निज भाषा के मान ~(आल्हा छंद)
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आखर-आखर भाखा बनथे,
भाखा प्रगटे भाव विचार।
महतारी के बोली बोलव,
निज भाखा बिन सब बेकार।~1
सिखव लिखव बोलव निज भाखा,
हावय येमा गुन के खान।
महतारी भाखा ला मानव,
अंतस के बड़ गरब गुमान।~2
फूलँय बाढ़ँय जम्मों भाखा,
काबर करबो करन विरोध।
हमरो भाखा आगू बढ़ही,
राखन अपने अंतस बोध।~3
जनमें जेखर कोरा मा हम,
वो भुँइयाँ हे सरग समान।
नान्हेंपन ले सुन-सुन लोरी,
वो भाखा हे ब्रम्ह गियान।~4
लोककला अउ संस्कृति सब के ,
निज भाखा ले पाय अधार।
जतका जादा करबो सेवा,
मया बाढ़ही 'अमित' अपार।~5
आवव सिखन लिखन बन तपसी,
साधक बनके छंद विधान।
साहित रचव नियम के संगत,
होही जग मा तब गुनगान।~6
करन साधना आखर के नित,
आखर होथे ब्रह्म समान।
सोच समझ के लिखबो थोरिक,
लिखना रचथे बेद पुरान।~7
राग रंग के काटव जाला,
सत साहित मा लगै धियान।
माता सारद किरपा करहू,
पावँव गुरु ले 'अमित' गियान।~8
जइसे जइसे लिखबो आगू,
आय लेखनी मा अति धार।
अदर कचर सब घुरवा जाही,
माई कोठी धरलन सार।~9
लगन लगाबो करके महिनत,
सिरजाबो सरलग सब छंद।
गुरु के पाके किरपा मंतर,
लिखय सार साहित मतिमंद।~10
लिखव पढ़व महतारी भाखा,
बाढ़य नित दिन एखर मान।
रचव छंद निज भाखा बोली,
कालजयी कस पावय शान।~11
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*कन्हैया साहू "अमित"*
शिक्षक~भाटापारा (छ.ग)
संपर्क~9200252055
©opy ®ights........
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