" जयकारी जनऊला "
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01- पहिली ये पाछू जगदीश। रद्दा खोलय इँखर असीस।।
लागँय जइसे जुड़हा छाँव। साधक जपथें हरदम नाँव।।
-गुरुदेव
02- हाथी जइसन भारी पेट। खाथे लाडू सूँड़ लपेट।।
सबले पहिली येखर नाम। शुरु होथे तब कोनो काम।।
-गणेश भगवान
03- सार कला हे येखर अंस। सुघर सवारी सादा हंस।।
छेड़य वीणा के सुर तान। इँखर कृपा ले जम्मों ज्ञान।।
-सरस्वती माता
04- एक जघा जम्मों सकलान। बइठे पावन आखर ग्यान।।
मंदिर जइसे लागय ठौर। नाँव बता अब करके गौर।।
-इस्कूल
05- धन दोगानी ले झन तोल। येखर कीमत हे अनमोल।।
जे पाये ग्यानी बन जाय। नइ पाये ते मुरुख कहाय।।
-विद्या
06- ज्ञानी जइसन बोलँय बोल। बात बताथें इन अनमोल।।
लइकामन बर हे भगवान। बाँटय एक बरोबर ज्ञान।।
-गुरुजी
07- पेड़ नहीं पर पाना पोठ। बिन मुँहु के करथे ये गोठ।।
आखर के भारी भंडार। ज्ञान कला के ये आधार।।
-किताब
08- कोरा-कोरा आरुग कोर। लिखना हे तब करथें सोर।।
अंतस के सब भर दे भाव। नइ ते सोज्झे कागज ताव।।
-कापी
09- येखर आगू का तलवार। नान्हें हे येखर आकार।।
स्याही सँघरा सुग्घर मेल। आखर उलगय रेलम-पेल।।
-कलम
10- होथे करिया-करिया रंग। उज्जर आखर येखर संग।।
होय अधूरा ये बिन चाक। कक्षा भीतर येेखर धाक।।
-तख्ता
11- रहिथे येहा पीठ लदाय। संगे आथे संगे जाय।।
राखय सब ला जोर जँगार। नाँव बतावव करत विचार।।
-बस्ता
12- नाक धरय अउ झींकय कान। रतिहाकुन हो या दिनमान।।
आथे देखे के ये काम। तुरत बतावव येखर नाम।।
-चश्मा
13- बड़े बिहनिया येहा आय। संझौती बेरा मा जाय।।
येखर संगे संग अँजोर। नइ ते अँधियारी घोर।।
-सुरुज
14- सरी जगत के करथे सैर। भुँइयाँ मा नइ राखय पैर।।
दिन मा सोवय, जागय रात। करय अँजोरी रतिहा घात।।
-चंदा
15- गिनत-गिनत मनखे थक जाँय। बगरय बादर कहाँ समाँय।।
रतिहाकुन मा इन टिमटाम। बोलव झटपट का हे नाम।।
-चँदैनी
16- करिया घोड़ा भागे जाय। पाछू घोड़ा लाल कुदाय।।
ऊँच अगासे बहुते भाय। बोलव संगी ये हा काय।।
-आगी
17- बाँध डोर तैं झुलुवा झूल। हवा, दवा, फर देथे फूल।।
मनखे के ये संगी जान। इही बचाथे सबके प्रान।।
-रुखराई
18- नइ हे येखर कोनो रंग। ढलथे येहा सबके संग।।
आँच परे बादर चढ़ जाय। जाड़ परे पखरा
बन आय।।
-पानी
19- दिखय नहीं पर चलथे जोर। सरसर-सरसर करथे शोर।।
जीव जगत के सिरतों आस। येखर बल मा सबके साँस।
-हवा
20- रिंगी-चिंगी फूलँय फूल। तितली भौंरा झूलँय झूल।।
रहिथे येमा जी रखवार।। जानव येला तुरते यार।।
-फुलवारी
21- नइ तो आवय येहा हाथ। रहिथे फुलुवामन के साथ।।
रिंगी-चिंगी पाँखी संग। रस पी के इन फिरय मतंग।।
--तितली
22- भनभन-भनभन करथें खूब। फुलवा मा इन जाथें डूब।।
बिरबिट करिया इँखरे रंग। कान करा करथें उतलंग।।
-भौंरा
23- रहिथें जुरमिल छाता डार। रानी संगे सौ बनिहार।।
चुहक-चुहक रस, मैंद सकेल। गुरतुर मधुरस ठेलम-ठेल।।
-मछेर
24- चीं चीं चीं चहकैं चिरबोर। फुदकय अपने अँगना, खोर।।
पंख पसारै फुर्र उड़ाय। सबके मन ला नँगते भाय।।
-बाम्हन चिरई
25- बहुते खबड़ा खाँवे खाँव। बोल उराठिल काँवे काँव।।
करिया-करिया येखर रंग। उटपटांग उज्जट उतलंग।।
-कौआ
26- बइठे रहिथे आमाडार। कुलकै भारी कुहकी पार।।
जब बसंत के आवय बेर। तब तो बहुते पारय टेर।।
-कोइली
27- हरियर पाँखी लाली चोंच। समझदार कस येखर सोंच।।
मिरचा देखत जावय डोल। तपत कुरू के बोलय बोल।।
-मिट्ठू
28- पींयर, खैरा, भुरवा रंग। राखय मनखे अपने संग।
मिट्ठू के होथे लगवार। नाँव बतावव करत विचार।।
-मैना
29- घपटे देख घटा घनघोर। नाचय नँगते मया चिभोर।।
पंछी के राजा कहलाय।। अपने पँउरी देख लजाय।।
-मँजूर
30- सादा, करिया, भुरुवा रंग। खेलँय खावँय मनखे संग।।
पहिली इन चिट्ठी पहुँचाय। गजब गुटरगूँ बोल सुहाय।।
-परेवा
31- बड़े बिहनिया मुँह दै खोल। कुकरुस कूँ के बोलय बोल।।
मुँड़ मा कलगी होवय लाल। धीर रास हे येखर चाल।।
-कुकरा
32- भावय येला घुप अँधियार। दिनभर ये राहय थिरथार।।
आँखी खुसरे, धरहा चोंच। का चिरई हे? तुरते सोंच।।
-घुघुवा
33- दशराहा के दिन तैं खोज। दिखय भले ये सब ला रोज।।
टेर्र-टेर्र के बोलय बोल। पंछी ये हावय अनमोल।।
-टेहर्रा
34- येखर थन ले गोरस धार। दूध, दही, घी के भंडार।।
पैरा, भूँसा, काँदी खाय। महतारी के पदवी पाय।।
-गाय
35-लाली, धँवरा, सादा रंग। जोड़ी जँमथे नाँगर संग।।
बड़का सिंग, पुछी हे लाम। झट्टे जानव का हे नाम।।
-बइला
36- पाना, पतई पागुर खाय। मेर-मेर बहुते नरियाय।।
खैरी, कबरी बड़ छतरंग। खेत-खार मा चरै मतंग।।
-छेरी
37- चुकता चुन्दी देंह छवाय।। बीच-बीच मा मुँड़ मूँड़ाय।।
कतको काँही आवय जाय। रेंगय येमन मुँड़ी नवाय।।
-भेंड़ी
38- रतिहाकुन ये चौकीदार। दिनभर सुतथे पाँव पसार।।
भूँ-भूँ के करथे आवाज। घर के आगू येखर राज।।
-कुकुर
39- दूध, दही, मलई चोराय। मुसुवा ऊपर धाक जमाय।।
आँखी कर्री ला छटकाय। बघवा के मोसी कहलाय।।
-बिलई
40- बहुत उपाई येखर जात। कूदय, फाँदय, नाचय घात।।
डारा-पाना देवय टोर। खीस-खीस खों, दाँत निपोर।।
-बेंदरा
41- देंह भरे चुंदी भरमार। खाय गजब मधुरस रसदार।।
नान्हें आँखी, नान्हें कान। पुछी छोटकुन, झट पहिचान।।
-भलुवा
42- भारी भरकम हावय पेट। खावय पीयय सूँड़ लपेट।।
सूपा जइसन जब्बर कान। कोन हरय? येला पहिचान।।
-हाथी
43- खदबिद-खदबिद भागय पोठ। हिनहिन-हिनहिन सुनले गोठ।।
चना-चबेना बहुते खाय। सुघर सवारी ये बन जाय।।
-घोड़ा
44-पींयर, करिया, धारीदार। बहुते बलकर, बड़ हुशियार।।
येखर ले सब जीव डराय। वन के राजा इही कहाय।।
-बघवा
45- राहँय जंगल, झाड़ी बीच। बहुते चतुरा, नँगते नीच।।
माड़़ा खुसरे बखत बिताँय। हुआँ-हुआँ रतिहा इँतराँय।।
-कोलिहा
46-करिया, पींयर, छिटही छाप। दँउड़य भारी एक्के धाप।।
खरखर चढ़थे रुखुवा टाप। कखरो ले झन येला खाप।।
-चितवा
47- सुग्घर-सुग्घर आँखी, कान। सिंग इँखर हे सिरतों शान।।
छिटही, बुंदी, पींयर पाँव। नइ पावव तुम येखर छाँव।।
-हिरना
48- सबले उँचहा येखर ठाट। रेती येखर सोज्झे बाट।
निपटाथे ये नँगते काज। रेगिस्तान के हरय जहाज।।
-उँटवा
49- बोझा डोहारै ये रोज। होथे निच्चट सिधवा सोज।।
तपथे तेला लात जमाय। चिपो-चिपो चोखी चिचियाय।।
-गदहा
50- पानी, भुँइयाँ करे निवास। मछरी कस नइ आवय बास।।
भुँइयाँ मा झप झप झप चाल। चौमासा मा बाजय गाल।।
-मेचका
51- रानी पानी बीच कहाय। भुँइयाँ मा तुरते मर जाय।।
रोजे येहा धोय-नहाय। तभो कभू नइ तो ममहाय।।
-मछरी
52- पखरा जइसन ऊपर खोल। खाल्हे पींयर, कोंवर सोल।।
चार पाँव मा रेंगय सोज। पानी, भाँठा येला खोज।।
-केछुवा
53- पानी बिन ये महल बनाय। कारीगर ये सुघर कहाय।।
छै ठन रहिथे येखर पाँव। सोच समझ के नाँव बताव।।
-मेकरा
54- लाली मुँहु के नोनी आय। फीता हरियर गजब गँथाय।
जब हटरी मा बइठे जाय। तुरते-ताही ये बेंचाय।।
-पताल
55- आगू-पाछू चलथे चाल। रहिथे करिया, भुरवा, लाल।।
रथे पाँच जोड़ी मा पाँव। बिला भीतरी येखर ठाँव।।
-केकरा
56- मुँड़ी, पुछी हे, नइ हे पाँव। बिला भीतरी येखर ठाँव।।
दाँत, पेट हे, नइ हे कान।। गुजगुज काया हे पहिचान।।
-साँप
57- गेंद नहीं पर हावय गोल। लाम पुछी पर पशु झन बोल।।
धरँय पुछी ला खेलँय खेल। देवँय जम्मों गजब गदेल।।
-फुग्गा
58- सुनै नहीं पर हावय कान। हाथ पाँव हे, नइ हे प्रान।।
जौने येला लँय पोटार। करँय गजब के मया-दुलार।।
-पुतरा-पुतरी
59- चकमिक-चकमिक हावय रंग। रहिथँव लइकामन के संग।।
गोली नोहँव, हावँव गोल। अड़बड़ सस्ता मोरे मोल।।
-बाँटी
60- पाँव नहीं पर नाचय गोल। आगू-पाछू लइका डोल।।
पातर बाती येला नेत। खेलत खानी करले चेत।।
-भौंरा (लट्टू)
61- लानव लकड़ी देवव छोल। आगू-पाछू चोक्खू गोल।।
जतके जादा खावय मार। भागय दुरिहा पल्ला झार।।
-इब्भा (गिल्ली)
62- दू थँगिया हे येखर हाथ। चमड़ा, रब्बड़ देवँय साथ।।
मारन गोली नेत लगाय। चलव बतावव येहा काय।।
-गुलेल
63- लोहा, टीना झट चटकाय। रब्बड़ येला तुरत हराय।।
भुँसा बीच सूजी लय खोज। रथे गोलवा, चाकर सोज।।
-चुंबक
64- बिना पाँव के चलथे घात। बिहना, संझा, दिन अउ रात।।
टिकटिक रेंगय तीनों हाथ। पोंछत राहय अपने माथ।।
-घड़ी
65- इक महतारी, लइका तीस। सात रंग मा सबो गढ़ीस।।
एक बछर मा बारा बेर। जम्मों परथें येखर फेर।।
-महीना
66- शुरू कटे ता बनथे गीत। बीच कटे ता संत पुनीत।।
कटे आखिरी बनथे यार। एक संग मा सुर रसदार।।
-संगीत
67- मोर नाँव मा आखर तीन। उड़ियाथौ पर हरँव मशीन।
सीधा-उल्टा एक समान। झटपट मोला तैं पहिचान।।
-जहाज
68- लाली डबिया, पींयर पेट। राखय लाखों दाँत समेट।।
फरय पेड़ मा, नइ हे नार। बड़ गुणकारी, बड़ दमदार।।
-अनार
69- एक नानकुन मटकूदास। कपड़ा पहिरै बीस, पचास।।
लाली, सादा येखर रंग। रोवाथे बड़, रहिके संग।।
-गोंदली
70- हावय अइसन एक फकीर। जेखर पेट म परे लकीर।।
उपजय बाढ़य सबके खेत। रोटी पोये करथन चेत।।
-गहूँ
71- एक गुफा के दू रखवार। होय दुनों के जय जयकार।।
करिया, भुरुवा, सादा रंग। रहय सदा मुखड़ा के संग।।
-मेछा
72- पंख नहीं पर उड़ते जाय। संग हवा के ये बतियाय।।
हाथ नहीं पर लड़ते जाय। बिन चाकू के काट गिराय।।
-पतंग
73- एक अचंभा, गजब कमाल। डारव हरियर, निकलय लाल।।
पक्का होवय जतके चाब। सकय न कोनो येला दाब।।
-पान
74- काया मोर गोलवा गोल। नारी जाँथें देखत डोल।।
काँच, प्लास्टिक मोरे अंग। रिंगी-चिंगी हावय रंग।।
-चूरी
75- बात बतावव मैं हा खास। का घटना हे आसेपास।।
रोज बिहनिया सबके द्वार। पढ़के बनथें सब हुशियार।।
-अखबार
76- बइठे-बइठे एक्के ठाँव। पहुँचावव मैं सब ला गाँव।।
डामर करिया मोरे रंग। चलना सब ला मोरे संग।।
-सड़क
77- जतके जादा आगू आय। वतके पाछू छुटते जाय।।
एक संग नइ रेंगे पाय। तभो सबो ला जा पहुँचाय।।
-कदम (पाँव)
78- कर्री आँखी देख डराय। घर भर भारी उधम मचाय।।
कुतर-कुतर करथे हलकान। चीं-चीं के ये गावय गान।।
-मुसुवा
79- दू झन सुग्घर लइका नेक। रंग रूप मा हावय एक।।
रहिथे सँघरा बनथे काम। तुरत बतावव का हे नाम।।
-पनही
80- तीन वर्ण के हावय नाम। कटै शुरू तब जय श्री राम।।
बीच कटै ता फल के नाँव। कटै आखिरी, काट मड़ाँव।।
-आराम
81- दू आखर के मोरे नाम। हरदम रहिथे सरद जुकाम।।
काजग हावय मोर रुमाल। काम मोर हे गजब कमाल।।
-पेन
82- रोवाना हे येखर काम। लाली बाई हावय नाम।।
हरियर पहिरे लुगरा लाम। दू पइसा हे येखर दाम।।
-मिरचा
83- हरियर हँव, पाना झन जान। करँव नकल, झन बंदर मान।।
मिरचा खाथँव मैं हा पोठ। मनखे जइसन करथँव गोठ।।
-मिट्ठू
84- हरियर पींयर हवै मकान। रहँय इहाँ करिया इंसान।।
रहै रंधनीघर मा धाक।।
फागुन मा ये जाथे पाक।।
-सरसों
85- पाँव नहीं पर जाथे पार। खलबल-खलबल बड़ रफ्तार।।
भागय सरपट पानी चीर। बिन पतवार हाल गंभीर।।
-डोंगा
86- आगू-पाछू डोलय मोर। करय कभू नइ काँही शोर।।
अँधियारी मा कहाँ लुकाय। देख अँजोरी तुरते आय।।
-अपन छँइहाँ
87- सबके घर रहिथँव बिन खाय। कोन्हों नइ पानी पीयाय।।
करँय भरोसा सब संसार। महीं हरँव घर के रखवार।।
-तारा (ताला)
88- कुकरा नो हे, मुँड मा मौर। जंगल, झाड़ी येखर ठौर।।
नाचय बरखा बादर देख। सतरंगी हे, नाँव सरेख।।
-मँजूर
89- करिया हे पर नो हे काग। लंबा हे पर नो हे नाग।।
अँइठन हे पर नो हे डोर। झटपट संगी करलव शोर।।
-बेनी
90- खाथे येहा गोली गोल। डरथे जम्मों सुनके बोल।।
दबथे घोड़ा भागय सोज। ठाठ हाथ मा, गोली खोज।।
-बंदूक
91- कचर कचर सब येला खाँय। काट मुँड़ी तब नून लगाँय।।
बारी-बखरी छछलै नार। भीतर बीजा के भरमार।।
-खीरा
92- खई नहीं पर गजब चबाय। काड़ी कोंवर नीक जनाय।।
दाँत, जीभ चमचम चमकाय। बीमारी ला मार भगाय।।
-दतुवन
93- एक सवारी, चालक चार। सुते जाय ये पाँव पसार।।
आगू-आगू येखर चाल। पाछू मा जनता बेहाल।।
-मुरदा
94- करिया हँड़िया, उज्जर भात। खालव संगी ताते-तात।।
हवय भरे येमा जुड़वास। तरिया भीतर करय निवास।।
-सिंघाड़ा
95- खाय न दाना, पानी, घास। होय तं ये कभू उदास।।
ले जावय बइठा के पीठ। करै कभू नइ येहा ढीठ।।
-साइकिल
96- हावय येखर रानी चार। एक हवय राजा दमदार।।
पाँचों जुरमिल करथें काज। सुग्घर सुमता साजँय साज।।
-अँगरी, अँगठा
97- एक फूल करिया मुस्काय। मुँड मा सबके सुघर सुहाय।।
घाम परै ता खिल-खिल जाय। छँइहाँ मा ये झट मुरझाय।।
-छतरी
98- अपन ददा के रहिथे संग। आगर बेटा के हे रंग।।
उँचहा हावय इँखर मकान। बीच खोतली बसथे प्रान।।
-नरियर
99- नान्हें लइका बाँधय पार। कूदत-फाँदत कई हजार।।
करनी येखर लाज बचाय। बोलव संगी, काय कहाय।।
-सुजी सूँत
100- ये लइका दू कौंरा खाय। चपक बोंड़री, डहर बताय।।
करय नहीं ये काँही शोर। अँधियारी मा होय अँजोर।।
-टॉर्च
101- एक अचंभा देख सुनाय। पानी पीयय, पुछी लमाय।।
मुँड़ी कोत बड़ ललियाय। आखिर मा जर मर जाय।।
-दीया
102- सोला रानी, तिनठन यार। चार चौंकड़ी गोल बजार।।
खेलँय जम्मों जुगत लगाय। पौ बारा के बोल सुनाय।।
-पासा
103- नान्हें डबिया मा डिबडाब। नइ जानच ता तैं मुँहुँ दाब।।
देखय येहा सब ला जान। तैं नइ देखस, येला मान।।
-आँखी
104- लइका नान्हें, कुबरा पेट। रहिथे दुरिहा सबो समेट।।
बाहिर ले ये कड़क जनाय। भीतर कोंवर, मन ला भाय।।
-नरियर
105- धरे मोटरा मुँड मा तान। गजब डोकरी येला जान।।
अपन लार के फाँदा डार। जौन फँसय वोला दय मार।।
-मेकरा
106- रिंगी-चिंगी फूलय फूल। फर फरथे लमडेरा झूल।।
दिखथे काड़ी हड़ही सार। लेकिन भीतर भरे गुदार।।
-मुनगा
107- माढ़े तरिया के ये बीच। जइसे गोबर या के कीच।।
पखरा जइसन भारी ठोस। रेंगय ये हा कतको कोस।।
-केछुवा
108- चार कुआँ बिन पानीदार । चार मुँड़ा मा खड़े तियार।।
रानी अउ अट्ठारा चोर। जिरमुल जम्मों हें चिरबोर।।
-कैरम अउ गोंटी
109- हवय एकठन घर अउ द्वार। संग रहय वो हा हुशियार।।
कथा-कंथली, बहुते ज्ञान। संगत येखर, बनय महान।।
-पुस्तकालय
110- नान्हें लइका, करिया रंग। खाय भात राजा के संग।।
लइका जूठा राजा खाय। राजा ला बीमारी आय।।
-माछी
111- हरदी के रंगे रंगाय। पीतल लोटा नाँव धराय।।
खा ले बेटा हाथ लमाय। गिर परही तब गय छरियाय।।
-बेल
112- पातर दुब्बर लइका जान। पहिरँव लकड़ी के मैं थान।।
जतको मोला छोलत जाव। नवा-नवा तुम मोला पाव।।
-शीश
113- निकलय पानी ले रुख एक। नइ हे पाना, डार अनेक।।
खाल्हे कोनो बइठ न पाय। तीर खड़े मा जाड़ जनाय।।
-फब्बारा
115- रानी जेखर तिनठन पाँव। रोज नहावय अपने ठाँव।।
कठवा ले हावय पहिचान। खावय कच्चा, सान पिसान।।
-चौंकी बेलना
116- जब-जब गरमी के दिन आय। सबझन येला तीर बलाय।।
पीयय पानी भर-भर पेट। जूड़ हवा, गरमी दय मेट।।
-कूलर
117- लोहा के दूठन तलवार। करँय लड़ाई बड़ दमदार।।
तभो रहँय इन एक्के संग। दिखथे जुड़वा जइसे रंग।।
-कैंची
118- जीभ नहीं पर बोलँव बोल। पाँव नहीं पर डोलँव गोल।।
राजा परजा सब ला भाँव। मैं जम्मों खुशहाली लाँव।।
-रुपिया
119- चार गोड़ पर नइ रेंगाय। हालय नइ ये बिना हलाय।।
सब ला देवय ये आराम। तुरत बतावव येखर नाम।।
-खटिया
120- फटफट-फटफट धरथे राग। सरपट-सरपट जावय भाग।।
दू चक्का मा जावय डोल। भूख लगय पीयय पेट्रोल।।
-फटफटी
121- थापक थउआ हावय पेड़। बाढ़य बखरी-बारी मेंड़।।
चाकर झाफर येखर पान। बिन बीजा के हे, पहिचान।।
-केरा
122- कटही हावय येखर अंग। पान बहेरा जइसे संग।।
फूल रतन कस रहिथे लाल। फागुन मा ये दिखय कमाल।।
-सेम्हरा
123- एक चघय जी ऊँच पहार। एक रहय जी जंगल खार।।
एक रहय जी खेत मरार। तीनों एक्के करय गुजार।।
-मखना
124- नान्हें बटकी रस भरमार। खावँय चुहकँय ले चटकार।।
होथे हरियर पींयर गोल। का हे तेला तुरते बोल।
-लिमँऊ
125- घपटे रहिथे खाल्हे छाँव। बाप-पूत के एक्के नाँव।
नाती के तैं नाँव विचार। महर-महर ममहावय खार।।
-मउँहा
126- चाकर पाना पातर पेड़। ठाढ़े जंगल खारे मेड़।।
पतरी दोना बनथे पान। फुलवा आगी जइसन जान।।
-परसा
127- कुबरा बुढुवा नुनछुर खाय। बड़े जवनहा अमसुर भाय।।
बीजा आवय खेले काम। मुँह मा पानी लेवत नाम।।
-अमली
128- करिया कुरता सादा अंग। गाँव शहर मा सबके संग।।
पढ़े लिखे अउ अप्पढ़ खाय। नून डार ले, बहुत मिठाय।।
-चिरई जाम
129- ये गरीब के सेब कहाय। हरियर पींयर फर मन भाय।।
गुदा लाल सादा मा होय। चिक्कन डारा झिम्मट सोय।।
-बीही
130- हरियर पींयर रहिथे गोल। काँटा-खूँटी पाना डोल।।
कोंवर बाहिर, भीतर खोल। फोरव गुठलू खालव डोल।।
-बोईर
131- डम डम डम के फूटय बोल। छम छम छम तैं संगे डोल।।
धरे मदारी गँवई आय। भलुवा के नाचा देखाय।।
-डमरू
132- बाहिर हरियर, भीतर लाल। करिया बीजा गजब कमाल।।
खावव चानी-चानी चान। फर ये गरमी मा वरदान।।
-कलिंदर
133- पाना-पाना बड़ भरमार। अंग-अंग हे सरी गुदार।।
नइ तो बीजा कोनो हाड़। बिन लकड़ी के ये हा झाड़।।
-केरा
134- होवय बहुते नदी, कछार। लसलस फरथे, लहसै डार।।
किचपिच बीजा भरे हजार। लाली सादा मीठ गुदार।।
-बीही
135- कच्चा मा ये साग खवाय। पक्का मा सबके मन भाय।।
करिया बीजा रथे हजार। कोला-बारी उपजै मार।।
-अरंपपई
136- कच्चा मा बड़ अम्मठ स्वाद। पक्का मा बस गुरतुर गाद।।
झोत्था-झोत्था फरथे डार। छछले रहिथे येखर नार।।
-अंगूर
137- फर के राजा येला जान। हवय 'खास' जी बहुते शान।।
कच्चा मा चटनी तैं डार। पक्का मा गोही चटकार।।
-आमा
138- भुँइयाँ भीतर रहै उदास। निकलय बाहिर, बनजय खास।।
सँघरा सबसे येला जोर। इही बनावय बढ़िया झोर।।
-आलू
139- लाली-लाली कुरता लाल। हरियर फीता फभे कमाल।।
रँधनी घर मा एखर राज। नाँव बतावव तुरते आज।।
-पताल
140- जइसन नाँवे वइसन रंग। लहिथे येहा सबके संग।।
मुँड़ ठाड़े कटही रखवार।। येला खाये सब तइयार।।
-भाँटा
141- हरियर चुन्दी, सादा रंग। गड़े रहय भुँइयाँ के संग।।
भाजी कोंवर सुघर मिठाय। चुरपुर-गुरतुर स्वाद सुहाय।।
-मुरई
142- माथा उपजे धनिया पान। रंग गाजरी हे पहिचान।।
हलुआ खा ले ताते-तात। कच्चा मा तो भाथे घात।।
-गाजर
143- चारों मूँड़ा घपटे पान। सादा पोनी बीचे जान।।
होथे फर भाजी छतनार। खूब मिठाथे ये दमदार।।
-गोभी
144- फरथे येहा लामी-लाम। भीतर बीजा भरे तमाम।।
अँगरी जइसन दिखथे ढ़ंग। हरियर पींयर जानव रंग।।
-रमकेरिया
145- फुलुवा के राजा तैं जान। कटही तन के हे पहिचान।।
महर-महर ममहाथे घात। संझा बिहना दिन अउ रात।।
-गुलाब
146- पातर-पातर पाना पोठ। डारा फुलुवा रहय न मोठ।।
पींयर-पींयर पँखुड़ी गोल। अँगना के शोभा अनमोल।।
-गोंदा
147- जरी धँसे हे पानी कीच। छछले सुग्घर तरिया बीच।।
खाले फर हावय जुड़वास। चिक्कन डारा, सब्जी खास।।
-कमल/पोखरा/ढ़ेस
148- जेती बेरा ओती घूम। जब्बर जकना, जाथे झूम।।
पींयर फुलुवा, हरियर पान। बीजा रहिथे तेल खदान।।
-सूरजमुखी
149- सरदी के मौसम मा आय। महर-महर अँगना ममहाय।।
सादा-सादा खिलथे फूल। आँखी-आँखी जाथे झूल।।
-मोंगरा
150- लाली-लाली लहसे डार। येखर ले देवी सिंगार।।
अँगना बारी लगे पछीत। गा ले संगे सेवा गीत।।
-मंदार
151- बँधे सघन के बँधना बाँध। कोरे गाँथे झूलय खाँध।।
चाबे नख नइ जाने तेन। मजा उड़ावय जाने जेन।।
-ककई
152- अँइठे गँइठे हवय हजार। बइठै चढ़के ऊँच पहार।।
चघे फूल अउ पतई पान। फेर देवता नो हे जान।।
-पगड़ी
153- सेतचंद हे राजाराय। भुँइयाँ ना येला उपजाय।।
मुँहू फोकला एक न पाय। लाखों फर ला सइघो खाय।।
-करा
154- तन के फुदकी फुदकत जाय। नौ-नौ अँड़वा पार मढ़ाय।।
धागा संगे बदे मितान। अरझे दूनों के हे प्रान।।
-सूजी सूँत
155- एक अचंभा देखन भाय। खाय न खाना, जाय सुखाय।।
खावय खाना तब मोटाय। सदा सुखी हें जे पतियाय।।
-चून्दी
156- चाहे कतको संकट आय। सबके जरथे ता जर जाय।।
साधु बबा के बचै लँगोट। काँपय न कभू येखर पोट।।
-सड़क
157- कच्चा मा ये गुदगुद गाँठ। पक्का मा ये होथे टाँठ।।
चलै चाक पावय आकार। पानी पीयँय तब संसार।।
-मरकी
158- गर मा डोरी हावय लाम। कारी छेरी परगे नाम।।
चल टूरी चल हाट बजार। तोर बिना कइसे बैपार।।
-तराजू
159- खिलय न कोनो राजा बाग। येखर ले चमकै जग भाग।।
जस गुलाब बिहना मुस्काय। बड़े बिहनिया ये बगराय।।
-बेरा
160- बजत नँगारा चारों खूँट। भागँय पल्ला छेरी, ऊँट।।
खड़े लखन के बरदी खार। दाता येखर हे रखवार।।
-सूरुज, चंदा, चंदैनी, गरजना
161- ठड़गा बइला, ठड़गा सींग। ठड़गा नाचै, टींगे टींग।।
भर-भर मुँह ठाड़े पगुरात। बुता करय जब खावय लात।।
-ढ़ेकी
162- नानुक बटकी रस भंडार। रामा आगू पलथी मार।।
भरे कटोरी रसा खदान। कच्चा पक्का डार अथान।।
-लिम्बू
163- आठ पहर भर अँगना तीर। चौंसठ पल ये खड़े गँभीर।।
नर के ऊपर चढ़हे नार। होवत हे जग मा जयकार।।
-तुलसी
164- जनम धरे तब गज हे साठ। भरे जवानी एक लुवाठ।।
आय बुढ़ापा मा गज तीस। तुरत बतावव काय जिनीस।।
-छँइहा
165- हवय पुछी दू, छै ठन कान। गोड़ा दस हे येखर जान।।
हावय सिरतों मा मुँहुँ चार। बिना जीभ के हाथ पसार।।
-दुहना
166- खन-खन उड़ते-उड़ते जाय। बइठै भीतर पंख बिछाय।।
लाखों जियना मार गिराय। पर ये कुछु नइ कखरो खाय।।
-सौंखी
167- बाप पूत के एक्के नाँव। राहँय दूनों एक्के ठाँव।।
हवय नाँव नाती के और। जभे बताबे, जाबे ठौर।।
-मँउहा
168- कोन तीर मा तरई गाय। मुँह भर ये ओन्हारी खाय।।
बीच पेट मा सबके ध्यान। पूजँय पहिली देव समान।।
-जाँता
169- घोड़ा ऊपर घोड़ा संग। जीन घोड़वा एक्के रंग।।
एक दुसर के पीठ सवार। जावय सँघरा हाट बजार।।
-रउतईन कीरा
170- बन मा काटय, बन मा छील। सावन-भादो नँदियाँ ढील।।
काट बहेरा, घाम सुखाय। जइसे फाँफा छोड़े जाय।।
-डोंगा
171- एक पेड़ के अजब सुभाव। लगे देंह मा बारा घाव।।
तीस-तीस के झोत्था डार। अलग-अलग हे नाँव पुछार।।
-साल, महीना, दिन
172- फरै लकड़िया उँचहा डार। पोर-पोर मा गुण रसधार।।
खाँय सियनहा चाँटे चाँट। छेवरिया ला देवव बाँट।।
-मुनगा
173- मोर ममा के नौ सौ गाय। रतिहा ढिल्ला बड़ बिजराय।।
चारा-पानी कुछु नइ खाय। बिहना लहुटे घर मा आय।।
-चंदैनी
175- तीन भाग हे, चलय समेट। खावय कतको खलखल पेट।।
दिखथे गाभिन पुछी सजोर। रेंगय तुरतुर ओरी ओर।।
-करिया चाँटा
176- चमचम चमचम पाँव मड़ाँव। तोर दुवारी हेरत आँव।।
जाँवर जोड़ी धौंस जमाय। अँकड़ा कोई काम न आय।।
-पनही
177- तरी तेलई ताते तात। एक तेलई ऊपर थात।।
बड़े मिठाई चूरे जाय। सादा-कोंवर गंज मिठाय।।
-पेंउस
178- माटी के बकरा नरियाय। चटकन चीला चटचट खाय।।
जतके परथे येला मार। वतके बनथे ये गुणकार।।
-माँदर
179- बिना हाथ के करय उपाय। बिना गोड़ के खाँधे जाय।।
घोड़ा दाबे बोलय धाँय। मुँह ले बोली निकलै साँय।।
-बंदूक
180- दिखे साँप कस येखर ढंग। दुधवा, सादा, उज्जर रंग।।
नारी गर के शोभा आय। जानय जौने तुरत बताय।।
-सुतिया (सूँता)
181- सुक्खा डबरी तीपत जाय। देख कोकड़ा ह फड़फड़ाय।।
सबके मन ला बहुते भाय। मुसुर-मुसुर सब येला खाय।।
-मुर्रा
182- सात नँगरिया जोतँय खेत। पानी के नइ पावँय नेत।।
ठाडे़ जोगी ध्यान लगाय। बिना बोकला रुखुवा पाय।।
-मंदिर
183- नान्हें लइका चतुरा चंट। दिखथे ये भारी फरजंट।।
मुँह ले बाहिर दतुवन घीस। तुरत बतावव काय जिनीस।।
-चूल्हा
184- माटी के बइला हे जान। माटी के हे चढ़े पलान।।
माढ़ै माटी के देवान। झटपट तैं येला पहिचान।।
-हाँड़ी
185- बादर ले वो छर्रा आय। तेला लेंगय लोग उठाय।।
स्वाद पचर्रा अजब जनाय।। जे खावय वो हा पछताय।।
-करा (ओला)
186- इन्दर राजा फोरै पेट। बादर गड़गड़ देवय मेट।।
बीच बोडर्री निकलै भात। बनय तभे जी सबके बात।।
-कपसा
187- ना डारा ना कोनो पान। जनम धरे हन तबले ध्यान।।
खाय बिना रहे ना जाय। जिनगीभर रहना हे खाय।।
-नून
188- बाढ़य बइला, भागय गाय। खेत खार मा गोड़ लमाय।।
आगू-आगू फुलुवा फूल। आँखी-आँखी जावय झूल।।
-मखना नार
189- पर्रा भर हे लाई देख। बगरै मा नइ सकय सरेख।।
चमकै चमचम ये हा रात। होत बिहनिया गायब बात।।
-चंदैनी
190- छितका कुरिया बाघ बँधाय। चारा देबे बड़ गुर्राय।।
खावय खानी देंह घुमाय। कतको खाथे, कहाँ अघाय।।
-जाँता
191- जेखर ऊपर पाँखी झार। चना, मसूरी, खेती-खार।।
डोंगा बूड़य पानी बीच। कभू-कभू पानी मा कीच।।
-आँखी
192- पचरी ऊपर पचरी जान। रहय मोंगरी परे उतान।।
हावय कोंवर मासे मास। नान्हें हे पर हावय खास।।
-जिभिया
193- हवय टेड़गा येखर राह। जबर कुआँ, नइ पावय थाह।।
आँखी संगें जोड़ी जोड़। जइसे हावय हाथे गोड़।।
-कान
194- जनमै येहा घामे घाम। चमचम चमकै आगर चाम।।
छँइहा मा ये झट मुरझाय। लगय हवा ता मरते जाय।।
-पछीना
195- राहँय जम्मों एक्के संग। पाँचों भाई एक्के रंग।।
अलग-अलग मा काय कहाय। सँघरा मा ये सदा सहाय।।
-हथेरी
196- करिया हे पर नो हे काग। लम्बा हे पर नो हे नाग।।
चढ़ै तेल, नो हे हनुमान। चढ़ै फूल, नो हे भगवान।।
-बेनी
197- उचकुल-गुचकुल कुआँ खदान। पेड़ बतीसा, एक्के पान।।
रहय मोंगरी मछरी एक। सबके सेवा करथे नेक।।
-मुँह, जीभ
198- बिना कहे ये लग जाय। कहे-कहे मा ये तनियाय।।
लाली-लाली तीर कमान। रहिथें दूनों एक समान।।
-होंठ
199- दू दरवाजा मंदिर एक। भुरवा राजा राहय नेक।।
अलग-अलग हे बाहिर भेद। भीतर जाके एक्के छेद।।
-नाक
200- नँदियाँ के ये तीरे तीर। बइठे बगुला धीरे धीर।।
टुपटुप येहा बिनते जाय। जुरमिल के ये जम्मों खाय।।
-दाँत
201- चुकिया जइसे रेंगत बेर। बइठे हे तब दीया ढेर।।
बोहे रहिथे तन के भार। येखर बिन नइ हे निस्तार।।
-माड़ी
202- कारी जंगल बीच निवास। जब-जब ये हा मरय पियास।।
पीयय पानी लाले लाल। तुरतुर-तुरतुर चलथे चाल।।
-जुआँ
203- आवय एक न येला आँच। भुसभुस बन मा नाचय नाँच।।
ककवा ककई ले डर्राय। लीम तेल ले प्रान बचाय।।
-जुआँ
204- राहय तरिया बीचो बीच। जइसे गोबर चोता कीच।।
पखरा जानव येखर खोल। जानव जल्दी, नाँवे बोल।।
-कछुआ
205- मुँहुँ हे चाकर, दाढ़ी लाम। मेर्र-मेर्र बस दिनभर काम।।
खावय भारी बोंइर पान। बहुते सिधवा येला जान।।
-बोकरा
206- अइसन चिरई जानव आज। अपन पाँव ले आवय लाज।।
पुछी धरे पइसा पहिचान। जंगल के ये होथे शान।।
-मंजूर
207- चटर-चटर हे चतुरा चंट। भनभन-भनभन देत करंट।।
चूमय थोरिक चुप्पे गाल। हो जावय तब बारा हाल।।
-मच्छर
208- आवय डॉक्टर बिना बलाय। बिन पइसा ले सुजी लगाय।।
हाथ-पाँव छैठन हे देख। नाँव काय हे? चिटिक सरेख।।
-मच्छर
209- दू अण्डा अउ एक्के थार। अलग-अलग हावय व्यवहार।।
हे इक ठण्डा दूजा गर्म। जानव का हे येखर मर्म।।
- सूरुज, चंदा
210- आगी अँगरा लाले लाल। लकठा जाबे बारा हाल।।
सात घोड़वा रथे सवार। पावय कोनो नइ तो पार।।
-सूरुज
211- घटथे बढ़थे येखर रूप। कभू अँजोरी कभू कुलूप।।
जुड़हा जानव येखर छाँव। आसमान हे येखर गाँव।।
-चंदा
212- थारी भर मोती भरमार। खाल्हे कोनो गिरय न यार।।
दिखय न एक्को ये दिनमान। जगजग रतिहा लगै बिहान।।
-चंदैनी
213- नंद बबा के नौ सौ गाय। चरय रात, दिन बेड़े जाय।।
सुग्घर जुड़हा येखर धाम। ओझल होथे देखत घाम।।
-चंदैनी
214- रहिथे येहा तरिया बीच। गड़े नेरवा खाल्हे कीच।।
दिखथे जइसे कंचन थार। लोटय पानी एक न यार।।
-पुरईन पान
215- एती-ओती जावय रोज। कहाँ धराथे येहा सोज।।
आगू-पाछू चलथे संग। बिरबिट करिया येखर रंग।।
-छँइहा
216- बादर ले नरियर ये आय। पाँच रकम के भेला ताय।।
बिन छाली के हावय बीज। बोल तुरत अब ये का चीज।।
-करा
217- सावन-भादो भारी चाल। पानी-पानी बारा हाल।।
माँघ-पूस मा पातर धार। का हे येहा करव विचार।।
-मोरी (नाली)
218- भर-भर हथुआ धरे पिसान। घर भर बाँटय अपने मान।।
येखर बिन नइ हे उजियार। संग रहय ता खुशी अपार।।
-अँजोर
219- आधा मिट्ठू देखव यार। आधा बगुला दिखथे सार।।
हमर देश मा उपजै पोठ। कोनो पातर कोनो मोंठ।।
-मुरई
220- रिंगी-चिंगी फूलै फूल। फर फरथे फुनगी मा झूल।।
दिखथे लकड़ी जइसे अंग। गुदा रसा हे येखर संग।।
-मुनगा
221- दाना ऊपर दाना देख। इचिक-पिचिक हे तहूँ सरेख।।
गोल-गोल दाना दमदार। बने रथें एक्के परिवार।।
-बटरा
222- एक खड़े खंभा खँड़सार। पाना छाहित येखर चार।।
नाँव धरे हें तीने पान। भरे स्वाद निक येमा जान।।
-तिनपनिया
223- एक टाँग के टोपी एक। जोगी निकले बारा नेक।।
बादर गरजय तब ये आय। सबके मन ला बहुते भाय।।
-फुटु
224- हावय हड़िया सादा रंग। भीतर पानी हे दू रंग।।
तुरते ताही नाँव बताव। बाँट बिराजे सब झन खाव।।
-अंड़ा
225- देवय दुधवा नो हे गाय। तीन आँख पर नहीं शिवाय।।
रहै पेड़, चिरई नइ जान। खड़भुसरा येखर पहिचान।।
-नरियर
226- रहय कटोरा संगे खाप। गोरा बेटा साँवर बाप।।
भीतर कोंवर, बाहिर ठोस। गुरतुर-गुरतुर खाव परोस।।
-नरियर
227- साल, महीना चूरे भात। जब खाबे तब ताते तात।।
नानुक फर हे करय कमाल। छू पारे ता आँखी लाल।।
-मिरचा
228- लइकापन हरियर हे हाल। आय बुढ़ापा होवय लाल।।
मया मरे मा अगिन ढिलाय। पानी-पानी सब चिल्लाय।।
-मिरचा
229- हरियर पींयर येखर रंग। टिपटिप रस हा छलकै अंग।।
नान्हें-नान्हें सेसा सार। काट-काट के चटनी डार।।
-लिम्बू
230- थोरिक पानी बीच तलाव। लाल भवानी गाल फुलाव।।
धोय नहाये ताते तात। कहाँ अगोरा खाते खात।।
-सोहाँरी
231- नानुक टूरा मटकू दास। ओन्हा परिहे तीस पचास।।
लाली सादा रहिथे यार। चुरपुर गुरतुर, नँगते झार।।
-गोंदली
232- रतन सिंग हे नाँव धराय। काटय कुड़हा बाँध मढ़ाय।।
हाड़ा-हाड़ा चुहकै सार। चुहक-चुहक के घुरुवा डार।।
-कुसियार
233- फर लड़ुवा कस होथे गोल। पाना गुजगुज लाम टटोल।।
हाँसय येहा, सबझन रोय। कांदा भुँइयाँ भीतर होय।।
-गोंदली
234- बोंवत बटुरा देखँव खार। जामत मा दिखथे कुसियार।।
ढाई महिना होवय पूत। दाढ़ी मेछा होय अकूत।।
-जोंधरी(भुट्टा)
235- एक पेड़ मा ढेलच-ढेल। खावँय लइका खेलत खेल।।
कटही डारा, पाना पीक। सावन मा ये लागय नीक।।
-बेल पेड़
236- खाल्हे हंडा मिलय हियाव। ऊपर हँड़िया देखव पाव।।
पाना डारा बनथे साग। अमसुरहा के धरलव पाग।।
-जिमीकांदा
237- सौ-सौ घुँघरू एक्के गोड़। हवय गोरिया ये बेजोड़।।
खनखन बाजय, सुनलव टेर। बोलव का झन करव अबेर।।
-मूँगफली
238- बारी बखरी खेती खार। ओन्हा-कोन्हा तीरे तार।।
एक फूल बहुते सुखदास। फर फरथे चालीस पचास।।
-केरा
239- तीन सींग के करिया गाय। अब्बड़ येखर दूध मिठाय।।
राहय येहा तरिया बीच। डेरा येखर कारी कीच।।
-सिंघाड़ा
240- काय शहर अउ गँवई गाँव। जम्मों करथें खाँवे खाँव।।
फर करिया अउ गुठलु सफेद। कोनो करँय न काँही भेद।।
-जामुन
241- कुबरा बुढ़वा नून म खाय। सोज बाय नइ रहि पाय।।
करिया बीजा हरय चिचोल। सोच समझ के नामे बोल।।
-अमली
242- सुग्घर हावय गोल मटोल। हरियर डारा, लाल कपोल।।
चटक-मटक ये सबके संग। कभू करय नइ ये उतलंग।।
-पताल
243- अइसन सिधवा राजा घात। बइठे छानी ताने लात।।
भुँइयाँ लामे येखर हाथ। फुलवा पाना देथे साथ।।
-मखना नार
244- चार महीना खूब भराय। चार महीना रहि खलियाय।
चार महीना धूल उड़ाय।। चार महीना सब घोलाय।।
-खेत
245- दाई चबरी, बेटी नेक। रहिथें काँटा खूँटी टेक।।
जौन तीर मा येखर जाय। संग चिरोंजी सुग्घर पाय।।
-बोंइर
246- एक दाँत के अलकर लोग। सावन-भादो नइ हे सोग।।
एक मुठा मा थामै मूँठ। दू बइला हा फाँदै ठूँठ।।
-नाँगर
247- रुखराई ना पाना सार। ऊपर छाहित छाता यार।।
चढ़े रखे ये उँचहा रूख। बिन राँधे ये मेटे भूख।।
-अमरबेल
248- बिना पाँव के अहिरा जाय। बिना सींग के देखव गाय।।
देख अचंभा मति चकराय।। येमन खारे खार कुदाय।।
-साँप अउ मेंचका
249- बिना पाँख के सुवना खास। उड़ि-उड़ि जावय ऊँच अगास।।
रंग रूप के नइ हे आस। भूख मरै ना कभू पियास।।
-जीवात्मा
250- कथा, सुपारी, बँगला पान। दू मनखे अउ बाइस कान।।
कभू करँय लंका मा राज। रहिगे अब तो सुरता आज।।
-रावण, मंदोदरी
251- खोड़र-खोड़र खटका गीन। छै आँखी बोड़र्री तीन।।
छै गोड़ा अउ एक फँदाय। एक दुसर के काज बनाय।।
-नाँगर जोतत किसान
252- चरै बोकरा नँदिया तीर। चारा खपगे परगे धीर।।
बिन चारा के बड़ नरियाय। तड़प-तड़प के ये मर जाय।।
-दीया
253- माटी के तरिया खोदाय। पुछी डहर ले पानी पाय।।
जरय मुँड़ी हा धीर लगाय। सादा तन तुरते ललियाय।।
-दीया
254- एक जगा धर आय मढ़ाय। चारों मूँड़ा ये बगराय।।
अँधियारी ला देवय चीर। अइसन नान्हें माटी बीर।।
-दीया
255- बड़का भारी एक जहाज। पुछी लमा के करथे काज।।
मुँह उलगै कुहरा झार। करै तहाँ ये घर उजियार।।
-दीया
256- दिनभर सोवय पाँव पसार। जागय जब होवय अँधियार।।
जतके जागय होय सजोर। अँधियारी ला खाय बटोर।।
-मोमबत्ती
257- दूर देश मा माया जाल। गाँव-शहर हावय ससुराल।।
गली-खोर मा ठाड़े यार। घर-घर मा येखर परिवार।।
-बिजली
258- रतिहाकुन जागय बिरवान। सुतै ससनभर ये दिनमान।।
चारा-पानी कुछु नइ खाय। अँधियारी ला बहुते भाय।।
-बिजली
259- कुटी-कुटी कतको तैं काट। जींयत रहिथे, चाहे पाट।।
चाहे पानी मा दे बोर। छाँड़य नइ ये हमरे कोर।।
-परछाई
260- करिया बइला राहय ठाड़। लाली बइला चढ़ै पहाड़।।
सँघरा दिखथे एक समान। नाँव बतावव का हे जान।।
-आगी
261- खरर-खरर खूँटी ला खाय। पानी पीयत ये मर जाय।।
धीर धरै कुहरा उड़ियाय। ताव चढ़ै जम्मों लेसाय।।
-आगी
262- कुबरी घोड़ी, लाल लगाम। बने बनावय सबके काम।।
ओमा चढ़थे ससुर दमांद। धरे एक दूसर के खाँध।।
-चूल्हा
263- चाबे ले ये कहाँ चबाय। लीले मा लीलावत जाय।।
काँही नइ हे येखर रंग। सँघरै सबके येहा संग।।
-पानी
264- हावय अइसन कारी गाय। देखत रहव करौंदा खाय।।
ढ़ील परे ता आफत आय। भागत बछरू लंका जाय।।
-बंदूक
265- रतिहाकुन ये भारी जान। हरू होय येहा दिनमान।।
चार गोड़ के खोरु सियान। लाखों आँखी देखव तान।।
-खटिया
266- बिन पखरा के हवय पहार। नँदिया हावय बिन जलधार।।
बिन मनखे के दिखथे गाँव। हावय जंगल, नइ हे छाँव।।
-नक्शा
267- एक अजूबा अइसन ताय। लात परै बहुते चिचियाय।।
पियै तेल अउ कुछु नइ खाय। कान अँइठ झट भागत जाय।।
-फटफटी
268- पातर दुब्बर संगी तीन। एक दुसर के रहँय अधीन।।
आगू-पाछू दँउड़त जाय। एक चिटिक नइ तो सुरताय।।
-घड़ी
269- संगे आवय संगे जाय। पानी ला बहुते डर्राय।।
हरय पाँव के ये रखवार। अँकड़ा मा ये हे बेकार।।
-पनही
270- आवय खाँधे, जावय खाँध। राखय येला सुग्घर बाँध।।
नेंग-नेंग मा मारे खाय। हाँसत-गावत बोल सुनाय।।
-माँदर
271- फुदक-फुदक के फुदकत जाय। तुनक-तुनक के बड़ तनियाय।।
छोड़ दुसर के थामै हाथ। कपड़ा, सुतरी जम्मों साथ।।
-सुजी सूत
272- खेत गोरिया, करिया बीज। खाय पिये के नो हे चीज।।
देथे सब ला अक्षर ज्ञान। का हे येखर नाँव मितान।
-कागज-स्याही
273- चारा चरथे चढ़े पहार। पानी पीथे मुँड़ ओथार।।
पथरा संगे चढ़थे रंग। ठलहा राहय बदले संग।।
-छूरा
274- तोरे ऊपर चढ़हे चाब। राख सकच ना येला दाब।।
येखर ले तोरे पहिचान। चाहे रतिहा या दिनमान।।
-नाव
275- अँइठत-अँइठत डारै घात। बाहिर हेरय रस चुचुवात।।
का हे येखर जानव नाँव। रँधनी खोली हावय ठाँव।।
-करछुल
276- बड़ अँइठुल हे येखर गोठ। अँइठन-गँइठन हावय पोठ।।
पाय न कोनो येखर पार। छँइहा करथे, मुँड़ रखवार।।
-पगड़ी
277- दू पाटा हे टाँग पसार। काहय मूँठा भर-भर डार।।
एक खड़े हे दूजा जाय। खीला बीचे धरे जमाय।।
-जाँता
278- करिया डारै, निकलै लाल। मार भकाभक देख सँभाल।।
पानी होजय ताते तात। इही बनावय जग के बात।।
-लोहा
279- करिया मूसर धूम कचार। ताकत येखर हवय अपार।।
काखर हावय देख अगोर। खबर-खबर माटी ला जोर।।
-साबर
280- चाँद बरोबर मुखड़ा खास। ना धरती, ना हवय अगास।।
लगे बहू के गजबे आस। एक घड़ी नइ देखय सास।।
-आईना
281- चार गोड़ के चंपा नार। खेलै अमरिस बानी झार।।
डुबकय सागर भीतर खास। माँगय पानी मरय पियास।।
-मथानी
282- दस-दस खीला हे ठोंकाय। पंगत खातिर ये रजवाय।।
पाना-पतई हरियर रंग। खात खवाई येखर संग।।
-पतरी
283- दस-दस भाई देवँय मार। पाछू भाई पाँच कचार।।
जोर-जार के अँगना लान। चूल्हा-चौका राहय ध्यान।।
-छेना
284- दू ठन बइला एक्के रंग। राहय जुरमिल संगेसंग।।
आगू-पाछू भागँय सार। एक दुसर बिन हें बेकार।।
-पनही
285- उज्जर सादा हावय खेत। करिया नाँगर करथे चेत।।
उलगय कारी-कारी सोन। तुरत बता ये हावय कोन।।
-कलम(पेन)
286- पुछी कोत ला खावत जाय। देखव-देखव मुँड़ी सिराय।।
खाकी कपड़ा पहिरे जान। का हे तेला तैं पहिचान।।
-बीड़ी
287- पाँच हाथ के लंबा होय। बखत परे मा सब ला धोय।।
लम्बू टूरा येखर नाँव। रझ ले मारय एक्के घाँव।।
-लउठी
288- इक महतारी लइका साठ। राजा जइसे सबके ठाठ।।
कोनो चटपट झट अगुवाय। कोनो अल्लर रहै उँघाय।।
-माचिस काड़ी
289- दिखथे करिया येखर हाल। जरते दिखथे येहा लाल।।
फेकें मा ये सादा झार। नाँव बतावव येखर यार।।
-कोइला
290- हावय तरिया करिया रंग। भुरुवा सादा डुबकैं संग।।
कहूँ खियावै भुरवा राम। तभे मतावै तरिया थाम।।
-तख्ता
291- चढ़ै नाक ला धरके जान। धरै हाथ मा दूनों कान।।
कनवा खातिर ये वरदान। तीसर आँखी येला मान।।
-चश्मा
292- गुड़गुड़-गुड़गुड़ गटकत जाय। आगी लागय धुआँ उड़ाय।।
पाना-पतई जम्मों झाँय। खाँखत-खाँसत समय बिताँय।।
-हुक्का
293- गहना गुरिया बने बनाय। चाँदी-सोना देख सजाय।।
कान नाक ला देवव छेद। जात-पात के नइ हे भेद।।
-सोनार
294- धरे हथौड़ा धार धराय। आगी-पानी संग बिताय।।
लाली लोहा ठोंक ठठाय। बइठे भट्ठी काज बनाय।।
-लोहार
295- मया-दया के हवय खदान। घर अँगना के इही सियान।
मोर संग मा इँखरे नाँव। संझा-बिहना लागँव पाँव।।
-बाप
296- रखय ओदरा मा नौ माह। साहय येहा पीर अथाह।।
गजब लुटाथे मया दुलार। जनम धरे हँव मैं संसार।।
-महतारी
297- तउँरय तरिया मा ये रोज। गोड़ हाथ नइ राहय सोज।।
चिक्कन मैदा डार मिलाव। डार चासनी खाते खाव।
-जलेबी
298- कूलर, पंखा गजब सुहाय। शरबत जुड़हा खूब पियाय।।
भावय बर, पीपर के छाँव। ये मौसम के का हे नाँव।।
-गरमी
299- कपसे राहय भारी हाड़। लागय बहुते सब ला जाड़।।
कथरी कमरा भुर्री भाय। ये मौसम हा काय कहाय।।
-सरदी
300- दीया बारन ओरी ओर। चारो मूँड़ा होय अँजोर।।
नवा अंगरक्खा हमन सिलान। मया मितानी बड़ बगरान।।
-देवारी
301- एक पेड़ मा एक्के पान। तीन रंग येखर पहिचान।।
जम्मों देथें येला मान। रक्षा करथें हमर जवान।।
-तिरंगा झंडा
302- एक महल दू ठन द्वार। माल भरे हे इहाँ अपार।।
चोरी-हारी नइ तो जाय। बुड़य गहिर मा तौने पाय।।
-सीपी(मोती)
303- एक चलय चितवा चाल। दूजा घोड़ा जइसे हाल।।
तिसर चलै जइसे गजपाल। तभो मिलय आपस मा ताल।।
-घड़ी
304- ना भुँइया मा माढ़ै भार। ना ऊपर मा रहय सवार।।
करै अँजोरी अउ अँधियार। कभू बरसजय मूसलधार।।
-बादर
305- खोर गली अउ खेत पहाड़। खड़े रहँव मैं झंड़ा गाड़।।
मोर करम रे जग उजियार। मोर बिना हे जग अँधियार।।
-बिजली खम्भा
306- एक पेड़ के पाना एक। फरफर-फरफर लगथे नेक।।
तीन रंग येखर पहिचान। पाँव पखारत देथन मान।।
-तिरंगा झंडा
307- आँखी हावय येखर तीन। तभो दिखय नइ, लागय हीन।।
भरे सरोवर भीतर जान। मेड़ पार हे सादा मान।।
-नरियर
308- रहिथे येहा लामी लाम। फेर साँप नो हे जी नाम।।
आगू-पाछू दूनों जाय। लोहा रद्दा जाये आय।।
-रेलगाड़ी
309- खड़े रहँव मैं एक्के पाँव। खातू माटी मोरे ठाँव।।
सुग्घर सब्जी मोला जान। सादा छाता जइसे मान।।
-पिहरी
310- बादर गरजय जोरेदार। नाचय छमछम हो तैयार।।
बरसत पानी अमित लुभाय। तरपौंरी ला देख लजाय।।
-मंजूर
311- संझा होवत तन थक जाय। रतिहा रानी नींद बलाय।।
मन बइहा हा कइसे सोय। पाछू-पाछू येखर होय।।
-सपना
312- पाँखी हे चिरई झन जान। तँउरत राहँव मैं मनमान।।
पानी हावय मोर अधार। बिन पानी के प्रान उजार।।
-मछरी
313- देखव जादू डंडा खेल। नइ हे भीतर पानी, तेल।।
बटन दबादे तुरत अँजोर। अँधियारी भागय पटटोर।।
-ट्यूबलाइट
314- कारी-कारी हावय रंग। रहिथँव मैं अमरैया संग।।
गुरतुर बानी मीत बनाँव। कुहू-कुहू नित गीत सुनाँव।।
-कोइली
315- भुँइया भीतर बाढ़े जाय। बाहिर मा हरियाली छाय।।
जम्मों भाई कली कहाय। साग भात के स्वाद बढ़ाय।।
-लसुन
316- पाँखी हे ना कोनो पाँव। पानी हा हे येखर ठाँव।।
चलते रहना हावय काम। तुमन बतावव झटपट नाम।।
-डोंगा
317- पाँखी हावय रंग बिरंग। राहय दिनभर फुलुवा संग।।
तीर तार मा थोरिक आय। पकड़े धरबे फुर्र उड़ाय।।
-तितली
318- अपन बिला ला बहुते भाय। घरभर भारी उधम मचाय।।
कुतर-कुतर ये सब ला खाय। मुनु बिलई ला देख डराय।।
-मुसुवा
319- मोर जनम माटी ले होय। माटी मा ही जिनगी खोय।।
देशी कूलर महीं कहाँव। जुड़हा पानी प्यास बुझाँव।।
-करसी
320- हावय अँगना ऊँच पहार। घर भर जगमग बल्ब हजार।।
दिन मा जम्मों सुते उतान। रतिहा बाढ़य बहुते शान।।
-अगास अउ चंदैनी
321- जंगल मा झाड़ी घनघोर। बाढ़य रोजे कोरे-कोर।।
बिन काटे बहुते खजुवाय। जतके काटव बढ़ते जाय।।
-दाढ़ी
322- काबर कहिथस तोरे मोर। राखव झन तुम येला जोर।।
बिन येखर नइ होवय काम। तुरत बतावव का हे नाम।।
-रुपिया, पइसा
323- ना कोनो हे नार-बियाँर। ना कोनो हे कुआँ-कछार।।
सुपा-सुपा टूटय भरमार। भइगे बस घुरुवा मा डार।।
-राख
324- भनभिन-भनभिन गावय राग। बइठ कलेचुप भाते साग।।
एती-ओती उड़ते जाय। मनखे बर बीमारी लाय।
-माछी
325- एक चटाई सातो रंग। राहय बरखा, बादर संग।।
कोनो काहय घोड़ा आय। इन्दर राजा बाण चलाय।।
-इन्द्रधनुष
326- लउठी लागय जइसे बेत। उपजै बरछा बारी खेत।।
हे गठान लाठी भरमार। भीतर गुरतुर रस के धार।।
-कुसियार
327- करिया धोती, एक्के पाँव। जुड़हा मौसम सपटे ठाँव।।
बरखा गरमी मा ये छाय। छँइहा मा झट सुरताय।।
-छाता
328- बड़े बिहनिया येहा आय। दुनिया भर मा फूल खिलाय।।
चिरई चहकै शोर मचाय। कोनो येखर तीर न जाय।।
-सूरुज
329- दिखय सबो ला, कहाँ लुकाय। रूप बदलथे, सुघर सुहाय।
लइकामन के ममा कहाय। रतिहाकुन सबके घर जाय।।
-चंदा
330- सोज-बाय हावँय चार। अड़े-खड़े हें दुनों तियार।।
एक-एक मुँहुँ, दू-दू डार। लकड़ी-डोरी येखर सार।।
-खटिया
331- गोल-गोल मैं घूमत जाँव। बइठ सकँव नइ एक्के ठाँव।।
दाई कहिथे मोला संसार। रखँय तभो तरपौंरी पार।।
-धरती
332- उड़थँव पर चिरई झन जान। मोरो पाँखी बड़ बलवान।।
सरदी-गरमी बरखा आय। मोर अंग नइ तो घबराय।।
-हवाई जहाज
333- एक अचंभा लाठी आय।चुहक-चुहक जम्मों जन खाय।।
राहय रसहा दसो गठान। करदै सबके मीठ जबान।।
-कठई
334- सबके घर मा मोर मकान। प्यास बुझाथँव सिरतों जान।।
बंद परँव तब अँइठँय कान। संगी मोला लव पहिचान।।
-नल
335- आगू-पाछू राहन साथ। तीनों भाई धरके हाथ।।
बंद होय जब हमरो खेल। पीठ डहर ले डारँय सेल।।
-घड़ी
336- अचरज हावय चिरई एक। तरिया तीरे राहय टेक।।
चोंच सोनहा बड़ उजियार। पानी पीयय पुछी उतार।।
-दीया अउ बाती
337- जेखर घर मा खुशी मनाय। मोला बाँधय खूब ठठाय।।
जतके मैं रोवँव चिल्लाँव। वतके जादा मारे खाँव।।
-ढ़ोलक
338- दू आखर के हावय नाम। आवँव मैं खाये के काम।।
उल्टा लिखबे बनहूँ नाँच। मोर नाँव का, तुरते बाँच।।
-चना
339- भाई-बहिनी जागय भाग। नो हे ये डोरी दू ताग।।
उल्टा करदे, बनजँव साग। कचर-कचर खा देवत राग।।
-राखी
340- दू आखर के नाँव सजोर। बहुते मँहगा काँच कठोर।।
उलट-पुलट दे, रेंगत जाव। मुँहु मा रखके, प्रान गँवाव।।
-हीरा
341- उलट लिखे धारा बन जाय। सोज लिखे ब्रजरानी ताय।।
नाम कृष्ण ले आगू आय। शरद पूर्णिमा, रास रचाय।।
-राधा
342- शुरू कटै ता जल हो जाय। कटै बीच ता काल कहाय।।
कटै आखिरी बनथे काज। आँखी तीर मा करथें राज।।
-काजल
343- दिन भर येहा चलते जाय। एक पाँव पर उठ नइ पाय।।
बत्तीस वीर हें रखवार। कोंवर जस रसवंती नार।।
-जीभ
344- मुँड़ी मोर हरियर हे जान। देंह पाँव सब सादा मान।।
आथँव मैं खाये के काम। तुरत बतावव का हे नाम।।
-मुरई
345- खंभा जइसे लागय गोड़। आगू अजगर राखय जोड़।।
पाछू कोती लटकय साँप। भाँप सकत ता का हे भाँप।।
-हाथी
346- कहिथें अइसे संत सुजान। बात इही ला सिरतों ज्ञान।।
बाप ददा के एक्के जान। महतारी के दू ठन मान।।
-गोत
347- बँधे बोकरा बहुते ताय। मेर-मेर मरहा नरियाय।।
मुँहु कोती ले चारा खाय। बाखा ले सरलग पगुराय।।
-जाँता
348- ददा टेड़गा, दाई थार। दिखथे बहिनी सुग्घर सार।।
करिया ओखर फुलगी नाक। नाँव बता तैं लगा दिमाक।।
-परसा पेड़
349- अइसन रुखुवा जानव कोय। काटे मा नइ वो उलहोय।।
जुड़े रथे येखर ले तार। जब तक नइ आये संसार।।
-बोडर्री
350- उरिद कोठरी येला जान। मूँग देव के गरुवा मान।।
बिना दूध बछरू पीयाय। पाछू-पाछू फिरते जाय।
-कुकरी अउ चियाँ
351- बिन मुँड़ के राक्षस इँतराय। गंगा-जमुना लेग सराय।।
चिता जलावय हाड़ा टोर। बनथे नहना चमड़ा जोर।।
-पटवा
352- लदबद लोदा गोड़ लमाय। फदफद फोदा बुता कमाय।।
चिक्कन राखय अँगना द्वार। गोबर, पानी, फरिया सार।।
-लिपनी
353- बइठे कारी गाय करार। देखत हे वोला रखवार।।
बिगड़ै कखरो काँही काम। तुरत बतावव येखर नाम।।
-हँड़िया
354- एक्के दीया हे दमदार। उगलै घर भूसा भरमार।।
सुघर सोनहा जइसे रंग। पर रहिथे अँधियारी संग।।
-चिमनी
355- बइठे-बइठे बहुते बाढ़। रदबद गोबर कचरा गाढ़।।
इहाँ-उहाँ आगू मा देख। का हे येला चिटिक सरेख।।
-घुरुवा
356- चरिहा-चरिहा टूटत जाय। बीच बजारे झट बेंचाय।।
राहय लामे लमरी नार। राजा, परजा खावँय झार।।
-पान
357- खड़े-खड़े रात पहाय। दिनभर भुँइया परे बिताय।।
घेंच, पाँव मा ये लपटाय। गरुवा मन हा रहे बँधाय।।
-गेरवा
358- रेंगत-रेंगत धरसा आय। चिन्हा एको एक न पाय।।
संग रहँय ये लाखों लाख। खोजे मा गोबर ना राख।।
-चाँटी
359- ठुड़गा रुखुवा मारय शोर। ऊपर बुड़गा नाचै जोर।।
सगा-सगा ला देवय काट। करिया लोहा गजब उचाट।।
-टँगिया
360- हवय गोड़ हा मोरो चार। फेर रेंग मैं सकँव न यार।।
बइठ मोर ऊपर सरकार। जानव लकड़ी लोहा सार।।
-खुर्सी
361- घर कुरिया के मैं रखवार। बिना धरे लाठी, तलवार।।
रहँव अकेल्ला डेरा डार। मोर भरोसा अँगना द्वार।।
-तारा, कुची
362- पींयर-पींयर तरिया झार। पींयर अण्डा देथव गार।।
खावँय येला जम्मों बाँट। अमसुरहा चटकारा चाँट।।
-कढ़ी
363- आखर हावय मोरे तीन। रहिथँव मैं हा झिल्ली, टीन।।
उल्टा-सीधा एक्के नाम। आथँव मैं खाये के काम।।
-डालडा
364- सग बहिनी दू झन हे जान। सादा करिया हे पहिचान।।
रहय संग पर मिल ना पाय। हवय गोलवा सब ला भाय।।
-आँखी
365- काठ कठोली धरले हाथ। लोहा, टीना हावय माथ।।
मथे मथानी दू झन जाय। कहाँ लेवना एक्को पाय।।
-आरी
366- आँवर-भाँवर दँउड़े जाँव। दौंरी फाँदे जइसे ठाँव।।
तीन हाथ, मुँहुँ, नइ हे गोड़। गरमी के मैं हावँव तोड़।।
-पंखा
367- सीधा लिखबे ठौर बताय। उल्टा लिखदे ताप बढ़ाय।।
दू आखर के हावय नाँव। पढ़के पहुँचै खच्चित ठाँव।।
-पता
368- फुलुवा नो हँव, कली कहाँव। लुका-छिपी मैं करते जाँव।।
भिथिया मा मैं भागम भाग। किरवा, फाफा भाते साग।।
-छिपकली
369- कहाँ फोकला मोरे पाव। बिन गुठली के मोला खाव।।
पानी के मैं लइका ताँव। सोंच-समझ के बोलव नाँव।
-बरफ
370- चाहे जावव चारों धाम। मोर बिना हे चक्का जाम।।
पानी जइसे मोला मान। झटपट मोला लव पहिचान।।
-पेट्रोल
371- पीठ परे हे करिया धार। तुरतुर भागय रुखुवा डार।।
पुछी हवय झब्बूदार। रामकृपा हे येखर पार।।
-चिटरा
372- जेखर मुँड़ मा कलगी लाल। रिंगी-चिंगी पुछी कमाल।।
बड़े बिहनिया शोर मचाय। कुकरुँस कूँ कहि सुते जगाय।।
-कुकरा
373- लीची जइसे कुरता जान। दिखै पेटला सेठ समान।।
थाँघा-थाँघा चटक बिताय। उलट बेंदरा लटक कहाय।।
-कटहर
374- आँखी लाली-लाली राम। कान रथे बड़ भारी लाम।।
तन ला पोनी गुजगुज जान। सोंच-समझ अउ झट पहिचान।।
-भठइला
375- तन मा येखर दसठन खोल। अँगरी डार घुमाले गोल।।
ट्रिन-ट्रिन के बोलय बोल। गोठबात मा दुनिया डोल।।
-टेलीफोन
376- उड़थे ये पर नो हे चील। पानी देथे नो हे झील।।
गड़गड़ गर्जन करथे शोर। बिजली कड़कै करै अँजोर।।
-बादर
377- छूबे ता ये जूँड़ जनाय। रंग-रूप हा गजब सुहाय।।
रतिहा मोती जस अनमोल। होत बिहनिया पानी गोल।।
-ओस
378- शुरू कटै ता 'परे' कहाय। कटै बीच ता 'कड़क' जनाय।।
तीन वर्ण के हावय नाम। आथे ये पहिरे के काम।।
-कपड़ा
379- लकड़ी घोड़ा लेवँय नाम। तन मा लोहा लगे लगाम।।
घर कुरिया के ये रखवार। तने मुँहाटी, बन सरदार।।
-कपाट
380- बिन धोये सब जम्मों खाँय। खा के सब पाछू पछताँय।।
नाँव पुछे मा सबो लजाँय। कोनो येला कभू न भाँय।।
- धोखा
381- सोज लिखे मा बहते जाय। उलट परे ता 'वाह' कहाय।।
दिखै नहीं पर रहिथे साथ। नइ पकड़ावै, जुच्छा हाथ।।
-हवा
382- कहूँ भटकबे, पथ अनजान। दिही दिशा के येहा ज्ञान।।
संग रखे मा साधय काम। तुरत बतावव का हे नाम।।
-दिशासूचक यंत्र
383- बटन दबाके करव सवाल। उत्तर तुरते, लगै कमाल।।
गुणा-भाग अउ जोड़-घटाव। बिन गलती के सब हल पाव।।
-केलकुलेटर
384- अजगर जइसे लामी लाम। आथे येहा बहुते काम।।
उगलै घर-घर पानीधार। नाँव बताही, वो हुशियार।।
-पानी के पाइप
385- नान्हें हे पर बड़े कहाय। रोज दही के नदी नहाय।।
जन-जन के ये मन ला भाय। अमसुर-गुरतुर गजब मिठाय।।
-दहीबड़ा
386- एक गोड़ के घोड़ा यार। दू झन येमा होंय सवार।।
आगू-पाछू एक न जाय। बेड़ा ऊपर गोल घुमाय।।
-रैहचूली
387- सरी जगत मोला डर्राय। आखर तीने नाँव बताय।।
पर इच्छा के होथे मान। कब का पुछही नइ हे भान।।
-परीक्षा
388- बारी बखरी मैं सिरजाँव। बिना गोड़ के गजब कुदाँव।।
आगू-पाछू गजबे धार। मोला सिरजावै लोहार।।
-कुदारी
389- करिया उज्जर धरहा अंग। रहिथँव मैं घर रँधनी संग।।
सब्जी भाजी काट मढ़ाँव। खड़े फसल ला काट गिराँव।।
-हँसिया
390- शुरू कटे ता गुरतुर गान। कटे बीच ता संत सुजान।।
कटे आखिरी तब हँव यार। तुरत बता अउ बन हुशियार।।
-संगीत
391- घाट-घटौंदा, तरिया पार। होवय चाहे नदी करार।।
पखरा, ईंटा रचे दिवार। जघा एक ये सीढ़ीदार।।
-पचरी
392- ग्वाला हा गर मा लटकाय। धरे कसेली दुहते जाय।।
गरुवा चुन्दी बरै मिलाय। पाँव छँदावय तभे दुहाय।।
-नोई
393- लइका-छउआ मजा उड़ाँय। नेती डारँय खूब चलाँय।।
लकड़ी, खीला छोल लगाय। संगीमन के संग सुहाय।।
-भौंरा
394- काँच गोलवा गोली जान। सस्ता मिलथे सिरतों मान।।
लइका मारय नेम लगाय। सुग्घर खेलँय दाम पदाय।।
-बाँटी
395- हरियर पींयर फर पहिचान। पाना घन बड़ नाने नान।।
आवय येहा बहुते काम। खाव मुरब्बा, जानव नाम।।
-आँवरा
396- बारी बखरी उपजै झार। कटही रुखुवा होवय सार।।
सादा, ललहूँ येखर रंग। दूध रिसै, अमसुर संग।।
-करौंदा
397- पान कोचई संग लपेट। सरपट सरपट कढ़ी पहेट।।
चानी-चानी बेसन संग। अमसुरहा हे, खाव मतंग।।
-इड़हर
398- माटी भाँठा के तैयार। कच्चा माटी साँचा डार।
भट्ठा रचके आगी बार। लाली पखरा देख हजार।।
-ईंटा
399- भरे कसेली दूध चुरोय। महतारी हा मया पुरोय।।
धर रपोट सब दही जमाय। लइका सुतई ले ये खाय।।
-करौनी
400- बीच बियारा धान मिसाय। खरही खाल्हे पैर बिछाय।।
लउठी मा हुक लोहा सार। बुता करय बड़ इही कोठार।।
-कलारी
401- कोंवर-कोंवर हिस्सा बाँस। खावँय मनखे येला हाँस।
नवा रूख बर पिका अगाध। फेर टोरना हे अपराध।।
-करील
402- माटी के हे बरतन खास। राउत भइया भरय हुलास।।
दगा गोरसी ऊपर राख। करिया भाँड़ी गुण हे लाख।।
-कसेली
403- घर, अँगना, परछी, परसार। राहय गरुवा डेरा डार।।
गोबर गँउदन गजबे होय। गाय गरू ये खोली सोय।।
-कोठा
404- जेवन नो हे जम्मों खाय। खा-खा अपने बात बताय।।
कहना कखरो जावय मान। बिन सवाद के हे पहिचान।।
-किरिया
405- काँदी, कचरा, पैरा डार। होवय खोली एक तियार।।
भिथिया, काड़ी, माटी भार। जुड़ बोलय सुग्घर घर द्वार।।
-कुन्दरा
406- बाहिर छछले पाना डार। भुँइया मा काँदा भंडार।।
येखर पाना साग बनाय। राँधे काँदा घलो सुहाय।।
-कोचई
407- बड़का पखरा काट बनाय। पानी पसिया गरुवा खाय।।
जूठा-काठा येमा डार। राहय घर के तीरे तार।।
-कोटना
408- छावै परसा पाना, बाँस। पहिरँय मुँड़ मा मुच-मुच हाँस।।
देशी छाता इही कहाय। पानी बादर घाम बचाय।।
-खुमरी
409- गंगा हे पर नइ हे धार। कटही रुख, फर हवय गुदार।।
अमली जइसे झुलथे डार। कस्सा गुरतुर होथे सार।।
-गंगाअमली
410- गाँव तीर भाँठा मइदान देव साँहड़ा के ये स्थान।।
जम्मों गरुवामन ठोंकाय। मड़ई मातर इहाँ मनाय।
-दइहान
411- बइला, भँइसा रहै फँदाय। दू चक्का मा दँउड़े जाय।।
जुड़ा सुमेला, पटनी पाट। खन-खन बाजत नापय बाट।।
-गाड़ा
412- कपड़ा लत्ता के ये प्रान। बिन येखर नइ राहय मान।।
रिंगी-चिंगी बहुते रंग। सुजी सूँत के राहय संग।।
-गुदाम
413- देख हरेली लइका जात। अंतस मा राहय मुस्कात।।
खाप बाँस बल्ली ला काट। रचरच रेंगय चिखला बाट।।
-गेड़ी
414- बबा घुमय ये धरके हाथ। बाहिर भाँठा जावय साथ।।
मारै खेदय कुकुर भगाय। येखर ले बलकर हो जाय।।
-गोटानी
415- जब-जब बहुते जाड़ जनाय। सब ला येखर सुरता आय।।
माटी, भूसी डार बनाय। छेना, चिलफा ला सिपचाय।।
-गोरसी
416- बाग-बगीचा उधम मचाय। कोंवर-कोंवर पान खाय।।
मुँहुँ ऊपर दू मेछा लाम। खोल पीठ मा, देवय झाम।।
-घोंघी
417- आगी अँगरा जोर उठाय। हाथ जरे ले हमर बचाय।।
रँधनी खोली येखर धाम। चटचट बाजय, का हे नाम।।
-चिमटा
418- चाँउर चिक्कन घोर पिसान। धनिया, मिरचा, नून मिलान।।
जुरमिल जावँय सब परिवार। चटनी संगे खावँय यार।।
-चीला
419- चिक्कन पीसै तिंवरा दार। लाम गोलवा हे आकार।।
बनथे तीजा-पोरा संग। बहुत मिठावै ललहूँ रंग।।
-ठेठरी
420- जमे ठेठरी जोड़ी जान। रहै खसर्रा गहूँ पिसान।।
तिली, खोपरा येमा डार। स्वाद भरे गुरतुर भरमार।
-खुरमी
421- चिक्कन चाँउर घोर पिसान। सादा सोंहारी तैं जान।।
छत्तीसगढ़ी के पहिचान। खावव गुड़ या डार अथान।।
-चौसेला
422- उरिद दार के बनथे जान। गजब स्वाद येमा हे मान।।
पीठी, धनिया, मिरचा डार। माँग-माँग के खावव यार।।
-बरा
423- बदे बरा के संग मितान। चुरै तेलई गहूँ पिसान।।
चौकी बेलन चपकन आज। खावँय सुग्घर सबो समाज।।
-सोंहारी
424- अंड़ी पाना मा लपटाय। मोट्ठा रोटी इही कहाय।।
चटनी येखर स्वाद बढ़ाय। अमित पान रोटी कहलाय।।
-अंगाकर
425- कनकी के लव सान पिसान। झाँझी संगे भाँप दिखान।।
जीरा तिल मा भूँज बघार। नून डारदव स्वाद अपार।।
-फरा
426- दरदरहा चाँउर ला सान। मीठ चाशनी येखर प्रान।।
देशी रसगुल्ला ये आय। चाँट-चाँट अँगरी ला खाय।।
-देहरौरी
427- फरा मितानी येखर जान। बनथे चाँउर, गहूँ पिसान।।
पातर हलुवा इही कहाय। गुरतुर गुरहा स्वाद बताय।।
-पकुवा
428- चिक्कन चाँउर, गहूँ पिसान। खूब आँच के ये पकवान।।
मीठ चाशनी गुड़ मा डार। गवन पठौनी जोरन सार।।
-पपची
429- छत्तीसगढ़ी गुझिया ताय। सूजी, शक्कर, घी भूँजाय।।
साँचा भरके तेल तराय। तीजा-पोरा घर-घर छाय।।
-कुसली
430- भिगो कूट चाँउर ला खास। सबले सुग्घर स्वाद मिठास।।
पाग चाशनी गुड़ मा डार। खच्चित बनथे, बड़े तिहार।।
-अरसा
431- मैदा या तो गहूँ पिसान। मीठ चाशनी संग मिलान।।
मिलै पान के बीड़ा जान। गजब मिठाई येला मान।।
-पिड़िया
432- चिक्कन चाँउर डार पिसान। होय फरा ले बड़का जान।।
मुठा चपकके रोट बनाय। मिरचा, धनिया स्वाद बढ़ाय।।
-मुठिया
433- खेत किसानी के शुरुआत। शुभ दिन भाँवर ले ले सात।।
पुतरा-पुतरी होय बिहाव। मया-दया के अमित हियाव।।
-अकती
434- सावन मा धरती हरियाय। ये तिहार ला तभे मनाय।।
नाँगर बख्खर धोय मढ़ाय। लइका गेड़ी पाँव मढ़ाय।।
-हरेली
435- अनदाता हा धान उगाय। सबझन येमा हिस्सा पाय।।
पूस महीना पबरित आय। छेरिक छेरा खूब सुनाय।।
-छेरछेरा
436- मइके के हे मया अपार। भादो के ये हरय तिहार।।
सबो सुहागिन रहैं उपास। करू करेला येमा खास।।
-तीजा
437- जाँता, चुकिया, बइला लाँय। इँखरे पूजा, भोग लगाँय।।
संगीमन भाँठा सकलाँय। खेलकूद पोरा पटकाँय।।
-पोरा
438- नवा बछर ये हमर कहाय। चइत महीना येहा आय।।
जोत जँवारा जश ला गाँय।। माता सेवा मान बढाँय।।
-चइत नवरात्रि
439- चइत अँजोरी ये दिन आय। राम जनम के बात बताय।।
देवलगन शुभ बेरा मान। बर बिहाव हा बहुते जान।।
-रामनवमीं
440- भादो अँधियारी के पाख। जनम कृष्ण के सुरता राख।।
आठे के दिन होवय खास। लइका मन बड़ रहँय उपास।।
-आठे कन्हैया
441- महतारी के त्याग महान। लइका बर माँगै वरदान।।
नाँगर जोते उपज न खाय। सगरी काशी फूल सजाय।।
-कमरछठ
442- कँड़रा घर के टुकनी लान। आवा माटी गहूँ उगान।।
देवी गंगा गीत सुनाय। तरिया, नँदिया मा बिसराय।।
-भोजली
443- मया पिरित बँधना परिवार। भाई बिहनी गजब दुलार।।
सावन पुन्नी के दिन आय। मुरुवा रक्षा सूँत बँधाय।।
-राखी तिहार
444- फागुन मा बड़ फाग सुनाय। मया पिरित आगी भड़काय।।
होले लकड़ी संग जलाय। रिंगी-चिंगी रंग उड़ाय।।
-होरी
445- कातिक महिना खुशी बलाय। लक्ष्मी दाई सबो मनाय।
फोर फटाका संगी जोर। दीया बारैं ओरी-ओर।।
-देवारी
446- तुलसी चौंरा नँगत सजाय। पूजा करके देव जगाय।।
दाई-बहिनी रहँय उपास। खावँय कठई ये दिन खास।।
-जेठउनी
447- सबो सुहागिन के पहिचान। माथा बइठे बनके मान।।
रिंगी-चिंगी चमकै रंग। लाम गोलवा बहुते ढ़ंग।।
-टिकली
448- गोल-गोल ये काँच समान। हवय बिहाता के पहिचान।।
दुनों हाथ मा पहिरे जोर। खनखन खनखन करथे शोर।।
-चूरी
449- कुआँ पार दू बल्ली गाड़। पानी टेंड़ँय बाँधँय बाड़।।
बारी बखरी पारे पार। पानी बहकय टारे टार।।
-टेंड़ा
450- अपने बारी तक ये जाय। बुड़गा बइगा मुँड़ी हलाय।।
देखत बैरी बदलै रंग। रहि जाथन हम देखत दंग।।
-टेटका
451- दूनों कोती रेंगत जाय। लहू चूहकय मुँह चटकाय।।
तन येखर गुजगुजहा खास। तरिया डबरी करय निवास।।
-जोंख
452- लाली भुरुवा होथे रंग। रहिथे खटिया, दसना संग।।
लहू चूहकय, जेवन पाय। परजीवी ये जीव कहाय।।
-ढ़ेंकना
453- धरती मा ये हे भगवान। देवय हम ला जीवनदान।।
नौ महिमा ले बोहय भार। देवय ममता मया दुलार।।
-महतारी
454- महतारी के जोंड़ीदार। पोसय पालय घर परिवार।।
जबतक रहिथे येखर संग। नइ होवय काँही के तंग।।
-बाप
455- बाप ददा के बहिनी जान। दया-मया के इही खदान।।
बर बिहाव मा पहिली नाम। नेंग-जोख हा इँखरे काम।।
- फूफु
456- हमर फूफु के राहय संग। येखर अलगे दिखथे ढ़ंग।।
बर बिहाव मा बहुते मान। बिकट पदोना कस इंसान।।
-फूफा
457- बाप ददा के भाई जान। लइकामन के सखा सियान।।
होय दुलरवा घर मा छोट। सुघर नियत नइ राखै खोट।।
-कका
458- इही कका के जोड़ीदार। लइकामन ला करय दुलार।।
महतारी के हाथ बँटाय। बहू छोटकी इही कहाय।।
-काकी
459- अपन बाप के वंश बढ़ाय। महतारी ले मया गढ़ाय।।
घर के होवय नंबरदार। अपन ठाँव के राजकुमार।।
-बेटा
460- पढ़े-लिखे मा बड़ हुशियार। बुता-काम मा तुरत तियार।।
दू कुल के ये मान बढ़ाय। ददा दुलौरिन नीक कहाय।।
-बेटी
461- पुरखौती ये बात बताय। नाती पंथी संग सहाय।।
घर के होथे बड़े सियान। येखर संगत मिलथे ज्ञान।।
-बबा
462- कथा, कंथली नँगत सुनाय। गुनी सियानिन इही कहाय।।
नाती पंथी ला पोटार। बाँटय अंतस मया अपार।।
-बूढ़ीदाई
463- होवय हमरे बाप समान। सुग्घर सबके राखय ध्यान।।
जइसे सतजुग राजा राम। वइसे कलजुग येखर काम।।
-भइया
464- महतारी कस अँचरा जान। समझै हम ला कहाँ बिरान।।
सीता मइया जइसे काम। येखर कोरा पाँव अराम।।
-भउजी
465- महतारी के जइसे ताय। दुरिहा रहिके नता निभाय।।
बोलय बाबू सारी मोर। मैं मयारु भाँटो हँव तोर।।
-मोसी
466- मोसी के ये जोड़ीदार। गजब लुटावै मया दुलार।।
हमर बाप के साढू ताय। तुरत बतावव कहिथौ काय।।
-मोसा
467- महतारी के भाई आय। बाबू के सारा कहलाय।।
परथे आके हमरो पाँव।। रहिथे येहा अपने ठाँव।।
-ममा
468- ममा सुवारी सुघर कहाय। पाँव परै अउ पुण्य कमाय।।
लइका येखर कहाँ बिरान। भाई बहिनी येला जान।।
-मामी
469- होय नता मा येहू खास। संग ससुर के राहै पास।।
घरवाली के दाई लाग। मया-दया के घोरय पाग।।
-सास
470- मोर सुवारी के ये बाप। बाबू संगे खावय खाप।।
लइका नाना कहै पुकार। नँगत लुटावै मया दुलार।।
-ससुर
471- घरवाली के भाई ताय। लइकामन के ममा कहाय।।
भाँटो के ये जोंड़ीदार। कोनो सकय न येला टार।।
-सारा
472- गोसईन के बहिनी जान। बेटी जइसे येला मान।।
भाँटो खातिर मया अपार। येखर बिन सुन्ना ससुरार।।
-सारी
473- रहिथे बादर के ओ पार। सूरुज चंदा के घर द्वार।।
दिखथे नीला-नीला रंग। लगथे जइसे हावय संग।।
-अगास
474- जम्मों प्रानी करँय निवास। सौर जगत मा सबले खास।।
पुरवाही पानी भरमार। महतारी कहि करन दुलार।।
-धरती
475- लकलक-लकलक बरते जाय। लाली करिया लपट उठाय।।
येखर ताकत सबो डराय। जेला पावय राख बनाय।।
-आगी
476- जिनगी खातिर अमरित मान। जीव जगत के बसथे प्रान।।
भाप, बरफ येहा बन जाय। ऊपर ले खाल्हे बोहाय।।
-पानी
477- धरती के ये संग सहाय। ढेला, फुतका जघा कहाय।।
दुनिया भर ला ये उपजाय। आखिर अपने संग मिलाय।।
-माटी
478- माटी के ये होथे अंग। मइलाहा, भुरुवा हे रंग।।
पौधा पोषक नँगते पाय।। रेती चिक्कन संग समाय।।
-मटासी
479- सबसे जादा ये दिख जाय। पानी सोंखय उपज बढ़ाय।।
गहूँ, चना, कपसा ला भाय। माटी करिया इही कहाय।।
-कन्हार
480- खन के भुँइया येला पाव। सादा-सादा रंग सुभाव।।
आय लिपे के येहा काम। संगी बोलव का हे नाम।।
-छुही
481- येखर होथे बड़े खदान। सादा पखरा येला जान।।
लिपना, खाना, दवा बनाय। पानी डबकै, हाथ जलाय।।
-चूना
482- माटी ललहूँ येला जान। फसल उपज कमती तैं मान।।
गोंटी जइसे बड़ दलगीर। बनै ठोसलग भवन कुटीर।।
-मुरुम
483- खेत खार के उपजै मेड़। नान्हें लमरी होथे पेड़।।
फर भीतर दाना छै चार। खा ले औंधी, बटकर दार।।
-राहेर
484- खेत उतेरा बीज छिंचाय। लुसलुस भाजी मन ला भाय।।
फल्ली बटकर गजब मिठाय। येखर सुकसा सुघर सुहाय।।
-तिंवरा
485- रबी फसल के मान बढ़ाय। सबो दार के राजा ताय।।
भाजी, होरा येखर खान। होय गुलाबी, खैरी जान।।
-चना
486- पिस पिसान येखर सब खाँय। रोटी कोंवर बड़ पोवाँय।।
बाली, भुरुवा मेछा सार। चारा बनथे पाना, डार।।
-गहूँ
487- हवय दार बहुते गुणकार। नान्हें पौधा लामे नार।।
हरियर खातू इही कहाय। बरी बरा बड़ येखर खाय।।
-उरिद
488- चिटिक समय ये फर जाय। येखर फल्ली, साग सुहाय।।
दार, मुँगेड़ी गजब मिठाय। जरई आये बीज खवाय।।
-मूँग
489- सब कहिथें ये लाली दार। खतम करे ये पेट विकार।।
धनिया पाना जइसे पान। बनै मिठाई, झट पहिचान।।
-मसूर
490- कहिथे येला खरपतवार। हरय गरिबहामन के दार।।
बीज चेपटी करिया रंग। मिलय गहूँ के येहर संग।
-अँकरी
491- करिया-करिया येखर पान। भात गरिबहा के ये जान।
सुगर दवा ये गजब कमाल। चाब पान होथे मुँहुँ लाल।।
-कोदो
492- नान्हें-नान्हें दाना जान। दार सस्तिहा येला मान।।
कोनो ना येला उपजाँय। गरुवामन ला घलो खवाँय।।
-जिल्लो
493- हरियर घर मा हरियर माल। बटकर जइसे साग कमाल।।
सुक्खा मा ये बनथे दार। कच्चा मा हे चरबन सार।।
-बटुरा
494- चाहे चपड़ा कहि दे यार। होवय कीरा रुख के सार।।
चूरी खेलौना सिरजाय। टूटे-फूटे ला चटकाय।।
-लाख
495- हरियर सोना इही कहाय। पाना के बीड़ी लपटाय।।
वनवासी मा लेवँय टोर। पइसा पावँय राखँय जोर।।
-तेंदू पान
496- छोटे बोंइर इही कहाय। अम्मट गुरतुर नीक सुहाय।।
जंगल के हे ये फर खास। गरमी मा तन भरय हुलास।।
-चार
497- खास पेड़ ले रस चुचुवाय। चिपरा जइसे डार छबाय।।
चिपचिपहा ये जिनिस कहाय। भुरवा, सादा, ये चटकाय।।
-लासा
498- चिपचिपहा पर गजब मिठास। ये मछेर के बहुते खास।।
फुलुवामन के रस सकलाय। संगी बोलव काय कहाय।।
-मधुरस
499- लइकामन हा लाय सकेल। हाथ-गोड़ मा पहिरै खेल।।
करिया बीजा, सादा खोल। नून-तेल येखर हे मोल।।
-बंभरी बीजा
500- पोनी के फर येला जान। नान्हें पौधा तैं पहचान।।
मुसुवा लेड़ी बीजा होय। करिया माटी येला बोय।।
-कपसा
501- चाय साग मा स्वाद बढ़ाय। भुँइयाँ भीतर ये उपजाय।।
औखद येहा बड़ गुणकार। चुरपुरहा, भुरवा रसदार।।
-आदा
502- पींयर-पींयर येखर गाँठ। होवय येहा बहुते टाँठ।।
साग-दार के रंग बढ़ाय। बड़ गुणकारी रोग भगाय।।
-हरदी
503- सलगा, डुबकी कढ़ी कहाय। उरिद दार ला फेंट बनाय।।
रतिहा भर के भींजे दार। डबकत चुरथे अमसुर झार।।
-बफौरी
504- गुरहा चीला इही कहाय। गुड़, पिसान अउ गहूँ मिलाय।।
सुग्घर येखर भोग चढ़ाँय। नवाखाय मा सबो बनाँय।।
-बोबरा
505- दूध डार चाँउर डबकाँय। बहुत स्वाद चाँटत सब खाँय।।
लौंग, लायची, काजू डार। खावँय मनखे पलथी मार।।
-तसमई
506- येखर हे अलगे पहिचान। फोरँय लाई डारँय धान।।
कठई रस के पागे डार। मेला-मड़ई मा भरमार।।
-ओखरा
507- नान्हें पंखा हाथ घुमाय। बाँस चीर कँड़रा सिरजाय।।
एती-ओती धर के जाव। लागै गरमी धरव हलाव।।
-बिजना
508- बनै बाँस के सींका सार। होय गोलवा चाकर मार।।
बर बिहाव मा भारी माँग। बरी सुखो ले छानी टाँग।।
-पर्रा
509- बनै बाँस के सींका डार। थोरिक चाकर उठे दिवार।।
धान-गहूँ चाँउर सब छीन। गोंटी माटी येमा बीन।।
-सूपा
510- गोल टोकरी ढक्कन संग। बनै बाँस के सींका रंग।।
बर बिहाव के पेटी जान। सोंच समझ झट पहिचान।
-झाँपी
511- झलझलहा टुकनी तैं मान। बनै बाँस सींका ला तान।।
धोवँय कोदो कनकी दार। निकलै कचरा बाहिर पार।।
-झेंझरी
512- कचरा, काड़ी जोर जमाँय। मुँड़ मा बोहे घुरुवा जाँय।।
बाँस खपच्ची ले तैयार। गोल गहिर चाकर ये सार।।
-झँउहा
513- बनै बाँस के सींका सीक। गिल्ला जीनिस सेंकय नीक।।
बाँस खपच्ची, चद्दर जान। आगी ऊपर भूँज समान।
-झाँझी
514- दाई-माई के मन भार। पाँच-हाथ के लत्ता सार।।
अँचरा ओली येमा जान। संगी तुरते तैं पहिचान।।
-लुगरा
515- कनिहा खाल्हे पहिरे जाय। गोल घाघरा जइसे ताय।।
सिलवाथें सब घेरादार। सबले पहिली नारा डार।।
-साया
516- जइसे लुगरा तइसे रंग। कपड़ा मिलथे लुगरा संग।
छाती ढाँकय लत्ता सार। लुगरा के ये जोड़ीदार।।
-पोलखा
517-फूल मोंगरा रहै गुँथाय। महर-महर बहुते ममहाय।।
बेनी खोपा मा खोंचाय। अपने जोड़ी खूब लुहाय।।
-गजरा
518- कोर गाँथ बेनी लटकाय। रिंगी-चिंगी ये लपटाय।।
होथे पातर, चाकर, लाम। बेनी संगे जुड़थे नाम।।
-फीता
519- पातर पट्टी, लोहा टीन। आनी-बानी हे रंगीन।।
चपकै चुन्दी, राखय दाब। वोमा खोंचे एक गुलाब।।
-किलिप
520- बगरे चुन्दी दाँत दबाय। खुल्ला बेनी बड़ सुहाय।।
प्लास्टिक, लकड़ी बनथे जान। दाँता जइसे सिरतों मान।।
-बक्कल
521- टिकली जइसे रहिथे गोल। गिल्ला, गाढ़ा रंगे घोल।।
खाली माथा सुघर सजाय। रिंगी-चिंगी चिन्ह बनाय।।
-बिन्दी
522- लाली नारंगी हे रंग। भरै माँग माथा के संग।।
सुक्खा, गिल्ला मिलथे जान। हरै सुहागिन के पहिचान।।
-सेंदूर
523- लौंग सोनहा नाके डार। फभथे येहा चुक चकदार।।
फँसय पेंच हा खाल्हे जाय। गहना छल्ला, नाक कहाय।।
-फुल्ली
524- पहिरै येला डेरी पार। फभै नाक बहुते नथदार।
रिंग गोल ये पातर जान। अमित नाक के लटकन मान।।
-नथली
525- करणफूल येला तैं जान। सोना, चाँदी येला मान।।
चटके रहिथे येहा कान।। कान सवाँगा हे, पहिचान।।
-खिनवा
526- रहिथे लटकत येहा कान। गजबे हावय येखर शान।।
दिखै सोनहा झूलनदार। छोट-बड़े फभथे आकार।।
-झुमका
527- रिंग गोलवा दिखथे सार। फभै कान मा लटकनदार।।
बाली के ये जोड़ीदार।। नाँव बतावव सोंच विचार।।
-बाला
528- चाँदी के सिक्का तैं मान। गुँथें रहै दस बारा जान।
करिया रेशम संगे पोह। नारी गर मा पहिरैं चोह।।
-रुपिया
529- सबले मँहगी गर के हार। संग लाख सोना ला डार।।
गोल-गोल माला कस मान। बढ़ै घेंच के बहुते शान।।
-सुर्रा
530- हरै सोनहा गर के हार। लगै छोटका रुपिया सार।।
बहुते मँहगी येला जान। गजबे फभथे सिरतों मान।।
-पुतरी
531- चाँदी माला निंधा सार। बहुते भारी गर के हार।।
बूढ़ी दाई फभथे घात। बर बिहाव मा येखर बात।।
-सूँता
532- फभै बाँह मा सुग्घर जान। नाग साँप जइसे पहिचान।।
चाँदी के हे गहना सार।। नाँव बतावव तुरते यार।।
-पहुँची
533- होय सोनहा, चाँदी सार। गोल रोंठहा पहिरै मार।।
फभै कलाई बहुते जान। काय हरै ये झट पहिचान।।
-कड़ा
534- चाँदी गहना नोंकीदार। चूरी संगे पहिरै डार।।
कंगन जइसे येला जान। सजै कलाई, तैं पहिचान।।
-ककनी
535- कंगन जइसे येला मान। हाथ कलाई पहिरै जान।
चाँदी के ये गहना सार। अँइठे राहय दूनों पार।।
-अँइठी
536- सोना, चाँदी पिटवा मान। पातर सादा चूरी जान।।
पहिरै जादा खाली हाथ। जेखर सुन्ना राहय माथ।।
-पाटला
537- कनिहा के हे गहना खास। रहिथे सब ला येखर आस।।
चाँदी गहना सबो सधाय। कनिहा मा धन बँधे कहाय।।
-करधन
538- सजै पाँव के अँगरी मान। चाँदी के गहना हे जान।।
येखर होथे तभे हियाव। होवय नोनी जभे बिहाव।।
-बिछिया
539- बिछिया जइसे दिखथे ढंग। चाँदी उज्जर चुकचुक रंग।।
पहिर पाँव के अँगरी डार। सोज्झे सादा चाँदी तार।।
-चुटकी
540- खुनखुन बाजै, पहिरै गोड़। नोनीमन बर हे बेजोड़।।
चाँदी के गहना तैं मान। बाजत घुँघरू छुनछुन जान।।
-पैजन
541- सबले बढिया, सबले सार। फभै पाँव हा जोरेदार।।
पातर-चाकर पहिरे जाय। चाँदी गहना बहुते भाय।।
-साँटी
542- पैरी, साँटी जइसे जान। थोरिक अलगे येखर शान।
फिट बइठै ये दूनों पाँव। चाँदी गहना, का हे नाँव।।
-लच्छा
543- पाँवे पहिरे जाथे जान। बड़ गरु गहना येला मान।।
भले पाँव जावय छोलाय।। बड़हर अपने आप बताय।।
-टोंड़ा
544- कनिहा मा हे लटकाय। चाँदी के गहना ये आय।।
संग कुची येमा खोंचाय। नारी मन ला नँगते भाय।।
-कुचीखोंचनी
545- चाँदी सोना जानव सार। पहिरै अँगरी मा ये डार।
कोनो रहिथें नँग जड़वाय। कोनो जोंही नाँव लिखाय।।
-मुँदरी
546- चाँदी, सोना गहना ताय। मुँदरी जइसे बहुते भाय।
रहिथे सादा सोज सपाट। सुघराई मा नइ हे काट।।
-छल्ला
547- घोरै लाली लाली रंग। भावै अपने अँगरी संग।
धीर लगा के पाँव रचाय। तरपौरी हिलु देख मड़ाय।।
-माहुर
548- शीशी मा ये घोरे आय। माहुर जइसे गजब सुहाय।
लागै येहा पोनी संग। सजै गोड़ हा ललहूँ रंग।
-आलता
549- अजर-अमर गहना कहलाय। सरी देंह येला गोदाय।।
करिया हरियर लगथे रंग। चिन्हा जावय मरनी संग।।
-गोदना
550- कुटका कपड़ा के हे सार। धरथें बबुआ खीसा डार।।
चार कोनिया हे पहिचान। मुँहुँ पोछव अउ बाँधव कान।।
-उरमाल
551- पहिरैं सादा सार लिबास। लत्ता पूजा पाठ म खास।।
अलग-अलग पहिरे के ढंग। रहिथे उज्जर सादा रंग।।
-धोती
552- छोटे धोती येला जान। रहै खाँध मा बइठे मान।।
आवय पोंछे के ये काम। कान बाँध जब होवय घाम।।
-पटका
553- बिन अस्तिन के कुरता जान। सोज्झे सादा हे पहिचान।।
काम बुता मा पहिरे जाय। बड़ अराम येखर ले पाय।।
-बंडी
554- अंगरखा ये काट सिलाय। पीठ-पेट छाती तोपाय।।
अस्तिन, खीसा, बाँही खास। राहय येहा सबके पास।।
-कुरता
555- मुँड़ मा ये बइठे जाय। जाड़, घाम ले मुँड़ी बचाय।
फेशन मा ये बहुते भाय। संगी बोलव काय कहाय।।
-टोपी
556- बनथे कोनो समय विशेष। पहिरै तब्भे उँचहा भेष।।
कुरता ऊपर जँचथे शान। बड़हर के हे ये पहिचान।।
-कोट
557- दुनों गोड़ ला देवँय डार। दू मोरी कस लत्ता सार।
कनिहा खाल्हे पहिरे जाय। नारा बाँधय तभे कसाय।।
-पैजामा
558- नवा जमाना लत्ता जान। पैजामा कस येला मान।।
नारा बदला चैन लगाय। अपने फेशन मा रंगाय।।
-पेंट
559- लामी लामा फेटा डार। मुँड़ के ये हे रखवार।।
रिंगी-चिंगी हे पहिचान। मनखे के ये होथे मान।।
-पागा
560- आँखी रक्षा येखर भार। काँच, फायबर, प्लास्टिक सार।
फुतका, कचरा, घाम बचाय। जौने येला नाक चढ़ाय।।
-चश्मा
561- कनिहा पट्टी इही कहाय। पेंट कसे मा रहै सहाय।।
रेगजीन, चमड़ा पहिचान। पेंट संग मा बाढ़य शान।।
-बेल्ट
562- बाढ़य जब हमरो बड़ ठाठ।नवा-नवा घर पूजा पाठ।।
चउँर पिसाने हाथ डुबाय। घर भिथिया मा छाप बनाय।।
-हाँथा
563- ऊँच पेड़ के फर ये जान। भुरवा, पींयर हे पहिचान।।
गोल, लाम फर डाँड़ी पाँच। बड़का औखद, खाले खाँच।।
-हर्रा
564- हर्रा के हे संगत जान। होथे फर अण्डा कस मान।।
फर के छाली आथे काम। कोन बताहू, झटपट नाम।।
-बहेरा
565- साग खाय खातिर ये आय। रहिथे चाकर पी ले चाय।।
चीनी, माटी मलिया मान। रिंगी-चिंगी सुग्घर जान।।
-सासर
566- रहिथे लकड़ी डाँड़ी सार। खाल्हे चकरी हे छै चार।।
दार मथे के आवय काम।। रँधनी घर मा करय अराम।।
-दरघोटनी
567- पीतल, काँसा, तांबा सार। दूध-दही, पानी ला डार।।
छोट गोलवा मुँहुँ देखाय। पेंदी बिन, पेंदी के आय।।
-लोटा
568- छोट कटोरी येला मान। होय गोलवा चाकर जान।।
ताँबा, पीतल, माटी सार। साग-दार ला देवँय डार।।
-मलिया
569- गगरी, मरकी येला मान। बनथे पीतल तेला जान।।
पनिहारिन पानी भर लाय। सुग्घर सबके प्यास बुताय।।
-हँउला
570- पीतल हँउली बड़का होय। बोह सकै ना येला कोय।।
धन दोगानी मानय सार। भरै रहै बड़ चाँउर दार।।
-हंडा
571- पखरा के कुटका आय। टाँच खसर्रा पोठ बनाय।
पीस-पीस येमा सब खाय। देशी मिक्सी इही कहाय।।
-सील
572- सील संग येखर पहिचान। लागय जइसे बदे मितान।।
येखर बिन ना एक पिसाय। लाम गोलवा पखरा ताय।।
-लोढ़हा
573- मंजूर पाँख गुँथ पहिराय। राउत भइया बछरू गाय।।
सोहय सुग्घर मन ला भाय। अपन मवेशी अलग चिन्हाय।।
-सोहई
574- झीन, बाँस, प्लास्टिक गुँथियाय। चाकर पातर लाम बिछाय।।
रिंगी-चिंगी आथे आज। मान बिछावन, नइ हे लाज।।
-सरकी
575- ले पिसान ला देवँय सान। गोल-गोल गिल्ला ला चान।
इही गोल रोटी बेलाय। संगी बोलव काय कहाय।।
-लोई
576- दाई दुहना दूध जमाय। थोरिक जामन देत मिलाय।
ले सकेल के मही बिलोय। तभे इही हा सकला होय।।
-लेवना
577- कूट पीस अमली ला लान। चुरपुर मिरचा नून मिलान।।
अमसुरहा बड़ चाँटन खान। झन कहिहौ नइ नाँव बतान।।
-लाटा
578- घर कुरिया के ऊपर ताय। कमचिल, खपरा बिकट छवाय।।
सावन के पहिली लहुटाँय। येखर खाल्हे दिन पहुवाँय।।
-छानी
579- ईंटा, पखरा, माटी सार। घर कुरिया के ये आधार।
छानी ला ये लेवय थाम। छेंका करना येखर काम।।
-भिथिया
580- घर कुरिया मा रहै दिवार। जेला भिथिया कहिथन यार।।
जघा छोड़ के जघा बनाय। इही जघा मा जिनिस अमाय।।
-पठेरा
581- गाड़ा बइला इहाँ चलाय। सटा-सटा बड़ मार भगाय।
नान्हें लउठी, डोरी चाम। आथे ये खेदे के काम।।
-कोर्रा
582- गड़हा गाड़ी खूब भगाय। अर्र तता ता, बोल सुनाय।।
एक कोर खीला ठोंकाय। ये लउठी हा काय कहाय।।
-तुतारी
583- लाम बाँस बल्ली ला डार। झींक-तान के बाँधँय तार।।
गिल्ला लत्ता इहाँ सुखोय। हर घर मा खच्चित होय।।
-डंगनी
584- इही डहर ले निकलत आय। बड़े फजर सूरुज ललियाय।।
रोज उवय बेरा बन छाय। इही दिशा सब जल चढ़हाय।।
-उत्ती
585- दिनभर सूरुज रेंगत जाय। घूमत-घामत बेर पहाय।।
इही दिशा मा संझा आय। उत्ती के ये उलट कहाय।।
-बुड़ती
586- इही दिशा हे यम के द्वार। रहिथें रक्सा डेरा डार।।
अइसन कहिथें मनखे यार। कोन दिशा ये करव विचार।।
-रक्सेल
587- इही दिशा मा रहय कुबेर। करय न कखरो करा अँधेर।।
धन दौलत सुख के भंडार। कोन दिशा हे बोलव यार।।
-भंडार
588- बर पीपर के राहय छाँव। एक ठौर ये होवय गाँव।।
जिहाँ सबो मनखे जुरियाँय। बइठ इहाँ झंझट निपटाँय।।
-गुड़ी
589- बरसाती कीरा ये मान। दूनों कोती मुँहुँ हे जान।।
माटी, गोबर, कचरा खाय। खा-खा खातू खूब बनाय।।
-गेंगरवा
590- पाँखी हे पर तँउरे जाय। दिनभर पानी बीच पहाय।।
सादा पंछी मछरी खाय। चोंच, पाँव राहय ललियाय।।
-बदक
591- भुँइया, पानी मा रहि जाय। माढ़े लकड़ी कस पटियाय।।
दाँत जबरहा बड़का खोल। देखत मा मन काँपय झोल।।
-मँगरा
592- अपन खोंधरा गजब बनाय। दरजी चिरई इही कहाय।।
येखर घर ला देखन भाय। सीख कहाँ ले येहा आय।।
-बया
593- लगै परेवा के परिवार। पर येखर नान्हें आकार।
सिधवा येला पंछी जान। रहै खोंधरा उँचहा स्थान।।
-पँड़की
594- मिट्ठू जइसे बोलय बोल। मनखे जाथे देखत डोल।।
भुरुवा, करिया होवय रंग। करथे मन के, राखव संग।।
-मैना
595- पाँखी रहिके दँउड़े जाय। येला उड़ई कमती भाय।।
रहै गोरिया, भुरवा मान। खेत-खार मा बहुते जान।।
-तितुर
596- पनिहा चिरई इही कहाय। पानी मा ये समय बिताय।।
खोज-खोज मछरी ला खाय। पानी ऊपर नाचत जाय।।
-पनबुड़ी
597- रतिहा जागय दिने उँघाय। उल्टा लटके समय पहाय।।
बड़े-बड़े दू होथे कान। बच्चा देथे सीधा जान।।
-चमगेदरी
598- दिनभर येहा सुते बिताय। रतिहाकुन आँखी बर जाय।।
मुसुवा येला बहुते भाय।। घरखुसरा इही कहाय।।
-घुघवा
599- घर के भीतर येखर ठाँव। रेंगय भिथिया चटकै पाँव।।
माछी, मच्छर गप-गप खाय। कटे पुछी पाछू उग जाय।।
-घररक्खा
600- कुकुर जंगली इही कहाय। बहुते ताकत भुजा समाय।।
जबर शिकारी येला जान। बड़े-बड़े के हरथे प्रान।।
-हुड़रा
601- करिया, भुरुवा आँखी लाल। करथे येखर चोंच कमाल।।
ठक-ठक लकड़ी चोंच गड़ाय। निकलय कीरा पकड़य खाय।।
-कठखोलवा
602- हरियर, पींयर, करिया रंग। करथे किरवा बड़ उतलंग।।
दूर देश ले उड़ के आय। नान्हें पौधा चट कर जाय।।
-कनकट्टा
603- घररक्खा कस दिखथे यार। करिया सादा चिक्कन सार।।
इही साँप के मोसी ताय। बारी-बखरी दँउड़ लगाय।।
-घिरिया
604- घररक्खा ले बड़का जान। होय भोरहा मँगरा मान।।
जीभ साँप जइसे फँकियाय। भिथिया, छानी झट चढ़ जाय।।
-गोंइहा
605- फर चिरपोटी नाने-नान। कटही डारा पाना जान।
फुलुवा नीला, पींयर रंग। येखर सेवन भरै उमंग।।
-भसकटिया
606- भुँइयाँ भीतर फरथे यार। बाहिर छछले बहुते नार।
फर मा गजबे गुदा भराय। गुरतुर येहा गजब मिठाय।।
-कांदा
607- अँगना, बखरी छछलै नार। सावन-भादो मा भरमार।।
संझा फूलय पींयर फूल। लाम, खसर्रा फरथे झूल।।
-तरोई
608- इही तरोई चिक्कन ताय। कच्चा फर ला खाय बिसाय।।
पक्का फर ले रगड़ नहाय।। भरे विटामिन, सुघर सुहाय।।
-ड़ोड़का
609- फुलुवा पँड़रा फूले नार। लाम-लाम फर के भरमार।।
कच्चा हरियर, सादा रंग। पक्का बंदन, ललहू संग।।
-कुंदरु
610- फरै गोलवा फर दमदार। छछलै सादा फुलवा नार।
बर्तन, बाजा सुखो बनाय। कच्चा फर के साग सुहाय।।
-तुमा
611- लमरी-लमरी फरथे डार। हरै तुमा के ये परिवार।।
हरियर चिक्कन सादा ताय। चना दार के संग मिठाय।।
-लौकी
612- फरै पेड़ फर बड़का सार। हरियर, पींयर कटही मार।।
कच्चा फर के साग सुहाय। पक्का फर के कोवा खाय।।
कटहर
613- लाम, चेपटी, कोकी सार। फरथे बहुते छछलै नार।
आनी-आनी होथे रंग। बीज फोकला लगथे अंग।।
-सेमी
614- साग हरै ये फल्लीदार। फरथे बखरी, बारी नार।।
हरियर, करिया लामी लाम। बीज दार, फर खाये काम।।
-बरबट्टी
615- उपजै बखरी, खेती खार। लाम, खसर्रा फर भरमार।।
साग सुहावै आलू डार।। गरुवा खातिर चारा सार।।
-चुरचुटिया
616- कुँदरू जइसे छछलै नार। उपजै बखरी, नदी कछार।।
फर कुँदरू ले जादा मोठ। किच-किच बीजा करथे पोठ।।
-परवर
617- छोट करेला इही कहाय। कोंवर-कोंवर साग सुहाग।।
फर हा कटही रेशादार। भीतर कांदा, ऊपर नार।।
-खेखसी
618- छानी, परवा इही सजाय।। माटी साँचा डार बनाय।।
सुखो बनावय नालीदार। पाकय भट्टी मा दमदार।।
-खपरा
619- हरै बाहरी काड़ी सार। अँगना बाहिर दैय खरार।।
पातर-पातर चिलपा बाँस। खरहारँय सुग्घर सब हाँस।।
खरेरा
620- लोहा कुटका जानव सार। माथा संगे चोक्खू धार।।
गाड़य भिथिया ठोंकत माथ। रहै सदा बढ़ई के साथ।।
-खीला
621- उपराहा तरकारी जान। पौल उसन या काट सुखान।।
जे दिन हरियर साग न पाँय। सुघर राँध के येला खाँय।।
-खोइला
622- छेना हथवा चाकर ताय। गाय गरू खुरखेद मचाय।।
सउघे छेना नो हे मान। कुटी-कुटी राहय, पहिचान।।
-खरसी
623- पानी नो हे, पर बोहाय। सादा हे, घर नइ पोताय।।
भँइस, गाय के थन तनियाय। जौन पियै तन पोठ बनाय।।
-गोरस
624- पीथें दुनिया काफी, चाय। इही पिये के बर्तन आय।।
बनथे माटी ले ये जान। लाल गोलवा हे पहिचान।।
-चुकी
625- मंगल कारज, जोत जलाय। लाली भाँड़ी लाय बिसाय।।
नाँदी ऊपर तेल भराय। पूजा मंदिर बउरे जाय।।
-करसा
626- छोटे खटिया येला जान। लइका सोवय येमा मान।।
कभू बइठ खुश होय सियान। गाँथे डोरी बहुते तान।।
-मचोली
627- तरी सकेला पेंदी जान।। ऊपर चाकर मुँहड़ा मान।।
छेना के आगी सुलगाँय। डार हूम घर भर देखाँय।।
-हुमाही
628- गोल-गोल चाकर ये सार। चारों मूँड़ा उठे दिवार।।
पीतल, काँसा, ताँबा, स्टील। जेवन खावँय, करै न ढील।।
-थारी
629- बिन पेंदी के बर्तन गोल। काँसा, पीतल के अनमोल।।
दार-भात राँधे के काम। पुरखौती ले चलथे नाम।।
-बटलोही
630- चाकर मुँहटा कलई मान। बड़का बर्तन येला जान।।
बड़े काम ला लेवय थाम। संगी बोलव येखर नाम।।
-बाँगा
631- अपने रहना बसना होय। लगै थकासी आवय सोय।।
ईंटा, पखरा, माटी सान। इँहचे घर परिवार बसान।।
-डेरा
632- रहिथे लकड़ी चकरी चार। छँड़िया के हुक लटके सार।।
पातर पटवा बाँक बराय। बड़ सुग्घर डोरी अँइठाय।।
-ढेरा
633- लामी लामा लकड़ी डार। पाछू कोती दू खुर सार।
पाँव पीठ मा जब मढ़हाय। बीच बाहना धान कुटाय।।
-ढेकी
634- पखरा के दू पाटा सार। राहँय सँघरा खीला डार।
मुँहुँ ले चाउँर, गहूँ खवाय। हाथ धरै सब गोल घुमाय।।
-जाँता
635- लकड़ी के ये गदा कहाय। सुग्घर चाँउर, दार छराय।।
मुँहुँ मा लोहा कड़ा लगाय। बीच बाहना जाय समाय।।
-मूसर
636- अँगना, परछी गड्ढ़ा खोल। ढ़ेकी मूसर बर ये गोल।।
पखरा, माटी खने बनाय। गड़ढ़ा मा निक धान कुटाय।।
-बाहना
637- बीच बियारा ला चतवार। पैर बगरथे जब कोठार।।
दस बारा बइला ला फाँद। धान मिसावै जोरे खाँद।।
दौंरी
638- लकड़ी, लोहा गोला सार। बइला जोरै डाँड़ी डार।।
मिसय धान ला गोल घुमाय। जानव जल्दी काय कहाय।।
-बेलन
639- लकड़ी, पाटा चीर लगाय। चार खुरा मा ये ठोंकाय।।
सुते बसे के आवय काम। जानव संगी येखर नाम।।
बाजबट
640- लोहा, चद्दर गोल कटाय। एक मुड़ा मा मूँठ धराय।।
आँच परे ये ललियाय। पो ले रोटी खूब मिठाय।।
-तावा
641- लोहा चाकर लाम कटाय। एक मुँड़ा मा बेंठ धराय।।
काड़ी, कचरा जोर उठाय। माटी मलबा टार हटाय।।
-रापा
642- भुँइया माटी खन के काट। खँचवा डिपरा देवय पाट।
रहै कुदारी ले बड़ जान। दुनों मुँड़ा ले खन्ती खान।।
-गैंती
643- माटी, पैरा, कुटी मिलाय। मरकी पेंदी उलट छबाय।
सुक्खा मा गोबर लिपवाय। खरसी, आगी सुलगे जाय।।
-गोरसी
644- गगरी, हौला पेंदी गोल। एती-वोती जावै डोल।।
पैरा गुड़ुवा तरी लगाय। येखर ऊपर सबो मढ़ाय।।
गिरी
645- बेंठ हाथ भर, लोहा सार। बिकटे रहिथे येमा धार।।
छोले-चाँचे आवय काम। बसे रहै मुँहुँ ये खर नाम।।
-बसुला
646- लामी लामा छँड़िया ताय। लकड़ी फाटा बेधे जाय।।
अँइठे-गँइठे खाल्हे धार। बढ़ई के हे ये हथियार।।
-बिंधना
647- ऊपर पटनी काट बिछाय। खाल्हे दू ठन खुरा धराय।।
आवय पहुना दय बइठाय। रिंगी-चिंगी रंग रचाय।।
-पिड़वा
648- धान-पान हा इहाँ मिसाय। रहै बड़े भुँइया घेराय।।
राहय खरही इहाँ गँजाय। दौंरी, बेलन पैर मिसाय।।
-बियारा
649- इही बियारा बारी द्वार। लकड़ी लोहा बाँधे सार।।
आती-जाती परै हटाय। चारों मूँड़ा रहै घेराय।।
-राचर
650- जभे बियारा धान मिसाय। बदरा, कचरा जाय उड़ाय।।
माटी छबना येला जान। रहै खोलखा, राहय धान।।
-कोठी
651- सिढ़िया खाल्हे ठौरे जान। राहय वो हा खाली स्थान।।
परे-डरे धरथें सामान।। तुरते येला तैं पहिचान।।
-गोड़ा
652- बड़हर के घर बहुते माल। राखय बाड़ा सबे सँभाल।
गरुवा के ये डेरा आय। माल मवेशी रात बिताय।।
-गोर्रा
653- घर अँगना मा जौन लगाय। खाँसी सरदी भागे जाय।
ऑक्सीजन बहुते बरसाय।। पाना फुलुवा डारव चाय।।
-तुलसी
654- होयव करु फर बीजा जान। पाना, डारा दवा खदान।।
पाके बीजा मीठ जनाय। तेल गुठलु के लैं पेराय।।
-लीम
655- डारा पाना दूध भराय। थाँघा धरती जरी जमाय।।
पेड़ खड़े राहय सौ साल। फरै गोलवा फर हा लाल।।
-बर
656- पातर झिल्ली पाना जान। बर के जइसे इहू महान।।
ऑक्सीजन के हे भंडार। फर पिकरी होवै रसदार।।
-पीपर
657- येखर पाना पतरी मान। पेड़ दिखै खड़भुसरा जान।।
फागुन लाली अँगरा फूल। पंथी जावय रद्दा भूल।।
-परसा
658- पाना दोना पतरी मान। झँउहा-झँउहा फर ला जान।।
सरी पेड़ हा आवय काम। संगी जानव येखर नाम।।
-मँउहा
659- झाड़ी जइसे रुखुवा जान। काँटा-खूँटी हे पहिचान।
फरै गोलवा फर रसदार। कच्चा पक्का खावँय यार।।
-लिमऊ
660- अमरैया मा करथे राज। अँगना बखरी होवय आज।।
मौरे जब ये कोयल गाय। पाना डारा पूजे जाय।।
-आमा
661- कोकी-कोकी फर हा सार। नान्हें पाना छावय डार।।
फर के भीतर भरे चिचोल। अमसुरहा हे येखर बोल।।
-अमली
662- हरियर पींयर फर हा गोल। अमरित जइसे ये अनमोल।।
अमसुर कस्सा स्वाद जनाय। सेहत सुग्घर देंह बनाय।।
-आँवरा
663- होय गोलवा भाजी पोठ। डारा रटहा, झनकर गोठ।।
फर ला लकड़ी काड़ी जान। इही आयरन अमित खदान।।
-मुनगा
664- कागज कुटका झन तैं जान। समाचार तैं मन के मान।।
मितवा जे राहय परदेश। ओखर लय-दय संदेश।।
-चिट्ठी
665- पहिरे रहिथे लत्ता लाल। खड़े रहै चौके चौपाल।।
मुँह ले खावै जौन खवाय। पेट चीर के धर ले जाय।।
-लेटर बाक्स
666- नान्हें पातर डोर लमाय। दूर देश के बात बताय।।
मुँहें दता अउ कान लगाव। हालचाल सब सुनव सुनाव।।
-टेलीफोन
667- घर बइठे सब दरस कराय। पिक्चर, नाचा, गीत सुहाय।।
समाचार, मनरंजन, ज्ञान। जादू बक्सा येला मान।।
-टेलीविजन
668- ज्ञान खजाना भरे अपार। बइठ जान अपने घर द्वार।।
गूगल बाबा होही भेंट। संसो सब्बो देही मेट।।
-कम्प्यूटर
669- खाकी वर्दी तन मा डार। आवय सबके अँगना द्वार।
झोला खाँधे ये लटकाय। सुख-दुख के पाती दे जाय।।
-डाकिया
670- परथे जब कोनो बीमार। सुजी दवा ले करय सुधार।।
राहय इन ला एखर ज्ञान। रोगी कहय इही भगवान।।
-डॉक्टर
671- लइकामन के संगी जान। बाँटय सब ला आखर ज्ञान।।
विद्यालय मा येखर राज। बहुते देवय मान समाज।।
-मास्टर
672- सड़क, मॉल, घर, पुलिया, बाँध। नक्शा खिंचई येखर खाँध।।
दे दिमाग सब ला समझाय। कइसे बनही, बात बताय।।
-इंजीनियर
673- वरदी खाकी बड़ दमदार। जान-माल के हें रखवार।
अपराधीमन अउ अपराध। इँखर बुतावै येमन साध।।
-पुलिस
674- पहिरै सुग्घर करिया कोट। सहै नहीं ये न्यायी चोट।।
गोठकार बड़ इन ला जान। ज्ञान कानूनी बहुते मान।।
-वकील
675- कथा, कहानी रचनाकार। उपन्यास ला दँय आकार।।
करके बहुते सोंच विचार।। गद्य रूप पुस्तक साकार।।
-लेखक
676- अपने अंतस भाव उतार। कागज के कुटका मा डार।।
रचै गजल, कविता अउ छंद। पढ़के मन उपजै आनंद।।
-कवि
677- अपन भाव मा भरथे रंग। रिंगी चिंची कुचिया संग।।
सुन्ना-सुन्ना जघा सजाय। जस के तस ये चित्र बनाय।।
-चित्रकार
678- मोटर गाड़ी रेल चलाय। सब ला मंजिल तक पहुँचाय।।
हाथ म हेंडिल, ब्रेक ह पाँव। गाड़ी इँखरे असली ठाँव।।
-ड्राइवर
679- सुग्घर सेवाभावी जान। कोनो ला नइ कहय बिरान।।
सादा कुरता 'कैप लगाय। दीदी सबके इही कहाय।।
-नर्स
680- मास्टर येमन होवय तेज। पढ़हावँय जाके कॉलेज।।
लइकामन के भाग्य बनाय। संगी बोलव काय कहाय।।
-प्रोफेसर
681- सरकारी सेवक सरकार। अपन जिला के लंबरदार।।
जनता के सब काम कराय। अघुवा सबले आगू आय।।
-कलेक्टर
682- समाचार मा खबर लगाय। डरे बिना ये फरज निभाय।।
छानबीन कर कलम चलाय। ये समाज मा निडर कहाय।।
-पत्रकार
683- घर कुरिया ला हमर बनाय। बुता-काम बनिहार चलाय।।
खड़े-खड़े सब ला समझाय। कभू बुता मा खुद भिड़ जाय।।
-ठेकेदार
684- जौन जिनिसमन बिगड़े पाय। देखभाल के सुघर बनाय।।
करै मेहनत बुद्धि लगाय। रोजी-रोटी रोज कमाय।।
-मेकेनिक
685- माटी के तैं सिरतों जान। हाड़-माँस के संग परान।।
नख, चुन्दी अउ चमकै चाम। साँस चलत ले करले काम।।
-काया
686- काया के ये होथे सार। सबले चतुरा, बड़ हुशियार।।
इही इशारा करते जाय। सब ला येहा बुता धराय।।
-दिमाग
687- एक बरोबर दूनों जान। पानी भीतर डोंगा मान।।
करिया, सादा पुतरी ताय। पानी बड़ टिपटाप भराय।।
-आँखी
688- मुखड़ा बाहिर उभरे जान। हाड़-माँस के कुटका मान।
रहय गाल के दूनों पार। सुनथें येखर ले सब सार।।
-कान
689- आँखी खाल्हे उभरे जान। एक गुफा दू रद्दा मान।।
साँसा येमा आये जाय। महक, बसौना इही बताय।।
-नाक
690- नाक तरी मा महल बनाय। बड़का भारी खोल जनाय।।
दाना-पानी जाय समाय। पर खातिर ये खाय कमाय।।
-मुँहुँ
691- मुँहुँ भीतर के यह रखवार। खड़ें सिपाही बड़ दमदार।।
चीर चाब के करदँय पीस। चाकर, चोक्खू इन बत्तीस।।
-दाँत
692- बिना हाड़ के जीव कहाय। रहै सदा मुँहुँ दाँत सहाय।।
खान-पान के स्वाद बताय।। चटर-चटर बड़ मया जताय।।
-जीभ
693- मुखड़ा के ये ऊँच मकान। देंह मुकुट येला तैं जान।।
टिकली, टीका इहें लगाँय। भाव भजन मा रोज नवाँय।।
-माथा
694- मुखड़ा धड़ के येहा जोर। येखर भीतर कंठ किलोर।।
साधय मुँड़ के भारी भार। दिखय देंह हा सुग्घर सार।।
-टोंटा
695- धकधक धड़कै ये दिनरात। बंद परै ता बिगड़ै बात।।
साफ लहू नस मा बगराय। नान्हें मोटर पंप कहाय।।
-हिरदे
696- सरी देंह के खानादार। पोसन पालन करथे सार।।
खाये जेवन सुघर पचाय। तन-मन ला ये पोठ बनाय।।
-पेट
697- सरी देंह मा बगरे जाल। बहत रहै तन लहू ह लाल।।
पातर-पातर रेशा जान। येखर भीतर बसथे प्रान।
-नस
698- लाली पानी नस बोहाय। कटे-फटे मा बाहिर आय।।
खानपान ले बनथे जान। लाल रंग मा जिनगी मान।।
-लहू
699- सरी देंह के बोहय भार। जाँघ तरी येखर घर द्वार।।
गोल कटोरी हाड़ा ताय। उठक बइठ ला इही कराय।।
-माड़ी
700- एड़ी खाल्हे येला मान। सरी देंह ला बोहे जान।
हाथ हथेली जइसे ताय। येखर बल मा रेंगत जाय।।
-पँउरी
701- नान्हें नोनी फुलमत नाँव। फुँदरा गाँथे बइठे ठाँव।।
नोनी फुँदरा अपन गवाँय। गाँव गली मा खोज कराँव।।
-पैली/काठा
702- कर्रा कुकरा, उज्जर जान। अँइठ पुछी किकियाथे तान।।
मिलथे बहुते येला मान। पूजा खोली पाथे स्थान।।
-शंख
703- पाछू पातर, आगू मोठ। कुछु करै न येहा गोठ।।
मुँह मा येखर आगी बार। भुकभुक कुहरा फेंकय मार।।
-चोंगी
704- करिया, भुरवा होवय रंग। आवय-जावय हमरे संग।
परे रहय परछी, परसार। पुछी उठा के खसले डार।।
-पनही
705- खाकी कपड़ा मा लपटाय। ऊपर ले मुँदरी पहिराय।।
फोंक टोर के फेंकय यार। पाछू कोती चाँटय झार।।
-चोंगी
706- सादा हाड़ा परे उतान। जनम समुंदर मा ये जान।।
राहय बीचे पेट चिराय। दिखथे कुबरा पीठ उठाय।।
-कौड़ी
706- एक गोड़ के घोड़ा यार। दू झन येमा होय सवार।।
आगू-पाछू एक न जाय। बेड़ा ऊपर बिकट भगाय।।
-रैहचूली
707- उतरै घोड़ी ऊँच पहार। चाल रेचकी जानँव सार।।
पिला अठारा कोरी जान। करै नहीं काँही नुकसान।।
-चलनी
708- अटपट छेरी फटफट कान। खड़े पाँव दू मँगरा मान।।
खबखब खावै कतको धान।। पुरखौती के हरय निसान।।
-ढ़ेकी
709- पखरा मा हे खाँच खनाय। हबर-हबर बहुते ये खाय।।
इँखर पेट मा खिला गड़ाय। कान पकड़ के गोल घुमाय।।
-जाँता
710- एके पइसा के हे मोल। बेनी संगी जावय डोल।।
कोर गाँथ के खोंच पिछोत। आगू-पाछू कोनो कोत।।
-फुंदरा
711- खूब कुटेला कुटते आय। मूँछ ददा के टुटते जाय।।
दाई के तो पेट चिराय।। आगर भुरुवा चोला पाय।।
-गहूँ
712- दिखथे लटके लोढ़ा लाम। ढेंठ़ा खाल्हे बीख तमाम।।
रहै भीतरी तीन मकान। कचर-कचर हे नँगते गान।।
-खीरा
713- रहै पोंगरी गुजगुज पान। फर लड़वा के जइसे जान।।
खेत-खार बखरी मा होय। जौने काटय तौने रोय।।
-गोंदली
714- लाली करिया दाना सार। भीतर उज्जर सेंदुर यार।।
हरियर पाना धनिया मान। करौ तुरत येखर पहिचान।।
-मसूर
715- फरै न फूलै कोनो डार। येखर बिन उन्ना संसार।।
जनम धरे हन तब ले खान। नुनछुर नँगते, कर पहिचान।।
-नून
716- फरे पान के ओधा जान। हरै माँस के लोंदा मान।।
मुँड़ हा रहिथे काँटादार। राँध संग आलू मिंझार।।
-भाँटा
717- झिमरी नोनी, चुन्दी चार। देंह-पाँव भुँइया के पार।।
दुधवा सादा उज्जर रंग। राँध बने तैं भाटा संग।।
-मुरई
718- देखे मा हावय ये लाल। टमड़े मा गुजगुज हे हाल।।
पहिरे हरियर टोपी आय। संग सबो के रंग जमाय।।
-पताल
719- घेंच कटै धरती मा आय। बचें देंह हा नदी नहाय।।
हाड़ा सादा पटपट ताय। चाम सुरर के बेंचे जाय।।
-पटवा/सन
720- नान्हें लइका बहुते बाढ़। दाढ़ी मेछा हावय गाढ़।।
दिखथे जइसे कुसियार। फरथे फर हा बीच कटार।।
-जोंधरी
721- रिंगी-चिंगी फूले फूल। फर, काँटा घेरा मा झूल।।
बिलई आँखी फर ला मान। उपजै बन कचरा कस जान।।
-भसकटिया
722- मिलै नहीं राजा दरबार। उपजै कोनो खेत न खार।।
नइ बेंचावय कहूँ दुकान। देखत संसो छाय किसान।।
-करा
723- सोन तिजोरी जइसे मान। लोहा ढकना ऊपर जान।।
भीतर निकलै पखरा चार। जंगल हा येखर घर द्वार।।
-तेन्दू
724- रुखुवा लोहा जइसे सार। फूल सोनहा फुलथे मार।।
फर चाँदी कस उज्जर होय। जेखर भीतर पखरा सोय।।
-बंभरी
725- अपन सगा घर सग हा जाय। धरय सगा ला मार ठठाय।।
ठूक-ठाक बस गोठ सुनाय। कोनो नइ तो रोवय गाय।।
-हथौड़ी
726- बिन पानी के उज्जर सूत। गटगट पीयय सबके पूत।।
ताकत के ये हरय खदान। येखर दाता बहुत महान।
-गोरस
727- बीख झार के नोनी जान। बारी बखरी बीच मकान।।
देखत मा येहा डरवाय। धरते मा बहुते रोवाय।।
-मिरचा
728- चार सींग हा मुँड़ मा होय। माल मसाला जिनगी खोय।।
हरियर पाछू नरियर लाल। कारी पर ये करय कमाल।।
-लवाँग
729- फुलुवा फर घूमत रहि जाँय। टोरय एके सब झन खाँय।।
भर-भर टुकना बड़ बेंचाय। जेवन पाछू सोर लमाँय।।
-बिरो पान
730- बिन पानी के महल बनाँय। अखरा पखरा ऊँच रचाँय।।
दू पइसा ला द्वार मढ़ाँय। भीतर लाखों संग समाँय।।
-दियाँर
731- गोड़ चार अउ दूठन पाँख। मुँड़ ले बड़का येखर आँख।।
किरवा पींयर छाता छाय। पुछी कोत मा बीख भराय।।
-दतैया
732- थारी कंचन माढ़े ताल। चिक्कन चाकर हरियर हाल।।
टोरय जोरय लाय मढ़ाँय। पंगत मा सब जेवन पाँय।।
-पुरईन पान
733- चमकै थारी तरिया पार। रंग सोनहा सुग्घर सार।।
नइ तो येहा हाथ धराय। आसमान मा चढ़ते जाय।
-सूरुज
734- एक खेत मा बगरे जान। धान, गहूँ गाड़ा भर मान।।
इँखर बीच मा गोटी एक। सबले सुग्घर सबले नेक।।
-चंदा/चंदैनी
735- लेन-देन के नइ हे बाय। जाथे तेने देते जाय।।
आवय तौने खुल्ला भाय। संगी जानव येहा काय।।
-कपाट
737- घर भर के ये करधन एक। लेकिन कनिहा हवय अनेक।।
घर अँगना के ये रखवार। रहिथे बाहिर डेरा डार।।
-बारी परदा
738- लइका ये रेंगत ना आय। खाँध-खाँध मा बइठे जाय।।
बीच-बीच मा मारे खाय। मार खाय अउ सुर मा गाय।।
-बाजा
739- एक साधु हा तरिया पार। ध्यान लगावै घंटा चार।।
देखय खाल्हे नैन गड़ाय। मेढ़क, मछरी बिन-बिन खाय।।
-कोकड़ा
740- बाप डड़ंगा बहुते लाम। बेटा पोन्डा लेवँय नाम।।
नाती निन्धा छटकू राम। आवँय तीनों बहुते काम।।
-पेड़,फर,फूल
741- जब आना हे तब नइ आय। नइ आना हे आ के छाय।।
बहुते जल्दी ये बउराय। रहिके जुच्झा कभू पहाय।
-नरवा/नँदिया
742- छिंदक-छिंदक छाये फूल। फर हा फरथे डारा झूल।।
बारा राजा होय मँजूर। एक पेड़ बस्ती भर पूर।।
-डूमर
743- कारी छेरी गर मा डोर। जाय हाट मा मारय जोर।।
हाथ अपन दूनों तनियाय। ऊँच-नीच अड़बड़ डोलाय।।
-तराजू
744- नाँगर जोतँय भाई पाँच। नइ आवय कोनो ला आँच।।
कोपर तीरै मिल दस भाय। बिहना-बिहना सबो कमाय।।
-दतुवन
745- एक निसैनी एक्के पाँव। देवय सब ला सुग्घर छाँव।।
पक्ति आठ, बाराठन जान। बरसा, गरमी संगी मान।।
-छाता
746- एक बियारा एक्के द्वार। बत्तीस उहाँ पहरादार।।
खीरा बीजा जइसे जान। हाड़ा सादा कस पहिचान।।
-दाँत
747- अक्कड़ जक्कड़ लकड़ी बाँध। एक पाट मा जम्मों छाँध।।
झिथरी चुन्दी हा छरियाय। कोर-कोर ये हा समराय।।
- ककई
748- चार गोड़ के चप्पो खाय। पीठ बइठ निप्पो इँतराय।।
आइस गप्पो चोंच लमाय। निप्पो धर गप्पो उड़ियाय।।
-भँइसा, मेचका, चील
749- दूनों कोठा गोबर ढेर। एक हाथ मा लेवय हेर।।
कभू-कभू रेरा बोहाय। घेरी-घेरी तब पोंछे जाय।।
-नाक
750- नान्हें नरियर, कुरता लाल, राखै हरियर पुछी सँभाल।।
चटनी येखर चाँटत खाव। तुरते ताही नाँव बताव।।
-बंगाला
751- फूल एकठन फूलय खास। जोत्था फर हा फरै पचास।।
हाड़ा नइ हे, गुदा भराय। फेंक फोकला दुनिया खाय ।।
-केरा फर
752- कहाँ गरू हे पाव छटाक। बात बता का हरै फटाक।।
दू झन मा उचथे ये भार। येखर ले सब बाँचव यार।।
झगरा/ठेनी
753- पानी भीतर समय पहाय। लाम-लाम चुन्दी बगराय।।
बारा लइका ये उपजाय। कहाँ गोसईया मिल पाय।।
-ढुलेना कांदा
754- बिना मुँड़ी के चिरई यार। ओखर पाँखी कई हजार।।
सके नहीं ये कभू उड़ाय। पर सब ला रद्दा देखाय।।
-किताब
755- दू लुगरा अउ नारी एक। पहिरै रहिथे येहा नेक।।
उघरा येखर तभो पिछोत। घूमत राहय चारों कोत।।
-माछी
756- उचकी घोड़ा हा चभरंग। धर लगाम बुड़ येखर संग।।
बइठे राहँय ससुर दमांद। देखत हाँसय अइसन फांद।
-बॉल्टी, डोरी, कुआँ
757- उत्ती कोती जोगी आय। एक गोड़ मा ध्यान लगाय।
सादा टोपी मुँड़ मा डार। घूमय येहा खारे-खार।।
-पिहरी
758- चकरी रे चकरी ये टाँठ। रसा भरे बड़ गाँठे गाँठ।।
भँवरी जइसे गोले गोल। खा के निकलै मीठा बोल।।
-जलेबी
759- रात-रात भर नँगते रोय। लात तान ये दिनभर सोय।।
कुरता बेनी सादा सार। भभकै देखत ये अँधियार।।
-मोमबत्ती
760- नोनी पड़री ला जर आय। टुरा मेछर्रा लेग भगाय।।
दिखै गोलवा पातर पान। चीथ-चीथ ले डारै प्रान।।
-रोटी
761- एक आँख जाला भरमार। दिन भर बइठे डेरा डार।।
रतिहाकुन होवय तैयार। बाँटय बहुते जग उजियार।।
चन्दा
762- दू अक्षर के नाँव सरेख। उलट-पुलट के जादू देख।।
सोज लिखे मा घोड़ा खाय। उलट परे ता नाच नचाय।।
-चना
763- एक मोहना घर-घर पाव। करनी देखत सबो डराव।।
रसा चुहक हाड़ा ला खाय। मुँह कोती आगी उछराय।।
-माचिस
764- कलगी हे कुकरा झन मान। चार पाँव मा रेंगय जान।।
पुछी बेंदरा जइसे लाम। कंठ नील हे, बोलव नाम।।
-टेटका
765- आगू कोती गाँठे गाँठ। पुछी टेड़गा भारी टाँठ।।
आठ पाँव मा रेंगत जाय। छूवय तेला जहर चढ़ाय।।
-बिच्छी
766- लार निकालै जाल बनाय। फाँदा फाँसे चलते जाय।।
माछी, मच्छर, किरवा फाँस। खावय येहा सब ला हाँस।।
-मेकरा
767- बाहिर छछले पाना डार। भीतर फरथे गजब गुदार।।
लाली सादा रंग जमाय। मीठ-मीठ ये सब ला भाय।।
-शंकरकांदा
768- एक महल मा बावन द्वार। राहय सोला सौ पनिहार।।
बिना बनी पानी भरवाय। जुरमिल जम्मों बुता बनाय।।
मछेर के छाता
769- करिया बीजा सादा खेत। देखँय दुनिया करके चेत।।
बोंवइया हा गावय गीत। सबो खवइया बनथें मीत।।
-किताब
770- कोनो मा दू, कोनो तीन। कोनो मा ये एक्के झीन।।
जर सुद्धा सब धरै उखान। दाब खखौरी बहुते खान।।
-चनाबूट
771- सजे एक कुकरा हा आय। रेंगत-रेंगत थक हो जाय।।
लानव चाकू घेंचे काट। फेर चलय वो खटर खटाक।।
शीश/पेंसिल
772- कच्चा मा जम्मों झन भाय। गेदराय हा अबड़ मिठाय।।
सबो जीव बर सिरतों आय। पाके मा ये बड़ करुवाय।।
-तीन अवस्था
773- पिढवा बइठे रानी मान। मुँड़ मा आगी सिरतों जान।।
घेरी-बेरी मुँड़ी कटाय। कोनो येखर पार न पाय।।
-मोमबत्ती
774- दुब्बर पातर बड़ गुणकार। मुँड़ी नवाये रेंगय सार।।
जब आवय ये कखरो हाथ। बिछड़े मन हा पावँय साथ।।
-सुजी सूँत
775- फर येला खावँय दिनरात। येखर बिन तो बनय न बात।
मिलय न ये राजा दरबार। फूलै फरै न कोनो डार।।
-नून
776- हरियर हावय चोला मोर। चरिहा-चरिहा लेवँय टोर।।
जब-जब मोला कोनो खाय। लाली ओखर मुँह हो जाय।।
-पान
777- देंह पाँव पानी टपकाय। देखत तरुवा तिपते जाय।।
तुरते खोजे परथे छाँव। या सपटे बर परथे ठाँव।।
घाम/मँझनिया
778- करिया मुँहुँ के दिखथे यार। येखर वश मा सब संसार।।
मन भीतर भरथे उजियार। जिनगी देथे हमर सँवार।।
-कलम
779- कपड़ा बदलै ये हर साल। फागुन बाँधय मँउर कमाल।।
सबके मुँहुँ देखत पनछाय। अमरैया मा उमर पहाय।।
-आमा
780- एक्के फुलुवा लगय गुलाब। पावय कोनो नहीं नवाब।।
होवय ना माली के बाग। दिखय रात, बिहना ले भाग।।
-चन्दा
781- पहिली-पहिली दही जमाय। पाछू दुहथे जावय गाय।।
लइका ओखर पेट समाय। हेर लेवना हाटे जाय।।
-कपसा
782- एक जीव ये करिया खास। करिया जंगल करय निवास।।
पानी पीयय लाले लाल। अँगठा के नख बनथे काल।।
-जुआँ
783- कपड़ा येखर नहीं तनाय। कोनो येला नइ सिल पाय।।
एक बछर मा एक्के बार। पहिरे लत्ता रखय उतार।।
-साँप के जोंखी
784- नान्हें बस्ती रहै बसाय। घना-घना घर इहाँ बनाय।।
बसे बड़े सब राहँय वीर। पहुना आदर, धरै न धीर।।
दतैया के छाता
785- दँतली हावय येहा यार। फेर दाँत येखर दमदार।।
भूख लगै ता सहि नइ पाय। कच्चा सुख्खा सबो चबाय।।
-आरी
786- एक कुआँ मा घाट हजार। आ घुसरै सौ-सौ पनिहार।।
बिना बनी के करथें काम। सोंच बतावौ का हे नाम।।
-चलनी
787- एक सींग के येहा गाय। जौन खवाले खाते खाय।।
बइठे-बइठे बड़ पगुराय। पेट कोत ले निकले जाय।।
-जाँता
788- टंच टुरी हा टन्नक टाँय। बुता-काम मा साँये साँय।।
ठोंक ठठा के सोज बनाय। हाथ पकड़ येला रेंगाय।।
-हथौड़ी
789- बड़े दुवारी हिरना ताय। पानी पियै न खाना खाय।।
किच-किच ये नँगते नरियाय। छोड़ मुँहाटी कहूँ न जाय।।
-कपाट
790- हरियर डंडी मुँड़ मा जान। कुरता खापे लाल कमान।।
देख ताक के खोल जबान। पानी-पानी करय पठान।।
-हरियर मिरचा
791- एक गहिर बड़ अइसन ताल। देखत मा बड़ होय कमाल।।
पानी तरिया मा हे खूब। राई घलो नइ जावय डूब।।
-करा
792- एक जीव ये असली मान। बिन हाड़ा के येला मान।।
गोड़ बिना ये रेंगत जाय। लाली पानी बहुते भाय।।
-जोंख
793- छोटे मुँह अउ बड़का बात। करथे येहा दिन अउ रात।।
बैरीमन हा देख डराँय। बोली बोलय धाँये धाँय।।
-तोप
794- पानी भीतर उपजै साग। होय जबरहा येखर भाग।।
डारा देखत सबो बिसाय। चना दार के संग मिठाय।।
-ढेसकांदा
795- कहाँ देंह बस मुँड़ देखाय। बड़ दुरिहा मा रहे टँगाय।।
जटा मुड़ी मा बहुते होय। गोरा लइका भीतर सोय।।
-नरियर
796- एक टुरी हा गोली खाय। पेट भीतरी कहाँ पचाय।।
पर येला तो थूँकन भाय। परै जौन ला वो मर जाय।।
-बंदूक
797- रहिथे ऊपर ऊँच अगास। आथे येहा तो चउमास।।
ऊपर-ऊपर चमके जाय। धम-धम खाल्हे पोठ सुनाय।।
-बिजली
798- चार कोकड़ा एक्के साथ। चार बदक पकड़े हे हाथ।।
नौ रंगे मिट्ठू उड़ जाय। फेर तहाँ ले उलट बिछाय।।
-खटिया
799- रोज-रोज बड़ चलना भाय। पाँव नहीं पर आवय जाय।।
हालय डोलय बोल सुनाय। एक इंच पर घुँच नइ पाय।।
-कपाट
800- बिना पंख के उड़ते जाय। आसमान ला छू के आय।।
घेंच बँधे हे पातर डोर। हवा सहारा, गजब हिलोर।।
-पतंग
801- वीर सिपाही सोय उठाय। सुन के येला जोश भराय।।
मार परै तब जगै परान। बिन मारे हे मरे बिहान।।
-नँगाड़ा
802- बहुते हरु हँव मोला जान। फेर गरू हँव येहू मान।।
दू झन बिन मैं उठ नइ पाँव। बने बुता इनाम ताँव।।
-बड़ई
803- आगी खाथे, नहीं अघोर। पीहू करथे नो हे मोर।।
हाथी जइसे ताकत जान। शेर सहीं चुस्ती हे मान।।
-रेलइंजन
804- बिना पाँव के उड़ै उड़ान। हाथी ले जादा बलवान।।
सरी रातदिन दँउड़ लगाय। कभू थकय ना ये सुरताय।।
-बिजली
805- करिया हे पर नो हे साँप। दाँत बिना डँसथे, तैं भाँप।।
ताकत देथे, नो हे देव। नाँव जानथे तौने लेव।।
-अफीम
806- गेंद सहीं फरथे ये गोल। ऊपर टोपी कटही खोल।।
पोंगा जइसे लमरी फूल। खाय मतौना जाथें झूल।।
-धतूरा
807- पींयर-पींयर बड़ अनमोल। देखत दुनिया जाथे डोल।।
गहना-गुरिया सुघर सुहाय। येखर गुण ला दुनिया गाय।।
-सोन
808- चलते रहना येखर काम। करै कभू नइ ये आराम।।
टिक-टिक टिक-टिक बोल सुनाय। करत इशारा समय बताय।।
-घड़ी
809- लइकामन येला बड़ भाय। नइ तो दाना-पानी पाय।।
पंछी जइसे ऊँच उड़ाय। मुँह मा डोरी नाथ नथाय।।
-पतंग
810- सादा-सादा दिखथे खास। जर के देथे सुघर सुवास।।
पूजा मा ये आवय काम। कोन बताही येखर नाम।।
-कपूर
811- रिंगी-चिंगी होथे रंग। दाँत हजारों रखथे संग।।
नर नारी के आवय हाथ। बगरे चुन्दी देवय गाँथ।।
कंघी
812- बारों महिना थोरे थार। चउमासा मा बाढ़य धार।।
घर अँगना गंदा भर होय। ध्यान रखै ना जौने कोय।।
-मोरी
813- पाना येखर करै कमाल। करदै सबके हाथ निहाल।।
कूट-पीस के रंगत लाय। लाली रचथे जभे सुखाय।।
-मेंहदी
814- खैर पेड़ के येहा छाल। कुटका-कुटका रखैं उबाल।।
सबके मन ला बहुते भाय।। जौन खाय मुँह लाली पाय।।
-कत्था
815- तीन सींग के देखव गाय। तरिया भीतर तँउरे जाय।।
करिया, सादा हावय जान। फर जुड़हा गुणकारी मान।।
-सिंघाड़ा
816- हरियर-हरियर डारा पान। नर नारी के हे मुस्कान।।
जेवन पाछू आवय काम। लाल रचाथे मुँह, का नाम।।
-पान
817- रंग सोनहा, पींयर मार। उड़थे येहा पाँख पसार।।
बिच्छी जइसे नँगते झार। कोन जीव हे जानव यार।।
-दतैया
818- कलजुग काली माता मान। बात हवा ले करथे जान।।
पानी पीयै, आगी खाय। लोहा पटरी भगते जाय।।
रेलगाड़ी
819- नान-नान डबिया भरमाय। डूब-डाब ये करते जाय।।
राजा माँगय देके मोल। मुँह ले नइ दन फूटय बोल।।
-आँखी
820- खाल्हे कोती करिया होय। ऊपर आमा जइसे सोय।।
दिखथे ललहूँ बंदन रंग। आवय फागुन के धर संग।।
-परसा
821- गज भर कपड़ा बारा पाट। सात रंग के लटके टाट।।
सरलग येखर होवय पाठ। गाँठ लगे तीने सौ साठ।।
-साल(कलैंडर)
822- एक महल दू राजा होय। फौज फटाका इन्दर सोय।।
अपने पारी जब-जब आय। मुँड़ी सिपाही के कटवाय।।
-शतरंज
823- शीशी बोतल रस भंडार। रिंगी-चिंगी ये दमदार।।
येखर ले जे करथे प्यार। जिनगी हा होवय बेकार।।
-दारू
824- रतिहाकुन करथे उजियार। येखर बिन लागय अँधियार।।
सादा जुड़हा करय अँजोर। दिन मा भइगे दाँत निपोर।।
-चन्दा
825- मन्दिर जेमा दसठन द्वार। एक जीव होवय भरतार।।
बिना जीव के ये बेकार। हाड़ माँस के रचना सार।।
-मनखे देंह
826- एक पेड़ बिन डारा पान। फर झरथे बरसा कस जान।।
जौन जघा फर ये गिर आय। तुरते वो गिल्ला हो जाय।।
-करा
827- छत मियाँर मा लटके जाय। लइकामन ला बहुते भाय।।
संग सहेली सावन छाय। अमरैया मा बाँधे आय।।
-झूलना
828- सोला रानी, मूँड़ा चार। तीन आदमी मया दुलार।।
जीना मरना इँखरे हाथ। सुन्ना सबके राहय माथ।।
-चौसर/पासा
829- पातर नारी सभा समाय। एक सजन हा होंठ लगाय।।
छाती छेदा छेद बताय। बोली मधुरस वाह कहाय।।
-बँसरी
830- एक पाँव के नारी देख। पहिरे लहँगा घरी सरेख।।
ताने राहय आठों हाथ। बरसा गरमी हमरे साथ।।
-छतरी
831- एक महल मा सबो अमात। चवालीस राहय के जात।।
येखर मन के नारी चार। एक्का चारों होंय सवार।।
-ताश
832- पाँच धातु के मंदिर सार। रहिथें भीतर नर अउ नार।।
अपन हाथ ले करथें काम। जस करनी के तस ईनाम।।
-प्राणी
833- चलते रहना येखर काम। कभू कहाँ करथे आराम।।
सरी जगत के ये कल्याण। छिन भर छोड़य, निकलै प्राण।।
-हवा/साँस
834- हरियर ले पींयर हो जाय। जन-जन येला बहुते भाय।।
ऊपर भीतर फेंकय जान। फर के राजा इही महान।।
-आमा
835- एक नगर मा पशु बत्तीस। जेमा के राहँय नर बीस।।
जब मन होवय लड़ते जाय। लहू, घाव ना कखरो आय।।
-शतरंज
836- बिना बबा के नाती होय। परे-परे भिथिया मा रोय।।
पानी, गोबर बूड़ नहाय। घर कुरिया के चमक बढ़ाय।।
-पोतनी
837- रहै महल घर अँगना द्वार। ईंटा पखरा मिलै न यार।।
तरिया, नँदिया, सागर सार। मिलै न एक्को पानी धार।।
-फोटू
838- खोल म खुसरे खतरा नार। चमकै चमचम उज्जर धार।।
टेढ़ा-मेढ़ा चलथे चाल। लहू रकत पीथे ये लाल।।
-तलवार
839- बिना मुँड़ी के हावय नार। हवै भुजा दू येखर सार।।
चलौ-चलौ के करथे नेंग। संग एक झन धरके रेंग।।
-डोली
840- कपड़ा-लत्ता नो हे थान। सिलय-बिनय ना कोनो जान।।
राखय अपने देंहें डार। छै-छै महिना फेंक उतार।।
-जोंखी
841- नान्हे लइका बड़ दमदार। दाढ़ी मेछा हे भरमार।।
जब बजार मा येहा जाय। हाथ हाथ मा झट बेंचाय।।
-नरियर
842- नारी दू, एक्केठन पेट। कभू होय ना नर ले भेट।।
काज इँखर बड़ अचरज ताय। दूनों मिल लइका जनमाय।।
-सीप
843- बारा पँखड़ी होवय फूल। मुँड़ ऊपर रहिथे ये झूल।।
गरमी, बरसा लेथे थाम। जाड़ समय नइ आवै काम।।
-छतरी
844- मुँड़ मा हरियर कलगी सोय। हाथी दाँत बरोबर होय।।
आथे खाये के ये काम। तुरत बतावौ का हे नाम।।
-मुरई
845- पानी ले रुखुवा उपजाय। जेखर डारा नँगते छाय।।
जुड़हा येखर छँइहा होय। बइठ सकै ना खाल्हे कोय।।
-पानी के फव्वारा
846- मुँड़ मा बइठे रानी दोय। आवत-जावत पानी खोय।।
येखर बिन ये जग अँधियार। नाँव काय हे करव विचार।।
-आँखी
847- रहिथे येहा हमरे संग। फेर अलग हे येखर ढंग।।
कहाँ गढ़य येला लोहार। वार करै जइसे हथियार।।
-नख
848- हाड़ा-गोड़ा नइ हे माँस। रहिथे पर अँगठी मा फाँस।।
इही सुरक्षित हवय उपाय। आगी ले ये डरते जाय।।
-दस्ताना
849- आवत हँव कहिके बतलाय। दुनिया भर पहिली चमकाय।।
आवय तब बहुते धमकाय। आगी जँउहर धर के आय।।
-गाज
850- गुदा, फोकला खाय सिराय। तभो गुठलु बड़ गुरतुर भाय।।
घेरी-बेरी मुँह मा बोज। चुहक-चुहक के फेंकँय सोज।।
-आमा गोही
851- देंह दुसर के चिपकत जाय। लहू-रकत पर के बड़ भाय।।
येखर हाड़ा ना हे गोड़। दुनों मुँड़ा चलथे बेजोड़।।
-जोंकवा
852- खाल्हे ऊपर चपकन ताय। बीच करेजा धड़के जाय।।
दू अँगरी ला सबो फँसाय। धीरे-धीरे तब सरकाय।।
-कैंची
853- माटी के काया सिरजाय। लावा-धक्का सहि नइ पाय।।
कच्चा मा कोनो नइ भाय। पक्का सबके प्यास बुताय।।
-मरकी/गगरी
854- लागय लाड़ू मोती चूर। रहै नशा येमा भरपूर।।
खवईया जावय पगलाय। डमरूधर ला बहुते भाय।।
-धतूरा
855- चार पाँव पर रेंग न पाय। सभा सदन मा मान कमाय।।
येखर खातिर लड़ मर जाय। काय नाँव हे कोन बताय।।
-खुर्सी
856- कनिहा मा धोती लटकाय। येखर मुँड़ आगी लग जाय।।
बीच सभा मा धुआँ उड़ाय। येखर संगत मन भकवाय।।
-चिलम
857- मन के भीतर रहि नइ पाय। ध्यान घलो ना एती जाय।।
गरु नइ हे राई भर जान। दू मनखे ले उठथे मान।।
-बड़ाई
858- रहौं सदा मा तीरे तार। भीतर बाहिर सबले सार।।
मोला कोनो देख न पाय। मोर बिना सब प्रान गँवाय।।
-हवा
859- एक अचंभा देखे जाय। लटके खूँटी समय पहाय।।
बाबू ला जब घाम जनाय। माथा ऊपर दय बइठाय।।
-टोपी
860- फरे पेड़ मा पखरा मान। होय ठोसलग बहुते जान।।
भीतर तरिया सादा पार। फूट जाय ता निकलै धार।।
-नरियर
861- रज्जू राखे चिरई पोस। उड़ जावय ते कतको कोस।।
घेंच बँधे डोरी हे जान। खींच ढ़ील ले भरय उड़ान।।
-पतंग
862- पइसा बिन ये दाउ कहाय। अपन संपत्ति आग लगाय।।
अपने घर भीतर सुत जाय। होत बिहनिया बुता कमाय।।
-कुम्हार
863- तन भुरुवा मा धारी तीन। खावै दाना हाथे बीन।।
रुआ भरे पूछी लहराय। नान्हें हे पर हाथ न आय।।
-चिटरा
864- आ के करथे ये हलकान। जावत बेरा मा नुकसान।।
होय छोट तब्भो बेकार। हरै काय ये करौ विचार।।
-आँखी के रोग
865- खम्भा जइसे ठाड़े जान। थाँघा के नइ नाँव निसान।।
फेंक फोकला फर ला खाव। गुठलू बीजा नइ तो पाव।।
-केरा
866- भरे दूध ले गगरी चार। बिना तोपना उल्टा यार।।
टिटटिप येहा लटके जाय। बछरू पीयय मुँहे लगाय।।
-थन
867- बरसा, गरमी जनमे जान। जाड़ा कमती येला मान।।
बइठ कहूँ ये जेवन जाय। फेर न कोनो वोला खाय।।
-माछी
868- आँखी आगू बुता बजाय। आँख बंद, माड़ा मा जाय।।
दाना-पानी कुछु ना पाय।। अँधियारी मा काम न आय।।
-चश्मा
869- ये पंछी हे गजब सुजान। बोली हरदम मीठ जबान।।
करिया पाँखी लाली चोंच। कुहू-कुहू करथे, तैं सोंच।।
-कोइली
870- बिना पाँव के पहुँचे जाय। बिन मुँहुँ के सब हाल सुनाय।।
कोनो ला ये दय रोवाय। कभू-कभू ये बने हँसाय।।
-चिट्ठी
871- सादा काया सुग्घर जान। मुँड़ी जटा पोथी पहिचान।।
योगी भोगी ना सुल्तान। पंड़ित ज्ञानी झन तैं मान।।
-लहसुन
872- चालिस झन के येहा यार। झीटी सुख्खा तन हा सार।।
राहय ये हा परदा डार।। गाँव शहर बहुते लगवार।।
-चिलम
873- मोर मया हे ऊँच अगास। कइसे जावँव ओखर पास।।
मनखे बैरी पकड़ै जाय। मोर मया मोला छोंड़ाय।।
-परेवा खोंधरा
874- काज करै अचरज इक नार। मार साँप तरिया दै डार।।
धीर लगा तरिया ह सुखाय। साँप घलो मर के चितियाय।।
-दीया, बाती
875- जम्मों गुदड़ी जल मा जाय। जलै एक नइ सुँतरी पाय।।
पानी के सब जीव धराय। जल मोरी ले निकल बोहाय।।
-सौंखी
876- बिन कपड़ा के देखव नार। होय खड़ा ये बीच बजार।।
नाक म नथनी सजे सजाय। छै नाड़ा राहय लटकाय।।
-तराजू
877- लचकै कनिहा बड़ मटकाय। लोहा कारी नार कहाय।।
अनगिनती के धरहा दाँत। खावय लकड़ी फाटा घात।।
-आरी
878- एक पेड़ करुहा हे नाम। डार, पान, फर, बीजा काम।।
बनै दवाई, खातू, तेल। येखर छँइहा खेलव खेल।।
-लीम
879- गोरी नारी शोभा गाल। करिया रंगे करै कमाल।।
खेत खार मा सादा फूल। सुरता राखौ जाव न भूल।।
-तिली
880- धक-धक धड़के ये दिन रात। बुता काम करथे लगिहात।।
रहिथे ये हा डेरी पार। बंद परय जिनगी बेकार।।
-दिल
881- देंह केंवची येहा पाय। खटिया मा रहै लुकाय।।
दिन मा ये सपटे रहि जाय। लहू पियासे रतिहा आय।।
-ढे़कना
882- सुग्घर मंदिर दसठन द्वार। प्राण बिराजे बन रखवार।।
भीतर के पट खोल उड़ाय। जब हरि से मिलना पर जाय।।
-मनखे देंह
883- नारी हावय एक सचेत। प्रेमी ला ये करय अचेत।।
येखर जे फाँदा फँस जाँय। धन दोगानी मान गँवाँय।।
-मंद/दारु
884- घेरा वाला लहँगा डार। एक पाँव मा ठाड़े नार।।
हाथ आठ येखर हे जान। रिंगी-चिंगी मुखड़ा मान।।
-छतरी
885- राहँय सँघरा ये दू यार। करत चलैं खटपट तकरार।।
दूनों मिल एक्के हो जाय। घर रखवारी इही बढ़ाय।।
-कपाट
886- लइकामन के मया दुलार। लटकै ये परछी परसार।।
रोवत लइका चुप हो जाय। येमा देवय जब बइठाय।।
-झूलना
887- गरमी मा सुख ये पहुँचाय। सरदी मा ये बड़ डरवाय।।
बिना पाँख के चलते जाय। अपन जघा ले रेंग न पाय।।
-पंखा
888- चन्दा जइसे गोल अकार। जेवन संगे रखँय सँघार।।
महतारी हा मोला पोंय। खावत जम्मों, बड़ खुश होंय।।
-रोटी
889- एक नाँव के दू फर जान। अलग-अलग हावय पहिचान।।
खेते उपजै, जम्मों खाय। घर मा उपजै, घर ढह जाय।।
-फुट
890- कटै आखिरी बनथे काम। बीच कटै लेगय यम धाम।।
कटै शुरू ता प्राण बचाय। पूरा आँखी कोर रचाय।।
-काजल
891- चन्दा जइसे चाकर गोल। पान बरोबर पातर झोल।।
जेवन के बेरा मा आय। सबले पहिली मारे जाय।।
-पापड़
892- छोट-छोट डबिया डिबडाब। दिनभर उघरे, रतिहा दाब।।
मूँगा मोती झरथे खूब। येखर भीतर जाथें डूब।।
-आँखी
893- मार परै जिन्दा हो जाय। बिन मारे ये जी नइ पाय।।
पाँव बिना दुनिया घुम आय। आवय-जावय घेंच टँगाय।।
-ढ़ोलक
894- रहै संग मा ये दिनरात। कोनो नइ तो कभू अघात।।
येखर बिन तो निकलै प्राण। करै सुतत जागत कल्याण।।
-पवन/हवा
895- रहै रात भर संगे जाग। होत बिहनिया जावै भाग।।
छोड़ जाय लागै अँधियार। इही अमित के प्राण अधार।।
-दीया
896- द्वार-द्वार मा अलख जगाय। देंह भभूती फिरय लगाय।।
फूँकत सींगी चलते जाय। तन पीतांबर जटा बढ़ाय।।
-सन्यासी
897- उछलकूद ये गजब मचाय। कच्चा-पक्का सब ला खाय।।
रुखुवा ऊपर रात बिताय। पुछी लाम हे, कोन बताय।।
-बेंदरा
898- नो हे कखरो ये हा जीत। चिन्हा दे हे मोला मीत।।
दिनभर ये छाती पोटार। तीर मा राखँव, रात उतार।।
-हार
899- नो हे नारी तभो लजाय। हाथ लगे ले झट सकलाय।।
नान्हें रुखुवा बहुते पान। लजकुरहा हे, अब पहिचान।।
-छुईमुई/लजवंतीन
900- एक गाँव मा अचरज होय। ऊपर रुख फर खाल्हे सोय।।
रंग कोकड़ा, मिट्ठू मान। का हे संगी जल्दी जान।।
-मुरई
901- तीन वर्ण ये सब ला भाय। बीच कटै ता फर बन जाय।।
शुरू कटै प्रभु नाम कहाय। कटै अंत ता चीर मढ़ाय।।
-आराम
902- फर अइसन के आँख मुँदाय। फोरे मा अंड़ा दिख जाय।।
ये अंडा ला जौने खाय। तन-मन अपने पोठ बनाय।।
-बादाम
903- एक जघा ना ये टिक पाय। रूप मनोहर जग भर छाय।।
मानुसमन येमा हे खोय। दीन-हीन येखर बिन होय।।
-रुपिया, पइसा
904- इक नारी के छै औलाद। दू-दू झन ला करथे याद।।
छै झन ला ये संग बलाय। सँघरा येमन कभू न आय।।
-मौसम
905- दू आखर के हावय नाम। हाड़ा भीतर होथे धाम।।
नाड़ी ले ये आवव जाय। कोनो बिरथा नहीं गँवाय।
-लहू
906- तीन वर्ण के हावय नाम। आवय येहा सबके काम।।
रहै देंह ले ये लपटाय। इज्जत हमरे इही बचाय।।
-कपड़ा
907- हाड़ माँस तन नइ हे जान। हाथ-पाँव बिन लमरी मान।।
राहय ये हा जेखर हाथ। सुख-दुख मा ये देवय साथ।।
-लाठी
908- अपने मुख ला देखे जाय। देख-देख मन मा मुस्काय।।
येखर आगू सकल समाज। शोभा बाढ़य करके साज।।
-आईना
909- सोन सहीं चमकै ये खास। रहिथे येहा ऊँच अगास।।
करै कभू नइ ये कल्याण। धमकावत ये हर लै प्राण।।
-गाज
910- बाग, बगीचा, महल, अटार। मंदिर, मस्जिद अउ गुरुद्वार।।
छानी, परवा, रुख लपटाय। चढ़के नँगते ये मुस्काय।।
-नार/बियाँर
911- मेछा, दाढ़ी पहिली आय। पाछू लइका जनमे पाय।।
बाढ़य लइका, कहाँ दुलार। काहँय लत्ता सबो उतार।।
भुट्टा
912- पर्वत ऊपर रथे चलाय। भुँइया मा राखय टेकाय।।
वायु वेग राहय रफ्तार। एक पाँव ना उसलै यार।।
-कुम्हार के चाक
913- पानी मा ही समय बिताय। कोव-कोव ये बड़ चिल्लाय।।
मछरी, मेढ़क, नो हे साँप। थोरिक उड़थे, लेवव भाँप।।
-पनबुड़ी
914- जंगल ले ये होय तियार। उपजै बाढ़य जाय बिसार।।
जिनगी पानी बीच बिताय। बुड़ै मरै ना ये बोहाय।।
-डोंगा
915- अचरज नारी हावय एक। बहुते ओखर बुद्धि विवेक।।
पढ़े-लिखे ना एक्को आय। जियत-मरत ला तुरत बताय।।
-नाड़ी
916- एक गाँव हे बहुते खास। एक महल मा एक निवास।।
पहिरै पींयर सबझन जान। नर नारी नइ हे पहचान।।
-ततैया छाता
917- लोहा के नान्हें औजार। एक आँख येखर हे सार।।
जेखर तीर म येहा जाय। बिछड़ेमन के मिलन कराय।।
-सुजी
918- एक आदमी देंहें गाँठ। लामी-लामा तन हा टाँठ।।
भारी गुरतुर, बहुते स्वाद। चीनी, गुड़ येखर औलाद।।
-कुसियार
919- दू आखर के हावय नाम। शुरू कटै ता मइला काम।।
कटै बीच दूसर दिन जान। कटै आखिरी थोरिक मान।।
-कमल
920- एक आदमी चाम न माँस। धीर रास के चलथे साँस।।
हाड़-हाड़ जेखर छेदाय। बोली सुन के जग मोहाय।।
-बँसरी
921- पिड़वा बइठे रानी एक। मुँड़ मा आगी धरे कतेक।।
तन ले पानी रहै बोहाय। बार-बार मुँड़ काटे जाय।।
-मोमबत्ती
922- एक गोड़ अउ काने चार। अद्भुत अइसन हावय नार।।
तामस बहुते हवै मिजाज। कारी हे पर आवय काज।।
-हींग
923- खात-खात मुँहुँ हा जर जाय। हरियर, लाली फर ये आय।।
दिखथे नान्हें, मन ला भाय। बड़े-बड़े ला दय रोवाय।
-मिरचा
924- साहब खाना येमा खाय। कुआँ गिरे बाल्टी निकलाय।।
रुखराई मा होथे जान। कभू-कभू दुख देथे मान।।
-काँटा
925- रहै शान्त, बहुते चुपचाप। पानी राहय जुड़ टिपटाप।।
पियै बटोही, मिटै पियास। लोटा धरे न एक गिलास।।
-कुआँ
926- दुब्बर, पातर झन तैं जान। गजब हरै ये गुण के खान।।
करिया मुँहुँ ला उज्जर मान। संगत येखर करय सुजान।।
-कलम
927- करिया-करिया जेखर रंग। रहिथे डारा-पाना संग।।
खाबे तब ये जीभ रचाय। गजब मिठाथे नून मिलाय।।
-जामुन
928- अलकर घोड़ी बारा पाँव। रेंगत राहय पाय न ठाँव।।
येखर ऊपर तीन सवार। कोनो कभू न जाय बिसार।।
-घड़ी
929- सदा बढ़ावै शोभा जान। करिया रंग ल तैं पहिचान।।
पारै आँखी तीर निसान। लइका बर शुभ टीका मान।।
-काजर
930- रतिहाकुन सज-धज के आय। दिनभर अपने घर सुरताय।।
चमचम चमकै मन ला भाय। उजियारी जुड़हा बगराय।।
-चंदैनी
931-बिना पाँख के ऊँच उड़ाय। घेंच म पातर डोर बँधाय।।
हवा मितानी येखर जान। पानी देखत त्यागे प्रान।।
-पतंग
932- बिना बरे कुछु काम न आय। बारे मा ये गजब सुहाय।।
परे रहै दिन मा तिरियाय। रतिहाकुन झट सुरता आय।।
-चिमनी
933- अचरिज धन अइसन ये आय। जतके बाँटव बढ़ते जाय।।
नहीं चोर येला चोराय। सदा हमर ये मान बढ़ाय।।
-विद्या
934- एक पेड़ के बड़का ठाँव। खाल्हे राहय छाँवे छाँव।।
मेछा, दाढ़ी लामी लाम। संगी बोलव का हे नाम।।
-बर पेड़
935- दुख पीरा मा झरते जाय। खुशी परे मा थोरिक आय।।
नुनछुर लागय जेखर स्वाद। आँखी ला तैं कर ले याद।।
-आँसू
936- कोनो सकै न येला मार। काटय ना कोनो हथियार।।
संग सबो के रहिथे यार। राजा, मंत्री अउ दरबार।।
-छँइहा
937- करिया कुत्ता झबरू कान। मुकुट खाप के चलै सियान।।
सबो संग जोरय ये खाँध। जोड़ी सबके संगे बाँध।।
-भाँटा
938- खूँटा डाँगा बहुते ताय। गुरतुर येखर दूध मिठाय।।
दिखथे मुखड़ा जइसे गाय। जिनगी पानी बीच पहाय।।
-सिंघाड़ा
939- गोल गोलवा मोला मान। तहूँ हवच जी लमरी जान।।
ऊपर तोर कान तोपाय। हमर देंह ला उघरा पाय।।
आलू-भाँटा
940- तरिया डबरी उपजे जाँव। आरुग फर मैं महूँ कहाँव।।
साधू संतन मानय खास। खावँय मोला रहैं उपास।।
-सिंघाड़ा
941- आथे-जाथे, नइ हे पाँव। नगर-शहर, बस्ती अउ गाँव।।
शोर संदेशा घर पहुँचाय। पानी मा ये मर-हर जाय।।
-चिट्ठी पत्री
942- पानी भीतर चमके जाय। बिन पानी के मरना आय।।
तरिया नँदिया करै निवास। कतको धो ले हटै न बास।।
-मछरी
943- बड़का उँचहा येला जान। खड़े रथे ये अपने स्थान।।
घर कुरिया के ये रखवार। ईंटा, पखरा ले दमदार।।
-भिथिया
944- भरे खजाना मोती माल। देख-देख बस हो खुशहाल।।
हेर सकै ना कोनो जान। येखर चक्कर छुटथे प्रान।।
-दतैया छाता
945- बइला जेखर एक न सींग। लाम लाहकर टींगे टींग।।
नाँगर मा नइ जोंते जाय। आगू आबे, प्रान गँवाय।।
-बघवा
946- करिया लउठी लामी लाम। आय नहीं टेंके के काम।।
नइ तो येहा हाथ धराय। देखत येला सबो डराय।।
-साँप
947- फुलवारी के घमघम फूल। उल्टा लटके राहय झूल।।
कोनो येला टोर न पाय। कहाँ हाथ ले ये अमराय।।
-चँदैनी
948- सोन चिरइया येला जान। करिया मुख येखर पहिचान।।
पेट भीतरी दाना चार। जंगल झाड़ी हे घर द्वार।।
-तेंदू
949- खनखन बाजत चलते जाय। तरिया नँदिया बूड़ नहाय।।
जीवमार बड़ इही कहाय। फेर एकठन कुछु नइ खाय।।
-सौंखी
950- नान्हें चिरई येला जान। उँचहा उड़ना हे पहिचान।।
रहिथे लइकामन के साथ। उड़ना गिरना इँखरे हाथ।।
-पतंग
951- सादा उज्जर येखर रंग। रहै शांत, नइ जानय उतलंग।।
सिधवा जइसे दिखथे हाल। बहुते कपटी चतुरा चाल।।
-कोकड़ा
952- रहिथे येहा ताते तात। राँधय येहा जेवन घात।।
हवा देख ये बड़ थर्राय। पानी पीके झट मर जाय।।
-आगी
953- एक पेड़ मा गजब डँगाल। मन मा आथे एक सवाल।।
भारी कटही फर ला जान। भरे रथे फर मा गुन खान।।
-कटहर
954- नान्हें नोनी नटखट जान। येखर हावय छोट मकान।।
देंह केंवची कोंवर घात। पटर-पटर ये करथे बात।।
-जीभ
955- एक पेड़ हे हाथी पाँव। बारी-बखरी येखर ठाँव।।
पाना जइसे हाथी कान। लकड़ी नो हे, ले पहिचान।।
-केरा पेड़
956- एक जिनिस ये कइसे होय। बीच सभा मा बइठे रोय।।
थूँक-थूँक के जम्मों जाय। परे डरे ये कहाँ कहाय।।
-थूँकदानी
957- दाँत बिना ये लेवय काट। बिना पाँव के रेंगय बाट।।
चर्र-चर्र के बोलय बोल। सबो बिसावैं देके मोल।।
-पनही
958- दूध दही के सकला होय। लान मथानी गजब बिलोय।।
सादा उज्जर ये उफलाय। कड़क चुरो के घीव बनाय।।
-लेवना
959- देंह एक हे सुग्घर सार। जेखर ऊपर सात दुवार।।
पंछी येखर भीतर होय। आवाजाही दिखे न कोय।।
-प्राण
960- तन हा हावै येखर एक। दिखै नहीं पर होथे नेक।।
राहय येखर हाथ न पाँव। दँउड़े जाथे दुनिया ठाँव।।
-मन
961- इक नोनी के अलकर नाँव। दू तरपौंरी, छैठन पाँव।।
ओखर मुँड़ मा मेछा यार। जाथे उघरा हाट बजार।।
-तराजू
962- दरजा उँचहा खाल्हे काम। रोज बिहनिया जेखर नाम।।
जौन जघा मा ये नइ जाय। कोनो ला बइठन नइ भाय।।
-बाहरी
963- दू कौड़ी हे करिया जान। येखर आगू दुनिया मान।।
एक कटोरी पानी ताय। बीच-बीच मा टपके जाय।।
-आँखी
964- रिंगी-चिंगी चमकै काँच। लागय सुग्घर सबले साँच।।
नारीमन के मन ला भाय। गोल-गोल ये बाँह म छाय।।
-चूरी
965- मुँड़ खुसरे हे भीतर पार। चोट-बड़े चक्का हे सार।।
निकले पसली बाहिर देख। सूँत बरावय चिटिक सरेख।।
-चरखा
966- जीभ फटे अउ मुँड़ी कटाय। अपने मन के बात बताय।।
आखर करिया उगले जाय। खीसा भीतर ठौर बनाय।।
-कलम
967- पेट बड़े अउ मुँहुँ हे जान। पेंदी चाकर, काँच समान।।
पढ़े-लिखे मा आथे काम। संग कलम के जुड़थे नाम।।
-दवात
968- घेरावाला लँहगा डार। एक पाँव मा फिरै अपार।।
हाथ आठ देवय फैलाय। जाड़ पड़े मा ये सकलाय।।
-छतरी
969- कटै आखिरी पाँव कहाय। शुरू कटै संगी बन जाय।।
तीन वर्ण के हावय नाम। आथे मुँड़ मा पहिरे काम।।
-पगड़ी
970- कटै आखिरी सीता जान। शुरू कटै संगी तैं मान।।
जंगल मा ये रहिथे यार। तीन वर्ण के लिखना सार।।
-सियार
971- चाम, माँस येमा नइ होय। हाड़ा चारों कोती सोय।।
तभो हवै ये बहुते खास। जेखर भीतर जीव निवास।।
-पिंजरा
972- मुँड़ मा चुन्दी जटा समान। सादा उज्जर रंगत जान।।
हाथे पोथी धारे जाय। जोगी, ज्ञानी कहाँ कहाय।।
-लहसुन
973- एक सींग अउ चारे कान। एक पाँव हे येखर मान।।
तामस गुण अउ करिया रंग। रँधनी खोली राहय संग।।
-हींग
974- चोला उज्जर, सादा सोय। जटा मुँड़ी मा येखर होय।।
एक गोड़ मा धरथे ध्यान। भारी कपटी येला जान।।
-कोकड़ा
975- सरी जगत ला देखत जाय। कभू अपन नइ गाँव ल पाय।।
हाँसय-रोवय अपने आप। नँदिया भीतर रहिथे खाप।।
-आँखी के पुतरी
976- कारी गोरी दूझन नार। नाँव एक हे इँखरो यार।।
छोट-बड़े होथें इन खास। एक करू अउ एक मिठास।।
-लायची
977- हरियर लुगरा पहिरे नार। जन-जन के करथे सत्कार।।
जेवन पाछू आगू आय। सबके मुँहुँ ला लाल रचाय।।
-पान
978- एक चिरैया घुमते जाय। भर-भर पानी तँउरे भाय।।
भरे कुआँ मा ये सुरताय। रहि-रहि पानी फेर मँगाय।।
-मथानी
979- एती ओती मैं हा जाँव। सबला ओखर घर पहुँचाँव।।
फेर अपन मैं जघा न पाँव। एक जघा मा बइठ पहाँव।।
-रद्दा
980- करिया हे कौआँ झन मान। खम्भा हे हौआ झन जान।।
लाम नाक ले करथे काम। धम्मक रेंगय, बोलव नाम।।
-हाथी
981- एक अचंभा देखे जाय। मुरदा होके रोटी खाय।।
कोनो कोन्हा रहै लुकाय। मार परै ता चिहुर मचाय।।
-माँदर
982- जइसे नँदिया पूरा पाट। चंदन, चोवा बगरे घाट।।
एक हाथ खूँटा गड़ियाय। चारों मूँड़ा घूमत जाय।।
-जाँता
983- हरियर लुगरा ओढ़े आय। लाखों मोती धरे सुहाय।।
पहुँचै राजा के दरबार। लेंवँय लत्ता तुरत उतार।।
-भुट्टा
984- एती-वोती ले ये आय। चिटिक जघा मा बइठ समाय।।
हाथ धरे ये आये जाय। नाँव काय हे कोन बताय।।
-लाठी
985- कुबरी तन हे, मया जताय। आँखी आगू बइठे जाय।।
पाँव अपन ये नाक मढ़ाय। कान हाथ ले अँइठे पाय।।
-चश्मा
986- शुरू कटै ता 'गरा' कहाय। कटै आखिरी 'आग' लगाय।।
बीच कटै 'आरा' बन जाय। तीन वर्ण के शहर बताय।।
-आगरा
987- बीच कटै ता 'बरी' कहाय। मुँड़ी कटै ता 'करी' बनाय।।
कटै आखिरी 'बक' बन जाय। तीन वर्ण के जीव सुहाय।।
-बकरी
988- शुरू कटै ता 'नर' कहलाय। कटै आखिरी धनुष चढ़ाय।।
बीच कटै ता दिन बन जाय। जीव बहुत ये उधम मचाय।।
-वानर
989- बीच कटै चंचल भटकाय। शुरू कटै सब बात सुनाय।।
कटै आखिरी 'मका' कहाय। तीन वर्ण हे सब ला भाय।।
-मकान
990- चार वर्ण के येखर नाम। विष्णु, कृष्ण के करथे काम।।
शुरू कटै ता दर्शन होय। भगवन अँगरी येहा सोय।।
-सुदर्शन चक्र
991- कटै शुरु ता कम पर जाय। बीच कटै दर्जन कहलाय।।
कटै आखिरी चिरई होय। तीन वर्ण हे, जानव कोय।।
-बाजरा
992- पाँख हवै पर कहाँ उड़ाय। पाँव हवै पर रेंग न पाय।।
हाथ धरे चक्का ल चलाय। लामी लामा सूँत लमाय।।
-चरखा
993- शुरू कटै तरिया बन जाय। बीच कटै ता 'केर' कहाय।।
कटै आखिरी मुँड़ी सजाय। तीन वर्ण हे, कोन बताय।।
-केसर
994- रतिहाकुन ऊपर ले आय। डारा पाना मा इँतराय।।
मोती जइसे येखर रूप। एकोकन सहि सकै न धूप।।
ओस
995- हाथ बोलथे सुनथे हाथ। बोल न होवय येखर साथ।।
छुअत बतावै जम्मों हाल। हे जनऊला बड़े कमाल।।
-नाड़ी
996- पानी थोरिक रहै भराय। ऊपर मुँहड़ा आग धराय।।
गुड़गुड़ बोली गजब सुनाय। बीच-बीच मा धुआँ उड़ाय।।
-हुक्का
997- पाँव तीन हे, चलै न एक। एक जघा राहय ये टेक।।
जो जन येखर तीरे जाय। येखर ऊपर बइठे पाय।।
-तिपाया
998- घटै बढ़ै चंदा झन जान। करिया हे कोयल झन मान।।
आगू-पाछू फिरना काम। बोलव संगी का हे नाम।।
-छँइहाँ
999- घोड़ा माटी के तैं जान। ऊपर लोहा गोल मकान।।
बइठै येमा गिल्ला राम। निकलै हो के सुख्खा श्याम।।
-तावा
1000- आवय तब ये करै अचेत। बइठै मा अँधरा कर देत।।
उठै तभो पीरा दे जाय। जावत खानी खूब सताय।।
-आँखी रोग
1001- लाली डब्बा हावै साँच। भीतर बहुते पींयर खाँच।।
खाँचा मा बड़ मोती दाँत। खावँय दुनिया मजा उड़ाँत।।
-अनार
1002- आजे भर उपयोगी जान। काली बर ये रद्दी मान।।
घर बइठे सब जानँय हाल। कागज कुटका करै कमाल।।
-अखबार
1003- करिया घोड़ा बइठे ताय। बइठे-बइठे ये ललियाय।।
खूब सवारी सादा आय। उतरै एक दुसर चढ़ जाय।।
-तावा अउ रोटी
1004- गोल हवै पर नो हे गेंद। कहाँ माढ़थे, नइ हे पेंद।।
पुछी हवय पर नो हे गाय। लइकामन हा बहुते भाय।।
-फुग्गा
1005- शुरू कटै ता 'दर' बन जाय। कटै आखिरी 'बंद' कहाय।।
तीन वर्ण के हावय नाँव। जंगल झाड़ी जेखर ठाँव।
-बंदर
1006- कटै शुरू ता 'गर' बन जाय। बीच कटै ता मनुज कहाय।।
कटै आखिरी 'नग' पढ़ पाय। तीन वर्ण हे, बोलव काय।।
-नगर
1007- आँखी ऊपर रहिथे तान। पातर करिया परे निसान।
कुकुर बोल येखर हे नाँव। सोंचव संगी एको घाँव।।
-भौं
1008- एक मुँड़ी अउ तीनों हाथ। रहिथन जम्मो एक्के साथ।।
गोल-गोल बड़ घूमँन रोज। गरमी मा सब करथें खोज।।
-पंखा
1009- एक पाँव अउ धोती आठ। आनी-बानी जेखर ठाठ।।
सावन-भादो बहुते ताय। बाँकी बेरा खुँटी थिराय।।
-छाता
1010- जाथे मनखे हाट बजार। लाथें मोला पइसा डार।।
खाये खातिर मोल बिसाँय। पर मोला कोनो नइ खाँय।।
प्लेट, चम्मस
1011- रतिहाकुन इन रोजे आँय। नइ तो काँही कुछु चोराँय।।
दिनभर येमन अमित लुकाँय। अँधियारी मा मुँहुँ देखाँय।।
-चंदैनी
1012- दू आखर के सुग्घर नाम। आथे येहा सबके काम।।
उल्टा लिख दे होय जवान। बिन येखर तो हाय परान।।
-वायु
1013- पानी बिन ये भवन बनाय। देवय सबके संग मिलाय।।
बइठे-बइठे जोहत जाय। फाँस-फाँस के भोजन पाय।।
-मेकरा के जाला
1014- हावय येखर बहुते दाँत। बिन मुँहुँ के ये करथे बात।।
गुरतुर-गुरतुर बोलय बोल। सुन-सुन जाथे मन हा डोल।।
-हारमोनियम
1015- हवै सींग, छेरी झन जान। काठी हे, घोड़ा झन मान।।
ब्रेक हवै पर नो हे कार। घंटी हे पर नो हे द्वार।।
-साइकिल
1016- तीन वर्ण के हावय नाम। आवय ये खाये के काम।।
बीच कटे ता 'हवा' कहाय। कटै अंत 'नाँगर' बन जाय।।
-हलवा
1017- दिनभर बेरा देख बिताय। सूरुज कोती मुँहें लमाय।।
काय बात मा जाय रिसाय। रतिहाकुन ये मुँड़ी नवाय।।
-सुरजमुखी
1018- फूल एकठन अइसन जान। अजब कहानी जेखर मान।।
पाना ऊपर पाना छाय। दुनिया भर मा बहुते भाय।।
-पत्ता गोभी
1019- दू आँगुर के सड़क कहाय। आदत अपने कड़क बताय।।
सबके घर मा आवय काम। आग लगइया येखर नाम।।
-माचिस
1020- रुखराई मा रात बिताय। चींव-चींव कहि गीत सुनाय।।
संझा, बिहना उड़ते जाय। रिंगी चिंगी पाँख रचाय।।
-चिरई
1021- अचरिज करथे येउउखर खेल। जलथे बिन बाती बिन तेल।।
पाँव बिना ये रेंगत जाय। अँधियारी ला मार भगाय।।
सूरुज
1022- कटै शुरू ता नून कहाय। बीच कटै ता बोल सुनाय।।
कटै आखरी कनवा जान। तीन वर्ण हे झट पहिचान।।
-कानून
1023- शुरू कटै ता ये बंदूक। कटै आखिरी आगी लूक।।
बीच कटै ता देखव शान। तीन वर्ण के मोला जान।।
-आँगन
1024- ना तो येहा आगी आय। ना तो ये कोनो ल जलाय।।
परथे येला तभो बुझाय। संगी देवव तुरत बताय।।
-प्यास
1025- एक फसल हे बिन बोंवाय। खातू माटी नइ तो पाय।।
हब-हब येहा बाढ़े जाय। काटे बर बनिहार लगाय।।
-चुन्दी
1026- तीन पाँव, रेंगे नइ पाँव। एक ठौर मा बइठ पहाँव।।
भाग सकँव ना मैं हा यार। बाँध रखय मोला संसार।।
-घड़ी
1027- मोर एक ना हाथे पाँव। तभो पहुँच जावँव हर ठाँव।।
बिन मुँहुँ के मैं बात बताँव। झोला बइठे आवँव जाँव।।
-चिट्ठी
1028- नाँव सुनत मा सब थर्राय। पर के इच्छा नाँव धराय।।
करँय तियारी सब संसार। पायेबर
येखर ले पार।।
-परीक्षा
1029- आगी हा नइ सके जलाय। पानी हा नइ सके भिगाय।।
संगे आवय संगे जाय।। चतुरा संगी नाँव बताय।।
-अपन छँइहा
1030- फूल नहीं पर ये ममहाय। जरथे पर इरखा न कहाय।।
पूजा घर मा येखर ठाँव। सोंच बताऔ का हे नाँव।।
-अगरबत्ती
1031- एती ओती गजब घुमाय। नींद परे मा ही ये आय।।
आँख मूँद के देखन भाय। छूये मा ये नइ छूवाय।।
-सपना
1032- ना ये एक्को तनखा पाय। कहाँ कभू ये जेवन खाय।।
घर के बाहिर लटक बिताय। डँट के पहरा घलो निभाय।।
-ताला
1033- मिलथे जेला मन खिल जाय। जादा होगे ता रोवाय।।
लगन मेहनत जौन कमाय। ओखर तीरे बहुते आय।।
-खुशी
1034- डबिया हावय अइसन एक। बिन ढ़कना तारा हे नेक।।
पेंदी कोन्हा नइ तो जान। भीतर सोना चाँदी मान।।
-अण्डा
1035- अंत कटै मनखे बन जाय। कटै बीच ता जम कहलाय।।
शुरू कटै ता नरम पढ़ाय। तीन वर्ण हे, कौन बताय।
-जनम
1036- बिन आगी के खीर बनाय। नुनछुर-गुरतुर स्वाद जनाय।।
चिटिक चाँटबे खूब मिठाय। जादा खाबे जीभ कटाय।।
-खाये के चूना
1037- रोवत ला येहा हँसवाय। आनी-बानी नाच दिखाय।।
नाचा गम्मत मा ये छाय। सर्कस भीतर देखे जाय।।
-जोक्कड़
1038- लगै प्यास ता पीते जाव। भूख लगै ता खाते खाव।।
लगै जाड़ ता इही जलाव। काय हरै झट नाँव बताव।।
-नरियर
1039- एक चीज अचरिज हे मान। पानी ले बनथे ये जान।।
सूरुज नइ तो सकै सुखाय। तन मा उपजै, कौन बताय।।
-पछीना
1040- सुतत साठ ये हा सुत जाय। उठत बेर ये झट उठ आय।।
येहा बहुते हरू जनाय। आँखी के परदा कहलाय।।
-आँखी के पलक
1041- धरती ले ये उपजे आय। बादर कोती मुँड़ी उठाय।।
हालै-डोलै, रेंग न पाय।। अपन पाँव ले जेवन खाय।।
-रुखराई
1042- चार कुआँ बिन पानी जान। चोर अठारा घूमँय मान।।
चोर बीच मा रानी एक। पुलिस कुआँ मा डारय फेंक।।
कैरमबोर्ड
1043- मुकुट मुँड़ी मा खापे लाल। घेंच ओरमे झोला झाल।।
पाँखी डेना शोभा आय। चिरई होके नइ उड़ियाय।।
-कुकरा
1044- राजमहल हरियर हे एक। हावय भिथिया पींयर नेक।।
भीतर बइठे करिया चोर। राजमहल ला दय बिल्होर।।
-अरंमपपई
1045- चक्का दूठन येखर सार। महिमा हावय अपरंपार।।
बइठ सीट अउ पैडिल मार। चढ़व फिरौ सुग्घर संसार।।
-साइकिल
1046- घर अँगना मा आवय मोर। चींव-चींव के करके शोर।।
दाना पानी खाय उड़ाय। बड़े बिहनिया गीत सुनाय।।
- गौरइया चिरई
1047- कँसे डोकरी कनिहा एक। बुता करय ये रोजे नेक।।
घर अँगना सुग्घर चमकाय। बुता निपटगे सुते पहाय।।
-बहरी
1048- हाथ लगै ता चलते जाय। जौन पाय सब काट मढ़ाय।।
थक जावय ता ये सुरताय।। पखरा चाटै जोश बढ़ाय।।
-चाकू
1049- रोज बिहनिया हाथे आय।। गजब चाबथें फेर न खाय।।
करै सफाई जिभिया दाँत। फेंकय करके सब दूँ फाँत।।
-दतुवन
1050- तीन वर्ण हँव मोला जान। उल्टा सीधा एक समान।।
शुरू कटै ता 'टक' बन जाँव। कटै आखिरी 'कट' कहलाँव।।
-कटक
1051- नोनी-बाबू खेलँय जान। खंभा दू गाड़ै मैदान।।
आठ खिलाड़ी टीम बनाय। भागय तेला छू दँउड़ाय।।
-खो-खो
1052- भुँइया मा ये खेले जाय। दाँव सुघर दू दल देखाय।।
सात खिलाड़ी एक्के पार। जौन छुवावै ओखर हार।।
-कबड्डी
1053- फुदुक-फुदुक ये खेले जाय। उँखरू बइठे पाँव चलाय।।
नोनीमन ला बहुते भाय। चिटिक जघा मा काम चलाय।।
-फुगड़ी
1054- दू दल येमा खेलँय जान। भर-भर साँसा गावँय गान।।
गावत खानी साँसा टूट। होवय बाहिर, जावय छूट।।
-खुड़वा
1055- गेंद न बल्ला येमा जान। बस चाही खुल्ला मैदान।।
लकड़ी नान्हें छोल बनाय। डंड़ा मारत, दाम पदाय।।
-गिल्ली डंडा
1056- एक पाँव मा उछले जाय। डब्बा-डब्बा डाँड़ खिंचाय।।
खपरा, पखरा कुटका लान। मुक्का-बोली खेलँय जान।।
-बिल्लस
1057- डब्बा बनथें येमा चार। खपरा कुटका खेले सार।।
पाँच गड़ी मिल खेलँय खेल। हार जीत के सुग्घर मेल।।
-फल्ली
1058- लकड़ी छोले गोल बनाय। खाल्हे कोती खिला धराय।।
फरिया बर नेती बनवाँय। फेंक पटक के खूब चलाँय।
-भौंरा
1059- होथे चीनी या ते काँच। खेलँय लइका गड्डा खाँच।।
गिनथें सब दस बीस पचास। जेखर जल्दी सौ, वो पास।।
-बाँटी
1060- लइका बइठैं गोल बनाय। दाम पदे वो बाहिर जाय।।
पटका धरके रहे लुकाय। कखरो पाछू जाय मढ़ाय।।
-फोदा
1061- डारा पाना जम्मों लाल। कोंवर भाजी करय कमाल।।
कमी लहू के पूरा होय। विटामीन 'सी' बहुते सोय।।
-लाल भाजी
1062- चिक्कन-चिक्कन रहिथे पान। येमा गुण के भरे खदान।।
राँधव भाजी आलू डार। खावव सुग्घर दार बघार।।
-पालक भाजी
1063- चउमासा मा उपजै झार। पान केंवची येखर सार।।
बिन पइसा के येला पाव। बड़ गुणकारी, खच्चित खाव।।
-चरौंटा भाजी
1064- बहुते मँहगी होथे जान। उँचहा भाजी उँचहा शान।।
होय पेड़ के पाना फूल। फागुन मा ये आथे झूल।।
-बोहार भाजी
1065- रहिथे पानी जिहाँ भराय। उँहचे छछले बहुते जाय।।
पाना डारा आवय काम। गजब मिठाथे, जानँव नाम।।
-करमत्ता भाजी
1066- अमसुरहा अम्मट भरमार। कोंवर पाना फर हे सार।।
भरे आयरन बड़ गुणकार। फर के चटनी, सुकसा सार।।
-अमारी भाजी
1067- कटही पाना हे पहिचान। हावय येमा गुण के खान।।
जाड़ा मा ये बहुते आय। गुणकारी हे, दुनिया खाय।।
-कुसुम भाजी
1068- नइ तो कोनो हा उपजाय। नँदिया तीर मा बहुते छाय।।
पेट रोग जब बहुत सताय। खच्चित ये भाजी ला खाय।।
-गुमी भाजी
1069- चउमासा अउ जाड़े आय। कोंवर पाना साग बनाय।।
गिल्ला जुड़हा जघा सहोय। दुनिया स्वादे येखर खोय।।
- तिनपनिया भाजी
1070- नान्हें झाड़ी येला जान। खाथे कोंवर डारा पान।।
बनय मसलहा, अम्मट डार। दार अमारी राँध सँघार।।
-चेंच भाजी
1071- भुँइया भीतर कांद कहाय। ऊपर पाना बाँस सुहाय।।
चाय, साग मा डारे जाय। चुरपुर पर गुणकारी आय।।
-आदा
1072- ऊपर पाना झाफर होय। भुँइया भीतर काँदा सोय।।
दिखथे पींयर लकड़ी गाँठ। भुरका करथें, पिसथें टाँठ।।
-हरदी
1073- गंजी मा पानी डबकाय। शक्कर, आदा, दूध मिलाय।।
डारँय करिया भुरका पान। फूँक-फूँक के पियै जहान।।
चाय
1074- घर अँगना मा चौंरा पाय। नान्हें बिरवा बढ़ते जाय।।
फूल मंजरी पान सहाय। गजब गुणी ये पौध कहाय।।
-तुलसी
1075- बारी बखरी उपजे जाय। पाना पिस के चटनी खाय।।
महर-महर बड़ ये ममहाय। येहा मुँहुँ के बास भगाय।।
-पदीना
1076- कथा महाभारत के गाय। धरे तमूरा मंचे जाय।।
कौरव-पांडव बात बताय। लोकरंग मा रहे रँगाय।
-पंडवानी
1077- जैतखाम ला माथ नवाय। गुरु घासी के कथा सुनाय।।
नाचँय, माँदर, झाँझ बजात। सत के सुग्घर बात बतात।।
-पंथी
1078- चइत कुँवारे मा नवरात। देवी सेवा गीत सुनात।।
माँदर, ढ़ोलक, झाँझ बजाय। दाई महिमा गाय सुनाय।।
-जस गीत
1079- करम करे के देवय सीख। करौ मेहनत, झन लव भीख।।
इही भाव ले खुशी मनाँय। गोल घेर सब नाचैं गाँय।।
-करमा
1080- लोक गीत के रानी आय। मया पिरित के गोठ सुनाय।।
काम बुता के संगे संग। नाच-गान ये जिनगी रंग।।
-ददरिया
1081- अपन जँहुरिया मिल सकलाय। माटी मिट्ठू बीच बिठाय।।
सज-धज सुग्घर गोल बनाय। पिट-पिट ताली गीत सुनाय।।
-सुवा गीत
1082- देवारी के दिन जब आय। राउत भाई सब सकलाय।।
सजे-धजे बड़ खुशी मनाय। दोहा लउठी धरे सुनाय।।
-राउत नाचा
1083- चउमासा मा गजबे गाँय। दू भाई के कथा सुनाँय।।
नस-नस मा ये जोश जगाय। लोककथा ये सब ला भाय।।
-आल्हा
1084- गौरा-गौरी मुरत बनाय। बर बिहाव के नेंग मढ़ाय।।
फूल कुचरना पहिली आय। सुग्घर उत्सव, गीत सुनाय।।
-गौरा गीत
1085- चुलमाटी, मड़वा जब छाय। देवतला अउ तेल चघाय।।
नेंग भड़ौनी भाँवर होय। बेर बिदाई, जम्मों रोय।।
-बिहाव गीत
1086- जनम धरे घर लइका आय। माई-पिल्ला खुशी मनाय।।
मिलके गावँय मंगल गान। राम, कृष्ण के जनम समान।।
-सोहर गीत
1087- सावन के अंजोरी आय। भरे गहूँ टुकनी तब बोंवाय।।
नोनीमन हा सेवा गाँय। देवी गंगा गीत सुनाँय।।
-भोजली गीत
1088- राजा घर ला छोड़े जाय। कइसे वो योगी बन आय।।
सुख दुख पीरा मरम बताय। इही बात सब गीत सुनाय।।
-भरथरी गीत
1089- गोदरिया धर तमुरा आय। घर-घर जय गंगान सुनाय।।
दान दक्षिणा तुरते पाय। गौंटनीन जय कहते जाय।।
-बसदेवा गीत
1090- नाच-गान येखर पहिचान। हँसी ठिठोली बहुते जान।।
परी संग जोक्कड़ हा आय। जिनगी खातिर सीख सिखाय।।
-नाचा
1091- तीन गोड़ के तितली ताय। बुड़के रोजे तेल नहाय।।
चटनी संगे बड़ इँतराय। लइका छउआ नँगते भाय।।
-समोसा
1092- शुरू कटै ता मन कहलाँव। कटै आखिरी 'नम' हो जाँव।।
बीच कटै ता कुछु नइ पाँव। ईश प्रार्थना, माथ नवाँव।।
-नमन
1093- कटै शुरू ता 'रस' हो जाय। कटै आखिरी 'सार, कहाय।।
बीच कटै ता 'सास' पढ़ाय। सादा रंगे चिरई आय।।
-सारस
1094- बीच कटै ता 'चाल' बताय। कटै आखिरी 'चाव' कहाय।।
तीन वर्ण के हावय नाम। आथे ये खाये के काम।।
-चावल
1095- शुरू कटै ता 'बड़ी' कहाय। कटै आखिरी 'ईश' बलाय।।
हरै मिठाई के ये नाम। आये ये खाये के काम।।
-रबड़ी
1096- बीच कटै ता 'खरा' जनाय। कटै आखिरी चिट्ठी ताय।।
तीन वर्ण के नाँव सरेख। सावचेत राहँय सब देख।।
-खतरा
1097- तीन वर्ण हे येला जान। उल्टा-सीधा एक समान।।
शुरू कटै ता नाक कहाय। कटै आखिरी कान सुनाय।।
-कनक
1098- शुरू कटै ता कान कहाय। बीच कटै ता दूध पियाय।।
जम्मों चाहँय करन अराम। तीन वर्ण हे, का हे नाम।
-थकान
1099- कटै आखिरी 'नक' बन जाय। बीच कटै नाली हो जाय।।
कटै शुरू ता फूल खिलाय। तीन वर्ण हे, अमित बताय।।
-नकली
1100- उल्टा सीधा एक समान। तीन वर्ण हे येला जान।
शुरू कटै ता लाज कहाय। बीच कटै ता सजा सुनाय।।
-जलज
1101- शुरू कटै ता 'गर' बन जाय। बीच कटै ता 'नर' कहलाय।।
कटै आखिरी 'नग' गिनवाय। तीन वर्ण हे, कोन बताय।।
-नगर
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- मोर बिना ना होवय काम। दू आखर के हावय नाम।।
अपन जघा ले चल नइ पाँव। आथे-जाथे तभो कहाँव।।
-नल
- शुरू कटै ता देंह समान। कटै बीच ता जंगल जान।।
येखर रक्षा पहिली काम। तीन वर्ण हे, जानव नाम।।
-वतन
- तीन वर्ण हे लव पहिचान। सोन चिरैया देश महान।।
बीच कटै ता भात कहाय। कटै आखिरी वजन जनाय।।
-भारत
नदियाँ जम्मों इहाँ समाय। तभो कभू नइ पूरा आय।।
पानी येखर बहुते खार। नाव बतावव, सोच विचार।।
-सागर
महतारी के दाई जान। का कहिथे येला पहिचान।
नाती-पंथी लय पोटार। अंतस राखय मया अपार।।
-नानी
हमर ममा के येहा बाप। महतारी मा येखर छाप।।
बात सियानी, कथा सुनाय। बोलव संगी, कोन कहाय।।
-नाना
येखर अलगे होथे शान। ससुरारे मा बहुते मान।।
नेंग-जोख मा येला देख। गजब दुलरवा, नाव सरेख।।
-भाँटो
सबो नता के येहा सार। जात-पात ला अमित बिसार।।
सुख-दुख मा देवय संग। लागय जइसे एके अंग।।
-संगी
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सृजन- कन्हैया साहू 'अमित'
शिक्षक- भाटापारा छत्तीसगढ़
गोठबात- 9200252055
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