930- रतिहाकुन सज-धज के आय।
दिनभर अपने घर सुरताय।।
चमचम चमकै मन ला भाय।
उजियारी जुड़हा बगराय।।
-चंदैनी

931-बिना पाँख के ऊँच उड़ाय।
घेंच म पातर डोर बँधाय।।
हवा मितानी एखर जान।
पानी देखत त्यागे प्रान।।
-पतंग

932- बिना बरे कुछु काम न आय।
बारे मा ये गजब सुहाय।।
परे रहै दिन मा तिरियाय।
रतिहाकुन झट सुरता आय।।
-चिमनी

933- अचरिज धन अइसन ये आय।
जतके बाँटव बढ़ते जाय।।
नहीं चोर येला चोराय।
सदा हमर ये मान बढ़ाय।।
-विद्या

934- एक पेड़ के बड़का ठाँव।
खाल्हे राहय छाँवे छाँव।।
मेछा दाढ़ी लामी लाम।
संगी बोलव एखर नाम।।
-बर पेड़

935- दुख पीरा मा झरते जाय।
खुशी परे मा थोरिक आय।।
नुनछुर लागय एखर स्वाद।
आँखी ला तैं कर ले याद।।
-आँसू

936- कोनो सकै न येला मार।
काटय ना कोनो हथियार।।
संग सबो के रहिथे यार।
राजा मंत्री अउ दरबार।।
-छँइहा

937- करिया कुत्ता झबरू कान।
मुकुट खाप के चलै सियान।।
सबो संग जोरय ये खाँध।
जोड़ी सबके संगे बाँध।।
-भाँटा

938- खूँटा डाँगा बहुते ताय।
गुरतुर एखर दूध मिठाय।।
दिखथे मुखड़ा जइसे गाय।
जिनगी पानी बीच पहाय।।
-सिंघाड़ा

939- गोल गोलवा मोला मान।
तहूँ हवच जी लमरी जान।।
ऊपर तोर कान तोपाय।
हमर देंह ला उघरा पाय।।
आलू-भाँटा

940- तरिया डबरी उपजे जाँव।
आरुग फर मैं महूँ कहाँव।।
साधू संतन मानय खास।
खावँय मोला रहैं उपास।।
-सिंघाड़ा

941- आथे-जाथे, नइ हे पाँव।
नगर-शहर बस्ती अउ गाँव।।
शोर संदेशा घर पहुँचाय।
पानी मा ये मर-हर जाय।।
-चिट्ठी पत्री

942- पानी भीतर चमके जाय।
बिन पानी के मरना आय।।
पानी भीतर करै निवास।
कतको धो ले हटै न बास।।
-मछरी

943- बड़का उँचहा येला जान।
खड़े रथे ये अपने स्थान।।
घर कुरिया के ये रखवार।
ईंटा पखरा ले दमदार।।
-भिथिया

944- भरे खजाना मोती माल।
देख-देख बस हो खुशहाल।।
हेर सकै ना कोनो जान।
एखर चक्कर छुटथे प्रान।।
दतैया छाता

945-  बइला जेखर एक न सींग।
लाम लाहकर टींगे टींग।।
नाँगर मा नइ जोंते जाय।
आगू आ के प्रान गँवाय।।
-बघवा

946- करिया लउठी लामी लाम।
आय नहीं टेंके के काम।।
नइ तो येहा हाथ धराय।
देखत येला सबो डराय।।
-साँप

947- फुलवारी के घमघम फूल।
उल्टा लटके राहय झूल।।
कोनो येला टोर न पाय।
कहाँ हाथ ले ये अमराय।।
-चँदैनी

948- सोन चिरइया येला जान।
करिया मुख एखर पहिचान।।
पेट भीतरी दाना चार।
जंगल झाड़ी हे घर द्वार।।
-तेंदू

949- खनखन बाजत चलते जाय।
तरिया नँदिया बूड़ नहाय।।
जीवमार बड़ इही कहाय।
फेर एकठन कुछु नइ खाय।।
-मछरी जाली

950- नान्हें चिरई येला जान।
उँचहा उड़ना हे पहिचान।।
रहिथे लइकामन के साथ।
उड़ना गिरना इँखरे हाथ।।
-पतंग
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ भाटापारा छत्तीसगढ़

शुक्रवार, 28 मई 2021

दुलरवा दोहा ~ भोरमदेव

भोरमदेव....

मैकल पर्वत घाट मा, हावय छपरी गाँव।
मंदिर भोरमदेव हे, शिवशंकर के ठाँव।।

फनी नागवंशी इहाँ, राज पाट ल चलाय।
सुग्घर शासन कर अमित, बहुते नाम कमाय।।

मंदिर सौ फिट ऊँच हे, हावय बहुत विशाल।
पर्वत श्रेणी काट के, नागर शैली चाल।।

राज करे हें कलचुरी, देवराय गोपाल।
अद्भुत हिन्दू स्थापना, शिल्पकला सोमाल।।

मंदिर मंडप बड़ सुघर, मुरती अचरिज जान।
करिया पथरा कीमती, शिवशंकर निर्मान।।

पर्वत जंगल बीच मा, मंदिर भोरमदेव।
छोटे खजुराहो अमित, एक बेर जातेव।।

तीरे मा मड़वा महल, बने हवय ये खास।
खंडित मुरती हा घलो, कहत हवय इतिहास।।

अद्भुत हे मड़वा महल, थोरिक अमित हियाव।
रामचंद्र अंबिका करिन, इँहचे अपन बिहाव।।

तीर म वन अभ्यारण्य, देखें ला बड़ आय।
पुरखौती चिन्हा बने, सब ला गजब सुहाय।।

जिनगी जीये के कला, कतका खुल्ला देख।
बात अपन आगू रखँय, देत गवाही लेख।।
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ 9200252055...©®

दुलरवा दोहा ~ रतनपुर राज

रतनपुर धाम

रतनदेव राजा रहिन, बहुत समय के बात।
राजवंश ये कलचुरी, होइन बड़ विख्यात।।

गँय शिकार मा एक दिन, जंगल मणिपुर गाँव।
रतिहाकुन विश्राम बर, चुनिन पेड़ बर  ठाँव।।

देखिन आधा रात मा, बर खाल्हे उजियार।
लगे महामाया सभा, होवय जय-जयकार।।

बिहना राजा आ लहुट, राजमहल तुम्मान।
उही जघा मंदिर बने, नाँव रतनपुर जान।।

अपन राजधानी बसा, रतनदेव खुशहाल।
कृपा महामाया अमित, भैरव हे दिक्पाल।।

वीर मराठा भोंसले, करिन रतनपुर राज।
एखर पाछू छिन झपट, अंग्रेज करिन काज।।

किला रतनपुर नाँव गज, हावय बड़ प्राचीन।
मंदिर मुरती ले भरे, आज परे हे हीन।।

रामटेकरी हा बने, चोटी ऊँच पहाड़।
देखरेख के हे कमी, होवत हवै उजाड़।।

अमित धरोहर हे हमर, येला रखिन सँभाल।
अवईया पीढ़ी हमर, कहूँ करै न सवाल।।

कभू रतनपुर धाम मा, राहय ताल हजार।
जोत हजारों अब जलँय, माता के दरबार।।
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ भाटापारा छत्तीसगढ़

दुलरवा दोहा ~ सिरपुर धाम

सिरपुर महिमा

द्वापर युग के ये नगर, चित्रांगदपुर मान।
महानदी के तीर मा, सिरपुर नगरी जान।।

तइहा के हे बात ये, बबरूवाहन राज।
अश्वमेध घोड़ा धरिस, बाधा पांडव काज।।

राजा बबरू संग मा, अर्जुन युद्ध मताय।
आखिर हारिन पंडवा, गेइन माथ नवाय।।

सोमवंश राजा इहाँ, श्रीपुर नगर बसाय।
अमित राजधानी अपन, सिरपुर ला बनवाय।।

लाली ईंटा ले बने, रानी वसटा हाथ।
लक्ष्मण मंदिर हा खड़े, ऊँचा करके माथ।।

गुप्त काल मंदिर इहाँ, अब हावय अवशेष।
सिरपुर ला जानँय सबो, भारत देश विदेश।।

महानदी के पार मा, गंधेश्वर महराज।
मेला भरथे माँघ मा, जुरथे संत समाज।।

इहाँ उत्खनन अवशेष बड़, मंदिर मुरती स्तूप।
धरम धाम इतिहास के, देखव जानव रूप।।

जैन धरम चिन्हा मिलय, मठ अउ बौद्ध बिहार।
देखे खातिर तैं अमित, संग्रहालय म पधार।

रेंगत लाखों भक्तमन, पहुँचय सिरपुर धाम।
काँवर बोहे जल धरे, लेवत शिव के नाम।।
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ 9200252055...©®

दुलरवा दोहा ~ राजिम धाम

राजिम महिमा

पावन बड़ छत्तीसगढ़, महिमा हवय बुलंद।
पड़ते राजिम धाम हा, गरियस गरियाबंद।।

महानदी के तीर मा, राजिम नगर बसाय।
पैरी सोंढुर आ मिलै, संगम सुघर कहाय।।

जगतपाल राजा रहिन, महानदी म नहाय।
बड़े फजर आवय इहाँ, राजिम घाट बनाय।।

इही जघा मंदिर बनै, सपना कर साकार।
राजिम तेलिन घर रखे, मुरती ला बइठार।।

राजिम तेलिन हा करै, घानी पखरा दान।
अतके इच्छा ला करिस, नाँव जुरै भगवान।।

राजा सपना सच करै, मंदिर ला बनवाय।
राजिम माता नाँव ले, पूजा पाठ कराय।।

भक्तिन अउ भगवान के, संग चलागत नाम।
राजा के सहयोग ले, राजिम लोचन धाम।।

गढ़े विश्वकर्मा अमित, मंदिर राजिम गाँव।
राजा के आदेश पा, बना डरिस प्रभु ठाँव।।

हवै पंचकोशी तिरिथ, पाँव-पाँव मा नाप।
पुण्य कमा ले तैं अमित, मिट जाही संताप।।

देव कुलेसर जा बसिस, महानदी मझधार।
रतनदेव के हे करम, होवय जय- जयकार।।

माघी पुन्नी मा भरय, मेला नँदिया तीर।
भक्तन राजिम धाम मा, आवँय होय अधीर।।
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ भाटापारा छत्तीसगढ़

बुधवार, 26 मई 2021

जानव जनऊला ~ (851-900)

851- देंह दुसर के चिपकत जाय।
लहू-रकत पर के बड़ भाय।।
एखर हाड़ा ना हे गोड़।
दुनों मुँड़ा चलथे बेजोड़।।
-जोंकवा

852- खाल्हे ऊपर चपकन ताय।
बीच करेजा धड़के जाय।।
दू अँगरी ला सबो फँसाय।
धीरे-धीरे तब सरकाय।।
-कैंची

853- माटी के काया सिरजाय।
लावा-धक्का सहि नइ पाय।।
कच्चा मा कोनो नइ भाय।
पक्का सबके प्यास बुताय।।
-मरकी/गगरी

854- लागय लाड़ू मोती चूर।
रहै नशा येमा भरपूर।।
खवईया जावय पगलाय।
डमरूधर ला बहुते भाय।।
-धतूरा

855- चार पाँव पर रेंग न पाय।
सभा सदन मा मान कमाय।।
एखर खातिर लड़ मर जाय।
काय नाँव हे कोन बताय।।
-खुर्सी

856- कनिहा मा धोती लटकाय।
एखर मुँड़ आगी लग जाय।।
बीच सभा मा धुआँ उड़ाय।
एखर संगत मन भकवाय।।
-चिलम

857- मन के भीतर रहि नइ पाय।
ध्यान घलो ना एती जाय।।
गरु नइ हे राई भर जान।
दू मनखे ले उठथे मान।।
-बड़ाई

858- रहौं सदा मा तीरे तार।
भीतर बाहिर सबले सार।।
मोला कोनो देख न पाय।
मोर बिना सब प्रान गँवाय।।
-हवा

859- एक अचंभा देखे जाय।
लटके खूँटी समय पहाय।।
बाबू ला जब घाम जनाय।
माथा ऊपर दय बइठाय।।
-टोपी

860- फरे पेड़ मा पखरा मान।
होय ठोसलग बहुते जान।।
भीतर तरिया सादा पार।
फूट जाय ता निकलै धार।।
-नरियर

861- रज्जू राखे चिरई पोस।
उड़ जावय ते कतको कोस।।
घेंच बँधे डोरी हे जान।
खींच ढ़ील ले भरय उड़ान।।
-पतंग

862- पइसा बिन ये दाउ कहाय।
अपन संपत्ति आग लगाय।।
अपने घर भीतर सुत जाय।
होत बिहनिया बुता कमाय।।
-कुम्हार

863- तन भुरुवा मा धारी तीन।
खावै दाना हाथे बीन।।
रुआ भरे पूछी लहराय।
नान्हें हे पर हाथ न आय।।
-चिटरा

864- आ के करथे ये हलकान।
जावत बेरा मा नुकसान।।
होय छोट तब्भो बेकार।
हरै काय ये करौ विचार।।
-आँखी के रोग

865- खम्भा जइसे ठाड़े जान।
थाँगा के नइ नाँव निसान।।
फेंक फोकला फर ला खाव।
गुठलु बीजा नइ तो पाव।।
-केरा

866- भरे दूध ले गगरी चार।
बिना तोपना उल्टा यार।।
टिटटिप येहा लटके जाय।
बछरू पीयय मुँह ल लगाय।।
-थन

867- बरसा गरमी जनमे जान।
जाड़ा कमती येला मान।।
बइठ कहूँ ये जेवन जाय।
फेर न कोनो वोला खाय।।
-माछी

868- आँखी आगू बुता बजाय।
आँख बंद, माड़ा मा जाय।।
दाना-पानी कुछु ना पाय।।
अँधियारी मा काम न आय।।
-चश्मा

869- ये पंछी हे गजब सुजान।
बोली हरदम मीठ जबान।।
करिया पाँखी लाली चोंच।
कुहू-कुहू करथे, तैं सोंच।।
-कोइली

870- बिना पाँव के पहुँचे जाय।
बिन मुँहुँ के सब हाल सुनाय।।
कोनो ला ये दय रोवाय।
कभू-कभू ये बने हँसाय।।
-चिट्ठी

871- सादा काया सुग्घर जान।
मूँड़ जटा पोथी पहिचान।।
योगी भोगी ना सुल्तान।
पंड़ित ज्ञानी झन तैं मान।।
-लहसुन

872- चालिस झन के येहा यार।
झीटी सुख्खा तन हा सार।।
राहय ये हा परदा डार।।
गाँव शहर बहुते लगवार।।
-चिलम

873- मोर मया हे ऊँच अगास
कइसे जावँव ओखर पास।।
मनखे बैरी पकड़ै जाय।
मोर मया मोला छोंड़ाय।।
-परेवा खोंधरा

874- काज करै अचरज इक नार।
मार साँप तरिया दै डार।।
धीर लगा तरिया ह सुखाय।
साँप घलो मर के चितियाय।।
-दीया, बाती

875- जम्मों गुदड़ी जल मा जाय।
जलै एक नइ सुँतरी पाय।।
पानी के सब जीव धराय।
जल मोरी ले निकल बोहाय।।
-मछरी जाली

876- बिन कपड़ा के देखव नार।
होय खड़ा ये बीच बजार।।
नाक म नथनी सजे सजाय।
छै नाड़ा राहय लटकाय।।
-तराजू

877- लचकै कनिहा बड़ मटकाय।
लोहा कारी नार कहाय।।
अनगिनती के धरहा दाँत।
खावय लकड़ी फाटा घात।।
-आरी

878- एक पेड़ करुहा हे नाम।
डार पान फर बीजा काम।।
बनै दवाई खातू तेल।
घन छँइहा मा खेलँय खेल।।
-लीम

879- गोरी नारी शोभा गाल।
करिया रंगे करै कमाल।।
खेत खार मा सादा फूल।
सुरता राखौ जाव न भूल।।
-तिली

880- धक-धक धड़के ये दिन रात।
बुता काम करथे लगिहात।।
रहिथे ये हा डेरी पार।
बंद परय जिनगी बेकार।।
-दिल

881- देंह केंवची ये हा पाय।
खटिया दसना म लुकाय।।
दिन मा ये सपटे रहि जाय।
लहू पियासे रतिहा आय।।
-ढे़कना

882-  सुग्घर मंदिर दसठन द्वार।
प्राण बिराजे बन रखवार।।
भीतर के पट खोल उड़ाय।
जब हरि से मिलना पर जाय।।
-मनखे देंह

883- नारी हावय एक सचेत।
प्रेमी ला ये करय अचेत।।
एखर जे फाँदा फँस जाय।
धन दोगानी मान गँवाय।।
-मंद/दारु

884- घेरा वाला लहँगा डार।
एक पाँव मा ठाड़े नार।।
हाथ आठ एखर हे जान।
रिंगी-चिंगी मुखड़ा मान।।
-छतरी

885- राहँय सँघरा ये दू यार।
करत चलैं खटपट तकरार।।
दूनों मिल एक्के हो जाय।
घर रखवारी इही बढ़ाय।।
-कपाट

886- लइकामन के मया दुलार।
लटकै ये परछी परसार।।
रोवत लइका चुप हो जाय।
येमा देवय जब बइठाय।।
-झूलना

887- गरमी मा सुख ये पहुँचाय।
सरदी मा ये बड़ डरवाय।।
बिना पाँख के चलते जाय।
अपन जघा ले रेंग न पाय।।
-पंखा

888- चन्दा जइसे गोल अकार।
जेवन संग म रखँय सँघार।।
महतारी हा मोला पोंय।
खावैं जम्मों बड़ खुश होंय।।
-रोटी

889- एक नाँव के दू फर जान।
अलग-अलग एखर पहिचान।।
खेत म उपजै जम्मों खाय।
घर मा उपजै, घर ढह जाय।।
-फुट

890- कटै आखिरी बनथे काम।
बीच कटै लेगय यम धाम।।
कटै शुरू ता प्राण बचाय।
पूरा आँखी कोर रचाय।।
-काजल

891- चन्दा जइसे चाकर गोल।
पान बरोबर पातर झोल।।
जेवन के बेरा मा आय।
सबले पहिली मारे जाय।।
-पापड़

892- छोट-छोट डबिया डिबडाब।
दिनभर उघरे, रतिहा दाब।।
मूँगा मोती झरथे खूब।
एखर भीतर जाथें डूब।।
-आँखी

893- मार परै जिन्दा हो जाय।
बिन मारे ये जी नइ पाय।।
पाँव बिना दुनिया घुम आय।
आवय-जावय घेंच टँगाय।।
-ढ़ोलक

894- रहै संग मा ये दिनरात।
कोनो नइ तो कभू अघात।।
एखर बिन तो निकलै प्राण।
करै सुतत जागत कल्याण।।
-पवन/हवा

895- रहै रात भर संगे जाग।
होत बिहनिया जावै भाग।।
छोड़ जाय लागै अँधियार।
इही अमित के प्राण अधार।।
-दीया

896- द्वार-द्वार मा अलख जगाय।
देंह भभूती फिरय लगाय।।
फूँकत सींगी चलते जाय।
तन पीतांबर जटा बढ़ाय।।
-सन्यासी

897- उछलकूद ये गजब मचाय।
कच्चा-पक्का सब ला खाय।।
रुखुवा ऊपर रात बिताय।
पुछी लाम हे, कोन बताय।।
-बेंदरा

898- नो हे कखरो ये हा जीत।
चिन्हा दे हे मोला मीत।।
दिनभर ये छाती पोटार।
तीर मा राखँव रात उतार।।
-हार

899- नो हे नारी तभो लजाय।
हाथ लगे ले झट सकलाय।।
नान्हें रुखुवा बहुते पान।
लजकुरहा हे अब पहिचान।।
-छुईमुई/लजवंतीन

900- एक गाँव मा अचरज होय।
ऊपर रुख फर खाल्हे सोय।।
रंग कोकड़ा मिट्ठू मान।
का हे संगी जल्दी जान।।
-मुरई
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कन्हैया साहू 'अमित' ~ 9200252055...©®

चंद्रयान अभिमान

चंद्रयान  ले  नवा  बिहान,  हमर तिरंगा, बाढ़य शान। रोवर चलही दिन अउ रात, बने-बने बनही  हर  बात, दुनिया होगे अचरिज आज, भारत मुँड़़ अब सजगे ताज, ...